ईश्वर

  1. अल्लाह
  2. ईश्वर क्या है, भारतीय दर्शन, अध्यात्म शास्त्रों में जगत् की सृष्टि, स्थिति और संहारकर्ता, आदि में ईश्वर
  3. The Way
  4. ईश्वर क्या है ?
  5. ईश्वर क्या है ?
  6. Ishvara Pranidhana
  7. 25+ भगवान की भक्ति पर सुंदर शायरी
  8. शिव(Shiv)
  9. Ishvara Pranidhana
  10. अल्लाह


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अल्लाह

• दे • वा • सं अल्लाह: ( الله‎) अल्लाह शब्द अरबी भाषा के दो शब्दों अल-इलाह से मिलकर बना है। अल शब्द को वैसे ही इस्तेमाल करते हैं जैसे अंग्रेज़ी का शब्द ‘the’. इलाह का मतलब होता है पुज्य या 'उपास्य'। अल्लाह शब्द "एक सृजनकर्ता" के लिए इस्तेमाल होता था। इसे हिंदुओं द्वारा प्रचलित शब्द भगवान के उदाहरण से समझ सकते हैं। भगवान शब्द किसी एक देवता के लिए इस्तेमाल नहीं होता है। भगवान शब्द इस्तेमाल किया जाता है सृष्टि रचयिता के लिए। ठीक उसी तरह अरबी शब्द अल्लाह है| अनुक्रम • 1 इस्लाम में अल्लाह को लेकर धारणा • 2 शब्द व्युत्पत्ती • 3 प्रयोग • 3.1 इस्लामिक अरब के पूर्व • 4 क़ुरान में अल्लाह का शब्द और विचार • 5 अल्लाह के निन्यानबे नाम • 6 टाइपोग्राफी • 6.1 यूनिकोड • 7 इन्हें भी देखें • 8 सन्दर्भ • 9 बाहरी कड़ियाँ इस्लाम में अल्लाह को लेकर धारणा [ ] इस्लाम के बुनियादी विचारों और मुसलमान उलेमा धर्म के सामूहिक सहमत के अनुसार, अल्लाह एक है, अल्लाह एक जाति एकमात्र है, जो शरीर से पाक़ अर्थात् निराकार है, इसके सिवा कोई पूज्य नहीं, उसके लिए कोई छवि (रूप या फोटो या समानता या उदाहरण) नहीं, उसके लिए कोई नजीर (वैकल्पिक या हम पलड़ा) नहीं, उसकी कोई औलाद (बेटा या बेटी) नहीं, उसके कोई माता पिता (इसे बनाने वाला/वाली मां या पिता) नहीं, उसके लिए कोई सअहबह (पार्टनर या पत्नी) नहीं और उसका कोई साझी (संगी या साथी या साथ) नहीं । वो ही जीवन देता है और वो ही मृत्यु देता है । सात आसमान जमीन समुद्र सितारे चांद सूरज इनसान जीन फरिश्तों और हर एक चीज को पैदा करने वाला अल्लाह ही है । अल्लाह बहुत ही मेहरबान है । और रहम करने वाला है । शब्द व्युत्पत्ती [ ] 1. 2. 3. 4. लाम 5. 6. 7. शब्द अल्लाह अरबी शब्द है। अरबी के इलावा ...

ईश्वर क्या है, भारतीय दर्शन, अध्यात्म शास्त्रों में जगत् की सृष्टि, स्थिति और संहारकर्ता, आदि में ईश्वर

