अहिंसा परमो धर्म फुल श्लोक

  1. Ahimsa
  2. अहिंसा पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
  3. “अहिंसा परमो धर्मः
  4. अहिंसा परमो धर्मः
  5. अहिंसा परमो धर्मः
  6. अहिंसा पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
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Ahimsa

ND भगवान महावीर की मूल शिक्षा है- 'अहिंसा'। सबसे पहले 'अहिंसा परमो धर्मः' का प्रयोग हिंदुओं का ही नहीं बल्कि समस्त मानव जाति के पावन ग्रंथ 'महाभारत' के अनुशासन पर्व में किया गया था। लेकिन इसको अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलवाई भगवान महावीर ने। भगवान महावीर ने अपनी वाणी से और अपने स्वयं के जीवन से इसे वह प्रतिष्ठा दिलाई कि अहिंसा के साथ भगवान महावीर का नाम ऐसे जुड़ गया कि दोनों को अलग कर ही नहीं सकते। अहिंसा का सीधा-साधा अर्थ करें तो वह होगा कि व्यावहारिक जीवन में हम किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं, किसी प्राणी को अपने स्वार्थ के लिए दुख न दें। ' आत्मानः प्रतिकूलानि परेषाम्‌ न समाचरेत्‌' - इस भावना के अनुसार दूसरे व्यक्तियों से ऐसा व्यवहार करें जैसा कि हम उनसे अपने लिए अपेक्षा करते हैं। इतना ही नहीं सभी जीव-जंतुओं के प्रति अर्थात्‌ पूरे प्राणी मात्र के प्रति अहिंसा की भावना रखकर किसी प्राणी की अपने स्वार्थ व जीभ के स्वाद आदि के लिए हत्या न तो करें और न ही करवाएं और हत्या से उत्पन्न वस्तुओं का भी उपभोग नहीं करें। भगवान महावीर का दूसरा व्यावहारिक संदेश है 'क्षमा'। भगवान महावीर ने कहा कि 'खामेमि सव्वे जीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे, मित्ती में सव्व भूएसू, वेर मज्झं न केणई।' - अर्थात्‌ 'मैं सभी से क्षमा याचना करता हूं। मुझे सभी क्षमा करें। मेरे लिए सभी प्राणी मित्रवत हैं। मेरा किसी से भी वैर नहीं है। यदि भगवान महावीर की इस शिक्षा को हम व्यावहारिक जीवन में उतारें तो फिर क्रोध एवं अहंकार मिश्रित जो दुर्भावना उत्पन्न होती है और जिसके कारण हम घुट-घुट कर जीते हैं, वह समाप्त हो जाएगी। व्यावहारिक जीवन में यह आवश्यक है कि हम अहंकार को मिटाकर शुद्ध हृदय से आवश्यकतानुसार बार-बार ऐसी क्षमा प्रदान करें...

