दोहे कबीर के

  1. Top 250+ Kabir Das Ke Dohe In Hindi~ संत कबीर के प्रसिद्द दोहे और उनके अर्थ
  2. संत कबीर दास (Kabir Das ke Dohe) के 25 प्रसिद्ध दोहे हिंदी अर्थ सहित
  3. कबीर के दोहे
  4. संत कबीर दास जी के 350+ प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित
  5. संपूर्ण कबीर के दोहे अर्थ सहित हिंदी में। Kabir ke dohe in hindi


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Top 250+ Kabir Das Ke Dohe In Hindi~ संत कबीर के प्रसिद्द दोहे और उनके अर्थ

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि मैं सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा रहा लेकिन जब मैंने खुद अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है। मैं ही सबसे स्वार्थी और बुरा हूँ भावार्थात हम लोग दूसरों की बुराइयां बहुत देखते हैं लेकिन अगर आप खुद के अंदर झाँक कर देखें तो पाएंगे कि हमसे बुरा कोई इंसान नहीं है। भावार्थ: कमल जल में खिलता है और चन्द्रमा आकाश में रहता है। लेकिन चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब जब जल में चमकता है तो कबीर दास जी कहते हैं कि कमल और चन्द्रमा में इतनी दूरी होने के बावजूद भी दोनों कितने पास है। जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब ऐसा लगता है जैसे चन्द्रमा खुद कमल के पास आ गया हो। वैसे ही जब कोई इंसान ईश्वर से प्रेम करता है वो ईश्वर स्वयं चलकर उसके पास आते हैं। भावार्थ: घर दूर है मार्ग लंबा है रास्ता भयंकर है और उसमें अनेक पातक चोर ठग हैं। हे सज्जनों ! कहो , भगवान् का दुर्लभ दर्शन कैसे प्राप्त हो?संसार में जीवन कठिन है– अनेक बाधाएं हैं विपत्तियां हैं– उनमें पड़कर हम भरमाए रहते हैं– बहुत से आकर्षण हमें अपनी ओर खींचते रहते हैं– हम अपना लक्ष्य भूलते रहते हैं– अपनी पूंजी गंवाते रहते हैं। भावार्थ: रखवाले के बिना बाहर से चिड़ियों ने खेत खा लिया। कुछ खेत अब भी बचा है– यदि सावधान हो सकते हो तो हो जाओ – उसे बचा लो ! जीवन में असावधानी के कारण इंसान बहुत कुछ गँवा देता है– उसे खबर भी नहीं लगती– नुक्सान हो चुका होता है– यदि हम सावधानी बरतें तो कितने नुक्सान से बच सकते हैं ! इसलिए जागरूक होना है हर इंसान को - जैसे पराली जलाने की सावधानी बरतते तो दिल्ली में भयंकर वायु प्रदूषण से बचते पर – अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत ! भावार्थ: यह शरीर लाख का बना मंदि...

संत कबीर दास (Kabir Das ke Dohe) के 25 प्रसिद्ध दोहे हिंदी अर्थ सहित

भारत के महान संत कबीर दास हिंदी भाषा के प्रसिद्द कवि है। कबीर के दोहे अपनी सरलता के लिए जाने जाते हैं। यह इतने सरल है की आम व्यक्ति भी इन्हे पढ़ कर इनका अर्थ आसानी से समझ सकता है। ज्यादातर कबीर के दोहे सांसारिक व्यावहारिकता को दर्शाते हैं। संत कबीर का जीवन अत्यंत कठिनाइयों से भरा हुआ था परंतु फिर भी उन्होंने समाज में फैली बुराइयों को मिटाने के लिए अपना पूर्ण जीवन लगा दिया। कबीर ने समाज में फैली कुरितियों और अंधविश्वास को मिटाने के लिए दोहे और पद की रचना की, जिनका मुख्य उद्देश्य कुरीतियों पर वार करना था। उनके दोहे आज के युग मे भी सार्थक है। यह आज भी उतने ही लाभदायक है जितने तब थे। क्योंकि आज भी समाज अनेको बुराइयों से घिरा हुआ है और संत कबीर दास जी के दोहे समाज को एक नई दिशा देने का कार्य करते हैं। जो उनके दोहो को जीवन मे उतारता है, वो कभी भी सांसारिक मोहमाया के कारण दुखी नहीं होगा। उसे निश्चय ही मन की शांति प्राप्ति होगी। कबीर का प्रत्येक दोहा अपने अंदर अथाह अर्थ समाया हुआ है। हम आपको बताएंगे संत कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे, अर्थ के साथ जो आपको जिंदगी जीने का एक नया रास्ता दिखाएंगे हैं। संत कबीर दास के 25 दोहे हिंदी अर्थ सहित 1. कबीर कुत्ता राम का, मुतिया मेरा नाउं। गले राम की जेवड़ी, जित खैंचै तित जाउं।। अर्थ:– कबीर दास जी कहते हैं कि मैं तो राम का कुत्ता हूँ अर्थात मैं तो राम का भगत हूँ और मोती मेरा नाम है। मेरे गले में राम नाम की जंजीर है, जिधर वह ले जाते है मैं उधर ही चला जाता हूँ। 2. यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।। अर्थ:– कबीर दास जी कहते हैं कि यह शरीर विष से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान है। यदि आपको अपना सर अर्पण करके भी स...

