हाय रे विधाता

  1. सच्ची वीरता (हिन्दी निबंध) : सरदार पूर्ण सिंह
  2. 20 Hasy Kavita In Hindi (2023)
  3. यशोधरा : मैथिलीशरण गुप्त
  4. भारतेंदु हरिश्चंद्र :: :: :: भारतदुर्दशा :: नाटक
  5. रामचरितमानस अरण्यकाण्ड हिन्दी अनुवाद सहित PDF Hindi – InstaPDF


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सच्ची वीरता (हिन्दी निबंध) : सरदार पूर्ण सिंह

सच्चे वीर पुरुष धीर, गम्भीर और आज़ाद होते हैं । उनके मन की गम्भीरता और शांति समुद्र की तरह विशाल और गहरी या आकाश की तरह स्थिर और अचल होती है । वे कभी चंचल नहीं होते । रामायण में वाल्मीकि जी ने कुंभकर्ण की गाढ़ी नींद में वीरता का एक चिह्न दिखलाया है । सच है, सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती । वे सत्वगुण के क्षीर समुद्र में ऐसे डूबे रहते हैं कि उनको दुनिया की खबर ही नहीं होती । वे संसार के सच्चे परोपकारी होते हैं । ऐसे लोग दुनिया के तख्ते को अपनी आंख की पलकों से हलचल में डाल देते हैं । जब ये शेर जागकर गर्जते हैं, तब सदियों तक इनकी आवाज़ की गूँज सुनाई देती रहती है और सब आवाज़ें बंद हो जाती है । वीर की चाल की आहट कानों में आती रहती है और कभी मुझे और कभी तुझे मद्मत करती है । कभी किसी की और कभी किसी की प्राण-सारंगी वीर के हाथ से बजने लगती है । देखो, हरा की कंदरा में एक अनाथ, दुनिया से छिपकर, एक अजीब नींद सोता है । जैसे गली में पड़े हुए पत्थर की ओर कोई ध्यान नहीं देता में, वैसे ही आम आदमियों की तरह इस अनाथ को कोई न जानता था । एक उदारह्रदया धन-सम्पन्ना स्त्री की की वह नौकरी करता है । उसकी सांसारिक प्रतीष्ठा एक मामूली ग़ुलाम की सी है । पर कोई ऐसा दैवीकरण हुआ जिससे संसार में अज्ञात उस ग़ुलाम की बारी आई । उसकी निद्रा खुली । संसार पर मानों हज़ारों बिजलियां गिरी । अरब के रेगिस्तान में बारूद की सी आग भड़क उठी । उसी वीर की आंखों की ज्वाला इंद्रप्रस्थ से लेकर स्पेन तक प्रज्जवलित हुई । उस अज्ञात और गुप्त हरा की कंदरा में सोने वाले ने एक आवाज़ दी । सारी पृथ्वी भय से कांपने लगी । हां, जब पैगम्बर मुहम्मद ने “अल्लाहो अकबर” का गीत गाया तब कुल संसार चुप हो गया और कुछ देर बाद, प्रकृति उसकी...

20 Hasy Kavita In Hindi (2023)

hasy Kavita in Hindi हंसो और मर जाओ (hasy kavita in hindi) हंसो, तो बच्चों जैसी हंसी, हंसो, तो सच्चों जैसी हंसी। इतना हंसो कि तर जाओ, हंसो और मर जाओ। हँसो और मर जाओ चौथाई सदी पहले लगभग रुदन-दिनों में जिनपर हम हंसते-हंसते मर गए उन प्यारी बागेश्री को समर-पति की ओर स-समर्पित श्वेत या श्याम छटांक का ग्राम धूम या धड़ाम अविराम या जाम, जैसा भी है ये था उन दिनों का- काम -अशोक चक्रधर check on amazon भारतीय रेल (hasy kavita in hindi) एक बार हमें करनी पड़ी रेल की यात्रा देख सवारियों की मात्रा पसीने लगे छूटने हम घर की तरफ़ लगे फूटने। इतने में एक कुली आया और हमसे फ़रमाया साहब अंदर जाना है? हमने कहा हां भाई जाना है…. उसने कहा अंदर तो पंहुचा दूंगा पर रुपये पूरे पचास लूंगा हमने कहा समान नहीं केवल हम हैं तो उसने कहा क्या आप किसी सामान से कम हैं? जैसे तैसे डिब्बे के अंदर पहुचे यहां का दृश्य तो ओर भी घमासान था पूरा का पूरा डिब्बा अपने आप में एक हिंदुस्तान था कोई सीट पर बैठा था, कोई खड़ा था जिसे खड़े होने की भी जगह नही मिली वो सीट के नीचे पड़ा था… इतने में एक बोरा उछलकर आया और गंजे के सर से टकराया गंजा चिल्लाया यह किसका बोरा है? बाजू वाला बोला इसमें तो बारह साल का छोरा है… तभी कुछ आवाज़ हुई और इतने में एक बोला, चली चली दूसरा बोला या अली … हमने कहा काहे की अली, काहे की बलि ट्रेन तो बगल वाली चली… -हुल्लड़ मुरादाबादी यह भी जाने: सैंपल (hasy kavita in hindi) एक नेताजी के घर एक साथ तीन बच्चे पैदा हुए पहला बहरा दूसरा गूंगा और तीसरा अंधा। नेताजी घबरा गए ये गांधी जी के तीन बंदर मेरे घर में कैसे आ गए? उन्होंने कहा, ‘या अली इन भिखारियों को जन्म देने के लिए तुझे और कोई जगह नहीं मिली।’ आवाज आई – आम आदमी ...