अहिंसा पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

अहिंस्रस्य तपोऽक्षय्यमहिंस्रो यजते सदा। अहिंस्रः सर्वभूतानां यथा माता तथा पिता।। हिन्दी अर्थ- अहिंसा का पालन करने वाला अर्थात हिंसा न करने वाले मनुष्य की तपस्या कभी नष्ट नहीं होती। अहिंसक मनुष्य सदा यज्ञ करता रहता है। अहिंसक मनुष्य सभी प्राणियों के लिए माता पिता के समान होता है। अहिंसा सर्वभूतेभ्यः संविभागश्च भागशः । दमस्त्यागो धृतिः सत्यं भवत्यवभृताय ते ॥18॥ अर्थ – सभी प्राणियों के प्रति अहिंसा बरतना, सभी को यथोचित भाग सोंपना, इंद्रिय-संयम, त्याग, धैर्य एवं सत्य पर टिकना अवभृत स्नान के तुल्य (पुण्यदायी) होता है। एवं सर्वमहिंसायां धर्मार्थमपिधीयते। अमतः स नित्यं वसति यो हिंसां न प्रपद्यते।। हिन्दी अर्थ- अहिंसा में संपूर्ण धर्म और अर्थ समाहित हैं। जो व्यक्ति किसी की हिंसा नहीं करता, वह जन्म-मरण से मुक्त । होकर अमृत्व प्राप्त कर लेता है। अहिंसा परमो धर्मो ह्यहिंसा परमं सुखम्। अहिंसा धर्मशास्त्रेषु सर्वेषु परमं पदम्।। हिन्दी अर्थ- अहिंसा सर्वोत्तम धर्म है। अहिंसा परमसुख है। सभी धर्म शास्त्रों में अहिंसा को ही सर्वश्रेष्ठ पद माना गया है। अहिंसा आत्मवत सर्वभूतेषु के सिद्धांत पर आधारित दृष्टिकोण है। अहिंसा के विपरीत आचरण करने वाला व्यक्ति सुखमय जीवन व्यतीत नहीं कर पाता है। अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परं तपः । अहिंसा परमं सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते ॥23॥ अर्थ:- अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा परम तप है, और अहिंसा ही परम सत्य और जिससे धर्म की प्रवृत्ति आगे बढ़ती है। इस वचन के अनुसार अहिंसा, तप और सत्य आपस में जुड़े हैं। वस्तुतः अहिंसा स्वयं में तप है, तप का अर्थ है अपने को हर विपरीत परिस्थिति में संयत और शांत रखना। जिसे तप की सामर्थ्य नहीं वह अहिंसा पर टिक नहीं सकता। इसी प्रकार सत्यवादी ही...

“अहिंसा परमो धर्मः

४.अघ्न्याः= तुमअहिंसकबनोः- अहिंसकबननेसेपहलेहमेंयहजाननाहोगाकीअहिंसाहैक्या? (अर्थात्यदिअहिंसामनुष्यकापरमधर्महैऔरधर्मकीरक्षाकेलिएहिंसाकरनाउससेभीश्रेष्ठहै) "अहिंसा" काअर्थहैसर्वदातथासर्वदा (मनसा, वाचाऔरकर्मणा) सबप्राणियोंकेसाथद्रोहकाअभाव। (अंहिसासर्वथासर्वदासर्वभूतानामनभिद्रोह: - व्यासभाष्य, योगसूत्र 2। 30)।अहिंसाकेभीतरइसप्रकारसर्वकालमेंकेवलकर्मयावचनसेहीसबजीवोंकेसाथद्रोहनकरनेकीबातसमाविष्टनहींहोती, प्रत्युतमनकेद्वाराभीद्रोहकेअभावकासंबंधरहताहै।योगशास्त्रमेंनिर्दिष्टयमतथानियमअहिंसामूलकहीमानेजातेहैं।यदिउनकेद्वाराकिसीप्रकारकीहिंसावृत्तिकाउदयहोताहैतोवेसाधनाकीसिद्धिमेंउपादेयतथाउपकारनहींमानेजाते। "सत्य" कीमहिमातथाश्रेष्ठतासर्वत्रप्रतिपादितकीगईहै, परंतुयदिकहींअहिंसाकेसाथसत्यकासंघर्षघटितहाताहैतोवहाँसत्यवस्तुत: सत्यनहोकरसत्याभासहीमानाजाताहै।कोईवस्तुजैसीदेखीगईहोतथाजैसीअनुमितहोउसकाउसीरूपमेंवचनकेद्वाराप्रकटकरनातथामनकेद्वारासंकल्पकरना "सत्य" कहलाताहै, परंतुयहवाणीभीसबभूतोंकेउपकारकेलिएप्रवृत्तहोतीहै, भूतोंकेउपघातकेलिएनहीं।इसप्रकारसत्यकीभीकसौटीअहिंसाहीहै।इसप्रसंगमेंवाचस्पतिमिश्रने "सत्यतपा" नामकतपस्वीकेसत्यवचनकोभीसत्याभासहीमानाहै, क्योंकिउसनेचोरोंकेद्वारापूछेजानेपरउसमार्गसेजानेवालेसार्थ (व्यापारियोंकासमूह) कासच्चापरिचयदियाथा।हिंदूशास्त्रोंमेंअहिंसा, सत्य, अस्तेय (नचुराना), ब्रह्मचर्यतथाअपरिग्रह, इनपाँचोंयमोंकोजाति, देश, कालतथासमयसेअनवच्छिन्नहोनेकेकारणसमभावेनसार्वभौमतथामहाव्रतकहागयाहै (योगवूत्र 2। 31) औरइनमेंभी, सबकाआधाराहोनेसे, "अहिंसा" हीसबसेअधिकमहाव्रतकहलानेकीयोग्यतारखतीहै।अंतर्ध्यान–अंहिंसाक्याहै ? अहिंसाकाएकसाधारणअर्थजोहमेंबतायाजाताहै–“हिंसानकरना”हीअहिंसाहै।हिंसानहींकरनीचाहिएक्योंकिहिंसाकरन...

