हैदर अली

  1. Haider Ali Involved in Comical ‘Stump Out’: विटैलिटी टी20 ब्लास्ट मैच के दौरान कॉमिक 'स्टंप आउट' में शामिल हुए पाकिस्तानी बल्लेबाज हैदर अली, वीडियो हुआ वायरल
  2. हैदर अली आतिश की परिचय
  3. हैदर अली की जीवनी
  4. प्रथम आंग्ल
  5. हैदर अली
  6. हैदर अली का उत्थान


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Haider Ali Involved in Comical ‘Stump Out’: विटैलिटी टी20 ब्लास्ट मैच के दौरान कॉमिक 'स्टंप आउट' में शामिल हुए पाकिस्तानी बल्लेबाज हैदर अली, वीडियो हुआ वायरल

Haider Ali Involved in Comical ‘Stump Out’: विटैलिटी टी20 ब्लास्ट मैच के दौरान कॉमिक 'स्टंप आउट' में शामिल हुए पाकिस्तानी बल्लेबाज हैदर अली, वीडियो हुआ वायरल वारविकशायर के एलेक्स डेविस को स्टंप आउट करने का मौका चूकते देख हैदर अली लापरवाही से सिंगल के लिए गए लेकिन अचानक विकेटकीपर ने बेल को गिरा दिया, जिससे बल्लेबाज सदमे में आ गया. Haider Ali Involved in Comical ‘Stump Out’: इंग्लैंड का लोकप्रिय टी20 टूर्नामेंट वाइटैलिटी ब्लास्ट चल रहा है और इसने सबसे यादगार क्षणों में से एक वीडियो वायरल हो रहा है, जब डर्बीशायर के बल्लेबाज हैदर अली को एक मजाकिए तरीके से आउट किया. डर्बीशायर के 204 रनों के लक्ष्य का पीछा करने के दौरान हैदर अली 11वें ओवर के दौरान एक गेंद मारने से चूक गए और विरोधी विकेटकीपर एलेक्स डेविस ने उन्हें ठोकर मारने का मौका गंवा दिया, हालांकि उन्होंने दूसरे प्रयास में ऐसा किया. वारविकशायर के एलेक्स डेविस को स्टंप आउट करने का मौका चूकते देख हैदर अली लापरवाही से सिंगल के लिए गए लेकिन अचानक विकेटकीपर ने बेल को गिरा दिया, जिससे बल्लेबाज सदमे में आ गया. वीडियो देखें: Make sense of this Haider Ali stumping 👀 — Vitality Blast (@VitalityBlast) (SocialLY के साथ पाएं लेटेस्ट ब्रेकिंग न्यूज, वायरल ट्रेंड और सोशल मीडिया की दुनिया से जुड़ी सभी खबरें. यहां आपको ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर वायरल होने वाले हर कंटेंट की सीधी जानकारी मिलेगी. ऊपर दिखाया गया पोस्ट अनएडिटेड कंटेंट है, जिसे सीधे सोशल मीडिया यूजर्स के अकाउंट से लिया गया है. लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है. सोशल मीडिया पोस्ट लेटेस्टली के विचारों और भावनाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, हम इस...

