कबीर

  1. कबीर दास जी का जीवन परिचय Kabir Das Biography In Hindi
  2. कबीर कक्षा ग्यारहवीं ( प्रश्न उत्तर व्याख्या सहित )
  3. कबीरदास (साखी)


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कबीर दास जी का जीवन परिचय Kabir Das Biography In Hindi

संत कबीर दास जी का जीवन परिचय जीवनी इतिहास Kabir Das Biography In Hindi: 15 वी सदी के हिंदी के महान भक्ति कवि एवं निर्गुण विचारधारा के जनक कबीर दास जी का जन्म ४५५ (सन १३९८ ई ०) वाराणसी, में हुआ था. इनके अनुयायी कबीर पंथी कहलाते हैं. कबीरदास जी की जीवनी के इस लेख में हम उनके जीवन, मृत्यु, विचार, जयंती दोहों और रचनाओं के बारे में जानेगे. कबीर दास जी का जीवन परिचय Kabir Das Biography In Hindi Kabir Das Fact Information Biography In Hindi नाम कबीर दास जन्म 1440 ईस्वी जन्म स्थान काशी मृत्यु 1518 ईस्वी पहचान समाज सुधारक, कवि, संत पिता का नाम नीरू जुलाहे माता का नाम नीमा गुरु का नाम गुरु रामानंद जी प्रसिद्ध रचना साखी, सबद, रमैनी अपनी रचनाओं तथा दोहों में कबीर दास ने हिन्दू मुसलमानों को समान रूप से फटकारा हैं. इनके गुरु का नाम रामानंद था. इनके पीछे एक कथा प्रचलित हैं, कि रामानंद जी ने कबीर को शिष्य बनाने से इनकार कर दिया था, मगर कबीर यह निश्चय कर चुके थे, कि वे रामानंद जी को ही गुरु बनाएगे. इस निश्चय के साथ ही वों सवेरे पंचगंगा घाट (काशी) की सीढियों पर सवेरे ही जाकर लेट गये. जहाँ रामानंद जी नित्य स्नान करने के लिए आया करते थे. उस दिन जैसे ही वे सीढियों से उतर रहे थे, उनका पैर कबीर पर पड़ गया तथा मुह से राम राम निकल पड़ा इसके बाद रामानंद जी ने कबीर को अपना शिष्य बना लिया था. अपने घर का खर्चा चलाने के लिए कबीर दास जी जुलाहे का कर्म करते थे तथा खाली वक्त में दोहों की रचना करते थे. संत कबीर दास जी का जीवन परिचय में उनके जीवन से जुडी जानकारी दिखाई गई हैं. कबीर कौन है (who is kabir) संत कबीर या कबीर साहेब के नाम से जाने जाने वाले ये एक भक्त कवि और रहस्यमयी संत थे. इनका जीवनकाल 15 वी सदी थ...

कबीर कक्षा ग्यारहवीं ( प्रश्न उत्तर व्याख्या सहित )

