गोविंद देव जी

  1. गोविन्द देव जी मंदिर जयपुर राजस्थान
  2. GOVIND DEV TEMPLE गोविन्द देव मन्दिर, वृंदावन – HINDU DHARM VIDYA हिन्दु धर्म विद्या
  3. मंदिर श्री गोविंद देव जी जयपुर
  4. गोविंद देवजी का मंदिर जयपुर
  5. श्री गोविंद जी मंदिर
  6. गोविंद देवजी मंदिर, वृंदावन का इतिहास Govind Dev ji Temple History in Hindi
  7. गुरु नानक
  8. श्री गोविंद जी मंदिर
  9. गोविंद देवजी का मंदिर जयपुर
  10. गुरु नानक


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गोविन्द देव जी मंदिर जयपुर राजस्थान

गोविन्द देव जी मंदिर के बारें में : यह प्रसिद्द मन्दिर भारत के राजस्थान राज्य के जयपुर शहर में स्थित है। यह भगवान कृष्ण का मन्दिर इतना प्रसिद्द है की प्रतिवर्ष दुनियाभर से लोग यहाँ लाखों की तादात में दर्शन के लिए आते रहते है। जानकारी रहे की यह मंदिर वृंदावन के ठाकुर श्री कृष्ण के 7 मंदिरों में से एक है जिसमें श्री बांके बिहारी जी, श्री गोविंद देव जी, श्री राधावल्लभ जी और चार अन्य मंदिर शामिल हैं। जयपुर स्थित इस गोविन्ददेव जी के मंदिर (govind dev ji jaipur) का निर्माण राजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा सं. 1715 में करवाया गया था। भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित गोविन्ददेव जी का यह मंदिर जयपुर का एकलौता बिना शिखर का मंदिर है। ध्यान रहे की गोविंद देव जी को जयपुर में ठाकुर जी के नाम से भी जाना जाता है। जन्माष्टमी के अवसर पर ठाकुर जी के दर्शन के लिए पूरा जयपुर ही उमड़ पड़ता है। गोविन्द देव जी मंदिर कब खुलता है? अगर आप भी गोविंद देव जी मंदिर के दर्शन (govind dev ji live darshan today) के इच्छुक है तो आपको बता दे की श्रद्धालुओं के लिए यह मन्दिर प्रतिदिन सुबह 4.30 से रात 9.30 बजे तक खुला रहता है। हालाँकि यहाँ आरती का समय अलग - अलग है, जो इस प्रकार है... मंगला आरती – सुबह 4:30 से 5:00 बजे तक धोप आरती – सुबह 7:30 से 8:45 बजे तक शृंगार आरती – सुबह 9:30 से 10:15 बजे तक राजभोज आरती – दोपहर 11:00 से 11:30 बजे तक ग्वाल आरती – शाम 5:45 से 6:15 बजे संध्या आरती - शाम 6:45 से 8:00 बजे तक शयन आरती – रात्रि 9:00 से 9:30 बजे तक Govind Dev Ji Aarti Lyrics : हरत सकल संताप जगत को मेरी जनम जनम की पाप हरो। गौर जनमी पाप हरो, सकल संताप हरो। हरत सकल संताप जतग कों । मिटल तलपो यम काल की । आरती कीजे श्री राधा गोव...

GOVIND DEV TEMPLE गोविन्द देव मन्दिर, वृंदावन – HINDU DHARM VIDYA हिन्दु धर्म विद्या

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मंदिर श्री गोविंद देव जी जयपुर

