Bhushan kis yug ke kavi hain

  1. bhushan kis yug ke kavi hain – News
  2. मैथिलीशरण गुप्त आधुनिक काल में किस युग के कवि थे?
  3. भारतेंदु युग की विशेषताएं /भारतेंदु युग परिचय
  4. नंददास
  5. विद्यापति किस काल के कवि थे
  6. द्विवेदी युग के कवि और उनकी रचनाएँ


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bhushan kis yug ke kavi hain – News

ज्यौं सहस्रबाह पर राम-द्विजराज हैं॥ दावा द्रुम दंड पर चीता मृगझुंड पर भूषन वितुंड पर जैसे मृगराज हैं। तेज तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर त्यौं मलिच्छ बंस पर सेर शिवराज हैं॥ ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहन वारी ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहाती हैं। कंद मूल भोग करैं कंद मूल भोग करैं तीन बेर खातीं ते वे तीन बेर खाती हैं॥ भूषन शिथिल अंग भूषन शिथिल अंग

मैथिलीशरण गुप्त आधुनिक काल में किस युग के कवि थे?

एक ब्लॉग जो की हिंदी साहित्य से जुड़ी जानकारियाँ आपके साथ शेयर करता है जो की आपके प्रतियोगिता परीक्षा में पूछे जाते हैं, इस ब्लॉग पर एम्. ए. हिंदी साहित्य का पूरा कोर्स लॉन्च करने का प्लान है. अगर आपका सहयोग अच्छा रहा हमारे ब्लॉग में पूरा कोर्स उपलब्ध करा दिया जाएगा. इसमें जो प्रश्न लिखे जा रहे हैं वह न केवल एम्. ए. के लिए उपयोगी है बल्कि यह विभिन्न प्रकार के प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी हिंदी साहित्य के प्रश्न विभिन्न फोर्मेट में हमारा ब्लॉग आपके लिए कंटेंट बनाते रहेगा अपना सहयोग बनाये रखें.

भारतेंदु युग की विशेषताएं /भारतेंदु युग परिचय

भारतेंदु युग की प्रमुख विशेषताएं भारतेंदु युग की विशेषताएं /भारतेंदु युग परिचय [हिंदी साहित्य का आधुनिक काल ] नमस्कार दोस्तों ! स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट bandanaclasses.com पर . दोस्तों आज की पोस्ट में हम जानेंगे कि भारतेंदु युग क्या है ? तथा भारतेंदु युग की‌ प्रमुख विशेषताएं क्या हैं ? आप सभी लोगों को पोस्ट को आखिरी तक पढ़ना है . मेरे दोस्तों आप लोग भी यह जानना चाहते होंगे कि भारतेंदु युग किसे कहते हैं ? आखिर हम में से बहुत से लोग आज भी नहीं जानते हैं कि भारतेंदु युग का वास्तविक मतलब क्या होता है ? यदि आप भी उन लोगों में से हैं जिन्हें नहीं पता कि भारतेंदु युग किसे कहते हैं ? इन सभी प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए बने रहिये इस पोस्ट पर . मेरे प्रिय विद्द्यार्थियों भारतेंदु युग शब्द को तो हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं लेकिन सच्चाई यही हैं कि भारतेंदु युग किसे कहते हैं ? यह तथ्य हम में से अधिकांश लोग नहीं जानते हैं . तो दोस्तों बने रहिये हमारी वेबसाइट bandanaclasses.com पर . हिंदी भाषा में भारतेंदु युग का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान हैं . यहां पर हम आज की पोस्ट में आपको भारतेंदु युगऔर उसके प्रमुख लेखकों के बारे में बताएंगे। हिंदी साहित्य में भारतेंदु युग से संबंधित लेखकों के बारे में इस पोस्ट में आपको जानकारी देंगे। नमस्कार दोस्तों आज की यह पोस्ट आपके लिए बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होने वाली है इस पोस्ट में हम आपको भारतेंदु युग से जुड़ी सारी जानकारी बताने वाले हैं तो आप इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें। bhartendu yug ki visheshta,bhartendu yug ki visheshtaen likhiye,भारतेंदु युग की विशेषताएं लिखिए,भारतेंदु युग के निबंधों की चार विशेषताएं लिखिए, भारतेंदु युग किसे कहते हैं ? भारतें...

