Keshavdas kavya dhara ke kavi hain

  1. केशवदास
  2. Rashtriya Kavya Dhara Ke Kavi
  3. मैथिलीशरण गुप्त
  4. Sant Kavyadhara In Hindi [संतकाव्य – विशेषताएँ प्रमुख कवि व उनकी रचनाएँ]
  5. हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/केशवदास
  6. रीतिसिद्ध काव्यधारा के कवि और उनकी रचनाएँ
  7. निर्गुण काव्य की विशेषता


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केशवदास

⇒ आचार्य केशव ’रीतिकाल का प्रवर्तक’ कहलाने के अधिकारी है। ⇔ ये राजा रूद्रप्रताप के आश्रित सनाढ्य ब्राह्मण पं. कृष्णदत्त के पौत्र और राजा मधुकर शाह से सम्मानित पं. काशीनाथ के पुत्र थे तथा ओरछा नरेश इन्द्रजीत सिंह इन्हें गुरु मानते थे। ⇒ शुक्ल ने इनका समयकाल संवत् 1612-1674 वि.सं. के आसपास माना है। इनके द्वारा रचित ग्रन्थ हैं – रचनाएं • रसिकप्रिया (1591) • रामचन्द्रिका (1601) • कविप्रिया (1601) • रतनबावनी (1607 ई. के लगभग) • वीरसिंहदेवचरित (1607) • विज्ञानगीता (1610) • जहाँगीर जसचन्द्रिका (1612) • नखशिख और छन्दमाला। ⇒ केशव अलंकारवादी आचार्य थे। इन्हें शुक्ल ने ’कठिन काव्य का प्रेत’ कहा। इन्होंने ब्रज भाषा में रचना की। यद्यपि ये संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे तथापि उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ हिन्दी है जिसमें बुन्देली, अवधी और अरबी-फारसी शब्दों का समावेश है। ⇒ अधिक छन्द प्रयोग के लिए ’रामचन्द्रिका’ को छन्दों का अजायबघर कहा जाता है। जदपि सुजाति सुलच्छनी, सुबरस सरस सुवृत्त। भूषण बिनु न बिराजई, कविता बनिता मित्त।। (कविप्रिया) • कवि कौ देन न चहै विदाई। पूछे केशव की कविताई।। केशवदास के बारे में महत्त्वपूर्ण कथन आचार्य शुक्ल – ’’केशव को कवि हृदय नहीं मिला था, उनमें वह सहृदयता और भावुकता न थी, जो एक कवि में होनी चाहिए।’ यथा – कै स्रोनित कलित कपाल यह किल कपालिक काल को (उपमा का नीरस क्लिष्ट प्रयोग)। शुक्ल के अनुसार– ’केशव केवल उक्ति वैचित्र्य और शब्द क्रीङा के प्रेमी थे। जीवन के नाना गम्भीर और मार्मिक पक्षों पर उनकी दृष्टि नहीं थी। प्रबन्ध पटुता उनमें कुछ भी न थी।’ डाॅ. शम्भूनाथ सिंह– ’रामचन्द्रिका में न तो किसी महान् आदर्श की स्थापना हो सकी है और न ही उसमें ऐसी महत् प्रेरणा ही दिखाई देती ह...

Rashtriya Kavya Dhara Ke Kavi

Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • Rashtriya Kavya Dhara Ke Kavi | राष्ट्रीय काव्यधारा के प्रमुख कवि नमस्कार दोस्तों ! पिछले नोट्स में हमने व्यक्तिगत प्रणय मूलक काव्यधारा और उसके प्रमुख कवियों के बारे में अध्ययन किया था। आज हम Rashtriya Kavya Dhara Ke Kavi | राष्ट्रीय सांस्कृतिक स्वच्छंदतावादी काव्यधारा के प्रमुख कवियों का अध्ययन करने जा रहे है। जैसाकि पूर्व में बता चुके है कि हिंदी साहित्य में छायावाद के बाद जो काव्य प्रवृत्ति उत्पन्न हुई, उसे उत्तर छायावाद के नाम से जाना जाता है। यह प्रवृत्ति 1930 ईस्वी के बाद देखने को मिलती है। उत्तर छायावाद में विकसित होने वाली दो धाराएं हैं : • व्यक्तिगत प्रणय मूलक काव्यधारा • राष्ट्रीय सांस्कृतिक स्वच्छंदतावादी काव्यधारा राष्ट्रीय सांस्कृतिक स्वच्छंदतावादी काव्यधारा के प्रमुख कवि उत्तर छायावाद की दूसरी प्रमुख धारा Rashtriya Kavya Dhara Ke Kavi | राष्ट्रीय काव्यधारा के प्रमुख कवि निम्नानुसार है : • सुभद्रा कुमारी चौहान • माखनलाल चतुर्वेदी • केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’ • मोहनलाल महतो • सोहनलाल द्विवेदी • श्याम नारायण पाण्डेय • सियारामशरण गुप्त • बालकृष्ण शर्मा नवीन • रामधारी सिंह दिनकर 1. सुभद्रा कुमारी चौहान | Subhadra Kumari Chauhan सुभद्रा कुमारी चौहान हिंदी की प्रसिद्ध कवयित्री है। इनका जन्म 16 अगस्त 1905 ई. में इलाहाबाद में हुआ। यह राष्ट्रीय चेतना की कवयित्री रही हैं। पारिवारिक संबंधों पर कलम चलाने वाली पहली रचनाकार सुभद्रा कुमारी चौहान ही है। इनकी झांसी की रानी कविता को ब्रिटिश सरकार ने जप्त कर लिया था। इनके 2 कविता संग्रह और 3 कहानी संग्रह है। सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रमुख रचनाएँ : काव्य संग्रह क...