अहिंसा परमो धर्मः

अहिंसा परमो धर्मः | Ahimsa Parmo Dharma Sanskrit Essay प्रायः जीवानां वध: ‘हिंसा’ इति उच्यते । परं मनसा वाचा कर्मणा वा कस्यापि जीवस्य परिपीडनम् ‘हिंसा’ इति कथ्यते । एवं हिंसा त्रिविधा भवति-मानसिकी हिंसा, वाचिकी हिंसा, कायिकी हिंसा च । तत्र सर्वप्रकारक हिंसानाम् त्याग एवं अहिंसा’ भवति ।। सर्वेषु धर्मेषु अहिसायाः प्राधान्यं वर्तते । संसारस्य सर्वाचायें: अहिंसाया गौरवं तारस्वरेण गीयते । अस्मिन् संसारे एतादृशः कोऽपि धर्म प्रवर्तको धर्म प्रचारको वा न वर्तते यः अहिंसाया: महती आवश्यकतां न स्वीकुरुते । भारतवर्षे अहिंसाया: प्रतिष्ठा अति प्राचीना अस्ति । भारतीय संस्कृतिः सर्वदेव अहिंसाप्राधानः आसीत्। अत्र अनेके महापुरुषाः अभवन् ये स्वजीवने अहिसावतं गृहीत्वा व लोक पूज्यताम् अवापुः । मनुना चातुर्वण्र्यार्थम् अहिसायाः महत्त्वं निरूप्यते: – अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रह एतं सामासिक धर्म चातुर्वण्र्येऽब्रवीन्मनुः विश्वामित्रं प्रति वशिष्ठस्य अहिंसाश्रयणम् सर्वजन प्रसिद्धं वर्तते । तस्मात विश्वामित्रापेक्षया वशिष्ठ श्रेष्ठः अभवत् । महात्मा बुद्ध: अहिंसायाः श्रेष्ठः प्रचारक आसीत् । अतएव अद्यापि न केवलं अस्माकं देशे एवं अपितु विदेशेषु अपि अहिसायाः धारा प्रवति । कलिग संग्रामे रक्तपातं दृष्ट्वा अशोक नृपतेः हृदये। अहिंसायाः सञ्चारः अभवत् । अहिंसा बलेन एव सम्राट् अशोकः ‘महान्’ इति पदं लब्धवान् । जैन धर्म अपि अहिंसायाः अनिवार्यत्वम् उपदिश्यते । अहिंसा बलेनैव महात्मा गांधी ‘महात्मा’ ‘बापू’ च पदेन सम्पूर्ण संसारे प्रसिद्धम् अभवत् । स अहिंसा शस्त्रेण एव भारतीय स्वातन्त्र्य संग्राम विजया बभूव । अहिंसा शस्त्रेण भीताः गौराङ्गाः शासकाः भारतभूमि विहाय पलायिताः । विश्वे सर्वे प्राणिनः सुखम् वाञ्...

