आश्लेषा नक्षत्र 4 चरण

  1. अश्लेषा नक्षत्र पूजा विधि
  2. नक्षत्र
  3. Asterism
  4. गण्डमूल नक्षत्र का प्रभाव
  5. आश्लेषा नक्षत्र : आश्लेषा नक्षत्र में जन्मे लोग तथा पुरुष और स्त्री जातक (Ashlesha Nakshatra : Ashlesha Nakshatra Me Janme Log Tatha Purush Aur Stri Jatak)
  6. Ashlesha Nakshatra
  7. मूल नक्षत्र की शांति के 4 सामान्य तरीके


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अश्लेषा नक्षत्र पूजा विधि

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नक्षत्र

यादी # नाव फलज्योतिष्यान्वये देवता पाश्चात्त्य नाव मानचित्र स्थिती पद पद १ पद २ पद ३ पद ४ १ (Ashvinī) β (बिटा) आणी γ (गामा) मेष तारामंडल ०° – १३° २०′ मेष चु Chu चे Che चो Cho ला La २ (Bharanī) 13AR20-26AR40 ली Li लू Lu ले Le लो Lo ३ 26AR40-10TA00 अ A ई I उ U ए E ४ 10TA00-23TA20 ओ O वा Va/Ba वी Vi/Bi वु Vu/Bu ५ 23TA40-06GE40 ६ 06GE40-20GE00 ७ 20GE00-03CA20 ८ 03CA20-16CA40 ९ δ, ε, η, ρ, and 16CA40-30CA500 १० 00LE00-13LE20 ११ (11) 13LE20-26LE40 १२ (12) 26LE40-10VI00 १३ (13) 10VI00-23VI20 १४ (14) 23VI20-06LI40 १५ (15) 06LI40-20LI00 १६ (16) 20LI00-03SC20 १७ (17) 03SC20-16SC40 १८ (18) 16SC40-30SC00 १९ (19) 00SG00-13SG20 २० (20) 13SG20-26SG40 २१ (21) 26SG40-10CP00 २२ (22) 10CP00-23CP20 २३ (23) 23CP20-06AQ40 २४ (24) 06AQ40-20AQ00 २५ (25) 20AQ00-03PI20 २६ (26) 03PI20-16PI40 २७ (27) ζ 16PI40-30PI00 पुण्यामधे "नक्षत्र उद्यान" नावाचे एक उद्यान कोथरूडमध्ये आहे. २८वे नक्षत्र तैत्तिरीय संहितेत आणि अथर्ववेदात में २८ नक्षत्रांचा उल्लेख आहे. त्यांमध्ये अभिजित हेहे आहे. अभिजित हे ते २८ वे नक्षत्र आहे. परंतु कालांतराने हे नक्षत्र क्रांतिवृत्तावरून बाजूला सरकले म्हणूनच आज केवळ २७ नक्षत्रे मानली जातात. अभिजित नक्षत्र हे उत्तराषाढा आणि श्रवण नक्षत्र यांच्यादरम्यान आहे. उत्तराषाढा शेवटचा एक चरण व श्रवणाचा आरंभीचा एक चरण मिळून अभिजित नक्षत्र होते. त्रिपाद आणि पंचक नक्षत्र त्रिपाद नक्षत्रे कृत्तिका, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, विशाखा, उत्तराषाढा व पूर्वाभाद्रपदा या नक्षत्रांना त्रिपाद नक्षत्रे असे म्हणतात. पंचक नक्षत्रे धनिष्ठा नक्षत्राचे ३रे आणि ४थे चरण, शततारका, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा व रे...

