बृहस्पतिवार की कथा और आरती

  1. बृहस्पतिवार व्रत कथा
  2. Brihaspativar Vrat Katha (बृहस्पतिवार व्रत कथा)
  3. श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा
  4. बृहस्पतिवार व्रत कथा
  5. अथ श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा
  6. गुरुवार की आरती कथा
  7. बृहस्पति देव की कथा, बृहस्पतिवार वृत करने की विधि, आरती


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बृहस्पतिवार व्रत कथा

देव गुरु बृहस्पति को बुद्धि और शिक्षा का कारक माना जाता है. बृहस्पतिवार को बृहस्पति देव की पूजा करने से धन, विद्या, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा और कई अन्य मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. इस दिन लोग पूरे दिन व्रत रखते हैं। कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से बृहस्पति ग्रह मजबूत होते हैं। इस व्रत में कई नियमों को भी माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखें तो पहले व्रत का संकल्प कर लें। ये व्रत 11, 16 आदि की संख्या में रख सकते हैं। इस व्रत में खास तैर पर पीले रंग के कपड़े पहनते हैं। यही नहीं भगवान को पीले रंग के फूल में भगवान को अर्पित किए जाते हैं। इस व्रत में नमक का सेवन नहीं किया जाता है। इस व्रत में मीठा ही खाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, बृहस्पतिवार को भगवान बृहस्पति की पूजा का विधान है. गुरुवार के दिन व्रत और कथा सुनने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है. आइए जानते हैं गुरुवार व्रत कथा के बारे में. ॥ अथ श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा ॥ भारतवर्ष में एक प्रतापी और दानी राजा राज्य करता था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था। यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी, वह न ही गरीबों को दान देती, न ही भगवान का पूजन करती थी और राजा को भी दान देने से मना किया करती थी। एक दिन राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे, तो रानी महल में अकेली थी। उसी समय बृहस्पति देव साधु वेष में राजा के महल में भिक्षा के लिए गए और भिक्षा माँगी रानी ने भिक्षा देने से इन्कार किया और रानी ने कहा: हे साधु महाराज मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हूँ। मेरा पति सारा धन लुटाते रहते हैं। मेरी इच्छा है कि हमारा धन नष्ट हो जाए फिर न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। साधु ने कहा: देवी तुम तो बड़ी विचित्र हो...

Brihaspativar Vrat Katha (बृहस्पतिवार व्रत कथा)

बृहस्पतिवार के व्रत की विधि गुरुवार के दिन बृहस्पतेश्वर भगवान और भगवान विष्णु जी की पूजा होती है। दिन में एक समय भोजन करें। पीले वस्त्र पहने, पीला भोजन करे। भोजन में नमक न खाये। पीले फूल, चने की दाल, गुड, हल्दी से केले के पेड की पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद बृहस्पतिवार के व्रत की कथा सुननी या पढनी चाहिए। इस व्रत के करने से बृहस्पति देव जी प्रसन्न होकर दरिद्रता का नाश करते है। भक्त को धन और विद्या प्रदान करते है। वैसे तो स्त्री और पुरुष दोनो ही यह व्रत कर सकते है पर स्त्रियों के लिए यह व्रत विशेष फलकारी है। बृहस्पतिवार व्रत की कथा एक समय की बात है एक गाँव में एक साहूकार रहता था, उसके घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी, परन्तु उसकी पत्नी बहुत ही कंजूस थी। वो ना तो किसी भिक्षार्थी को भिक्षा देती और ना ही किसी साधु महात्मा का सम्मान करती। सिर्फ अपने कामकाज में लगी रहती। एक दिन एक साधु बृहस्पतिवार के दिन उसके दरवाजे पर आया और भिक्षा माँगी। तब वो स्त्री बोली कि मैं अभी तो घर का आँगन लीप रही हूँ, आप फिर कभी आना। साधु उसके दरवाजे से बिना भिक्षा के खाली हाथ ही चले गए। कुछ दिन के बाद वही साधु बाबा फिर आये, और उसी प्रकार भिक्षा माँगने लगे। वो स्त्री उस समय अपने लड़के को खाना खिला रही थी। सो बाबा से कहने लगी – महाराज मेरे पास अभी समय नहीं है, इसलिए मै आपको अभी भिक्षा नहीं दे सकती। उस दिन दूसरी बार उसके दरवाजे से साधु को बिना भिक्षा के खाली हाथ जाना पडा। फिर तीसरी बार साधु बाबा आए तो उसने उन्हें पहले कि ही भाँती उन्हे टाल दिया। किन्तु इस बार महात्मा जी ने उसे कहा कि यदि ऐसा हो जाये की तुम्हारे पास कोई काम न हो और अवकाश ही अवकाश हो तो क्या मुझे भिक्षा दोगी? साहूकारनी ने झट से हाँ कर दिय...