मंदिर श्री गोविंद देव जी जयपुर -Govind Dev Ji Jaipur गोविंद देव जी का मंदिर स्थिति जयपुर के बीचो बिच परकोटा के पास सिटी पैलेस भवन मैं श्री भगवान गोविन्द देव का मंदिर बना हुआ है और गोविन्द देव जी जयपुर के लोगो का ह्रदय देवता माना जाता है सभी लोगो का दिल जित लिया गोविन्द देवजी ने सिटी के राजमहल पैलेस से उत्तर की दिशा मैं बना गोविन्द देवजी का मनिदर इस मंदिर मैं रोज़ हजारो की संख्या मैं गोविन्द देव जी के दर्शन करते है जयपुर के इस मंदिर को गिनीज बुक मैं दर्जा मिला है इतिहास इस मंदिर मैं श्री भगवान कृष्णा का जन्म पुरे धूम धाम से मनाया जाता है ‘जन्माष्टमी’ के दिन पुरे मंदिर को सजाया जाता है और मिठाईया भी बनाई जाती है इस मंदिर मैं ‘जन्माष्टमी’ के दिन लाखो लोगो का जमावड़ा रहता है रात को लाइट का डेकोर किया था है रात के लिए इसको नाईट का मेला भी कहा जाता है जिसके कारण पुरे मंदिर को और मंदिर के पास मैं छोटे छोटे और भी मंदिर बने हुई है जिसको भी भी लाइट से सजाया जाता है इस मंदिर के पास एक समद्र बना हुआ है जिसको रात के नज़ारे मैं देखने पर बहुत आनद आता है इस मंदिर के पास अनेक देवी -देवताओ का मन्दिर भी बने हुई है इस मंदिर मैं जाने के लिए बड़ी चोपड़ से सीधा हवा महल मार्ग से दरवाजे के अन्दर जलेबी चोक के उतरी दरवाजे मैं गोविन्द देव जी का मंदिर में प्रवेश होता है। इस मंदिर मैं और भी कई रस्ते बने हुये है इस मंदिर मैं जाने के लिए विशाल त्रिपोल्या का प्रमुख द्वार है भोग और प्रसाद जयपुर के बीचो -बीच से निकलते वक्त रास्ते मैं गोविन्द देव जी मंदिर के पास मैं बहार की और खूब सारी मिठाईओं की दुकाने लगी हुई है गोविन्द देव जी को हमेशा मोदक का ही प्रसाद चढ़ाया जाता है बल्कि गोविन्द देव जी को बहार की वस्तु का भोग...

गोविंद देवजी का मंदिर जयपुर

स्थिति विस्तार ' मंदिर संरचना यह सबसे कम खंभों पर टिका सबसे बड़ा सभागार है। बड़ी चौपड़ से भोग प्रसाद आगे चलने पर मंदिर कार्यालय ठिकाना गोविंद देवजी है। इसके साथ लगे कक्ष में गोविंद देवजी के प्रसिद्ध 'मोदक' प्रसाद की सशुल्क व्यवस्था है। गोविंद देवजी को बाहरी वस्तुओं का भोग नहीं लगाया जाता, केवल मंदिर में बने मोदकों का ही भोग लगता है। गोविंद देवजी के मंदिर का जगमोहन अपनी खूबसूरती के कारण प्रसिद्ध है। मंदिर में गौड़ीय संप्रदाय की पीढ़ियों द्वारा ही सेवा- इन्हें भी देखें: पन्ने की प्रगति अवस्था संबंधित लेख