हैदर अली आतिश की परिचय

व्याख्या यह आतिश के मशहूर अशआर में से एक है। आरज़ू के मानी तमन्ना है , रूबरू के मानी आमने सामने, बेताब के मानी बेक़रार है। बुलबुल-ए-बेताब यानी वो बुलबुल जो बेक़रार हो जिसे चैन न हो। इस शे’र का शाब्दिक अर्थ तो ये है कि हमें ये तमन्ना थी कि ऐ महबूब हम तुझे गुल के सामने बिठाते और फिर बुलबुल जो बेचैन है उससे बातचीत करते। लेकिन इसमें अस्ल में शायर ये कहता है कि हमने एक तमन्ना की थी कि हम अपने महबूब को फूल के सामने बिठाते और फिर बुलबुल जो गुल के इश्क़ में बेताब है उससे गुफ़्तगू करते। मतलब ये कि हमारी इच्छा थी कि हम अपने गुल जैसे चेहरे वाले महबूब को गुल के सामने बिठाते और फिर उस बुलबुल से जो गुल के हुस्न की वज्ह से उसका दीवाना बन गया है उससे गुफ़्तगू करते यानी बहस करते और पूछते कि ऐ बुलबुल अब बता कौन ख़ूबसूरत है, तुम्हारा गुल या मेरा महबूब। ज़ाहिर है इस बात पर बहस होती और आख़िर बुलबुल जो गुल के हुस्न में दीवाना हो गया है अगर मेरे महबूब के हुस्न को देखेगा तो गुल की तारीफ़ में चहचहाना भूल जाएगा। शफ़क़ सुपुरी आतिश को आमतौर पर दबिस्तान-ए-लखनऊ का प्रतिनिधि शायर कहा गया है लेकिन हक़ीक़त ये है कि इनकी शायरी में दबिस्तान-ए-दिल्ली की शायरी के निशान मौजूद हैं और वो लखनऊ की बाहरी और दिल्ली की आंतरिक शायरी की सीमा रेखा पर खड़े नज़र आते हैं। वो बुनियादी तौर पर इश्क़-ओ-आशिक़ी के शायर हैं लेकिन उनका कलाम लखनऊ के दूसरे शायरों के विपरीत आलस्य और अपमान से पाक है, उनके यहां लखनवियत का रंग ज़रूर है लेकिन ख़ुशबू दिल्ली की है। अगर उन्होंने ये कहा; शब-ए-वस्ल थी चांदनी का समां था बग़ल में सनम था ख़ुदा मेहरबाँ था तो ये भी कहा; किसी ने मोल न पूछा दिल-ए-शिकस्ता का कोई ख़रीद के टूटा प्याला क्या करता आतिश अंतर्ज्ञान और सौ...

हैदर अली की जीवनी

हैदर अली (1722-1782) एक महान भारतीय प्रमुख थे जिनके अदत्त सैन्य वैभव ने उन्हें दक्षिण-पश्चिमी भारत में मैसूर के राज्य का शासक बनते देखा था। उन्होंने फख्र-उन-निस्सा (फातिमा बेगम) से शादी की, जिससे वे महान योद्धा शासक टीपू सुल्तान के पिता बने और भारत में ब्रिटिश आक्रमण के विरोध में दोनों ने एक साथ कई लड़ाइयां लड़ी। माना जाता है की हैदर अली का जन्म 1722 में हुआ था, जबकि अन्य स्रोतों के अनुसार उनके जन्म का वर्ष 1717 है।उनका जन्म एक शिया मुस्लिम परिवार में हुआ था, उसके परदादा डेक्कन के गुलबर्गा में एक फकीर थे। एक सैन्य वंश से सम्बंधित, हैदर के पिता एक नाइक (मुख्य कांस्टेबल) थे, जबकि उनके भाई ने मैसूर सेना में एक ब्रिगेड के एक कमांडर के रूप में सेवा की थी। अपने भाई की सहायता करते करते, युवा हैदर ने धीरे-धीरे कुछ वर्षों में युद्ध की कला सीखी, और संचालन में अपनी सैन्य प्रतिभा को बढ़ावादेते हुए अंततः मैसूर के हिंदू राज्य के एक शासक के रूप में उभरे। एक साहसी योद्धा और स्वभाव से एक महान रणनीतिकार, हैदर अली को को पहला भारतीय होने का श्रेय दिया जाता है जिसने सशस्त्र सिपाहियों के सैन्य दल का गठन किया जिसमे यूरोपीय नाविक भी थे जिन्हें तोपखाने की टुकड़ी की सहायता प्राप्त थी। देवनहल्ली (1749) की घेराबंदी के दौरान उनके योगदान के लिएउन्हें मैसूर के राजा की और से स्वतंत्र नियंत्रण मिला जिसे आने वाले वर्षों में सत्ता हासिल करने के लिए उन्होंने सुदृढ़ किया और अंततः 1761 में मैसूर के व्यवहारिक शासक बने। अंतःअपने राज्य का उपनिवेश का विस्तार करने के लिए हैदर अली के कई विजय अभियान शुरू हुये जिनमे कनारा की समृद्ध विजय (1763), कालीकट विजय, और 1765 में खुद को मराठाओं से बचाते हुए मालाबार तट पर हिंदुओं को...