ईश्वर शब्द भारतीय दर्शन तथा अध्यात्म शास्त्रों में जगत् की सृष्टि, स्थिति और संहारकर्ता, जीवों को कर्मफलप्रदाता तथा दु:खमय जगत् से उनके उद्धारकर्ता के अर्थ में प्रयुक्त होता है। कभी-कभी वह गुरु भी माना गया है। न्यायवैशेषिकादि शास्त्रों का प्राय: यही अभिप्राय है- एको विभु: सर्वविद् एकबुद्धिसमाश्रय:। शाश्वत ईश्वराख्य:। प्रमाणमिष्टो जगतो विधाता स्वर्गापवर्गादि। पातंजल योगसूत्र के अनुसार: पातंजल योगशास्त्र में भी ईश्वर परमगुरु या विश्वगुरु के रूप में माना गया है। इस मत में जीवों के लिए तारकज्ञानप्रदाता ईश्वर ही है। परन्तु जगत् का सृष्टिकर्ता वह नहीं है। इस मत में सृष्टि आदि व्यापार प्रकृतिपुरुष के संयोग से स्वभावत: होते हैं। ईश्वर की उपाधि प्रकृष्ट सत्व है। यह षड्विंशतत्व रूप पुरुषविशेष के नाम से प्रसिद्ध है। अविद्या आदि पाँच क्लेश, शुभाशुभ कर्म, जाति, आयु और भोग का विपाक तथा आशय का संस्कार ईश्वर का स्पर्श नहीं कर सकते। पंचविंशतत्व रूप पुरुषतत्व से वह विलक्षण है। वह सदा मुक्त और सदा ही ऐश्वर्यसंपन्न है। निरीश्वर सांख्यों के मत में नित्यसिद्धि ईश्वर स्वीकृत नहीं है, परंतु उस मत में नित्येश्वर को स्वीकार न होने पर भी कार्येश्वर की सत्ता मानी जाती है। पुरुष विवेकख्याति का लाभ किए बिना ही वैराग्य के प्रकर्ष से जब प्रकृतिलीन हो जाता है तब उसे कैवल्यलाभ नहीं होता और उसका पुन: उद्भव अभिनव सृष्टि में होता है। प्रलयावस्था के अनन्तर वह पुरुष उद्बुद्ध होकर सर्वप्रथम सृष्टि के ऊर्ध्व में बुद्धिस्थरूप में प्रकाश को प्राप्त होता है। वह सृष्टि का अधिकारी पुरुष है और अस्मिता समाधि में स्थित रहता है। योगी, ‘अस्मिता’ नामक संप्रज्ञात समाधि में उसी के साथ तादात्म्य लाभ करते हैं। उसका ऐश्वरिक जीवन...

The Way

( जो इस सारे सृष्टि के उत्पत्ति, स्थिति और लय के कारण है उस परम तत्व के बारे में कुछ बताना केवल मात्र बाल प्रयास है | वो लाबयाँ है जिसको जैसा आता है वो वैसा गाया चला जाता है | ) जो उसके विशालता को देखता है वो उसको अलख कहता है | जो उसके निरूप्ता को देखता है उसको निरंजन कहता है | जो उसके उदारता को देखता है वो उसको दाता कहता है| जो उसके भरण पोषण को देखता है वो उसको भगवान् कहता है | जो उसके रोम रोम में देखता है वो उसको श्री राम कहता है | जो उसके प्रेम को देखता है वो उसको श्री कृष्ण कहता है | जो उसके अविनाशी देखता है वो उसको अक्षर कहता है | जो उसके मंगल कार्य को देखता है वो उसको शिव कहता है | जो उसके व्यापकता को देखता है वो उसको ब्रह्म कहता है | जो उसके सौन्दर्य को देखता है वो उसको श्री कहता है | जो उसके गंभीरता को देखता है वो उसको गुरु कहता है | जो उसके साक्षीरूप को देखता है वो उसको ज्योति कहता है | जो उसके सृष्टिकार्य को देखता है वो उसको माता कहता है | जो उसके पोषण को देखता है वो उसको पिता कहता है | उसके गुण और कार्य के अनुशार उसके ऐसे असंख्य नाम है और भी नाम उसे मिलता रहे गा | पर वो कहाँ है | वो निकट से भी अति निकट और दूर से भी अती दूर है| ऐसा | वेद, उपनिषद्म आदि शास्त्र और मनीषियो का मत है और मेरा अनुभव है | वह परम पुरुष जो निस्वार्थता का प्रतीक है, जो सारे संसार को नियंत्रण में रखता है , हर जगह मौजूद है और सब देवताओं का भी देवता है , एक मात्र वही सुख देने वाला है । जो उसे नहीं समझते वो दुःख में डूबे रहते हैं, और जो उसे अनुभव कर लेते हैं, मुक्ति सुख को पाते हैं । (ऋग्वेद 1.164.39) भगवान बहुभाषी हैं दुनिया के सभी भाषा समझते हैं | हमारे मन के भावो को भी समझते हैं | बस उनको आप...

ईश्वर क्या है ?