अहिंसा परमो धर्मः

अहिंसा परमो धर्मः | Ahimsa Parmo Dharma Sanskrit Essay प्रायः जीवानां वध: ‘हिंसा’ इति उच्यते । परं मनसा वाचा कर्मणा वा कस्यापि जीवस्य परिपीडनम् ‘हिंसा’ इति कथ्यते । एवं हिंसा त्रिविधा भवति-मानसिकी हिंसा, वाचिकी हिंसा, कायिकी हिंसा च । तत्र सर्वप्रकारक हिंसानाम् त्याग एवं अहिंसा’ भवति ।। सर्वेषु धर्मेषु अहिसायाः प्राधान्यं वर्तते । संसारस्य सर्वाचायें: अहिंसाया गौरवं तारस्वरेण गीयते । अस्मिन् संसारे एतादृशः कोऽपि धर्म प्रवर्तको धर्म प्रचारको वा न वर्तते यः अहिंसाया: महती आवश्यकतां न स्वीकुरुते । भारतवर्षे अहिंसाया: प्रतिष्ठा अति प्राचीना अस्ति । भारतीय संस्कृतिः सर्वदेव अहिंसाप्राधानः आसीत्। अत्र अनेके महापुरुषाः अभवन् ये स्वजीवने अहिसावतं गृहीत्वा व लोक पूज्यताम् अवापुः । मनुना चातुर्वण्र्यार्थम् अहिसायाः महत्त्वं निरूप्यते: – अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रह एतं सामासिक धर्म चातुर्वण्र्येऽब्रवीन्मनुः विश्वामित्रं प्रति वशिष्ठस्य अहिंसाश्रयणम् सर्वजन प्रसिद्धं वर्तते । तस्मात विश्वामित्रापेक्षया वशिष्ठ श्रेष्ठः अभवत् । महात्मा बुद्ध: अहिंसायाः श्रेष्ठः प्रचारक आसीत् । अतएव अद्यापि न केवलं अस्माकं देशे एवं अपितु विदेशेषु अपि अहिसायाः धारा प्रवति । कलिग संग्रामे रक्तपातं दृष्ट्वा अशोक नृपतेः हृदये। अहिंसायाः सञ्चारः अभवत् । अहिंसा बलेन एव सम्राट् अशोकः ‘महान्’ इति पदं लब्धवान् । जैन धर्म अपि अहिंसायाः अनिवार्यत्वम् उपदिश्यते । अहिंसा बलेनैव महात्मा गांधी ‘महात्मा’ ‘बापू’ च पदेन सम्पूर्ण संसारे प्रसिद्धम् अभवत् । स अहिंसा शस्त्रेण एव भारतीय स्वातन्त्र्य संग्राम विजया बभूव । अहिंसा शस्त्रेण भीताः गौराङ्गाः शासकाः भारतभूमि विहाय पलायिताः । विश्वे सर्वे प्राणिनः सुखम् वाञ्...