श्री गोविंद जी मंदिर

श्री राधा गोविंद जी मंदिर के मुख्य आराध्य, श्री गोविंदजी की मूर्ति पहले वृंदावन के मंदिर में स्थापित थी जिसको जयपुर के तब के राजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने अपने परिवार के देवता के रूप में यहाँ पुनः स्थापित किया था। ठिकाना मंदिर श्री गोविंद देवजी महाराज के अधीन 20 से भी अधिक मंदिर आते हैं। श्री राधा गोविंद जी मंदिर गौड़िया संप्रदाय का मंदिर है, इस संप्रदाय का उदगम श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा हुआ था। भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र एवं मथुरा के राजा वज्रनाभ ने अपनी माता से सुने गए भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप के आधार पर तीन विग्रहों का निर्माण करवाया इनमें से पहला विग्रह है गोविंद देव जी का है दूसरा विग्रह जयपुर के ही श्री गोपीनाथ जी का है तथा तीसरा विग्रह है श्री मदन मोहन जी करौली का है वजरनाभ के माता के अनुसार श्री गोविंद देव का मुख, श्री गोपीनाथ का वक्ष, श्री मदन मोहन के चरण श्री कृष्ण के स्वरूप से मेल खाते हैं। पहले यह तीनों विग्रह मथुरा में स्थापित थे किंतु जब 11वीं शताब्दी मे मोहम्मद गजनवी के आक्रमण के भय से इन्हें जंगल में छिपा दिया गया था। 16 वी शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु के आदेश पर उनके शिष्यों ने इन विग्रहों को खोज निकाला और मथुरा-वृंदावन में पुनः स्थापित किया। सन 1669 में जब औरंगजेब ने मथुरा के समस्त मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया तो गौड़ीय संप्रदाय के पुजारी इन विग्रहों को लेकर जयपुर भाग आए इन तीनों विग्रहों को जयपुर में ही स्थापित कर दिया गया। भगवान कृष्ण का जयपुर का सबसे प्रसिद्ध बिना शिखर का मंदिर। मंदिर के दो गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी हैं। महाराज सवाई जयसिंह ने जयपुर बसने के बाद गोविंद को जयपुर का स्वामी घोषित कर दिया था। जयपुर के इन महाराजा की मुद्रा पर अंकित था ...

गोविंद देवजी मंदिर, वृंदावन का इतिहास Govind Dev ji Temple History in Hindi

Govind Dev ji Temple / गोविंद देवजी मंदिर, वृंदावन हिंदूओं के देवता भगवान कृष्‍ण को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण ई. 1590 (सं.1647) में हुआ। यह मंदिर श्री रूप गोस्वामी और सनातन गुरु, श्री कल्यानदास जी के देख रेख में हुआ। श्री गोविन्द देव जी मंदिर का पूरा निर्माण का खर्च राजा श्री मानसिंह पुत्र राजा श्री भगवान दास, आमेर (जयपुर, राजस्थान) ने किया था। जब मुस्लिम सम्राट निर्माण – Govind Dev ji Temple History in Hindi गोविन्द देव जी का मंदिर ई. 1590 (सं.1647) में बना। मंदिर के शिलालेख से यह जानकारी पूरी तरह सुनिश्चित हो जाती है कि इस भव्य देवालय को आमेर (जयपुर, राजस्थान) के राजा भगवान दास के पुत्र राजा मानसिंह ने बनवाया था। रूप एवं सनातन नाम के दो गुरुओं की देखरेख में मंदिर के निर्माण होने का उल्लेख भी मिलता है। जेम्स फर्गूसन ने लिखा है कि यह मन्दिर भारत के मन्दिरों में बड़ा शानदार है। मंदिर की भव्यता का अनुमान इस उद्धरण से लगाया जा सकता है। ‘औरंगज़ेब ने शाम को टहलते हुए, दक्षिण-पूर्व में दूर से दिखने वाली रौशनी के बारे जब पूछा तो पता चला कि यह चमक वृन्दावन के वैभवशाली मंदिरों की है। औरंगज़ेब, मंदिर की चमक से परेशान था, समाधान के लिए उसने तुरंत कार्यवाही के रूप में सेना भेजी। मंदिर, जितना तोड़ा जा सकता था उतना तोड़ा गया और शेष पर मस्जिद की दीवार, गुम्मद आदि बनवा दिए। कहते हैं औरंगज़ेब ने यहाँ नमाज़ में हिस्सा लिया।’ मंदिर के निर्माण में 5 से 10 वर्ष लगे और लगभग एक करोड़ रुपया ख़र्चा बताया गया है। ई.1873 में श्री ग्राउस (तत्कालीन ज़िलाधीश मथुरा) ने मंदिर की मरम्मत का कार्य शुरू करवाया, जिसमें 38,365 रुपये का ख़र्च आया। जिसमें 5000 रुपये महाराजा जयपुर ने दिया और शेष सरकार ने। म...