धर्म या अध्यात्म की साधना में, अक्सर जो सबसे पहला सवाल मन में उठता है, वो ये है कि क्या सच में इश्वर का अस्तित्व है? कैसे मिलेगा इसका उत्तर? कैसे पैदा होगी उत्तर जानने की संभावना? जो कुछ भी अनुभव में नहीं, उसे समझ नहीं सकते अब अगर मैं किसी ऐसी चीज़ के बारे में बात करूँ जो आपके वर्तमान अनुभव में नहीं है, तो आप उसे नहीं समझ पाएंगे। मान लीजिए, आपने कभी सूर्य की रोशनी नहीं देखी और इसे देखने के लिए आपके पास आंखें भी नहीं हैं। अगर आप यह स्वीकार नहीं कर पाते कि, 'मैं नहीं जानता हूँ’, तो आपने अपने जीवन में जानने की सभी संभावनाओं को नष्ट कर दिया है। अगर आप वाकई जानना चाहते हैं तो आपको अपने भीतर मुडऩा होगा, अपनी आंतरिक प्रकृति से जुडऩा होगा। ऐसे में अगर मैं इसके बारे में बात करूं, तो चाहे मैं इसकी व्याक्या कितने ही तरीके से कर डालूं, आप समझ नहीं पाएंगे कि सूर्य की रोशनी होती क्या है। इसलिए कोई भी ऐसी चीज़ जो आपके वर्तमान अनुभव में नहीं है, उसे नहीं समझा जा सकता। इसलिए इसके बाद जो एकमात्र संभावना रह जाती है, वह है कि आपको मुझ पर विश्वास करना होगा। मैं कह रहा हूँ, वही आपको मान लेना होगा। अब अगर आप मुझ पर विश्वास करते हैं, तो यह किसी भी तरह से आपको कहीं भी नहीं पहुंचाएगा। अगर आप मुझ पर विश्वास नहीं करते हैं, तब भी आप कहीं नहीं पहुँच पाएंगे। मै आपको एक कहानी सुनाता हूं। इस प्रश्न का क्या उत्तर दिया था गौतम बुद्ध ने? एक दिन, सुबह-सुबह, गौतम बुद्ध अपने शिष्यों की सभा में बैठे हुए थे। सूरज निकला नहीं था, अभी भी अँधेरा था। वहां एक आदमी आया। वह राम का बहुत बड़ा भक्त था। उसने अपना पूरा जीवन ''राम, राम, राम” कहने में ही बिताया था। इसके अलावा उसने अपने पूरे जीवन में और कुछ भी नहीं कहा था। यहां ...

ईश्वर क्या है ?

क्या आप जानते हैं, छह दर्शनों में से पहले तीन दर्शन तो भगवान के बारे में बात तक नहीं करते, न्याय, वैशेषिक और सांख्य दर्शन। गौतम महर्षि के द्वारा रचित न्याय दर्शन ज्ञान के बारे में चर्चा करता है कि आपका ज्ञान सही है या नहीं। ज्ञान के माध्यम को जानना कि वह सही है या नहीं, यह है न्याय दर्शन। उदाहरण के लिए, आप अपनी इन्द्रियों के द्वारा ये देख पाते हैं, कि सूर्य ढल रहा है या सूर्य निकल रहा है। लेकिन न्याय दर्शन कहता है, ‘नहीं, आप केवल उस पर विश्वास नहीं कर सकते, जो आप देख रहे हैं, आपको उससे परे जाकर खोजना है, कि क्या वास्तव में सूर्य ढल रहा है या फिर पृथ्वी घूम रही है?’ वैशेषिक दर्शन हमें लगता है कि कोपरनिकस ने यह खोज की थी कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है, मगर यह बिल्कुल असत्य है। उन्होंने ज़रूर पता लगाया था, लेकिन उसके पहले, भारत में बहुत लम्बे समय से लोग यह बात जानते थे कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। न्याय दर्शन इन सबके बारे में बात करता है। वह बात करता है धारणाओं की और उन धारणाओं के संशोधन की। और फिर आता है वैशेषिक दर्शन, यह संसार की सभी वस्तुओं की गिनती करता है ; जैसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, और फिर सारी वस्तुएं एवं विषय और इन सबका विश्लेषण। यह है वैशेषिक दर्शन। इसमें वे मन, चेतना, बुद्धि, स्मृति इत्यादि के बारे में चर्चा करते हैं। इसके बाद है सांख्य दर्शन। तो ये तीन दर्शन ईश्वर के बारे में बात नहीं करते, बल्कि वे चेतना के बारे में बात करते हैं। केवल योग-सूत्रों में जो कि चौथा दर्शन है वे ईश्वर के विषय पर चर्चा करते हैं। इसलिए, आपको ईश्वर पर विश्वास करने के लिए विवश महसूस नहीं करना है, लेकिन आपको किसी पर तो विश्वास करना होगा। आपको कम से कम चेतना पर तो ...