Asterism

नक्षत्र भारतीय पंचांग ( तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण) का तीसरा अंग है। नक्षत्र सदैव अपने स्थान पर ही रहते हैं जबकि ग्रह नक्षत्रों में संचार करते हैं। नक्षत्रों की संख्या प्राचीन काल में २४ थी, जो कि आजकल २७ है। मुहूर्तज्योतिषमें अभिजित् को भी गिनतीमें शामिल करने से २८ नक्षत्रों की भी गणना होती है। प्राचीनकाल में फाल्गुनी, आषाढा तथा भाद्रपदा- इन तीन नक्षत्रोंमें पूर्वा तथा उत्तरा- इस प्रकार के विभाजन नहीं थे। ये विभाजन बादमें होनेसे २४+३=२७ नक्षत्र गिने जाते हैं। Contents • 1 परिचय॥ Introduction • 2 परिभाषा॥ Paribhasha • 3 ज्योतिषमें नक्षत्र की विशेषताएं॥ Nakshatra characteristics in Jyotisha • 4 नक्षत्र चरण॥ Nakshatra Padas (quarters) • 4.1 जन्म नक्षत्र • 5 नक्षत्रोंका वर्गीकरण॥ Classification of Nakshatras • 5.1 नक्षत्रों की अधः, ऊर्ध्व तथा तिर्यक् मुख संज्ञा • 5.2 नक्षत्र क्षय-वृद्धि • 6 नष्टवस्तु ज्ञानार्थ नक्षत्रों की संज्ञा • 7 नक्षत्र फल • 8 नक्षत्र अध्ययन का महत्व • 9 उद्धरण॥ References परिचय॥ Introduction नक्षत्र को तारा भी कहते हैं। एक नक्षत्र उस पूरे चक्र(३६०॰) का २७वाँ भाग होता है जिस पर सूर्य एक वर्ष में एक परिक्रमा करता है। सभी नक्षत्र प्रतिदिन पूर्व में उदय होकर पश्चिम में अस्त होते हैं। तथा पुनः पूर्व में उदय होते हैं। इसी को नाक्षत्र अहोरात्र कहते हैं। यह चक्र सदा समान रहता है। कभी घटता बढता नहीं है। सूर्य जिस मार्गमें भ्रमण करते है, उसे क्रान्तिवृत्त कहते हैं। यह वृत्त ३६० अंशों का होता है। इसके समान रूप से १२ भाग करने से एक-एक राशि तथा २७ भाग कर देने से एक-एक नक्षत्र कहा गया है। यह चन्द्रमा से सम्बन्धित है। राशियों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। ज्योतिष श...

गण्डमूल नक्षत्र का प्रभाव

ज्योतिष ग्रंथों में अनेक स्थानों पर गंडांत अर्थात गण्डमूल नक्षत्रों का उल्लेख मिलता है. रेवती नक्षत्र की अंतिम चार घड़ियाँ और अश्वनी नक्षत्र की पहली चार घड़ियाँ गंडांत कही जाती हैं. ज्योतिष शास्त्र में गण्डमूल नक्षत्र के विषय में विस्तारपूर्वक बताया गया है. जातक पारिजात ,बृहत् पराशर होरा शास्त्र ,जातकाभरणं इत्यादि सभी प्राचीन ग्रंथों में गण्डमूल नक्षत्रों तथा उनके प्रभावों का वर्णन दिया गया है. गण्डमूल नक्षत्रों के सभी चरणों का फल अलग-अलग होता है जो इस प्रकार है. गण्डमूल नक्षत्र अश्विनी का जातक पर प्रभाव | Effect of Gandmool Nakshatra Ashwini on a native’s life केतु के पहले गण्डमूल नक्षत्र को अश्विनी नक्षत्र कहा जाता है. अश्विनी नक्षत्र मेष राशि में शून्य अंश से प्रारम्भ होकर तेरह अंश बीस मिनट तक रहता है. जन्म के समय यदि चंद्रमा इन अंशों के मध्य स्थित हो तो यह गण्डमूल नक्षत्र में जन्म का समय माना जाता है. अश्विनी नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने पर जीवन में अनेक कठिन परिस्थितियों एवं परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. पूर्व जन्म के कर्मों का फल इस नक्षत्र चरण में जन्म लेने के रूप में सामने आता है. इस नक्षत्र में जन्म लेने पर बच्चा पिता के लिए थोड़ा कष्टकारी हो सकता है. लेकिन इस कष्ट को किसी भी नकारात्मकता के साथ नहीं जोड़ना चाहिए. इसके लिए कुण्डली के अन्य बहुत से योगों का आंकलन भी किया जाना चाहिए. अश्विनी नक्षत्र के द्वितीय चरण में जन्म लेने वाले बच्चे को जीवन में सुख व आराम प्राप्त हो सकते हैं. अश्विनी नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म होने पर जातक को जीवन के किसी भी क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त होने के अवसर प्राप्त हो सकते हैं. जातक मित्रों से लाभ प्राप्त करता है. घूमने-...