अहिंसा पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

अहिंस्रस्य तपोऽक्षय्यमहिंस्रो यजते सदा। अहिंस्रः सर्वभूतानां यथा माता तथा पिता।। हिन्दी अर्थ- अहिंसा का पालन करने वाला अर्थात हिंसा न करने वाले मनुष्य की तपस्या कभी नष्ट नहीं होती। अहिंसक मनुष्य सदा यज्ञ करता रहता है। अहिंसक मनुष्य सभी प्राणियों के लिए माता पिता के समान होता है। अहिंसा सर्वभूतेभ्यः संविभागश्च भागशः । दमस्त्यागो धृतिः सत्यं भवत्यवभृताय ते ॥18॥ अर्थ – सभी प्राणियों के प्रति अहिंसा बरतना, सभी को यथोचित भाग सोंपना, इंद्रिय-संयम, त्याग, धैर्य एवं सत्य पर टिकना अवभृत स्नान के तुल्य (पुण्यदायी) होता है। एवं सर्वमहिंसायां धर्मार्थमपिधीयते। अमतः स नित्यं वसति यो हिंसां न प्रपद्यते।। हिन्दी अर्थ- अहिंसा में संपूर्ण धर्म और अर्थ समाहित हैं। जो व्यक्ति किसी की हिंसा नहीं करता, वह जन्म-मरण से मुक्त । होकर अमृत्व प्राप्त कर लेता है। अहिंसा परमो धर्मो ह्यहिंसा परमं सुखम्। अहिंसा धर्मशास्त्रेषु सर्वेषु परमं पदम्।। हिन्दी अर्थ- अहिंसा सर्वोत्तम धर्म है। अहिंसा परमसुख है। सभी धर्म शास्त्रों में अहिंसा को ही सर्वश्रेष्ठ पद माना गया है। अहिंसा आत्मवत सर्वभूतेषु के सिद्धांत पर आधारित दृष्टिकोण है। अहिंसा के विपरीत आचरण करने वाला व्यक्ति सुखमय जीवन व्यतीत नहीं कर पाता है। अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परं तपः । अहिंसा परमं सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते ॥23॥ अर्थ:- अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा परम तप है, और अहिंसा ही परम सत्य और जिससे धर्म की प्रवृत्ति आगे बढ़ती है। इस वचन के अनुसार अहिंसा, तप और सत्य आपस में जुड़े हैं। वस्तुतः अहिंसा स्वयं में तप है, तप का अर्थ है अपने को हर विपरीत परिस्थिति में संयत और शांत रखना। जिसे तप की सामर्थ्य नहीं वह अहिंसा पर टिक नहीं सकता। इसी प्रकार सत्यवादी ही...

Ahimsa

ND भगवान महावीर की मूल शिक्षा है- 'अहिंसा'। सबसे पहले 'अहिंसा परमो धर्मः' का प्रयोग हिंदुओं का ही नहीं बल्कि समस्त मानव जाति के पावन ग्रंथ 'महाभारत' के अनुशासन पर्व में किया गया था। लेकिन इसको अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलवाई भगवान महावीर ने। भगवान महावीर ने अपनी वाणी से और अपने स्वयं के जीवन से इसे वह प्रतिष्ठा दिलाई कि अहिंसा के साथ भगवान महावीर का नाम ऐसे जुड़ गया कि दोनों को अलग कर ही नहीं सकते। अहिंसा का सीधा-साधा अर्थ करें तो वह होगा कि व्यावहारिक जीवन में हम किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं, किसी प्राणी को अपने स्वार्थ के लिए दुख न दें। ' आत्मानः प्रतिकूलानि परेषाम्‌ न समाचरेत्‌' - इस भावना के अनुसार दूसरे व्यक्तियों से ऐसा व्यवहार करें जैसा कि हम उनसे अपने लिए अपेक्षा करते हैं। इतना ही नहीं सभी जीव-जंतुओं के प्रति अर्थात्‌ पूरे प्राणी मात्र के प्रति अहिंसा की भावना रखकर किसी प्राणी की अपने स्वार्थ व जीभ के स्वाद आदि के लिए हत्या न तो करें और न ही करवाएं और हत्या से उत्पन्न वस्तुओं का भी उपभोग नहीं करें। भगवान महावीर का दूसरा व्यावहारिक संदेश है 'क्षमा'। भगवान महावीर ने कहा कि 'खामेमि सव्वे जीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे, मित्ती में सव्व भूएसू, वेर मज्झं न केणई।' - अर्थात्‌ 'मैं सभी से क्षमा याचना करता हूं। मुझे सभी क्षमा करें। मेरे लिए सभी प्राणी मित्रवत हैं। मेरा किसी से भी वैर नहीं है। यदि भगवान महावीर की इस शिक्षा को हम व्यावहारिक जीवन में उतारें तो फिर क्रोध एवं अहंकार मिश्रित जो दुर्भावना उत्पन्न होती है और जिसके कारण हम घुट-घुट कर जीते हैं, वह समाप्त हो जाएगी। व्यावहारिक जीवन में यह आवश्यक है कि हम अहंकार को मिटाकर शुद्ध हृदय से आवश्यकतानुसार बार-बार ऐसी क्षमा प्रदान करें...