नंददास

• • • • • • जन्मकाल – 1533 ई. (1590 वि.) मृत्युकाल – 1583 ई. (1640 वि.) • जन्मस्थान – गाँव रामपुर, सोरों या सूकर क्षेत्र (उ.प्र., सनाढ्य ब्राह्मण) प्रमुख रचनाएँ – • अनेकार्थ मंजरी • मान मंजरी (ये दोनों रचनाएँ पर्याय कोश ग्रंथ हैं। ’मानमंजरी’ ग्रंथ नंददास के भाषा विषयक प्रौढ़ ज्ञान और पांडित्य का द्योतक माना जाता है।) ⇒ विरह मंजरी (यह बारहमासा शैली में रचित इनका भावात्मक काव्य माना जाता है।) रामनरेश त्रिपाठी जीवन परिचय देखें ⇔ रूप मंजरी -यह इनका लघु आख्यानकाव्य माना जाता है। इनकी एक प्रेयसी का नाम भी ’रूपमंजरी’ माना जाता है।( imp) ⇒ रसमंजरी ⇔ भंवरगीत यह नंददास के परिपक्व दर्शन ज्ञान, विवेक बुद्धि, तार्किक शैली और कृष्ण भक्ति का परिचायक काव्य है। इसके पूर्वार्द्ध भाग में गोपी-उद्धव संवाद तथा उत्तरार्द्ध भाग में कृष्ण-प्रेम में गोपियों की विरह दशा का वर्णन है। इसके लेखन का मुख्य उद्देश्य निर्गुण-निराकार ब्रह्म की उपासना का खंडन करके सगुण साकार कृष्ण की भक्ति की स्थापना करना है। ⇒ रास पंचाध्यायी यह इनकी सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। इसमें वियुक्त आत्मा (गोपी) रासलीला के माध्यम से रस-रूप परमात्मा (कृष्ण) से मिलाने के लिए प्रयत्नशील हैं। यह ’रोला’ छंद में लिखित रचना है। इस रचना में उपयुक्त शब्द चयन एवं उनके सुष्ठु प्रयोग के कारण इनको ’जङिया-कवि’ की उपाधि प्रदान की जाती है। ⇔ सिद्धान्त पंचाध्यायी -यह कृष्ण की रासलीला से संबंधित रचना है। इसमें कृष्ण, वृदांवन, वेणु, गोपी, रास आदि शब्दों की आध्यात्मिक व्याख्याप्रस्तुत की गयी हैं। डॉ. नगेन्द्र जीवन परिचय देखें • सुदामा चरित -इसका कथानक ’श्रीमद्भागवत’ से गृहीत किया गया है। काव्यदृष्टि से यह साधारण रचना है। • नन्ददास पदावली– इसमें नंदद...