गुरु नानक

नानक देव जी जन्म गुरु नानक देव जी कार्तिक पूर्णिमा, संवत् १५२७ अथवा 29 October/अक्तूबर 1469 राय भोई की तलवंडी, (वर्तमान मृत्यु 22 सितंबर 1539 करतारपुर स्मारकसमाधि करतारपुर कार्यकाल 1469–1539 पूर्वाधिकारी जन्म से उत्तराधिकारी धार्मिक मान्यता सिख पंथ की स्थापना जीवनसाथी सुलक्खनी देवी माता-पिता लाला कल्याण राय (मेहता कालू जी), माता तृप्ता देवी जी के यहां हिन्दू परिवार में अंतिम स्थान करतारपुर पर एक सिख धर्म ग्रंथ सम्बन्धित विषय नानक ( ये चारों ओर घूमकर उपदेश करने लगे। विवाद [ ] भौगोलिक विवरण विवाद का विषय हैं, जिसमें आधुनिक विद्वता कई दावों के विवरण और प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हैं। उदाहरण के लिए, कैलेवर्ट और स्नेल (1994) कहते हैं कि प्रारंभिक सिख ग्रंथों में ऐसी कहानियाँ नहीं हैं। गुरु नानक की व्यापक यात्राओं के बारे में कुछ कहानियाँ पहली बार 19वीं शताब्दी की पुराणन जनमसाखी में दिखाई देती हैं, हालाँकि इस संस्करण में भी नानक की बगदाद की यात्रा का उल्लेख नहीं है। जनमसाखि विवाद का एक अन्य स्रोत बगदाद पत्थर रहा है, जिस पर एक तुर्की लिपि में एक शिलालेख है। कुछ लोग शिलालेख की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि 1511-1512 में बाबा नानक फकीर वहां थे; दूसरों ने इसे 1521-1522 के रूप में पढ़ा (और यह कि वह अपने परिवार से 11 साल दूर मध्य पूर्व में रहे)। अन्य, विशेष रूप से पश्चिमी विद्वानों का तर्क है कि पत्थर का शिलालेख 19 वीं शताब्दी का है और पत्थर इस बात का विश्वसनीय प्रमाण नहीं है कि गुरु नानक 16 वीं शताब्दी की शुरुआत में बगदाद आए थे। उनकी यात्राओं के बारे में उपन्यास के दावे, साथ ही उनकी मृत्यु के बाद गुरु नानक के शरीर के गायब होने जैसे दावे भी बाद के संस्करणों में पाए जाते हैं और ये सूफी ...

श्री गोविंद जी मंदिर

श्री राधा गोविंद जी मंदिर के मुख्य आराध्य, श्री गोविंदजी की मूर्ति पहले वृंदावन के मंदिर में स्थापित थी जिसको जयपुर के तब के राजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने अपने परिवार के देवता के रूप में यहाँ पुनः स्थापित किया था। ठिकाना मंदिर श्री गोविंद देवजी महाराज के अधीन 20 से भी अधिक मंदिर आते हैं। श्री राधा गोविंद जी मंदिर गौड़िया संप्रदाय का मंदिर है, इस संप्रदाय का उदगम श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा हुआ था। भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र एवं मथुरा के राजा वज्रनाभ ने अपनी माता से सुने गए भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप के आधार पर तीन विग्रहों का निर्माण करवाया इनमें से पहला विग्रह है गोविंद देव जी का है दूसरा विग्रह जयपुर के ही श्री गोपीनाथ जी का है तथा तीसरा विग्रह है श्री मदन मोहन जी करौली का है वजरनाभ के माता के अनुसार श्री गोविंद देव का मुख, श्री गोपीनाथ का वक्ष, श्री मदन मोहन के चरण श्री कृष्ण के स्वरूप से मेल खाते हैं। पहले यह तीनों विग्रह मथुरा में स्थापित थे किंतु जब 11वीं शताब्दी मे मोहम्मद गजनवी के आक्रमण के भय से इन्हें जंगल में छिपा दिया गया था। 16 वी शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु के आदेश पर उनके शिष्यों ने इन विग्रहों को खोज निकाला और मथुरा-वृंदावन में पुनः स्थापित किया। सन 1669 में जब औरंगजेब ने मथुरा के समस्त मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया तो गौड़ीय संप्रदाय के पुजारी इन विग्रहों को लेकर जयपुर भाग आए इन तीनों विग्रहों को जयपुर में ही स्थापित कर दिया गया। भगवान कृष्ण का जयपुर का सबसे प्रसिद्ध बिना शिखर का मंदिर। मंदिर के दो गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी हैं। महाराज सवाई जयसिंह ने जयपुर बसने के बाद गोविंद को जयपुर का स्वामी घोषित कर दिया था। जयपुर के इन महाराजा की मुद्रा पर अंकित था ...