यशोधरा : मैथिलीशरण गुप्त

राम, तुम्हारे इसी धाम में नाम-रूप-गुण-लीला-लाभ, इसी देश में हमें जन्म दो, लो, प्रणाम हे नीरजनाभ । धन्य हमारा भूमि-भार भी, जिससे तुम अवतार धरो, भुक्ति-मुक्ति माँगें क्या तुमसे, हमें भक्ति दो, ओ अमिताभ ! 1 घूम रहा है कैसा चक्र ! वह नवनीत कहां जाता है, रह जाता है तक्र । पिसो, पड़े हो इसमें जब तक, क्या अन्तर आया है अब तक ? सहें अन्ततोगत्वा कब तक- हम इसकी गति वक्र ? घूम रहा है कैसा चक्र ! कैसे परित्राण हम पावें ? किन देवों को रोवें-गावें ? पहले अपना कुशल मनावें वे सारे सुर-शक्र ! घूम रहा है कैसा चक्र ! बाहर से क्या जोड़ूँ-जाड़ूँ ? मैं अपना ही पल्ला झाड़ूँ । तब है, जब वे दाँत उखाड़ूँ, रह भवसागर-नक्र ! घूम रहा है कैसा चक्र ! देखी मैंने आज जरा ! हो जावेगी क्या ऐसी ही मेरी यशोधरा? हाय ! मिलेगा मिट्टी में यह वर्ण-सुवर्ण खरा? सूख जायगा मेरा उपवन, जो है आज हरा? सौ-सौ रोग खड़े हों सन्मुख, पशु ज्यों बाँध परा, धिक्! जो मेरे रहते, मेरा चेतन जाय चरा! रिक्त मात्र है क्या सब भीतर, बाहर भरा-भरा? कुछ न किया, यह सूना भव भी यदि मैंने न तरा । मरने को जग जीता है ! रिसता है जो रन्ध्र-पूर्ण घट, भरा हुआ भी रीता है । यह भी पता नहीं, कब, किसका समय कहाँ आ बीता है ? विष का ही परिणाम निकलता, कोई रस क्या पीता है ? कहाँ चला जाता है चेतन, जो मेरा मनचीता है? खोजूंगा मैं उसको, जिसके बिना यहाँ सब तीता है । भुवन-भावने, आ पहुंचा मैं, अब क्यों तू यों भीता है ? अपने से पहले अपनों की सुगति गौतमी गीता है । कपिलभूमि-भागी, क्या तेरा यही परम पुरुषार्थ हाय ! खाय-पिये, बस जिये-मरे तू, यों ही फिर फिर आय-जाय ? अरे योग के अधिकारी, कह, यही तुझे क्या योग्य हाय ! भोग-भोग कर मरे रोग में, बस वियोग ही हाथ आय ? सोच हिमालय के अधिवासी, यह...

