बिरसा मुंडा का धर्म

  1. Birsa Munda Biography in Hindi
  2. Jharkhand Foundation Day Who was Birsa Munda
  3. आज का इतिहास : बिरसा मुंडा का नाम सुनकर कांप जाती थी ब्रितानी हुकूमत
  4. बिरसा मुंडा: धर्म, धरती और समाज के रक्षक
  5. बिरसा मुंडा का जीवन परिचय
  6. बिरसा मुंडा कौन थे, देश और हिन्दू धर्म के लिए उन्होंने क्या किया था,जानिए – Azaadbharat
  7. बिरसा मुंडा की जीवनी
  8. बिरसा मुंडा
  9. बिरसा मुंडा की जीवनी
  10. Birsa Munda Biography in Hindi


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Birsa Munda Biography in Hindi

Birsa Munda Biographyin Hindi: बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को बिरसा मुंडा का परिवार घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करता था | बिरसा बचपन से अपने दोस्तों के साथ रेत में खेलते रहते थे और थोडा बड़ा होने पर उन्हें जंगल में भेड़ चराने जाना पड़ता था | जंगल में भेड़ चराते वक़्त समय व्यतीत करने के लिए बाँसुरी बजाया करते थे और कुछ दिनों बाँसुरी बजाने में उस्ताद हो गये थे | उन्होंने कद्दू से एक एक तार वाला वादक यंत्र तुइला बनाया था जिसे भी वो बजाया करते थे | 1886 से 1890 का दौर के जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ रहा जिसमे उन्होंने इसाई धर्म के प्रभाव में अपने धर्म का अंतर समझा | उस मस्य सरदार आंदोलन शुरू हो गया था इसलिए उनके पिता ने उनको स्कूल छुडवा दिया था क्योंकि वो इसाई स्कूलों का विरोध कर रही थी | अब सरदार आन्दोलन की वजह से उनके दिमाग में इसाइयो के प्रति विद्रोह की भावना जागृत हो गयी थे | बिरसा मुंडा भी सरदार आन्दोलन में शामिल हो गये थे और अपने पारम्परिक रीती रिवाजो के लिए लड़ना शुरू हो गये थे | अब बिरसा मुंडा आदिवासियों के जमीन छीनने , लोगो को इसाई बनाने और युवतियों को दलालों द्वारा उठा ले जाने वाले कुकृत्यो को अपनी आँखों से देखा था जिससे उनके मन में अंग्रेजो के अनाचार के प्रति क्रोध की ज्वाला भडक उठी थी| अब वो अपने विद्रोह में इतने उग्र हो गये थे कि आदिवासी जनता उनको भगवान मानने लगी थी और आज भी आदिवासी जनता बिरसा को भगवान बिरसा मुंडा के नाम से पूजती है | उन्होंने धर्म परिवर्तन का विरोध किया और अपने आदिवासी लोगो को हिन्दू धर्म के सिद्धांतो को समझाया था | उन्होंने गाय की पूजा करने और गौ-हत्या का विरोध करने की लोगो को सलाह दी | अब उन्होंने अंग्रेज सरकार के खिलाफ नारा दिया “रानी का शाषन खत्म ...