कबीर दास अंतरा भाग-एक ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ने को मिलेगा। इस लेख में आप कबीर का संक्षिप्त जीवन परिचय , पाठ का परिचय , व्याख्या तथा परीक्षा के अनुरूप महत्वपूर्ण प्रश्नों का अभ्यास कर सकेंगे। कबीरदास समाज सुधारक तथा एक कवि थे। उनकी लेखनी सदैव व्यर्थ के कर्मकांड को उजागर करना और समाज को एकजुट करने के उद्देश्य से होती थी। वह किसी भी धर्म के बुराइयों को उजागर करने से परहेज नहीं करते थे। यही कारण है कि उनको सभी धर्म के लोग अपने धर्म के विरोधी मानते थे। जबकि ऐसा नहीं था , उनका मानना था जहां बुराई और व्यर्थ के आचार-व्यवहार हो उसको तत्काल हटा देना चाहिए। क्योंकि यह समाज के लिए हितकर नहीं होता है। इसीलिए उन्होंने जितनी आलोचना हिंदू समाज की , उतनी ही मुसलमान समाज की भी की। कबीर कक्षा ग्यारहवीं (भक्ति कालीन निर्गुण काव्य धारा के संत कवि) जीवन परिचय – कबीर का जन्म 1398 में काशी में हुआ। नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपति ने इस का लालन-पालन किया। यह गुरु रामानंद के शिष्य थे। कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे यह उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है – ‘मसि कागद छुयो नहीं , कलम गही ना हाथ’ सन 1518 में मगहर में उनका देहांत हो गया। रचनाएं – बीजक(साखी सबद रमैनी) कबीर की कुछ मुख्य रचनाएं गुरु ग्रंथ साहब में संकलित है। काव्यगत विशेषताएं – भक्ति काल की निर्गुण (निराकार के रूप में उपासक) काव्य धारा के संत कवि कबीर का आविर्भाव ऐसे समय में हुआ जब राजनीतिक , धार्मिक एवं सामाजिक क्रांति या अपने चरम पर थी। कबीर क्रांतिकारी छवि के थे एक और कबीर ने समाज में फैली कुरीतियों एवं आडंबरों पर प्रहार किया। दूसरी और उनका भक्तों रूप देखने को मिला। कबीर की रचनाओं की भाषा सधुक्क्ड़ी है। सधुक्क्ड़ी में बोलचाल की अवधि , भोजपुरी , पंजाबी ...

कबीरदास (साखी)

जीवन परिचय– कबीरदास हिंदी के संत काव्य धारा के निर्गुण शाखा के प्रमुख कवि हैं | इनके जन्म और मृत्यु के संबंध में अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित है | कबीरदास जी एक समाज सुधारक थे | कबीर जी का जन्म सन् 1398 में काशी में माना जाता है| कबीर जी का जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के घर हुआ जो इन्हें लोक – लाज के भय के कारण लहरतारा नामक तालाब पर फेक गई | जहाँ से उठाकर नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपति ने इनका पालन-पोषण किया | कबीर जी ने विधिवत रूप से शिक्षा प्राप्त नहीं की | इनके गुरु रामानंद जी थे | कबीर जी की पत्नी का नाम लोई था तथा उनका एक पुत्र तथा एक पुत्री थी | पुत्र का नाम कमाल तथा पुत्री का नाम कमाली था | इनकी मृत्यु मगहर नामक स्थान पर सन् 1495 में हुई थी | रचनाएं– कबीर जी ने साखी ,सबद और रमैनी की रचना की थी यह सभी कबीर ग्रंथावली में संग्रहित है | कबीर पंथियों के अनुसार ‘ बीजक‘ ही कबीर की रचनाओं का प्रामाणिक संग्रह है | कबीर जी की कुछ रचनाएँ ‘ गुरु ग्रंथ साहब ‘ में भी संकलित हैं | कबीर जी की भाषा में अरबी, फ़ारसी, अवधी , ब्रज, राजस्थानी , पंजाबी जैसी अनेक भाषाओं के शब्दों का मिश्रण है । इसलिए इनकी भाषा को सधुक्कड़ी पंचमेल खिचड़ी कहा जाता है । पीछे लागा जाई था लोक वेद के साथि | आगैं थै सतगुरु मिल्या दीपक दीया हाथि || 1 || प्रसंग – प्रस्तुत दोहा कबीरदास जी की साखी से लिया गया है, जिसमें उन्होंने सच्चे गुरु के महत्व के बारे में बताया है| व्याख्या– कबीरदास जी कहते हैं कि मैं इस संसार की परम्परा में बंधा मोह माया के मार्ग में भटक रहा था | मार्ग में अचानक मुझे सामने आते गुरु मिल गए | उन्होंने मुझे ज्ञान रूपी दीपक मेरे हाथ में दिया जिससे मेरे मन का सारा अंधेरा नष्ट हो गया | अर्थात् सच्चे गुरु द्...