प्रथम आंग्ल

यह लेख विषयवस्तु पर व्यक्तिगत टिप्पणी अथवा निबंध की तरह लिखा है। कृपया इसे ज्ञानकोष की शैली में लिखकर इसे प्रथम मैसूर युद्ध अंग्रेजो और हैदर अली के बीच 1767 से 1769 ई. तक हुआ,जिसका कारण मद्रास में अंग्रेज़ों की आक्रामक नीतियाँ थीं। मैसूर राज्य वर्तमान कर्नाटक का राज्य था। मैसूर राज्य में चकियाँ कृ्ष्णराय नाम के शासक का राज्य था जो कि वोडियार वंश से था। मैसूर में चकियाँ कृष्णराय के समय में दो अधिकारी नन्नराज व देवराज थे। इनहोने राजा को अपने वश में कर रखा था और प्रशासन को अपने तरीके से चलाते थे। इसी समय 1721 ई. में हैदर अली का जन्म हुआ और घुड़साला में काम करने के लिए भर्ती हुआ। वहाँ पर रहते हुये उसने युद्ध के कर्त्तव्य सीखे जैसे- घुड़सवारी करना, तलबार चलाना आदि सीखा और फिर एक सैनिक के रुप में भर्ती हुआ। यह एक योग्य और ऊर्जावान कमान्डर बना और कुछ ही समय में यह सेना का यह प्रधान सेनापति बन गया। सारी सेनायें इसके नियन्त्रण में आ गयी उस समय मैसूर के शासक को एक योग्य , ऊर्जावान व अनुभवी व्यक्ति की आवश्यकता थी जो हैदर अली मेें दिखायी दिये तब राजा ने हैदर अली को मैसूर का शाषक घोषित कर दिया। और तब हैदर अली ने वहाँ का विकास करना शुरू किया। 1766 ई. में जब हैदर अली मराठों से एक युद्ध में उलझा था, मद्रास के अंग्रेज़ अधिकारियों ने निज़ाम की सेवा में एक ब्रिटिश सैनिक टुकड़ी भेज दी थी, और ईस्ट इंडिया कंपनी ने हैदर अली के विरुद्ध उत्तरी सरकारों के समर्पण के लिए हैदराबाद के निज़ाम से गठबंधन कर लिया। जिसकी सहायता से निज़ाम ने मैसूर के भू-भागों पर आक्रमण कर दिया था। अंग्रेज़ों की इस अकारण शत्रुता से हैदर-अली को बड़ा क्रोध आया। उसने मराठों से संधि कर ली, अस्थिर बुद्धि निज़ाम को अपनी ओर मिला लिय...