Jharkhand Foundation Day Who was Birsa Munda

आदिवासी नेता, स्वतंत्रता सेनानी एवं लोकनायक बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को बंगाल प्रेसीडेंसी के उलिहातू में हुआ था, जो अब झारखंड के खूंटी जिले में है। झारखंड (Jharkhand) में धरती आबा के नाम से मशहूर मुंडा का निधन 25 साल की उम्र में एक सदी से पहले हो गया था। लेकिन उनकी महत्वपूर्ण विरासत आज भी जीवित है। 22 साल पहले 15 नवंबर 2000 को मुंडा की जयंती (Birsa Munda Jayanti 2022) के मौके पर ही झारखंड राज्य का गठन किया गया था। हर वर्ष 15 नवंबर को झारखंड की राजधानी रांची के कोकर में मुंडा की समाधि स्थल पर एक आधिकारिक समारोह का आयोजन किया जाता है। जब बिरसा मुंडा बने थे बिरसा डेविड बिरसा मुंडा (Who Is Birsa Munda) की प्रारंभिक शिक्षा जयपाल नाग (शिक्षक) के मार्गदर्शन में सलगा में प्राप्त की थी। मुंडा ने अपना बचपन ईसाई मिशनरियों के बीच बिताया, जिनका मुख्य मिशन अधिक से अधिक आदिवासी लोगों का धर्मांतरण करना होता था। बिरसा (Birsa Munda Jayanti) के शिक्षक ने उन्हें जर्मन मिशन स्कूल में दाखिला लेने की सलाह दी थी। वहां भर्ती के लिए उन्हें ईसाई धर्म में परिवर्तित होना पड़ा था। धर्मांतरण के उपरांत पहले उनका नाम बिरसा डेविड और बाद में बिरसा दाऊद कर दिया गया। बिरसा ने की बिरसाइत धर्म की स्थापना कुछ साल पढ़ाई करने के बाद बिरसा ने जर्मन मिशन स्कूल छोड़ दिया। 1886 से 1890 के बीच वह चाईबासा में सरदारों के बीच रहे। सरदार अंग्रेजी सरकार से वन संबंधी अधिकारों की मांग करते थे। युवा बिरसा के मन पर उनके आचार-व्यवहार का गहरा प्रभाव पड़ा। वह जल्द ही मिशनरी विरोधी और सरकार विरोधी कार्यक्रम में हिस्सा लेने लगे। बिरसा को अब अपने आदिवासी समाज की चिंता सताने लगी थी। वह अपने समाज में सुधार लाना चाहते थे। उन्हो...

आज का इतिहास : बिरसा मुंडा का नाम सुनकर कांप जाती थी ब्रितानी हुकूमत

देश-दुनिया के इतिहास में 9 जून की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख भारत के वनवासियों के लिए अमर है। भारत में जल, जंगल और जमीन को लेकर वनवासियों का संघर्ष सदियों पुराना है। ऐसे ही एक विद्रोह के जनक की 9 को पुण्यतिथि होती है। यह जनक बिरसा मुंडा हैं। उनका 9 जून, 1900 को रांची की जेल में निधन हो गया था। बिरसा मुंडा की उम्र जरूर छोटी थी, लेकिन कम उम्र में ही वो वनवासियों के भगवान बन गए थे। 1895 में बिरसा ने अंग्रेजों द्वारा लागू की गई जमींदारी और राजस्व-व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई छेड़ी। बिरसा ने सूदखोर महाजनों के खिलाफ भी बगावत की। ये महाजन कर्ज के बदले वनवासियों की जमीन पर कब्जा कर लेते थे। बिरसा मुंडा के निधन तक चला ये विद्रोह ‘उलगुलान’ नाम से जाना जाता है। औपनिवेशिक शक्तियों की संसाधनों से भरपूर जंगलों पर हमेशा से नजर थी और वनवासी जंगलों को अपनी जननी मानते हैं। इसी वजह से जब अंग्रेजों ने इन जंगलों को हथियाने की कोशिशें शुरू कीं तो वनवासियों में असंतोष पनपने लगा। अंग्रेजों ने वनवासी कबीलों के सरदारों को महाजन का दर्जा दिया और लगान के नए नियम लागू किए। नतीजा यह हुआ कि धीरे-धीरे वनवासी कर्ज के जाल में फंसने लगे। उनकी जमीन भी उनके हाथों से जाने लगी। दूसरी ओर, अंग्रेजों ने इंडियन फॉरेस्ट एक्ट पास कर जंगलों पर कब्जा कर लिया। खेती करने के तरीकों पर बंदिशें लगाई जाने लगीं। वनवासियों का धैर्य जवाब देने लगा। तभी उन्हें बिरसा मुंडा के रूप में अपना नायक मिला। 1895 तक बिरसा मुंडा वनवासियों के बीच बड़ा नाम बन गए। लोग उन्हें ‘धरती बाबा’ नाम से पुकारने लगे। बिरसा मुंडा ने वनवासियों को दमनकारी शक्तियों के खिलाफ संगठित किया। अंग्रेजों और वनवासियों में हिंसक झड़प होने लगीं। अगस्त 1897 में ब...