गोविंद देवजी का मंदिर जयपुर

स्थिति विस्तार ' मंदिर संरचना यह सबसे कम खंभों पर टिका सबसे बड़ा सभागार है। बड़ी चौपड़ से भोग प्रसाद आगे चलने पर मंदिर कार्यालय ठिकाना गोविंद देवजी है। इसके साथ लगे कक्ष में गोविंद देवजी के प्रसिद्ध 'मोदक' प्रसाद की सशुल्क व्यवस्था है। गोविंद देवजी को बाहरी वस्तुओं का भोग नहीं लगाया जाता, केवल मंदिर में बने मोदकों का ही भोग लगता है। गोविंद देवजी के मंदिर का जगमोहन अपनी खूबसूरती के कारण प्रसिद्ध है। मंदिर में गौड़ीय संप्रदाय की पीढ़ियों द्वारा ही सेवा- इन्हें भी देखें: पन्ने की प्रगति अवस्था संबंधित लेख

गुरु नानक

नानक देव जी जन्म गुरु नानक देव जी कार्तिक पूर्णिमा, संवत् १५२७ अथवा 29 October/अक्तूबर 1469 राय भोई की तलवंडी, (वर्तमान मृत्यु 22 सितंबर 1539 करतारपुर स्मारकसमाधि करतारपुर कार्यकाल 1469–1539 पूर्वाधिकारी जन्म से उत्तराधिकारी धार्मिक मान्यता सिख पंथ की स्थापना जीवनसाथी सुलक्खनी देवी माता-पिता लाला कल्याण राय (मेहता कालू जी), माता तृप्ता देवी जी के यहां हिन्दू परिवार में अंतिम स्थान करतारपुर पर एक सिख धर्म ग्रंथ सम्बन्धित विषय नानक ( ये चारों ओर घूमकर उपदेश करने लगे। विवाद [ ] भौगोलिक विवरण विवाद का विषय हैं, जिसमें आधुनिक विद्वता कई दावों के विवरण और प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हैं। उदाहरण के लिए, कैलेवर्ट और स्नेल (1994) कहते हैं कि प्रारंभिक सिख ग्रंथों में ऐसी कहानियाँ नहीं हैं। गुरु नानक की व्यापक यात्राओं के बारे में कुछ कहानियाँ पहली बार 19वीं शताब्दी की पुराणन जनमसाखी में दिखाई देती हैं, हालाँकि इस संस्करण में भी नानक की बगदाद की यात्रा का उल्लेख नहीं है। जनमसाखि विवाद का एक अन्य स्रोत बगदाद पत्थर रहा है, जिस पर एक तुर्की लिपि में एक शिलालेख है। कुछ लोग शिलालेख की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि 1511-1512 में बाबा नानक फकीर वहां थे; दूसरों ने इसे 1521-1522 के रूप में पढ़ा (और यह कि वह अपने परिवार से 11 साल दूर मध्य पूर्व में रहे)। अन्य, विशेष रूप से पश्चिमी विद्वानों का तर्क है कि पत्थर का शिलालेख 19 वीं शताब्दी का है और पत्थर इस बात का विश्वसनीय प्रमाण नहीं है कि गुरु नानक 16 वीं शताब्दी की शुरुआत में बगदाद आए थे। उनकी यात्राओं के बारे में उपन्यास के दावे, साथ ही उनकी मृत्यु के बाद गुरु नानक के शरीर के गायब होने जैसे दावे भी बाद के संस्करणों में पाए जाते हैं और ये सूफी ...