आश्लेषा नक्षत्र : आश्लेषा नक्षत्र में जन्मे लोग तथा पुरुष और स्त्री जातक (Ashlesha Nakshatra : Ashlesha Nakshatra Me Janme Log Tatha Purush Aur Stri Jatak)

वैदिक ज्योतिष में कुल “ 27 नक्षत्र” है जिनमें से एक है “ आश्लेषा नक्षत्र” (Ashlesha Nakshatra)। यह आकाश मंडल तथा 27 नक्षत्रों में “ नवम स्थान” पर है। इस नक्षत्र का विस्तार राशि चक्र में 106 । 40 से लेकर 120 । 00 अंश तक है। आश्लेषा नक्षत्र में 6 तारें होते है। “ आश्लेषा” को “ सर्पमूल” भी कहा जाता है। आज हम आपको आश्लेषा नक्षत्र में जन्में लोग तथा पुरुष और स्त्री जातक की कुछ मुख्य विशेषताएं बतलायेंगे, पर सबसे पहले जानते है, आश्लेषा नक्षत्र से जुड़ी कुछ जरुरी बातें : आश्लेषा नक्षत्र की आकृति पहिये के समान होती है। आश्लेषा का शाब्दिक अर्थ है “आलिंगन”। “आश्लेषा” “चंद्र देव” की 27 पत्नियों में से एक है तथा ये प्रजापति दक्ष की पुत्री है। • नक्षत्र – “आश्लेषा” • आश्लेषा नक्षत्र देवता – “ सर्प” • आश्लेषा नक्षत्र स्वामी – “बुध” • आश्लेषा राशि स्वामी – “चंद्र” • आश्लेषा नक्षत्र राशि – “कर्क” • आश्लेषा नक्षत्र नाड़ी – “अन्त्य” • आश्लेषा नक्षत्र योनि – “मार्जार” • आश्लेषा नक्षत्र वश्य – “जलचर” • आश्लेषा नक्षत्र स्वभाव – “तीक्ष्ण” • आश्लेषा नक्षत्र महावैर – “मूषक” • आश्लेषा नक्षत्र गण – “राक्षस” • आश्लेषा नक्षत्र तत्व – “जल” • आश्लेषा नक्षत्र पंचशला वेध – “धनिष्ठा” “सर्प”- “आश्लेषा नक्षत्र” के देवता है इसलिए जातक सांप की तरह भयंकर फुफकारने वाला, गुस्सा तो जैसे इनकी नाक पर रखा होता है। ये हर बात में उत्तेजित हो जाते है। ये पापाचरण में आगे और चकमा देने में माहिर होते है। इनकी आंखें छोटी पर क्रूर, खतरनाक और सख्त आचरण इनकी पहचान होती है। – पराशर आश्लेषा नक्षत्र का वेद मंत्र : ।। ॐ नमोSस्तु सर्पेभ्योये के च पृथ्विमनु:। ये अन्तरिक्षे यो देवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम: । ॐ सर्पेभ्यो नम:।। आश्लेषा नक्ष...