मैथिलीशरण गुप्त

poora nam maithilisharan gupt janm janm bhoomi chiragaanv, mrityu mrityu sthan chiragaanv, abhibhavak seth ramacharan, kashibaee karm bhoomi karm-kshetr natakakar, lekhak, kavi mukhy rachanaean bhasha vidyalay rajakiy vidyalay puraskar-upadhi nagarikata bharatiy pad rashtrakavi, any janakari inhean bhi dekhean • • • • • • • • • • • • • • • • maithilisharan gupt ( Maithili Sharan Gupt, janm- jivan parichay maithilisharan gupt ji ka janm shiksha maithilisharan gupt ki prarambhik shiksha chiragaanv, kavy pratibha isi bich guptaji muanshi ajameri ke sanpark mean aye aur unake prabhav se inaki kavy-pratibha ko protsahan prapt hua. atah ab ye lokasangrahi kavi maithilisharan gupt ji svabhav se hi lokasangrahi kavi the aur apane yug ki samasyaoan ke prati vishesh roop se sanvedanashil rahe. unaka kavy ek or rashtrakavi ka sambodhan diya. desh prem kavy ke kshetr mean apani lekhani se sanpoorn desh mean rashtrabhakti ki bhavana bhar di thi. rashtraprem ki is ajasr dhara ka pravah buandelakhand kshetr ke chiragaanv se kavita ke madhyam se ho raha tha. bad mean is rashtraprem ki is dhara ko desh bhar mean pravahit kiya tha, rashtrakavi maithilisharan gupt ne. jo bhara nahian hai bhavoan se jisamean bahati rasadhar nahian. vah hriday nahian hai patthar hai, jisamean svadesh ka pyar nahian. pitaji ke ashirvad se vah rashtrakavi ke sopan tak padasin hue. mahatma gaandhi ne unhean rashtrakavi kahe jane ka gaurav pradan kiya. mahakavy maithilisharan gupt ko kavy kshetr ka shiromani kaha ...

Sant Kavyadhara In Hindi [संतकाव्य – विशेषताएँ प्रमुख कवि व उनकी रचनाएँ]