कबीर के दोहे

पूरा नाम अन्य नाम कबीरा, कबीर साहब जन्म सन 1398 (लगभग) जन्म भूमि लहरतारा ताल, मृत्यु सन 1518 (लगभग) मृत्यु स्थान पालक माता-पिता नीरु और नीमा पति/पत्नी लोई संतान कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री) कर्म भूमि कर्म-क्षेत्र समाज सुधारक कवि मुख्य रचनाएँ विषय सामाजिक भाषा शिक्षा निरक्षर नागरिकता भारतीय संबंधित लेख अन्य जानकारी कबीर का कोई प्रामाणिक जीवनवृत्त आज तक नहीं मिल सका, जिस कारण इस विषय में निर्णय करते समय, अधिकतर जनश्रुतियों, सांप्रदायिक ग्रंथों और विविध उल्लेखों तथा इनकी अभी तक उपलब्ध कतिपय फुटकल रचनाओं के अंत:साध्य का ही सहारा लिया जाता रहा है। इन्हें भी देखें कस्तूरी कुन्डल बसे, मृग ढूढै बन माहि। ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नाहि॥ कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय। भक्ति करे कोई सूरमा, जाति वरन् कुल खोय॥ काल करै सो आज कर, आज करै सो अब। पल में प्रलय होयगी, बहुरि करेगौ कब॥ कामी लज्जा ना करै, न माहें अहिलाद। नींद न माँगै साँथरा, भूख न माँगे स्वाद॥ कांकर पाथर जोरि कै मस्जिद लई बनाय। ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय॥ करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछताय। बोवे पेड बबूल का, आम कहां से खाय॥ काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥ कर बहियां बल आपनी, छोड़ बीरानी आस। जाके आंगन नदि बहे, सो कस मरत प्यास॥ कथनी कथी तो क्या भया जो करनी ना ठहराइ। कालबूत के कोट ज्यूं देखत ही ढहि जाइ॥ कबिरा गरब न कीजिये, कबहूं न हंसिये कोय। अबहूं नाव समुंद्र में, का जाने का होय॥ कबीरा गर्व ना किजीये, उंचा देख आवास। काल परौ भुइं लेटना, उपर जमसी घास॥ कबीरा खड़ा बजार में, सब की चाहे खैर। ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर॥ कबीरा सोई पीर हैं, जो जाने पर पीर। जो पर पी...