Ashlesha Nakshatra

आश्लेषा नक्षत्र आश्लेषा नक्षत्र मार्च महीने के आखिर में ठीक शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 5 तारो से बना हुआ है इसका आकाश में स्वरुप चक्र जैसा स्वरूप दिखाई देता है कर्क राशि आश्लेषा नक्षत्र - 16 अंश 40 कला से 30 अंश तक होता है आश्लेषा नक्षत्र का स्वभाव: आश्लेषा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का हाजिर जवाब, उत्तम वक्ता एवं लेखक, विनोदी, अन्य भाषाओं का ज्ञाता, कला, संगीत व साहित्य में रुचि, यात्राप्रिय, अविश्वासी, पापी, कृतघ्न, आलसी, धोखेबाज, कुसंगत, स्वार्थी । आश्लेषा नक्षत्र व्यवसाय: आश्लेषा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक व्यापारी, दलाल, विक्रय प्रतिनिधि, कलाकार, संगीतकार, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, पत्रकार, लेखक, स्याही व रंग के निर्माता, टाइपिस्ट, लेखाकार, ऑडिटर, दुभाषिया, राजदूत, यात्रा दलाल, गाइड, परिचारिका, नर्स, दाई, ज्योतिषी, गणितज्ञ, जलदाय विभाग, वस्त्र निर्माण इंजीनियर, ठेकेदार, सूत, कागज, पेन, स्टेशनरी, स्याही, चूना का व्यापारी । इस आश्लेषा नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें आश्लेषा नक्षत्र रोग: आश्लेषा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें –वातरोग, श्वास विकार, जलशोथ, अपच, पीलिया, घबराहट, उन्माद, राशीश चन्द्र, • नक्षत्र अंग – फेफड़े, आमाशय, भोजन नली, पित्ताशय, अग्नाशय, यकृत । स्नायु • नक्षत्र वृक्ष नाग केसर और चंदन है । • नक्षत्र रंग : हरा • नक्षत्र तत्व तीक्ष्ण • नक्षत्र गणना - जल • नक्षत्र स्वामी बुध • नक्षत्र के देवता- सर्प • नक्षत्र मंत्र - ॐ आश्लेषायै नमः • वर्ण : विप्र • वशय : जलचर • योनि : मार्जार • गण : राक्षस • नाड़ी : अंत्य नक्षत्र साधना उपासना आश्लेषा नक्षत्र के 4 चरण कर्क राशि में आते है इस च...

मूल नक्षत्र की शांति के 4 सामान्य तरीके

नक्षत्रों के अलग-अलग स्वभाव होते हैं। कोमल, कठोर, उग्र और तीक्ष्ण में से उग्र और तीक्ष्ण स्वभाव वाले नक्षत्रों को ही मूल नक्षत्र, सतैसा या गण्डात कहा जाता है। 27 नक्षत्रों में से मूल, ज्येष्ठा और आश्लेषा नक्षत्र मुख्य मूल नक्षत्र हैं और अश्विनी, रेवती और मघा सहायक मूल नक्षत्र हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर 6 मूल नक्षत्र हैं। 3. अगर मूल नक्षत्र के कारण बच्चे का स्वास्थ्य कमजोर रहता हो तो बच्चे की माता को पूर्णिमा का उपवास रखना चाहिए। अगर बच्चे की राशी मेष और नक्षत्र अश्विनी है तो बच्चे को हनुमान जी की उपासना करवाएं। अगर राशि सिंह और नक्षत्र मघा है तो बच्चे से सूर्य को जल अर्पित करवाएं। अगर बच्चे की राशि धनु और नक्षत्र मूल है तो गुरु और गायत्री उपासना अनुकूल होगी। अगर बच्चे की राशी कर्क और नक्षत्र आश्लेषा है तो शिवजी की उपासना उत्तम रहेगी। वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र होने पर भी हनुमान जी की उपासना करवाएं। अगर मीन राशि और रेवती नक्षत्र है तो गणेश जी की उपासना से लाभ होगा। 4.अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र में जन्में जातकों को गणेशजी की पूजा अर्चना करने से लाभ मिलता है। आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र में जन्में जातकों के लिए बुध ग्रह की अराधना करना चाहिए तथा बुधवार के दिन हरी वस्तुओं का दान करना चाहिए। गंडमूल में जन्में बच्चे के जन्म के ठीक 27वें दिन गंड मूल शांति पूजा करवाई जानी चाहिए, इसके अलावा ब्राह्मणों को दान, दक्षिणा देने और उन्हें भोजन करवाना चाहिए। Jagannath Rath Yatra 2023: भारत के ओड़िसा राज्य के पुरी में भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथ यात्रा का प्रतिवर्ष आयोजन होता है। प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा कब, क्यों, कहां और कैसे निकाली जाती है यह देखने के लिए देश विदेश से हजारों ...