5. सहज साधना संतकाव्य की प्रमुख विशेषताएँ - धार्मिक विशेषताएँ– 1. निर्गुण ब्रह्म की उपासना 2. योग व भक्ति का समन्वय 3. गुरु की महत्ता 4. आडम्बरवाद व संप्रदायवाद का विरोध 5. अनुभूति की प्रामाणिकता व शास्त्रज्ञान की अनावश्यकता सामाजिक विशेषताएँ– 1. जातिवाद का विरोध 2. समानता के प्रेम पर बल अन्य विशेषताएँ– 1. मुक्तक काव्य लेखन 2. प्रकट अर्थ से उलटा कथन का प्रयोग 3. प्रतीकों का प्रयोग प्रमुख संत कवि व उनकी रचनाएँ- 1. कबीरदास रचनाएँ–डॉ नगेन्द्र के अनुसार कबीर द्वारा रचित 63 रचनाओं का उल्लेख मिलता है | जिनमें मुख्य ये हैं– 1. अगाध मंगल 2. अनुरागसागर 3. अमरमूल 4. अक्षरखंड की रमैनी 5. अक्षरभेद की रमैनी 6. उग्रगीता 7. कबीर की बानी 8. कबीर की साखी 9. कबीर गोरख की गोष्ठी 10. बीजक 11. ब्रह्म निरूपण 12. मुहम्मदबोध 13. रेखता 14. विचारमाला 15. विवेकसागर 16. शब्दावली 17. हंस मुक्तावली 18. ज्ञानसागर कबीर को अक्षरज्ञान नहीं होने पर भी ये ग्रन्थ कहाँ से साकार हो उठे यह कहना कठिन है | कबीर के काव्य की विशेषताएँ - 1. कण – कण में ईश्वर की व्याप्ति 2. मूर्तिपूजा का विरोध 3. धार्मिक आडम्बरों का विरोध 4. गुरु की महत्ता 5. नारी की निंदा 6. पुस्तकीय ज्ञान का विरोध 7. सदाचार की शिक्षा 8. आत्मा - परमात्मा का एकत्व कबीर साहित्य के तीन पक्ष 1. खंडन की प्रवृत्ति 2. धर्म व समाज सुधार की भावना 3. आत्मानुभूति 2. संत रैदास काव्यभाषा– ब्रजभाषा ( अवधी , राजस्थानी , खड़ीबोली उर्दू– फारसी के शब्दों का मिश्रण ) रैदास के काव्य की विशेषताएँ - 1. ईश्वर के समस्त रूपों का ऐक्य 2. मूर्तिपूजा व तीर्थयात्रा का विरोध 3. आभ्यंतरिक साधना पर बल मीरा बाई के गुरु माने जाते हैं | 3. गुरु नानक जन्मकाल व जन्मस्थान – 1469 ई. , तलवं...

हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/केशवदास

तीसरा प्रभाव समझैं बाला बालकहूं, वर्णन पंथ अगाध | कविप्रिया केशव करी, छमियो कवि अपराध|1/1|| संदर्भ:- यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिबद्ध कवि केशवदास द्वारा रचित कविप्रिया के तीसरा प्रभाव से लिया गया है प्रसंग:- इस पद के द्वारा केशवदास क्षमा मांगते हुए इस पद को लिखने की आज्ञा मांगते हैं व्याख्या:- १. केशवदास कहते हैं कि बच्चों को, युवकों और युवतियों को समझने के लिए, यह जो काव्य मार्ग है, काव्य लेखन का मार्ग आघात है इसी का में वर्णन करने जा रहा हूं इसका मार्ग बहुत कठिन है मुझे क्षमा करना कि मुझसे कोई गलती हो जाए तो २. केशवदास कहते हैं कि मैंने इस कविप्रिया पुस्तक को इसीलिए लिखा है कि जिससे कविता के अघात रहस्य को स्त्री तथा बालक भी समझ सके अंतः कविगण मेरा अपराध क्षमा करें | ३. केशवदास ने ‘कविप्रिया’ के ‘तीसरे प्रभाव’ के प्रारंभ में ही क्षमा याचना की है उन्होंने कहा कि उनका ‘कविप्रिया’ ग्रंथ इतना शुभम और आसान है जिसे साधारण शिक्षा संस्कार वाले बालक भी आसानी से समझ सकते हैं इसीलिए केशव कवियों से अपने अपराध की शमा मांगते हैं अलंकार कवितान के, सुनि सुनि विविध विचार | कवि प्रिया केशव करी, कविता को शृगार|2/2|| संदर्भ:- यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिबद्ध कवि केशवदास द्वारा रचित कविप्रिया के तीसरा प्रभाव से लिया गया है प्रसंग:- इस पद के द्वारा केशवदास बताते की उन्होंने किस प्रकार इस कविप्रिया रचना में अलंकारों का प्रयोग किया है व्याख्या:- १. कवि कहते हैं कि मैंने बार-बार विचार करके अन्य कविगरणों से सुनकर, समझकर और मेरे भी विभिन्न प्रकार के विचार कर कर इन अलंकारों का प्रयोग किया है क्योंकि कविता की शोभा कविप्रिया का निर्माण और अलंकारों का दूसरा नाम ही सौंदर्य है २. कवित...