श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा

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बृहस्पतिवार व्रत कथा

बृहस्पतिवार व्रत कथा बृहस्पतिवार व्रत कथा प्राचीन समय की बात है। भारत में एक राजा राज्य करता था। वह बड़ा प्रतापी तथा दानी था। वह नित्यप्रति मन्दिर में भगवददर्शन करने जाता था। वह ब्राह्मण और गुरु की सेवा किया करता था। उसके द्वार से कोई भी आचंक निराश होकर नहीं लौटता था। वह प्रत्येक गुरुवार को व्रत रखता एवं पूजन करता था। हर दिन गरीबों की सहायता करता था। परन्तु यह सब बातें उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी, वह न व्रत करती और न किसी को एक भी पैसा दान में देती थी। वह राजा से भी ऐसा करने को मना किया करती थी। एक समय की बात है कि राजा शिकार खेलने वन को चले गए। घर पर रानी और दासी थीं। उस समय गुरु बृहस्पति साधु का रूप. धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा माँगने आए। साधु ने रानी से भिक्षा माँगी तो वह कहने लगी-“ हे साधु महाराज! मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूँ। इस कार्य के लिए तो मेरे पतिदेव ही हुक हैं।अब आप ऐसी कृपा करें कि सारा धन नष्ट हो जाए तथा मैं आराम से रह सकूँ।” साधु रूपी बृहस्पतिदेव ने कहा-“ हे देवी! तुम बड़ी विचित्र हो। सन्‍ तान और धन से कोई दुःखी नहीं होता हैं, इसको सभी चाहते हैं। पापी भी पुत्र और धन की इच्छा करता है। अगर तुम्हारे पास धन अधिक है तो भूखे मनुष्यो को भोजन कराओ, प्याऊ लगवाओ, ब्राह्मणों को दान दो, धर्मशालाएँ बनवाओ, कुआँ- तालाब बावड़ी बाग- बगीचे आदि का निर्माण कराओ तथा निर्धनों की कुंआरी कन्याओं का विवाह कराओ, साथ ही यज्ञादि करो। इस प्रकार के कर्मों से आपके कुल का और आपका नाम परलोक में भी सार्थक होगा एवं तुम्हें भी स्वर्ग की प्राप्ति होगी।” परन्तु रानी साधु की इन बातों से खुश नहीं हुई। उसने कहा-“ हे साधु महाराज! मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं जिसको मैं अन्य लोगों को द...

अथ श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा

॥ अथ श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा ॥ भारतवर्ष में एक प्रतापी और दानी राजा राज्य करता था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था। यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी, वह न ही गरीबों को दान देती, न ही भगवान का पूजन करती थी और राजा को भी दान देने से मना किया करती थी। एक दिन राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे, तो रानी महल में अकेली थी। उसी समय बृहस्पतिदेव साधु वेष में राजा के महल में भिक्षा के लिए गए और भिक्षा माँगी रानी ने भिक्षा देने से इन्कार किया और कहा: हे साधु महाराज मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हूँ। मेरा पति सारा धन लुटाते रहिते हैं। मेरी इच्छा है कि हमारा धन नष्ट हो जाए फिर न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। साधु ने कहा: देवी तुम तो बड़ी विचित्र हो। धन, सन्तान तो सभी चाहते हैं। पुत्र और लक्ष्मी तो पापी के घर भी होने चाहिए। यदि तुम्हारे पास अधिक धन है तो भूखों को भोजन दो, प्यासों के लिए प्याऊ बनवाओ, मुसाफिरों के लिए धर्मशालाएं खुलवाओ। जो निर्धन अपनी कुंवारी कन्याओं का विवाह नहीं कर सकते उनका विवाह करा दो। ऐसे और कई काम हैं जिनके करने से तुम्हारा यश लोक-परलोक में फैलेगा। परन्तु रानी पर उपदेश का कोई प्रभाव न पड़ा। वह बोली: महाराज आप मुझे कुछ न समझाएं। मैं ऐसा धन नहीं चाहती जो हर जगह बाँटती फिरूं। साधु ने उत्तर दिया यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तथास्तु! तुम ऐसा करना कि बृहस्पतिवार को घर लीपकर पीली मिट्‌टी से अपना सिर धोकर स्नान करना, भट्‌टी चढ़ाकर कपड़े धोना, ऐसा करने से आपका सारा धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर वह साधु महाराज वहाँ से आलोप हो गये। साधु के अनुसार कही बातों को पूरा करते हुए रानी को केवल तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे, कि उसकी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई। भोजन के लि...

गुरुवार की आरती कथा

गुरुवार की आरती कथा-विधि हिंदी में Guruvar Vrat Katha गुरुवार की आरती कथा-विधि : गुरुवार के व्रत की कथा और आरती किस प्रकार से कैसे करें ! हमारे सनातन में हर वार की व्रत कथा और आरती का महत्त्व बताया गया है ! सप्तवार व्रत कथा के बारे में जानने के लिए हम एक सप्तवार व्रत कथा की सीरिज ला रहे है ! इसको पढ़कर आप इसके महत्त्व को जाने ! -: सप्तवार व्रत,आरती कथा-विधि :- रविवार की आरती कथा-विधि सोमवार की आरती कथा-विधि मंगलवार की आरती कथा-विधि बुधवार की आरती कथा-विधि शुक्रवार की आरती कथा-विधि शनिवार की आरती कथा-विधि ********************** गुरुवार की आरती कथा-विधि ————————————————————– बृहस्पतिवार की आरती ॐ जय बृहस्पति देवा ॐ जय बृहस्पति देवा, छिन छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा I तुम पूरण परमात्मा तुम अन्तर्यामी, जगत पिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी II चरणामृत निज निर्मल सब पातक हर्ता, सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता I तन, मन, धन अर्पण कर जो जन शरण पड़े, प्रभु प्रकट तब होकर आकर द्वार खड़े II दीनदयालु, दयानिधि, भक्तन हितकारी, पाप, दोष सब हर्ता, भव बन्धन हारी I सकल मनोरथ दायक सब संशय हारी, विषय विकार मिटाओ सन्तन सुखकारी II जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे, ज्येष्ठानन्द आनन्दकर सो निश्चय पावे I ॐ जय बृहस्पति देवा ॐ जय बृहस्पति देवा, छिन छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा II II इति गुरुवार की आरती सम्पूर्ण II गुरुवार की आरती कथा-विधि :- इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती हैं ! दिन में एक समय ही भोजन करें ! पीले वस्त्र धारण करें, पीले फलों का प्रयोग करें ! भोजन भी चने की दाल का होना चाहिए, नमक नहीं खाना चाहिए ! पीले रंग का फूल, चने की दाल, पीले कपड़े तथा पीले चन्दन से पूजन करनी चाहिए ! पूजन के पश्चात...

बृहस्पति देव की कथा, बृहस्पतिवार वृत करने की विधि, आरती

By Jul 16, 2020 भगवानबृहस्पतिकीपूजाकाविधानहरगुरुवारकेदिनहोताहै।इसपूजासेपरिवारमेंसुख-शांतिरहतीहैएवंजल्दविवाहकेलिएभीगुरुवारकाव्रतकियाजाताहै। बृहस्पतिवारकाव्रतकरनेऔरव्रतकथासुननेसेसारीमनोकामनाएंपूरीहोतीहैं।इसव्रतसेधनसंपत्तिकीप्राप्तिहोतीहै।जिन्हेंसंताननहींहै, उन्हेंसंतानकीप्राप्तिहोतीहैएवंपरिवारमेंसुख-शांतिबढ़तीहै। बृहस्पतिवारव्रतउद्यापनकीविधि • बृहस्पतिवारकोसुबह-सुबहउठकरस्नानकरें. नहानेकेबादहीपीलेरंगकेवस्त्रपहनलेंऔरपूजाकेदौरानभीइन्हीवस्त्रोंकोपहनकरपूजाकरें। • भगवानसूर्यवमांतुलसीऔरशालिग्रामभगवानकोजलचढ़ाएं। • मंदिरमेंभगवानविष्णुकीविधिवतपूजनकरेंऔरपूजनकेलिएपीलीवस्तुओंकाप्रयोगकरें. पीलेफूल, चनेकीदाल, पीलीमिठाई, पीलेचावल, औरहल्दीकाप्रयोगकरें। • इसकेबादकेलेकेपेड़केतनेपरचनेकीदालकेसाथपूजाकीजातीहै. केलेकेपेड़मेंहल्दीयुक्तजलचढ़ाएं। • केलेकेपेड़कीजड़ोमेंचनेकीदालकेसाथहीमुन्नकेभीचढ़ाएं। • इसकेबादघीकादीपकजलाकरउसपेड़कीआरतीकरें। • केलेकेपेड़केपासहीबैठकरव्रतकथाकाभीपाठकरें। इसकेबादनिम्नमंत्रसेप्रार्थनाकरें- धर्मशास्तार्थतत्वज्ञज्ञानविज्ञानपारग।विविधार्तिहराचिन्त्यदेवाचार्यनमोऽस्तुते॥ तत्पश्चातआरतीकरव्रतकथासुनें। बृहस्पतिवारव्रतकेदिनक्याकरें? इसदिनएकसमयहीभोजनकियाजाताहै।व्रतकरनेवालेकोभोजनमेंचनेकीदालअवश्यखानीचाहिए।बृहस्पतिवारकेव्रतमेंकंदलीफल (केले) केवृक्षकीपूजाकीजातीहै। बृहस्पतिवारव्रतकीकथा– 1 प्राचीनसमयकीबातहै।भारतवर्षमेंएकराजाराज्यकरताथा।वहबड़ाप्रतापीऔरदानीथा।वहनित्यगरीबोंऔरब्राह्‌मणोंकीसहायताकरताथा।वहप्रतिदिनमंदिरमेंभगवाऩकेदर्शनकरनेजाताथा, परंतुयहबातउसकीरानीकोअच्छीनहींलगतीथी।वहनहीगरीबोंकोदानदेतीथीऔरनहीकभीभगवानकापूजनकरतीथीऔरराजाकोभीऐसाकरनेसेमनाकियाकरतीथी। एकदिनराजाशिकारखेलनेवनकोगएहुएथेतोरानीऔरदासीमह...