संत कबीर दास जी के 350+ प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित

कबीर दास जी के दोहे अर्थ सहित KABIR DAS JI KE DOHE कबीर दास जी के दोहे उन तमाम कुरीतियों और असमानताओं पर कड़ा प्रहार है जिसने हमारे समाज को बुरी तरह जकड़ कर रखा है। Sant Kabir Das Ji ke Dohe हर युग मे प्रासंगिक हैं। Sant Kabir ke Dohe उस युग में लिखे गए थे जब समाज में धार्मिक एवं सामाजिक भेदभाव के अतिरिक्त बहुत तरह की भेदभावना व्याप्त थी, जैसे अमीर-गरीब, ब्राह्मण-शूद्र, जमींदार-किसान, आस्तिक-नास्तिक, शैव-सन्यासी, योगी-भोगी उस समय इनके झगड़े चरम पराकाष्ठा पर थी। कबीर साहेब के दोहे समाज को आईना दिखाने का काम करते रहे हैं। संत कबीर के दोहे (sant kabir ke dohe) लोगों मे व्याप्त हीन भावना को समझने और समाप्त करने का सफल प्रयास है। Kabir Saheb ke Dohe की गहराई मे गोता लगाने वाले को ज्ञानरूपि अमृतफल प्राप्त हो जाता है। kabir das ji ke dohe और पदों मे लौकिक और पारमार्थिक दो अर्थ निकलते हैं। संत कबीर दास जी के दोहे के गूढ़ अर्थ को समझने के लिए लौकिक और पारमार्थिक दोनों दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। संत कबीर दास जी ने अपने दोहे में यह स्वयं कहा है- हरिजी यहै विचारिया, साखी कहौ कबीर । भवसागर मे जीव है, जो कोई पकड़े तीर॥ कबीर दास जी के दोहे से स्पष्ट है की साखी (दोहे) की मूल आत्मा वह साक्षात्कृत आध्यात्मिक तत्व है जिसके समझने पर जीव का कल्याण हो जाता है। मुझे विश्वास है की कबीर दास जी दोहों के इस ज्ञान गंगा में सामान्यजन से लेकर विद्वतजन गोता लगा सकेंगे। अगर आपको भी चाहिए अमेज़न पर heavy डिस्काउंट तो इस लेख को जरूर पढ़ें । संत कबीर के दोहे दुख में सुमिरन सब करे , सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमिरन करे , दुख कहे को होय ।। कबीर दास जी कहते हैं की दु :ख में तो परमात्मा को सभी याद करते हैं लेकिन सुख...

संपूर्ण कबीर के दोहे अर्थ सहित हिंदी में। Kabir ke dohe in hindi

संत कबीर का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था परंतु फिर भी उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों को मिटाने के लिए जीवन के अंतिम क्षणों तक प्रयत्न किया। संत कबीर समाज में फैले आडंबर और अंधविश्वास को मिटाने के लिए दोहे और पद की रचना करते थे जिनका सीधा उद्देश्य कुरीतियों पर वार करना था। उनके दोहे और साथिया आज के युग में भी समान तरीके से लाभदायक है। क्योंकि आज भी समाज में बहुत से आडंबर और अंधविश्वास फैले हैं जिन्हें मिटाना बहुत जरूरी है। आपको हमारे लिखे गए इस लेख में ना सिर्फ कबीर के दोहे और साखियां पढ़ने को मिलेंगे बल्कि उनकी संपूर्ण व्याख्या भी प्राप्त होगी। Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • कबीर के दोहे व्याख्या सहित यह सभी दोहे क्रमवार लिखे गए है और प्रत्येक दोहे और पद के नीचे आपको निहित शब्द और व्याख्या पढ़ने को मिलेंगे। पहला दोहा पाहन पूजे हरि मिले , तो मैं पूजूं पहार याते चाकी भली जो पीस खाए संसार। । निहित शब्द – पाहन – पत्थर , हरि – भगवान , पहार – पहाड़ , चाकी – अन्न पीसने वाली चक्की। व्याख्या कबीरदास का स्पष्ट मत है कि व्यर्थ के कर्मकांड ना किए जाएं। ईश्वर अपने हृदय में वास करते हैं लोगों को अपने हृदय में हरि को ढूंढना चाहिए , ना की विभिन्न प्रकार के आडंबर और कर्मकांड करके हरि को ढूंढना चाहिए। हिंदू लोगों के कर्मकांड पर विशेष प्रहार करते हैं और उनके मूर्ति पूजन पर अपने स्वर को मुखरित करते हैं। उनका कहना है कि पाहन अर्थात पत्थर को पूजने से यदि हरी मिलते हैं , यदि हिंदू लोगों को एक छोटे से पत्थर में प्रभु का वास मिलता है , उनका रूप दिखता है तो क्यों ना मैं पहाड़ को पूजूँ। वह तो एक छोटे से पत्थर से भी व...