बिरसा मुंडा: धर्म, धरती और समाज के रक्षक

जन्म- 15 नवंबर 1875। मृत्यु- 9 जून 1900। आदिवासियों के महानायक बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के आदिवासी दम्पति सुगना और करमी के घर हुआ था। भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा एक ऐसे नायक थे, जिन्होंने भारत के झारखंड में अपने क्रांतिकारी चिंतन से उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आदिवासी समाज की दशा और दिशा बदलकर नवीन सामाजिक और राजनीतिक युग का सूत्रपात किया। बिरसा मुंडा ने साहस की स्याही से पुरुषार्थ के पृष्ठों पर शौर्य की शब्दावली रची। उन्होंने हिन्दू धर्म और ईसाई धर्म का बारीकी से अध्ययन किया तथा इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आदिवासी समाज मिशनरियों से तो भ्रमित है ही हिन्दू धर्म को भी ठीक से न तो समझ पा रहा है, न ग्रहण कर पा रहा है।बिरसा मुंडा ने अनुभव किया कि आचरण के धरातल पर आदिवासी समाज अंधविश्वासों की आंधियों में तिनके-सा उड़ रहा है तथा आस्था के मामले में भटका हुआ है। उन्होंने यह भी अनुभव किया कि सामाजिक कुरीतियों के कोहरे ने आदिवासी समाज को ज्ञान के प्रकाश से वंचित कर दिया है। धर्म के बिंदु पर आदिवासी कभी मिशनरियों के प्रलोभन में आ जाते हैं, तो कभी ढकोसलों को ही ईश्वर मान लेते हैं।भारतीय जमींदारों और जागीरदारों तथा ब्रिटिश शासकों के शोषण की भट्टी में आदिवासी समाज झुलस रहा था। बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को शोषण की नाटकीय यातना से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें तीन स्तरों पर संगठित करना आवश्यक समझा। 1. पहला तो सामाजिक स्तर पर ताकि आदिवासी-समाज अंधविश्वासों और ढकोसलों के चंगुल से छूट कर पाखंड के पिंजरे से बाहर आ सके। इसके लिए उन्होंने ने आदिवासियों को स्वच्छता का संस्कार सिखाया। शिक्षा का महत्व समझाया। सहयोग और सरकार का रास्ता दिखाया।बिरसा पढ़ाई में बहुत होशियार थे इसल...

बिरसा मुंडा का जीवन परिचय

बिरसा मुंडा का जीवन परिचय | Birsa Munda Biography in Hindi आज हम देश की आजादी में अमूल्य योगदान देने वाले बिरसा मुंडा से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी आपके साथ सांझा करेंगे। जैसे कि बिरसा कौन थे, इनका जन्म कब हुआ था और उन्होंने भारत के आजादी के लिए अंग्रेजो के खिलाफ किस तरह लड़ाई लड़ी? इसके अलावा हम आपको और भी जानकारी इनके बारे में देंगे जो आपके लिए खास हो। तो अगर आप मुंडा के बारे में जानना चाहते हैं तो इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें। नाम बिरसा मुंडा पिता का नाम सुगुना मुंडा माता का नाम करनी मुंडा जन्मदिन 15 नवंबर 1875 जन्म स्थल झारखंड धर्म आदिवासी शिक्षा राष्ट्रीयता भारतीय परिवार मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को हुआ था। इनका जन्म छोटानागपुर यानी कि झारखंड में एक सीमांत किसान के घर हुआ था, अर्थात इनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। बिरसा को आदिवासियों को संगठित करके अंग्रेजों का विद्रोह करने के आरोप में अंग्रेजी सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और 2 साल की सजा सुना दी थी। अगर बात करें उनके परिवार के बारे में तो इनके पिता का नाम सुगुना मुंडा वहीं इनकी माता का नाम करनी मुंडा था। प्रारंभिक जीवन बिरसा का जन्म होने से पहले से ही भारत पर अंग्रेजों का कब्जा था और अंग्रेज हर भारतीय पर जुल्म ढा रहे थे। देश के अन्य भागों के समान ही बिरसा के क्षेत्र में भी अंग्रेजों का ही राज था और सारे आदिवासी उस समय अंग्रेजों को सता रहे थे। इस स्थिति को देखते हुए बिरसा को काफी बुरा लगता है, वह अक्सर यह कहते थे कि अंग्रेज हमारे ऊपर राज करें हमें इससे कोई दिक्कत नहीं है लेकिन अंग्रेज हमें सताए नहीं। अंग्रेज सभी भारतीयों को खूब सता रहे थे और कहीं-कहीं तो ऐसा हो रहा था कि अंग्रेज भारतीयों से जबरदस्ती मजदूरी कर...

बिरसा मुंडा कौन थे, देश और हिन्दू धर्म के लिए उन्होंने क्या किया था,जानिए – Azaadbharat

🚩सुगना मुंडा और करमी हातू के पुत्र बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड प्रदेश में रांची के उलीहातू गांव में हुआ था। वे ‘बिरसा भगवान’ के नाम से लोकप्रिय थे। बिरसा का जन्म बृहस्पतिवार को हुआ था, इसलिए मुंडा जनजातियों की परंपरा के अनुसार उनका नाम ‘बिरसा मुंडा’ रखा गया। इनके पिता एक खेतिहर मजदूर थे। वे बांस से बनी एक छोटी-सी झोंपड़ी में अपने परिवार के साथ रहते थे। 🚩बिरसा बचपन से ही बड़े प्रतिभाशाली थे। बिरसा का परिवार अत्यंत गरीबी में जीवन-यापन कर रहा था। गरीबी के कारण ही बिरसा को उनके मामा के पास भेज दिया गया, जहां वे एक विद्यालय में जाने लगे। विद्यालय के संचालक बिरसा की प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने बिरसा को जर्मन मिशन पाठशाला में पढ़ने की सलाह दी। वहां पढ़ने के लिए ईसाई धर्म स्वीकार करना अनिवार्य था। अतः बिरसा और उनके सभी परिवार वालों ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। 🚩हिंदुत्व की प्रेरणा…… 🚩सन् 1886 से 1890 तक का समय बिरसा ने जर्मन मिशन में बिताया। इसके बाद उन्होंने जर्मन मिशनरी की सदस्यता त्याग दी , और ईसाई धर्म छोड़ दिया था और फिर वे भगवान विष्णु के भक्त आनंद पांडे के संपर्क में आये। 1894 में मानसून के छोटानागपुर में असफल होने के कारण भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी। बिरसा ने पूरे मनोयोग से अपने लोगों की सेवा की। बिरसा ने आनंद पांडेजी से हिन्दू धर्म की शिक्षा ग्रहण की। आनंद पांडेजी के सत्संग से उनकी रुचि भारतीय दर्शन और भारतीय संस्कृति के रहस्यों को जानने की ओर हो गयी। धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने के साथ-साथ उन्होंने रामायण, महाभारत, हितोपदेश,भगवद्गीता आदि धर्मग्रंथों का भी अध्ययन किया। इसके बाद वे सत्य की खोज के लिए एकांत स्थान पर कठोर साधना करने लगे। लगभग 4 व...

बिरसा मुंडा की जीवनी

बिरसा भगवान के नाम से पहचाने जाने वाले ‘ बिरसा मुंडा‘ मुंडा जाति से संबंध रखते थे. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ खड़े होकर मुंडा आदिवासियों कि मदद की थी. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में उनका भी एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है. आज इस आर्टिकल में हम आपको बिरसा मुंडा की जीवनी – Birsa Munda Biography Hindi के बारे में बताने जा रहे हैं. 1.4 निधन बिरसा मुंडा की जीवनी – Birsa Munda Biography Hindi जन्म बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 में रांची, झारखंड में हुआ था. बिरसा मुंडा एक आदिवासी नेता और लोक नायक थे. मुंडा जाति से संबंध रखने के कारण उन्हें बिरसा मुंडा भी कहा जाता था. शिक्षा बिरसा के पिता सुगना मुंडा धर्म प्रचारकों के सहयोगी थे जिसकी वजह से वह भी धीरे-धीरे धर्म प्रचारक के रूप में सामने आए. उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई जर्मन मिशन स्कूल चाईबासा से प्राप्त की. वहां पर स्कूल में धर्म का मजाक उड़ाने की वजह से उन्होंने उनको स्कूल से निकाल दिया. योगदान बिरसा मुंडा के द्वारा अनुयायियों को संगठित करके उन्होंने 2 दल बनाए थे जिसमें से एक दल उनके मुंडा धर्म का प्रचार करता था और दूसरा राजनीतिक कार्य करने के लिए नियुक्त किया गया था. बिरसा मुंडा ने किसानों का शोषण रोकने के लिए जमींदारों के विरुद्ध भी आवाज उठाई. भीड़ एकत्रित होने की वजह से और बिरसा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया लेकिन गांव वालों ने उन्हें छुड़वा लिया. इसके बाद में उनको दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया और हजारीबाग के जेल में डाल दिया गया और वहां पर वह करीबन 2 साल तक रहे. आनंद पांडे से मिलने के बाद उन्होंने हिंदू धर्म और महाभारत के कई पात्रों से शिक्षा ग्रहण की. 1985 में कुछ ऐसी अनोखी घटनाएं घटी थी जिसकी वजह से उनको भगवान का अवतार...

बिरसा मुंडा

या लेखातील हा साचा बिरसाचे सन १८८६ ते १८९० या काळात चैबासा येथे वास्तव्य होते. हा कालावधी जर्मन आणि रोमन कॅथोलिक ख्रिश्चन आंदोलनासाठी ओळखला जातो. त्यामुळे सुगन मुंडा यांनी शाळेतून आपला मुलाचे-बिरसाचे नाव काढून घेतले होते. चैबासा हे तत्कालीन सरदारांच्या राज्याच्या राजधान्यांपासून फार दूर नव्हते. सरदारांच्या आंदोलनांत इंग्रज शिपायांनी बिरसाला अशा प्रकारे पकडले की त्याच्यावर धर्मविरोधी आणि सरकारविरोधी शिक्का मारला गेला. १८९० मध्ये चैबासा सोडून दिल्यानंतर बिरसा आणि त्याचे कुटुंबाने जर्मन मिशनचे सदस्यत्व सोडून दिलेली. सरदारांच्या विरोधात आदिवासी ख्रिश्चन होऊ लागले आणि त्यामुळे भारत छोडो आंदोलनाबरोबरच बिसा मुंडा त्याच्या मूळ पारंपरिक आदिवासी धार्मिक व्यवस्थेकडे वळला. वाढत्या सरदार आंदोलनामुळे त्यांनी कोर्बेरा सोडला. पोराहाट परिसरातील पेरींगच्या गिडियूनच्या नेतृत्वाखालील संरक्षित जंगलात मुंडाच्या पारंपारिक अधिकारांवर केलेल्या निर्बंधांवर लोकप्रिय असहिष्णुतेमुळे झालेल्या आंदोलनात त्यांनी भाग घेतला. १८९३-९४ च्या दरम्यान गावांमध्ये सर्व कचऱ्याची जमीन, ज्याची मालकी सरकारमध्ये निहित होती, १८८२ च्या भारतीय वन अधिनियम ७ च्या अंतर्गत संरक्षित जंगलात गृहीत धरली गेली. सिंहभाममध्ये पलामू आणि मानभूमप्रमाणे जंगल वस्ती सुरू करण्यात आली आणि उपाय योजण्यात आले. वन-निवासी समुदायांचे हक्क निश्चित करण्यासाठी घेतले. जंगलातल्या गावांना सोयीस्कर आकाराच्या ब्लॉकमध्ये ठळक केले गेले आहे ज्यामध्ये फक्त गावांचीच नव्हे तर खेड्यांच्या गरजा पूर्ण करण्यासाठी लागवड योग्य आणि कचरा जमीन देखील आहे. १८९४ मध्ये, बिरसा एक शक्तिशाली तरुण, हुशार आणि बुद्धिमान बनले आणि बऱ्याचदा गारबरा येथील डंबरी टॅंक दुरुस्त करण्याच्या ...

बिरसा मुंडा की जीवनी

बिरसा भगवान के नाम से पहचाने जाने वाले ‘ बिरसा मुंडा‘ मुंडा जाति से संबंध रखते थे. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ खड़े होकर मुंडा आदिवासियों कि मदद की थी. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में उनका भी एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है. आज इस आर्टिकल में हम आपको बिरसा मुंडा की जीवनी – Birsa Munda Biography Hindi के बारे में बताने जा रहे हैं. 1.4 निधन बिरसा मुंडा की जीवनी – Birsa Munda Biography Hindi जन्म बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 में रांची, झारखंड में हुआ था. बिरसा मुंडा एक आदिवासी नेता और लोक नायक थे. मुंडा जाति से संबंध रखने के कारण उन्हें बिरसा मुंडा भी कहा जाता था. शिक्षा बिरसा के पिता सुगना मुंडा धर्म प्रचारकों के सहयोगी थे जिसकी वजह से वह भी धीरे-धीरे धर्म प्रचारक के रूप में सामने आए. उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई जर्मन मिशन स्कूल चाईबासा से प्राप्त की. वहां पर स्कूल में धर्म का मजाक उड़ाने की वजह से उन्होंने उनको स्कूल से निकाल दिया. योगदान बिरसा मुंडा के द्वारा अनुयायियों को संगठित करके उन्होंने 2 दल बनाए थे जिसमें से एक दल उनके मुंडा धर्म का प्रचार करता था और दूसरा राजनीतिक कार्य करने के लिए नियुक्त किया गया था. बिरसा मुंडा ने किसानों का शोषण रोकने के लिए जमींदारों के विरुद्ध भी आवाज उठाई. भीड़ एकत्रित होने की वजह से और बिरसा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया लेकिन गांव वालों ने उन्हें छुड़वा लिया. इसके बाद में उनको दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया और हजारीबाग के जेल में डाल दिया गया और वहां पर वह करीबन 2 साल तक रहे. आनंद पांडे से मिलने के बाद उन्होंने हिंदू धर्म और महाभारत के कई पात्रों से शिक्षा ग्रहण की. 1985 में कुछ ऐसी अनोखी घटनाएं घटी थी जिसकी वजह से उनको भगवान का अवतार...

Birsa Munda Biography in Hindi

Birsa Munda Biographyin Hindi: बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को बिरसा मुंडा का परिवार घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करता था | बिरसा बचपन से अपने दोस्तों के साथ रेत में खेलते रहते थे और थोडा बड़ा होने पर उन्हें जंगल में भेड़ चराने जाना पड़ता था | जंगल में भेड़ चराते वक़्त समय व्यतीत करने के लिए बाँसुरी बजाया करते थे और कुछ दिनों बाँसुरी बजाने में उस्ताद हो गये थे | उन्होंने कद्दू से एक एक तार वाला वादक यंत्र तुइला बनाया था जिसे भी वो बजाया करते थे | 1886 से 1890 का दौर के जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ रहा जिसमे उन्होंने इसाई धर्म के प्रभाव में अपने धर्म का अंतर समझा | उस मस्य सरदार आंदोलन शुरू हो गया था इसलिए उनके पिता ने उनको स्कूल छुडवा दिया था क्योंकि वो इसाई स्कूलों का विरोध कर रही थी | अब सरदार आन्दोलन की वजह से उनके दिमाग में इसाइयो के प्रति विद्रोह की भावना जागृत हो गयी थे | बिरसा मुंडा भी सरदार आन्दोलन में शामिल हो गये थे और अपने पारम्परिक रीती रिवाजो के लिए लड़ना शुरू हो गये थे | अब बिरसा मुंडा आदिवासियों के जमीन छीनने , लोगो को इसाई बनाने और युवतियों को दलालों द्वारा उठा ले जाने वाले कुकृत्यो को अपनी आँखों से देखा था जिससे उनके मन में अंग्रेजो के अनाचार के प्रति क्रोध की ज्वाला भडक उठी थी| अब वो अपने विद्रोह में इतने उग्र हो गये थे कि आदिवासी जनता उनको भगवान मानने लगी थी और आज भी आदिवासी जनता बिरसा को भगवान बिरसा मुंडा के नाम से पूजती है | उन्होंने धर्म परिवर्तन का विरोध किया और अपने आदिवासी लोगो को हिन्दू धर्म के सिद्धांतो को समझाया था | उन्होंने गाय की पूजा करने और गौ-हत्या का विरोध करने की लोगो को सलाह दी | अब उन्होंने अंग्रेज सरकार के खिलाफ नारा दिया “रानी का शाषन खत्म ...