Ishvara Pranidhana

Ishvara Pranidhana Ishvara Pranidhana in the Yoga Sutras In the Yoga Sutras, reference to Ishvara Pranidhana has been made in four different sutras: (Sutra 1.23) ईश्वरप्रणिधानाद्वा॥२३॥ IshvarapraNidhaanaat vaa; "Or [samadhi is attained] by devotion with total dedication to God [Isvara]." (Sutra 2.1) तपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः॥१॥ tapaHsvaadhyaayeshvarapraNidhaanaanikRuyaayogaH; "Accepting pain as help for purification, study of spiritual books, and surrender to the Supreme Being constitute Yoga in practice." (Sutra 2.32) शौचसंतोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः॥३२॥ shouchasaMtoShatapaHsvaadhyaayeshvarapraNidhaanani niyamaaH; "Niyama consists of purity, contentment, accepting but not causing pain, study of spiritual books and worship of God [self-surrender]." (Sutra 2.45) समाधिसिद्धिरीश्वरप्रणिधानात्॥४५॥ samaadhisiddhirIshvarapraNidhaanaat ; "By total surrender to God, samadhi is attained." Let’s first look at these sutras briefly. Sutra 1.23 simply states "Or, by devotion to Ishvara (God)". Obviously, this sutra is linked to what has been said in the earlier sutras. The main point of discussion in these sutras is samadhi and how to attain that state. Starting with sutra 1.19, Patanjali begins to discuss the various means of attaining samadhi. For example, in Sutra 1.20, he enumerates these five "preconditions" for samadhi – faith, strength, intentness, meditation, and awakening of wisdom. In sutra 1.23, he provides an alternative approach for the attainment ...

25+ भगवान की भक्ति पर सुंदर शायरी

यदि आप की भगवान के लिए भक्ति शायरी, भगवान पर स्टेटस, भक्ति व्हाट्सऐप स्टेटस, भगवान पर शायरी आदि की तलाश कर रहे हैं तो आप बिलकुल सही जगह पर आये हैं। यहाँ पर हमने बहुत ही सुंदर भक्ति शायरी (Bhakti Shayari) शेयर की है जो आपको पसंद आयेंगी। Read Also: भक्ति शायरी – Hindi Shayari on God Bhakti Shayari In Hindi

शिव(Shiv)

शिव कौन हैं? क्या वे भगवान हैं? या बस एक पौराणिक कथा? या फिर शिव का कोई गहरा अर्थ है, जो केवल उन्हीं के लिए उपलब्ध है जो खोज रहे हैं? भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति के सबसे अहम देव, महादेव शिव, के बारे में कई गाथाएँ और दंतकथाएं सुनने को मिलती हैं। क्या वे भगवान हैं या केवल हिन्दू संस्कृति की कल्पना हैं? या फिर शिव का एक गहरा अर्थ है, जो केवल उन्हीं के लिए उपलब्ध है जो सत्य की खोज में हैं? शिव का अर्थ जब हम ‘शिव’ कहते हैं तो हमारा इशारा दो बुनियादी चीजों की तरफ होता है। ‘शिव’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘जो नहीं है’। शिव शून्य हैं आज के आधुनिक विज्ञान ने साबित किया है कि इस सृष्टि में सब कुछ शून्यता से आता है और वापस शून्य में ही चला जाता है। इस अस्तित्व का आधार और संपूर्ण ब्रम्हांड का मौलिक गुण ही एक विराट शून्यता है। उसमें मौजूद आकाशगंगाएं केवल छोटी-मोटी गतिविधियां हैं, जो किसी फुहार की तरह हैं। उसके अलावा सब एक खालीपन है, जिसे शिव के नाम से जाना जाता है। शिव ही वो गर्भ हैं जिसमें से सब कुछ जन्म लेता है, और वे ही वो गुमनामी हैं, जिनमें सब कुछ फिर से समा जाता है। सब कुछ शिव से आता है, और फिर से शिव में चला जाता है। शिव अंधकार हैं तो शिव को ‘अस्तित्वहीन’ बताया जाता है, एक अस्तित्व की तरह नहीं। उन्हें प्रकाश नहीं, अँधेरे की तरह बताया जाता है। मानवता हमेशा प्रकाश के गुण गाती है, क्योंकि उनकी ऑंखें सिर्फ प्रकाश में काम करती हैं। वरना, सिर्फ एक चीज़ जो हमेशा है, वो अंधेरा है। प्रकाश का अस्तित्व सीमित है, क्योंकि प्रकाश का कोई भी स्रोत, चाहे वो एक बल्ब हो या फिर सूर्य, आखिरकार प्रकाश बिखेरना करना बंद कर देगा। प्रकाश शाश्वत नहीं है। ये हमेशा एक सीमित संभावना है, क्योंकि इसकी शुरुआत होती है और...

Ishvara Pranidhana

Ishvara Pranidhana Ishvara Pranidhana in the Yoga Sutras In the Yoga Sutras, reference to Ishvara Pranidhana has been made in four different sutras: (Sutra 1.23) ईश्वरप्रणिधानाद्वा॥२३॥ IshvarapraNidhaanaat vaa; "Or [samadhi is attained] by devotion with total dedication to God [Isvara]." (Sutra 2.1) तपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः॥१॥ tapaHsvaadhyaayeshvarapraNidhaanaanikRuyaayogaH; "Accepting pain as help for purification, study of spiritual books, and surrender to the Supreme Being constitute Yoga in practice." (Sutra 2.32) शौचसंतोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः॥३२॥ shouchasaMtoShatapaHsvaadhyaayeshvarapraNidhaanani niyamaaH; "Niyama consists of purity, contentment, accepting but not causing pain, study of spiritual books and worship of God [self-surrender]." (Sutra 2.45) समाधिसिद्धिरीश्वरप्रणिधानात्॥४५॥ samaadhisiddhirIshvarapraNidhaanaat ; "By total surrender to God, samadhi is attained." Let’s first look at these sutras briefly. Sutra 1.23 simply states "Or, by devotion to Ishvara (God)". Obviously, this sutra is linked to what has been said in the earlier sutras. The main point of discussion in these sutras is samadhi and how to attain that state. Starting with sutra 1.19, Patanjali begins to discuss the various means of attaining samadhi. For example, in Sutra 1.20, he enumerates these five "preconditions" for samadhi – faith, strength, intentness, meditation, and awakening of wisdom. In sutra 1.23, he provides an alternative approach for the attainment ...

अल्लाह

• दे • वा • सं अल्लाह: ( الله‎) अल्लाह शब्द अरबी भाषा के दो शब्दों अल-इलाह से मिलकर बना है। अल शब्द को वैसे ही इस्तेमाल करते हैं जैसे अंग्रेज़ी का शब्द ‘the’. इलाह का मतलब होता है पुज्य या 'उपास्य'। अल्लाह शब्द "एक सृजनकर्ता" के लिए इस्तेमाल होता था। इसे हिंदुओं द्वारा प्रचलित शब्द भगवान के उदाहरण से समझ सकते हैं। भगवान शब्द किसी एक देवता के लिए इस्तेमाल नहीं होता है। भगवान शब्द इस्तेमाल किया जाता है सृष्टि रचयिता के लिए। ठीक उसी तरह अरबी शब्द अल्लाह है| अनुक्रम • 1 इस्लाम में अल्लाह को लेकर धारणा • 2 शब्द व्युत्पत्ती • 3 प्रयोग • 3.1 इस्लामिक अरब के पूर्व • 4 क़ुरान में अल्लाह का शब्द और विचार • 5 अल्लाह के निन्यानबे नाम • 6 टाइपोग्राफी • 6.1 यूनिकोड • 7 इन्हें भी देखें • 8 सन्दर्भ • 9 बाहरी कड़ियाँ इस्लाम में अल्लाह को लेकर धारणा [ ] इस्लाम के बुनियादी विचारों और मुसलमान उलेमा धर्म के सामूहिक सहमत के अनुसार, अल्लाह एक है, अल्लाह एक जाति एकमात्र है, जो शरीर से पाक़ अर्थात् निराकार है, इसके सिवा कोई पूज्य नहीं, उसके लिए कोई छवि (रूप या फोटो या समानता या उदाहरण) नहीं, उसके लिए कोई नजीर (वैकल्पिक या हम पलड़ा) नहीं, उसकी कोई औलाद (बेटा या बेटी) नहीं, उसके कोई माता पिता (इसे बनाने वाला/वाली मां या पिता) नहीं, उसके लिए कोई सअहबह (पार्टनर या पत्नी) नहीं और उसका कोई साझी (संगी या साथी या साथ) नहीं । वो ही जीवन देता है और वो ही मृत्यु देता है । सात आसमान जमीन समुद्र सितारे चांद सूरज इनसान जीन फरिश्तों और हर एक चीज को पैदा करने वाला अल्लाह ही है । अल्लाह बहुत ही मेहरबान है । और रहम करने वाला है । शब्द व्युत्पत्ती [ ] 1. 2. 3. 4. लाम 5. 6. 7. शब्द अल्लाह अरबी शब्द है। अरबी के इलावा ...