Ahimsa

ND भगवान महावीर की मूल शिक्षा है- 'अहिंसा'। सबसे पहले 'अहिंसा परमो धर्मः' का प्रयोग हिंदुओं का ही नहीं बल्कि समस्त मानव जाति के पावन ग्रंथ 'महाभारत' के अनुशासन पर्व में किया गया था। लेकिन इसको अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलवाई भगवान महावीर ने। भगवान महावीर ने अपनी वाणी से और अपने स्वयं के जीवन से इसे वह प्रतिष्ठा दिलाई कि अहिंसा के साथ भगवान महावीर का नाम ऐसे जुड़ गया कि दोनों को अलग कर ही नहीं सकते। अहिंसा का सीधा-साधा अर्थ करें तो वह होगा कि व्यावहारिक जीवन में हम किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं, किसी प्राणी को अपने स्वार्थ के लिए दुख न दें। ' आत्मानः प्रतिकूलानि परेषाम्‌ न समाचरेत्‌' - इस भावना के अनुसार दूसरे व्यक्तियों से ऐसा व्यवहार करें जैसा कि हम उनसे अपने लिए अपेक्षा करते हैं। इतना ही नहीं सभी जीव-जंतुओं के प्रति अर्थात्‌ पूरे प्राणी मात्र के प्रति अहिंसा की भावना रखकर किसी प्राणी की अपने स्वार्थ व जीभ के स्वाद आदि के लिए हत्या न तो करें और न ही करवाएं और हत्या से उत्पन्न वस्तुओं का भी उपभोग नहीं करें। भगवान महावीर का दूसरा व्यावहारिक संदेश है 'क्षमा'। भगवान महावीर ने कहा कि 'खामेमि सव्वे जीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे, मित्ती में सव्व भूएसू, वेर मज्झं न केणई।' - अर्थात्‌ 'मैं सभी से क्षमा याचना करता हूं। मुझे सभी क्षमा करें। मेरे लिए सभी प्राणी मित्रवत हैं। मेरा किसी से भी वैर नहीं है। यदि भगवान महावीर की इस शिक्षा को हम व्यावहारिक जीवन में उतारें तो फिर क्रोध एवं अहंकार मिश्रित जो दुर्भावना उत्पन्न होती है और जिसके कारण हम घुट-घुट कर जीते हैं, वह समाप्त हो जाएगी। व्यावहारिक जीवन में यह आवश्यक है कि हम अहंकार को मिटाकर शुद्ध हृदय से आवश्यकतानुसार बार-बार ऐसी क्षमा प्रदान करें...

अहिंसा परमो धर्मः

अहिंसा परमो धर्मः | Ahimsa Parmo Dharma Sanskrit Essay प्रायः जीवानां वध: ‘हिंसा’ इति उच्यते । परं मनसा वाचा कर्मणा वा कस्यापि जीवस्य परिपीडनम् ‘हिंसा’ इति कथ्यते । एवं हिंसा त्रिविधा भवति-मानसिकी हिंसा, वाचिकी हिंसा, कायिकी हिंसा च । तत्र सर्वप्रकारक हिंसानाम् त्याग एवं अहिंसा’ भवति ।। सर्वेषु धर्मेषु अहिसायाः प्राधान्यं वर्तते । संसारस्य सर्वाचायें: अहिंसाया गौरवं तारस्वरेण गीयते । अस्मिन् संसारे एतादृशः कोऽपि धर्म प्रवर्तको धर्म प्रचारको वा न वर्तते यः अहिंसाया: महती आवश्यकतां न स्वीकुरुते । भारतवर्षे अहिंसाया: प्रतिष्ठा अति प्राचीना अस्ति । भारतीय संस्कृतिः सर्वदेव अहिंसाप्राधानः आसीत्। अत्र अनेके महापुरुषाः अभवन् ये स्वजीवने अहिसावतं गृहीत्वा व लोक पूज्यताम् अवापुः । मनुना चातुर्वण्र्यार्थम् अहिसायाः महत्त्वं निरूप्यते: – अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रह एतं सामासिक धर्म चातुर्वण्र्येऽब्रवीन्मनुः विश्वामित्रं प्रति वशिष्ठस्य अहिंसाश्रयणम् सर्वजन प्रसिद्धं वर्तते । तस्मात विश्वामित्रापेक्षया वशिष्ठ श्रेष्ठः अभवत् । महात्मा बुद्ध: अहिंसायाः श्रेष्ठः प्रचारक आसीत् । अतएव अद्यापि न केवलं अस्माकं देशे एवं अपितु विदेशेषु अपि अहिसायाः धारा प्रवति । कलिग संग्रामे रक्तपातं दृष्ट्वा अशोक नृपतेः हृदये। अहिंसायाः सञ्चारः अभवत् । अहिंसा बलेन एव सम्राट् अशोकः ‘महान्’ इति पदं लब्धवान् । जैन धर्म अपि अहिंसायाः अनिवार्यत्वम् उपदिश्यते । अहिंसा बलेनैव महात्मा गांधी ‘महात्मा’ ‘बापू’ च पदेन सम्पूर्ण संसारे प्रसिद्धम् अभवत् । स अहिंसा शस्त्रेण एव भारतीय स्वातन्त्र्य संग्राम विजया बभूव । अहिंसा शस्त्रेण भीताः गौराङ्गाः शासकाः भारतभूमि विहाय पलायिताः । विश्वे सर्वे प्राणिनः सुखम् वाञ्...

