कबीर के दोहे अर्थ सहित

  1. 121+ कबीर दास के दोहे ( हिन्दी अर्थ सहित )
  2. कबीर के दोहे अर्थ सहित: निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय
  3. 50+ संत कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित
  4. संत कबीर के दोहे
  5. Kabir Ke Dohe


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121+ कबीर दास के दोहे ( हिन्दी अर्थ सहित )

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कबीर के दोहे अर्थ सहित: निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय

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50+ संत कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित

संत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। कबीर शब्द अरब भाषा से आया है। अरबी के अल-कबीर का अर्थ होता है- महान। यह इस्लाम में ईश्वर का 37वां नाम है। कबीर हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। भारतीय परंपरा के मुताबिक, कबीर 1398 से लेकर 1518 तक जिए थे। आधुनिक विद्वान उनके जन्म और मृत्यु की तारीख के बारे में निश्चित नहीं हैं। कबीर की माता का नाम नीमा और पिता का नाम नीरू था। वैष्णव संत रामानंद ने कबीर को अपना शिष्य बनाया। कबीर का सबसे महान ग्रन्थ बीजक है। इसमें कबीर के दोहों का संकलन है। आइये पढ़े, संत कबीर के लोकप्रिय दोहें हिंदी अर्थ सहित– हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ।। अर्थ : कबीर दास जी ने इस दोहे में जीवन में गुरु का क्या महत्व हैं वो बताया हैं। वे कहते हैं कि मनुष्य तो अँधा हैं सब कुछ गुरु ही बताता हैं अगर ईश्वर नाराज हो जाए तो गुरु एक डोर हैं जो ईश्वर से मिला देती हैं लेकिन अगर गुरु ही नाराज हो जाए तो कोई डोर नही होती जो सहारा दे। बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ।। अर्थ : कबीर दास ने यहाँ गुरु के स्थान का वर्णन किया हैं वे कहते हैं कि जब गुरु और स्वयं ईश्वर एक साथ हो तब किसका पहले अभिवादन करे अर्थात दोनों में से किसे पहला स्थान दे? इस पर कबीर कहते हैं कि जिस गुरु ने ईश्वर का महत्व सिखाया हैं जिसने ईश्वर से मिलाया हैं वही श्रेष्ठ हैं क्यूंकि उसने ही तुम्हे ईश्वर क्या हैं बताया हैं और उसने ही तुम्हे इस लायक बनाया हैं कि आज तुम ईश्वर के सामने खड़े हो। जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह ।। अर्थ : कबीर ने अपने इस दोहे में ब...

संत कबीर के दोहे

सच्ची भक्ति क्यों जरूरी है? क्रोध, लालच और इच्छाएं – भक्ति के मार्ग में बाधक कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति ना होय। भक्ति करै कोई सूरमा, जाति बरन कुल खोय॥ कामी क्रोधी लालची –जिन लोगों में काम, क्रोध और लालच रहता है. अर्थात जो लोग कामी, क्रोधी और लालची है, • कामी – सांसारिक चीजों में और विषय वासनाओ में लिप्त रहता है, • क्रोधी – दुसरो से द्वेष करता रहता है और • लालची – निरंतर संग्रह करने में व्यस्त रहता है इनसे भक्ति न होय – उन लोगो से भक्ति नहीं हो सकती। तो ईश्वर की भक्ति कौन कर सकता है? भक्ति करै कोई सूरमा –भक्ति तो कोई पुरुषार्थी, शूरवीर ही कर सकता है, जो जादि बरन कुल खोय –जाति, वर्ण, कुल और अहंकार का त्याग कर सकता है। मुक्ति या मोक्ष के लिए – भक्ति और गुरु के वचन जरूरी भक्ति बिन नहिं निस्तरे, लाख करे जो कोय। शब्द सनेही होय रहे, घर को पहुँचे सोय॥ भक्ति बिन नहिं निस्तरे –भक्ति के बिना मुक्ति संभव नहीं है लाख करे जो कोय –चाहे कोई लाख प्रयत्न कर ले। शब्द सनेही होय रहे –जो सतगुरु के वचनों को (शब्दों को) ध्यान से सुनता है और उनके बताये मार्ग पर चलता है, घर को पहुँचे सोय –वे ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है। सच्ची भक्ति के लिए, भक्ति का भेद जानना जरूरी भक्ति भक्ति सब कोई कहै, भक्ति न जाने भेद। पूरण भक्ति जब मिलै, कृपा करे गुरुदेव॥ भक्ति भक्ति सब कोई कहै –भक्ति भक्ति हर कोई कहता है, अर्थात सभी लोग भक्ति करना चाहते हैं, भक्ति न जाने भेद –लेकिन, भक्ति कैसे की जाए, यह भेद नहीं जानते। पूरण भक्ति जब मिलै –पूर्ण भक्ति अर्थात सच्ची भक्ति तभी हो सकती है, कृपा करे गुरुदेव –जब सतगुरु की कृपा होती है। भक्ति और मुक्ति से मिलनेवाला सुख, सिर्फ सच्चे भक्त को ही मिलता है भक्ति जु सीढ़ी मुक्त...

Kabir Ke Dohe

Kabir Ke Dohe: कबीर दास जी हिंदी साहित्य जगत के सबसे महान संत और आध्यात्मिक कवि थे। उनके द्वारा लिखे गए ‘कबीर के दोहे’ आज भी देश भर में प्रचलित है। संत कबीर दास जी के दोहे आज भी जन-जन के लिए पथ प्रदर्शक के रूप में प्रसांगिक है। इसी के चलते आज हम अपने पाठकों के लिए इस लेख में कुछ ऐसे प्रसिद्ध एवं दिलचस्प Sant Kabir Ke Dohe का एक बड़ा संग्रह लेकर आये है जिनसे आपको जीवन से जुड़े अद्भुत ज्ञान प्राप्त होंगे। कबीर का जीवन परिचय (1398 ईस्वी-1518 ईस्वी) पंद्रहवी सदी में जन्मे संत कबीरदास (Kabirdas) जी हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के ज्ञानमार्गी शाखा के कवि है। संत कबीर जी वह भक्त थे जिन्होंने हिंदुत्व को एक नई परिभाषा दी। एक मुस्लिम परिवार में पले-बढ़े कबीरदास जी का जन्म 1398 ईस्वी (विक्रमी संवत 1455) को वाराणसी, (वर्तमान का उत्तर प्रदेश, भारत) में हुआ था। एक ऐसा इंसान जिसे किसी तारीफ की ज़रूरत नही और जिसने बहुतो को जीने का हुनर सिखाया। उन्होंने सामाज में फैली बुराइयों, कुरीतियों, कर्मकांड, और अंधविश्वास आदि की कड़ी निंदा की। कबीर दास जी ने अपनी सारी धार्मिक शिक्षा रामानंद नामक गुरु से प्राप्त की, ये इनसे काफी प्रभावित थे। कबीर साहेब जी द्वारा रचित मुख्य कृतियों में साखी, सबद, रमैनी आदि शामिल है। कबीर जी की भाषा सधुक्कड़ी है। इनके द्वारा रचित कृतियों में हिंदी भाषा की सभी बोलियों के शब्द देखने को मिलते है। हालांकि इनकी रचनाओं में राजस्थानी, हरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी, ब्रजभाषा के शब्दों की बहुलता है। Kabir Ke Dohe कबीर के दोहे-1: ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये। औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।। कबीर के दोहे-2: दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख...