आशेयजी की सर्वाधिक प्रसिद्ध व्यंग्य कविता क्या है ?

  1. कविता क्या है निबंध
  2. व्यंग्य : कथन की शैली बनाम साहित्य
  3. 'लेख
  4. कविता किसे कहते है? कविता का क्या अर्थ हैं
  5. हरिशंकर परसाई: समाज की रग


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कविता क्या है निबंध

kavita kya hai- ram chandra shukla कविता क्या है , भाग- 1 कविता से मनुष्य-भाव की रक्षा होती है। सृष्टि के पदार्थ या व्यापार-विशेष को कविता इस तरह व्यक्त करती है मानो वे पदार्थ या व्यापार-विशेष नेत्रों के सामने नाचने लगते हैं। वे मूर्तिमान दिखायी देने लगते हैं। उनकी उत्तमता या अनुत्तमता का विवेचन करने में बुद्धि से काम लेने की जश्रूरत ही नहीं पड़ती। कविता की प्रेरणा से मनोवेगों[1] के प्रवाह जोर से बहने लगते हैं। तात्पर्य यह कि कविता मनोवेगों को उत्तेजित करने का एक उत्तम साधन है। यदि क्रोध, करुणा, दया, प्रेम आदि मनोभाव मनुष्य के अन्त:करण से निकल जाएं तो वह कुछ भी नहीं कर सकता। कविता हमारे मनोभावों को उच्छ्वसित करके हमारे जीवन में एक नया जीव डाल देती हैं। हम सृष्टि के सौन्दर्य को देखकर मोहित होने लगते हैं। कोई अनुचित या निष्ठुर काम हमें असह्य होने लगता है। हमें जान पड़ता है कि हमारा जीवन कई गुना अधिक होकर समस्त संसार में व्याप्त हो गया है। कार्य में प्रवृत्ति कविता की प्रेरणा से कार्य में प्रवृत्ति बढ़ जाती है। केवल विवेचना के बल से हम किसी कार्य में बहुत कम प्रवृत्त होते हैं। केवल इस बात को जानकर ही हम किसी काम के करने या न करने के लिए प्राय: तैयार नहीं होते कि वह काम अच्छा है या बुरा, लाभदायक है या हानिकारक। जब उसकी या उसके परिणाम की कोई ऐसी बात हमारे सामने उपस्थित हो जाती है जो हमें आधाद, क्रोध और करुणा आदि से विचलित कर देती है तभी हम उस काम को करने या न करने के लिए प्रस्तुत होते है। केवल बुद्धि हमें काम करने के लिए उत्तेजित नहीं करती। काम करने के लिए मन ही हमको उत्साहित करता है। अत: कार्य-प्रवृत्ति के लिए मन में वेग का आना आवश्यक है। यदि किसी से कहा जाय कि अमुक देश तुम्हा...

व्यंग्य : कथन की शैली बनाम साहित्य

अपने आदि रूप में व्यंग्य कथन की एक शैली रहा है जिसका प्रारंभिक उपयोग व्यक्तिगत दोष निवारण और तानाकशी के रूप में होता था। कथन की यह शैली सर्वदा वंदनीय है क्योंकि यह एक ऐसी शक्ति है जो पहली बार हथियार के रूप में दोषोद्घाटन के लिए प्रयोग की गई। व्यंग्य का मूल्य भी इसी में है कि वह हमारी कमजोरियों और सामयिक अपेक्षाओं से हमें अवगत कराए। पतित मनोवृत्तियों का विरोध करें और भ्रष्टाचार के विरूद्ध रचनात्मक विचार दें। ‘व्यंग्य’ शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है जो ‘अज्ज’ धातु में ‘वि’ उपसर्ग और ‘ण्यत्’ प्रत्यय के लगाने से बनता है। इस शब्द का मुख्यतः प्रयोग भारतीय काव्यशास्त्र में ‘शब्दशक्तियों’ के अन्तर्गत हुआ है। जहाँ हम साहित्य में शब्दशक्तियों की चर्चा करते है तो व्यंजना शक्ति के संदर्भ में ‘व्यंग्यार्थ’ के रूप में इस शब्द का प्रयोग होता है। सामान्य कथन में व्यंग्य को लोग ‘ताना’ या ‘चुटकी’ की भी संज्ञा देते है। इस शब्द का कोशगत अर्थ है “लगती हुई बात जिसका कोई गूढ़ अर्थ हो।” अति साधारण रूप में इसे ‘लगती हुई बात’ कहा गया। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने व्यंग्य की परिभाषा देते हुए कहा र्है “व्यंग्य कथन की एक ऐसी शैली है जहाँ बोलने वाला अधरोष्ठों में मुस्करा रहा हो और सुनने वाला तिलमिला उठे।” यानी व्यंग्य तीखा व तेज-तर्रार कथन होता है जो हमेशा सोद्देश्य होता है और जिसका प्रभाव तिलमिला देने वाला होता है। कालान्तर में व्यंग्य के साथ हास्य भी जुड़ गया और हास्य का पक्ष इतना प्रबल हो गया कि लोग इसे ‘हास्य-व्यंग्य’ कहने लगे। अंग्रेजी व्यंग्यकार इसे ‘सटायर’ और ‘ह्यूमर’ आदि नाम से पुकारने लगे। आज तो व्यंग्य अपनी लोकप्रियता के लिए अपने में हास्य को भी समेटने लगा। आज हास्य और व्यंग्य लगभग एकसाथ सन्...

'लेख

जन्म : 25 जनवरी 1970 ई. ग्राम : हरपुर, जिला : संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) शिक्षा : एम.ए., एम.फिल., और पी-एच. डी. (हिंदी विभाग) जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली-110007 रुचियाँ : साहित्य, सामाजिक कार्य और पेंटिंग साहित्य की लगभग सभी महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में लेखों, कहानियों और कविताओं का निरंतर प्रकाशन। --------------------------- भारतवर्ष की समकालीन कविता विश्व कविता का ही एक चमकदार, स्मरणीय और सशक्त पक्ष है। हिन्दी सहित पंजाबी, मराठी, गुजराती, उड़िया या तेलगू साहित्य में कविता का मौजूदा स्वर प्रगतिशील बेचैनी का स्वर है। यह प्रगतिशीलता माक्र्सवाद से प्रेरित होते हुए भी उससे आगे और अलग हटकर जीवन-सत्य को परखती और प्रकट करती है। फैशन, चलन, व्यक्तित्व और संगीत जिस तरह सीमाविहीन होते हैं, ठीक उसी तरह साहित्य सृजन की शैलियाँ, उसे प्रेरित करने वाली विचारधाराएँ और उसके अन्तर्गत उठाए जाने वाले विषय। यूरोप में जब रोमांटिक युग का उदय हुआ, तो कुछ वर्षों के फासले पर बंगाल की खाड़ी के रास्ते से कल्पनावादी भावधारा ने बंगला साहित्य में दस्तक दी जिसके सबसे उद्दाम गायक बने रवीन्द्रनाथ ठाकुर। समकालीन विश्व कविता लगभग ५०-६० वर्षों का श्रेष्ठ इतिहास मानी जा सकती है। जिसके केन्द्र में युद्ध की विभीषिका, गुमनाम आदमी का जीवन संघर्ष, स्त्री की आकांक्षा, उसके अधिकार दैहिक और मांसल प्रेम, पर्यावरण, प्रकृति का पुनर्सम्मान, नैतिक मूल्यों का पुनर्जागरण और वैयक्तिक उलझनों, कंठाओं, आत्मसंघर्ष और सपनों की अभिव्यक्ति मुख्य रही है। किन्तु इन सब प्रवृत्तियों से अलग और विशिष्ट प्रवृत्ति रही है-राजनीतिक चेतना। पिछले ५० वर्षों के दौरान जिस दर्जे की और जितनी प्रखर राजनीतिक चेतना विश्व कविता में प्रकट हुई ह...