अहिंसा पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

अहिंस्रस्य तपोऽक्षय्यमहिंस्रो यजते सदा। अहिंस्रः सर्वभूतानां यथा माता तथा पिता।। हिन्दी अर्थ- अहिंसा का पालन करने वाला अर्थात हिंसा न करने वाले मनुष्य की तपस्या कभी नष्ट नहीं होती। अहिंसक मनुष्य सदा यज्ञ करता रहता है। अहिंसक मनुष्य सभी प्राणियों के लिए माता पिता के समान होता है। अहिंसा सर्वभूतेभ्यः संविभागश्च भागशः । दमस्त्यागो धृतिः सत्यं भवत्यवभृताय ते ॥18॥ अर्थ – सभी प्राणियों के प्रति अहिंसा बरतना, सभी को यथोचित भाग सोंपना, इंद्रिय-संयम, त्याग, धैर्य एवं सत्य पर टिकना अवभृत स्नान के तुल्य (पुण्यदायी) होता है। एवं सर्वमहिंसायां धर्मार्थमपिधीयते। अमतः स नित्यं वसति यो हिंसां न प्रपद्यते।। हिन्दी अर्थ- अहिंसा में संपूर्ण धर्म और अर्थ समाहित हैं। जो व्यक्ति किसी की हिंसा नहीं करता, वह जन्म-मरण से मुक्त । होकर अमृत्व प्राप्त कर लेता है। अहिंसा परमो धर्मो ह्यहिंसा परमं सुखम्। अहिंसा धर्मशास्त्रेषु सर्वेषु परमं पदम्।। हिन्दी अर्थ- अहिंसा सर्वोत्तम धर्म है। अहिंसा परमसुख है। सभी धर्म शास्त्रों में अहिंसा को ही सर्वश्रेष्ठ पद माना गया है। अहिंसा आत्मवत सर्वभूतेषु के सिद्धांत पर आधारित दृष्टिकोण है। अहिंसा के विपरीत आचरण करने वाला व्यक्ति सुखमय जीवन व्यतीत नहीं कर पाता है। अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परं तपः । अहिंसा परमं सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते ॥23॥ अर्थ:- अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा परम तप है, और अहिंसा ही परम सत्य और जिससे धर्म की प्रवृत्ति आगे बढ़ती है। इस वचन के अनुसार अहिंसा, तप और सत्य आपस में जुड़े हैं। वस्तुतः अहिंसा स्वयं में तप है, तप का अर्थ है अपने को हर विपरीत परिस्थिति में संयत और शांत रखना। जिसे तप की सामर्थ्य नहीं वह अहिंसा पर टिक नहीं सकता। इसी प्रकार सत्यवादी ही...