रीतिसिद्ध काव्यधारा के कवि और उनकी रचनाएँ

रीतिसिद्ध काव्यधारा के कवि और उनकी रचनाएँ रीतिसिद्ध कवि जिन कवियों ने लक्षण और उदाहरण शैली पर काव्य सृजन तो नहीं किया परंतु रचना करते समय उनका झुकाव लक्षण ग्रंथों पर अवश्य रहा,उन्हें रीतिसिद्ध की श्रेणी में रखा गया है। बिहारी, बेनी वाजपेयी, कृष्णकवि, रसनिधि, नृप शंभुनाथ सिंह सोलंकी, नेवाज, हठी जी, रामसहायदास ‘भगत’, पजनेस, द्विजदेव, सेनापति, वृंद तथा विक्रमादित्य आदि रीतिसिद्ध कवि हैं। रीतिसिद्ध कवि कवि और उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं- बिहारी लाल बिहारी लाल का संक्षिप्त जीवन वृत्त निम्नांकित है- जन्म–मृत्यु (ई.) जन्म स्थान पिता गुरु सम्प्रदाय आश्रयदाता 1595-1663 गोविन्दपुर(ग्वालियर) केशवदास नरहरिदास निम्बार्क महाराज जय सिंह बिहारी लाल का जीवन-परिचय • बिहारी सतसई रीतिकाल का सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ है। जिसे मध्यकाल में रामचरितमानस के बाद सर्वाधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई। • लाला भगवानदीन ने सूर, तुलसी और केशव के पश्चात् बिहारी को हिंदी साहित्य का चौथा रत्न माना है। • श्रीराधा चरण गोस्वामी ने बिहारी को ‘पीयूषवर्षी मेघ’ की उपमा दी है। • डॉ. जॉर्ज ग्रियर्सन के अनुसार, “यूरोप में ‘बिहारी सतसई’ के समकक्ष कोई रचना नहीं है।” • बिहारी के संबंध में यह माना जाता है कि उन्होंने ‘गागर में सागर भर दिया।’ • बिहारी सतसई श्रृंगारिक मुक्तक काव्य है जिसका प्रत्येक दोहा हिंदी साहित्य का एक-एक रत्न माना जाता है। • बिहारीलाल की ‘सतसई’ की प्रशंसा में किसी कवि ने निम्नलिखित पंक्ति लिखी है- “सत सैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर। देखन में छोटे लगें, बेधैं सकल सरीर॥” • बिहारी सतसई की रचना 1662 ई. में सम्पन्न हुई। • बिहारी सतसई की प्रसिद्ध का प्रमुख कारण कल्पना की समाहार शक्ति है। • बिहारी सतसई एक मुक्तक का...

निर्गुण काव्य की विशेषता

निर्गुण काव्य की विशेषता nirgun kavya dhara ki visheshta ज्ञानाश्रयी शाखा की विशेषताएँ nirgun kavya dhara ke kavi nirgun bhakti dhara in hindi nirgun kavya dhara ki visheshta nirgun dhara nirgun bhakti in hindi nirgun shakha ke kavi sant kavya dhara ki visheshta sagun bhakti dhara ज्ञानमार्गी शाखा के कवि निर्गुण भक्ति धारा के कवि निर्गुण भक्ति के कवि सगुण भक्ति के कवि निर्गुण काव्य की विशेषता निर्गुण भक्ति धारा के कवि सगुण और निर्गुण भक्ति धारा निर्गुण भक्ति काव्य के प्रमुख कवि निर्गुण भक्ति ka arth सगुण भक्ति धारा निर्गुण काव्य की विशेषता निर्गुण भक्ति का अर्थ सगुण भक्ति धारा के कवि ज्ञानाश्रयी शाखा की विशेषताएँnirgun kavya dhara ke kavi nirgun bhakti dhara in hindi nirgun kavya dhara ki visheshta nirgun dhara nirgun bhakti in hindi nirgun shakha ke kavi sant kavya dhara ki visheshta sagun bhakti dhara ज्ञानमार्गी शाखा के कवि निर्गुण भक्ति धारा के कवि निर्गुण भक्ति के कवि सगुण भक्ति के कवि निर्गुण काव्य की विशेषता निर्गुण भक्ति धारा के कवि सगुण और निर्गुण भक्ति धारा निर्गुण भक्ति काव्य के प्रमुख कवि निर्गुण भक्ति ka arth सगुण भक्ति धारा निर्गुण काव्य की विशेषता निर्गुण भक्ति का अर्थ सगुण भक्ति धारा के कवि - भक्तिकाल में काव्य की दो प्रधान धाराएँ प्रचलित हुई - निर्गुण काव्यधारा और सगुण काव्यधारा .निर्गुण काव्यधारा की भी दो शाखाएं बनी - ज्ञानाश्रयी शाखा और प्रेमाश्रयी शाखा .ज्ञानाश्रयी शाखा को संतों ने पोषित किया और नतीजा यह हुआ कि काव्य की यह धारा जन - जन में जीवन को पवित्र बनाने वाली सिद्ध हुई . डॉ.श्यामसुंदर दास का मत है - संत कवियों में अपनी निर्गुण भक्ति द्वारा जनता के...