कविता किसे कहते है? कविता का क्या अर्थ हैं

कविता साहित्य का एक अंग है। कविता की एक निश्चित परिभाषा देना कठिन है लेकिन इतना कहा जा सकता है कि कविता आत्मा द्वारा अनुभूत भावों एवं विचारों का प्रस्फुटन है जो छन्द और नियमित गति से बंधी होने के कारण ताल तथा लय को अपने में समाविष्ट करती हैं। हिन्दी के कई विद्वानों ने अपने विचारासार कविता को परिभाषित करने का प्रयास किया हैं। कविता की परिभाषा (kavita ki paribhasha) प्रो. रमन बिहारी के अनुसार," मानव सौन्दर्यात्मक प्राणी है। वह समाज में रहकर कुछ अनुभूति करता है एवं उसे प्रकट करता है, भिन्न-भिन्न माध्यमों से। जब वह अपनी अनुभूति को भाषा के माध्यम से इस प्रकार अभिव्यक्त करता है कि उसमें सरलता एवं सरसता हो, माधुर्य तथा ओज हो और ह्रदय को स्पन्दित करने की शक्ति हो, तो हम उसे कविता कहते हैं।" श्री जयशंकर प्रसाद के अनुसार," पद्य (कविता) आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति हैं।" आन्नर्धनाचार्य के अनुसार," काव्यास्यात्मा ध्वनिः", काव्य की आत्मा ध्वनि हैं।" सुप्रसिद्ध समालोचक एवं चिन्तक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कविता को परिभाषित करते हुए लिखा है कि " कविता वह साधन है जिसके द्वारा सृष्टि के साथ मनुष्य के रागात्मक संबंध की रक्षा और निर्वाह होता है।" रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार दी गई परिभाषा के अनुसार कविता की तीन विशेषताएं स्पष्ट होती है--- 1. कविता मानव एकता की प्रतिष्ठा करने का एक साधन है और यहि उसकी उपयोगिता है। 2. कविता में भावों एवं कल्पना की प्रधानता रहती है। 3. कविता मे कवि की अनुभूति की अभिव्यक्ति रहती हैं। महादेवी वर्मा के अनुसार; कविता कवि विशेष की भाषाओं का चित्रण हैं। कविता के दो स्वरूप है-- (अ) कविता का बाहरी स्वरूप कविता के दो पक्ष है--- अनुभूति और अभिव्यक्ति। अनुभूति पक्ष का संबंध ...

हरिशंकर परसाई: समाज की रग

हरिशंकर परसाई व्यंग्य के विषय में ख़ुद कहा करते थे कि व्यंग्य जीवन से साक्षात्कार करता है, जीवन की आलोचना करता है, विसंगतियों, अत्याचारों, मिथ्याचारों और पाखंडों का पर्दाफाश करता है. उनकी रचनाएं उनके इस कथ्य की गवाह हैं. हरिशंकर परसाई. (फोटो साभार: सोशल मीडिया) हिन्दी के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई किसी भी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं. हिन्दी साहित्य में व्यंग्य विधा के लिए, हर वर्ग के पाठक की चेतना में अगर किसी का नाम पहले-पहल आता है, तो वो परसाई ही हैं. व्यंग्य विधा को अपने सुदृढ़ और आधुनिक रूप में खड़ा करने में परसाई के योगदान को आलोचकों ने एक सिरे से स्वीकार किया है. एक आधुनिक विधा के रूप में व्यंग्य की ख्याति 20वीं सदी में हुई. पाश्चात्य चिंतक जॉनथन स्विफ्ट व्यंग्य के विषय में कहते थे कि ‘व्यंग्य एक ऐसा दर्पण है जिसमें देखने वाले को अपने अतिरिक्त सभी का चेहरा दिखता है.’ इस विधा का मुख्य उद्देश्य है, व्यक्ति और उसके सामाजिक संदर्भों में दिखने वाली किसी भी विसंगति पर कुठाराघात करना, भले ही यह संदर्भ, व्यक्ति और समाज के संबंध का हो सकता है, वर्ग और जाति के समीकरण का हो सकता है या विभिन्न विचारधाराओं के टकराव का. एक व्यंग्यकार, व्यक्ति-जीवन की विडंबनाओं का एक ऐसा रेखाचित्र खींचता है जिसे पढ़कर एक चेतन पाठक अपने आप से भी सवाल उठाने पर विवश हो जाता है. व्यंग्य के विषय में स्वयं परसाई कहा करते थे ‘ व्यंग्य जीवन से साक्षात्कार करता है, जीवन की आलोचना करता है, विसंगतियों, अत्याचारों, मिथ्याचारों और पाखंडों का पर्दाफाश करता है.’ 22 अगस्त 1924 को होशंगाबाद, मध्य प्रदेश के जमानी ग्राम में जन्मे परसाई मध्यवर्गीय परिवार से आते थे. अल्पायु में ही मां की मृत्यु के बाद पिता की भी काला...