हैदर अली

पूरा नाम हैदर अली जन्म 1721 ई, मृत्यु जन्म भूमि बुदीकोट, मैसूर, मृत्यु तिथि 7 दिसम्बर, 1782 शासन 18वीं शताब्दी के मध्य एक वीर योद्धा था, जो अपनी योग्यता और क़ाबलियत के बल पर मैसूर का शासक बन गया। युद्ध 1782 में कोलेरून नदी के तट पर हुए युद्ध में हैदर अली के पुत्र टीपू सुल्तान ने 400 फ़्राँसीसी सैनिकों के सहयोग से 100 ब्रिटिश और 1,800 भारतीय सैनिकों को पराजित कर दिया। पद हैदर अली ने मैसूर सेना में ब्रिगेड कमाण्डर के पद पर नियुक्त हुए। अन्य जानकारी हैदर अली को बड़ी कठिन स्थिति का सामना करना पड़ा। हैदराबाद का निज़ाम, मराठे और अंग्रेज़ सभी उसके शत्रु हो गए। इन तीनों ने 1766 ई. में उसके विरुद्ध सन्धि कर ली। हैदर अली ( Hyder Ali, जन्म- 1721 ई, मृत्यु- मैसूर का शासक एक फ़्राँसीसी व्यक्ति योग्य सेनापति एवं सहिष्णु यद्यपि हैदर अली अनपढ़ था, तथापि बहुत कुशल शासक और योग्य सेनापति सिद्ध हुआ। वह राज्य के सारे काम अपने सामने बहुत द्रुत गति से निबटाता था। सभी लोग बड़ी आसानी से उससे भेंट कर सकते थे। उस ज़माने के मुस्लिम शासकों में हैदर अली सबसे सहिष्णु शासक माना जाता था। कठिनाइयों से सामना विषय सूची • 1 मैसूर का शासक • 2 योग्य सेनापति एवं सहिष्णु • 3 कठिनाइयों से सामना • 4 अंग्रेज़ों की दग़ाबाज़ी • 5 पोर्टो नोवो का युद्ध • 6 देहान्त • 7 टीका टिप्पणी और संदर्भ • 8 संबंधित लेख हैदर अली को बड़ी कठिन स्थिति का सामना करना पड़ा। अंग्रेज़ों की दग़ाबाज़ी 1771 ई. में मराठों ने मैसूर राज्य पर हमला बोल दिया। अंग्रेज़ों ने अपना वायदा पूरा नहीं किया और हैदर अली की कोई सहायता नहीं की। इससे क्षुब्ध होकर 1779 में हैदर ने भाड़े के फ़्राँसीसी और यूरोपीय सैनिकों की मदद से अपनी सेना सशक्त की तथा अंग्रज़ों के...

हैदर अली का उत्थान

हैदर अली का उत्थान हैदर अली का जन्म 1722 ई॰ में हुआ था। उसमें साहसी व्यक्ति के गुण थे। वह मैसूर की सेना में शामिल हो गया था। वह बहादुर था तथा अवसर का लाभ उठाने के गुण थे। नंदराज ( Nanjaraja wodyar) ने उसकी वीरता से प्रसन्न होकर उसे 500 सिपाहियों का कमांडर बना दिया था। मैसूर, हैदराबाद राज्य के आधीन था। 1748 ई. में नासिरजंग के सिहांसन ग्रहण करने के अवसर पर मैसूर की ओर से हैदर अली दरबार में उपस्थित था। नासिर जंग की हत्या के बाद हैदर अली बहुत अधिक धन लूटकर ले गया। बताया जाता हैं कि प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजों के हाथा जितना धन लगा उससे कहीं ज्यादा हैदर अली के हाथ लगा।उस धन से हैदर अली ने अपनी सेना को बढ़ाया तथा उनका प्रशिक्षण फ्रांसीसियों से करवाया। कर्नाटक के दूसरे युद्ध में नंदराज ने मुहम्मद अली का साथ दिया। इस सहायता के बदले मुहम्मद अली में त्रियनापल्ली का क्षेत्र देनो का वचन दिया। परंतु युद्ध के बाद उसने क्षेत्र देने से इन्कार कर दिया। मैसूर को विवश होकर कर्नाटक पर आक्रमण करना पड़ा। इस युद्ध में अंग्रेजों ने कर्नाटक का साथ दिया। हैदर अली ने इन सेनाओं पर पीछे से आक्रमण करना उन्हें पराजित कर दिया। इस सफलता से खुश होकर नंदराज ने हैदर अली को डंडीगुल क्षेत्र का दीवान बनादिया। हैदर अली ने पोलिगारों पर हमला करके उन्हें भी अपनी सेना में शामिल कर लिया। 1758 ई0 के बाद मैसूर के राजा तथा नंदराज के मध्य मतभेद हो गया जो बाद में युद्ध में बदल गया। राजा को हार का सामना करना पड़ा। इसके पश्चात नंदराज तथा उसके भाई देवराज के मध्य भी मतभेद हो गया। इसके कारण मैसूर की आर्थिक स्थिति लड़खड़ाने लगी। सैनिकों का वेतन भी लम्बे समय से नही दिया था। कुछ समय बाद राजा तथा नंदराज व देवराज सभी में मेल हो गया...