विद्यापति किस काल के कवि थे

विद्यापति ने अनेक ग्रंथो की रचना कि थी, वे अवहट्ट और मैथिली भाषा में भी ग्रंथो की रचना करते थे, खास कर वे संस्कृत का प्रयोग किया करते थे। क्या आप जानते है की विद्यापति किस काल के कवि थे (Vidyapati Kis Kaal Ke Kavi The) अगर नही तो आइये जानते हैं विद्यापति के बारें में कि उनका जन्म कब हुआ था? और वे किस काल के कवि थे? आदि । Table of Contents • • • • विद्यापति विद्यापति जी का जन्म 1352 में हुआ था। इनका जन्म उत्तरी बिहार के मिथिली के जिले मधुबन में हुआ था। इनके पिता का नाम गणपति ठाकुर था, यह शैव ब्राह्मण परिवार से थे। इनका पूरा परिवार शिव जी का बहुत बड़ा भक्त था। सन 1401 में सुल्तान अरसलान को हरा कर गणेश्वर के पुत्रों, वीरसिंह और कीर्तिसिंहने इतिहास रच दिया था, जिसमे विद्यापतिका अहम योगदान था। फिर विद्यापति नेमैथिलीमे राधा और कृष्ण के प्रेम के गीत रचना प्रारम्भ कर दी थी। विद्यापति शिव भक्त थे पर वह अधिकांश राधा और कृष्ण के प्रेम पर गीत लिखा करते थे। विद्यापति की मृत्यु सन 1448 में हुई थी। विद्यापति की रचनाएँ • शैवसर्वस्वसार.प्रमाणभूत संग्रह’ • गंगावाक्यावली • विभागसार • दानवाक्यावली • दुर्गाभक्तितरंगिणी • वर्षकृत्य • गोरक्ष विजय • मणिमंजरी नाटिका • पदावली • शैवसर्वस्वसार • गयापत्तालक • कीर्तिलता • कीर्तिपताका • भूपरिक्रमा • पुरुष परीक्षा • लिखनावली विद्यापति किस काल के कवि थे – Vidyapati Kis Kaal Ke Kavi The? विद्यापतिआदिकालके कविहै।उन्होंने अवहट्ट और मैथिली भाषाओं में ग्रंथों की रचना की है साथ ही संस्कृत भाषा में भी अनेक ग्रंथों की रचना की है जो ज्यादा प्रसिद्द है। FAQs

द्विवेदी युग के कवि और उनकी रचनाएँ

आधुनिक कविता के दूसरे पड़ाव (सन् 1903 से 1916)को द्विवेदी-युग के नाम से जाना जाता है। यह आधुनिक कविता के उत्थान व विकास का काल है।सन् 1903 में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी 'सरस्वती' पत्रिका के संपादक बने।द्विवेदी जी से पूर्व कविता की भाषा ब्रज बनी हुई थी।लेकिन उन्होंने सरस्वती पत्रिका के माध्यम से नवीनता से प्राचीनता का आवरण हटा दिया।जाति-हित की अपेक्षा देशहित को महत्त्व दिया।हिंदू होते हुए भी भारतीय कहलाने की गौरवमयी भावनाको जागृत किया।अतीत के गौरव को ध्यान में रखते हुए भी वर्तमान को न भूलने की प्रेरणा दी।खड़ीबोली को शुद्ध व्याकरण-सम्मत और व्यवस्थित बना कर साहित्य के सिंहासन पर बैठने योग्य बनाया।अब वह ब्रजभाषा रानी की युवराज्ञी न रहकर स्वयं साहित्यिक जगत की साम्राज्ञी बन गई।यह कार्य द्विवेदी जी के महान व्यक्तित्व से ही सम्पन्न हुआ और इस काल का कवि-मंडल उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनके बताए मार्ग पर चला।इसलिए इस युग को द्विवेदी-युग का नाम दिया गया। इस काल के प्रमुख कवि हैं - सर्वश्री मैथिलीशरण गुप्त, अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔद्य', श्रीधर पाठक, गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही, 'रामनरेश त्रिपाठी, नाथूराम शर्मा 'शंकर', सत्यनारायण 'कविरत्न', गोपालशरण सिंह, मुकुटधर पाण्डेय औरसियारामशरण गुप्त, रामचरितउपाध्याय, जगन्नाथ दास रत्नाकर,लोचन प्रसाद पाण्डेय,रूपनारायण पाण्डेय आदि। मेेघ घिरते है घिरने दो काली घटा को मचलने दो हमे परवाह नही इनकी क्यिूं की ये बेरहम है और नही तोो क्या ये सिर्फ मन के वहम है खामोशी भरी राते एक पाटी पर तड़पती हुयी न खत्म होने वाली बाते तुम आ जाते हो बिन बुलायेे मेहमान की तरह ॥ मन मौजी पर मेरे आंगन मे तुम्हारा इन्तजार नही तुम्हारे लिए मेरे मन मे दुलार ननही आज हम आदिक...