भारतेंदु हरिश्चंद्र :: :: :: भारतदुर्दशा :: नाटक

प्रहसन भारतदुर्दशा नाट्यरासक वा लास्य रूपक ,संवत 1933 ।। मंगलाचरण ।। जय सतजुग-थापन-करन, नासन म्लेच्छ-आचार। कठिन धार तरवार कर, कृष्ण कल्कि अवतार ।। पहिला अंक स्थान - बीथी (एक योगी गाता है) (लावनी) रोअहू सब मिलिकै आवहु भारत भाई। हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई ।। धु्रव ।। सबके पहिले जेहि ईश्वर धन बल दीनो। सबके पहिले जेहि सभ्य विधाता कीनो ।। सबके पहिले जो रूप रंग रस भीनो। सबके पहिले विद्याफल जिन गहि लीनो ।। अब सबके पीछे सोई परत लखाई। हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई ।। जहँ भए शाक्य हरिचंदरु नहुष ययाती। जहँ राम युधिष्ठिर बासुदेव सर्याती ।। जहँ भीम करन अर्जुन की छटा दिखाती। तहँ रही मूढ़ता कलह अविद्या राती ।। अब जहँ देखहु दुःखहिं दुःख दिखाई। हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई ।। लरि बैदिक जैन डुबाई पुस्तक सारी। करि कलह बुलाई जवनसैन पुनि भारी ।। तिन नासी बुधि बल विद्या धन बहु बारी। छाई अब आलस कुमति कलह अंधियारी ।। भए अंध पंगु सेब दीन हीन बिलखाई। हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई ।। अँगरेराज सुख साज सजे सब भारी। पै धन बिदेश चलि जात इहै अति ख़्वारी ।। ताहू पै महँगी काल रोग बिस्तारी। दिन दिन दूने दुःख ईस देत हा हा री ।। सबके ऊपर टिक्कस की आफत आई। हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई ।। (पटीत्तोलन) दूसरा अंक स्थान-श्मशान, टूटे-फूटे मंदिर कौआ, कुत्ता, स्यार घूमते हुए, अस्थि इधर-उधर पड़ी है। (भारत’ का प्रवेश) भारत : हा! यही वही भूमि है जहाँ साक्षात् भगवान् श्रीकृष्णचंद्र के दूतत्व करने पर भी वीरोत्तम दुर्योधन ने कहा था, ‘सूच्यग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव’ और आज हम उसी को देखते हैं कि श्मशान हो रही है। अरे यहां की योग्यता, विद्या, सभ्यता, उद्योग, उदारता, धन, बल, मान, दृढ़चित्तता, सत्य सब कहां गए? अरे...

रामचरितमानस अरण्यकाण्ड हिन्दी अनुवाद सहित PDF Hindi – InstaPDF

रामचरितमानस अरण्यकाण्ड | Ramcharitmanas Aranya Kand PDF Hindi रामचरितमानस अरण्यकाण्ड | Ramcharitmanas Aranya Kand Hindi PDF Download Download PDF of रामचरितमानस अरण्यकाण्ड | Ramcharitmanas Aranya Kand in Hindi from the link available below in the article, Hindi रामचरितमानस अरण्यकाण्ड | Ramcharitmanas Aranya Kand PDF free or read online using the direct link given at the bottom of content. रामचरितमानस अरण्यकाण्ड हिन्दी अनुवाद सहित Hindi रामचरितमानस अरण्यकाण्ड | Ramcharitmanas Aranya Kand हिन्दी PDF डाउनलोड करें इस लेख में नीचे दिए गए लिंक से। अगर आप रामचरितमानस अरण्यकाण्ड हिन्दी अनुवाद सहित हिन्दी पीडीएफ़ डाउनलोड करना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही जगह आए हैं। इस लेख में हम आपको दे रहे हैं रामचरितमानस अरण्यकाण्ड | Ramcharitmanas Aranya Kand के बारे में सम्पूर्ण जानकारी और पीडीएफ़ का direct डाउनलोड लिंक। Aranya Kand is the Third book of the Valmiki Ramayana, which is one of the two great epics of India i.e. Ramayana & Mahabharat. But here we are providing you direct link Ramcharitmanas Aranya Kand chaupai. Ramcharitmanas Aranya Kand | रामचरितमानस अरण्यकाण्ड हिन्दी अनुवाद सहित कठिन काल मल कोस धर्म न ग्यान न जोग जप। परिहरि सकल भरोस रामहि भजहिं ते चतुर नर॥6 ख॥ भावार्थ:-यह कठिन कलि काल पापों का खजाना है, इसमें न धर्म है, न ज्ञान है और न योग तथा जप ही है। इसमें तो जो लोग सब भरोसों को छोड़कर श्री रामजी को ही भजते हैं, वे ही चतुर हैं॥6 (ख)॥ चौपाई : मुनि पद कमल नाइ करि सीसा। चले बनहि सुर नर मुनि ईसा॥ आगें राम अनुज पुनि पाछें। मुनि बर बेष बने अति काछें॥1॥ भावार्थ:-मुनि के चरण कमलों में सि...