कनकधारा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

  1. कनकधारा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित PDF Download
  2. महालक्ष्मी अष्टकम हिंदी अर्थ सहित
  3. श्री राम द्वारा रचित शम्भु स्तुति हिंदी अर्थ सहित
  4. कनकधारा स्तोत्र एवं उसके फायदे, अर्थ सहित


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कनकधारा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित PDF Download

Rate this PDFs post कनकधारा स्तोत्रम श्री बल्लभाचार्य द्वारा लिखा गया माँ लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त करने का एक शक्तिशाली स्तोत्र है। कनकधारा स्तोत्र का नियमित पाठ करने से तथा कनकधारा यन्त्र को धारण करने से धन सम्बंधित परेशानियां शीघ्र ही दुर हो जाती हैं। कनकधारा स्तोत्र धन प्राप्त करने के लिए एक बहुत शक्तिशाली स्तोत्र है। इस पोस्ट में हम बड़ी आसानी से कनकधारा स्तोत्रम पीडीऍफ़ हिंदी अर्थ सहित डाउनलोड कर सकते हैं। PDF Book Information : • PDF Name: kanakathha-ra-sa-ta-ta-ra-ha-tha-ara-tha-saha-ta-By.-PDFSeva.Com_ File Size : 227 kB PDF View : 76 Total Downloads : 📥 Details : Free PDF for Best High Quality kanakathha-ra-sa-ta-ta-ra-ha-tha-ara-tha-saha-ta-By.-PDFSeva.Com_ to Personalize Your Phone. File Info: This Page PDF Free Download, View, Read Online And Download / Print This File File At PDFSeva.com Love 0

महालक्ष्मी अष्टकम हिंदी अर्थ सहित

॥ महालक्ष्मी अष्टकम ( महालक्ष्म्यष्टक ) ॥ नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते । शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥1॥ अर्थ – श्रीपीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होनेवाली हे महामाये ! तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाली हे महालक्ष्मी ! तुम्हें प्रणाम है। नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि । सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥2॥ अर्थ – गरुड़ पर आरूढ़ हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवति महालक्ष्मी ! तुम्हें प्रणाम है। सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि । सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥3॥ अर्थ – सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दुःखों को दूर करने वाली हे देवि महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है। सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि । मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥4॥ अर्थ – सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवति महालक्ष्मी ! तुम्हें सदा प्रणाम है। आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि । योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥5॥ अर्थ – हे देवि ! हे आदि-अंतरहित आदिशक्ते ! हे महेश्वरि ! हे योग से प्रकट हुई भगवति महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है। स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे । महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥6॥ अर्थ – हे देवि ! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली हो। हे देवि महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है। पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि । परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥7॥ अर्थ – हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्म स्वरूपिणी देवि ! हे परमेश्वरि...

श्री राम द्वारा रचित शम्भु स्तुति हिंदी अर्थ सहित

लंका प्रवेश के लिए समुंद्र पर सेतु निर्माण केसमय भगवान श्री राम ने रामेश्वरम में महादेव को प्रसन्न करने के लिएस्वयं शिवलिंग की स्थापना की औरभगवान शिव का आह्वान किया था। भगवान शिव के लिए श्री राम ने जो स्तुति गाई थी उसे हीशम्भु स्तुति कहा जाता है। भगवान श्री राम द्वारा रचितइस शम्भु स्तुति का उल्लेख ब्रह्म पुराण में मिलताहै। श्री राम द्वारा रचित शम्भु स्तुति हिंदी अर्थ सहित श्रीराम उवाच नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं नमामि सर्वज्ञमपारभावम्। नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं नमामि शर्वं शिरसा नमामि॥१॥ हिंदी अर्थ: मैं पुराणपुरुष शम्भु को नमस्कार करता हूँ। जिनकी असीम सत्ता का कहीं पार या अन्त नहीं है, उन सर्वज्ञ शिव को मैं प्रणाम करता हूँ। अविनाशी प्रभु रुद्र को नमस्कार करता हूँ। सबका संहार करने वाले शर्व को मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। नमामि देवं परमव्ययंतं उमापतिं लोकगुरुं नमामि। नमामि दारिद्रविदारणं तं नमामि रोगापहरं नमामि॥२॥ हिंदी अर्थ: अविनाशी परमदेव को नमस्कार करता हूँ। लोकगुरु उमापति को प्रणाम करता हूँ। दरिद्रता को विदीर्ण करने वाले शिव को नमस्कार करता हूँ। रोगों का विनाश करने वाले महेश्वर को प्रणाम करता हूँ। नमामि कल्याणमचिन्त्यरूपं नमामि विश्वोद्ध्वबीजरूपम्। नमामि विश्वस्थितिकारणं तं नमामि संहारकरं नमामि॥३॥ हिंदी अर्थ: जिनका रूप चिन्तन का विषय नहीं है, उन कल्याणमय शिव को नमस्कार करता हूँ। विश्व की उत्पत्ति के बीजरूप भगवान भव को प्रणाम करता हूँ। जगत का पालन करने वाले परमात्मा को नमस्कार करता हूँ। संहारकारी रुद्र को नमस्कार करता हूँ, नमस्कार करता हूँ। नमामि गौरीप्रियमव्ययं तं नमामि नित्यं क्षरमक्षरं तम्। नमामि चिद्रूपममेयभावं त्रिलोचनं तं शिरसा नमामि॥४॥ हिंदी अर्थ: पार्वतीजी के प...

कनकधारा स्तोत्र एवं उसके फायदे, अर्थ सहित

Table of Contents • • • • कनकधारा स्तोत्र अर्थ सहित ॐ अङ्गं हरै ( हरेः) पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृङ्गाऽगनेव मुकुलाभरणं तमालं | अंगीकृताऽखिलविभूतिरपाँगलीलामाँगल्यदाऽस्तु मम् मङ्गलदेवतायाः || १ || जिस प्रकार मादा भौरा फूलो को अपना घर बना कर वहा आश्रय लेता है उसी तरह संपूर्ण ऐश्वर्य जिस हरि में निवास करता है, उसी प्रकार संपूर्ण मंगली की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी का हर कटाक्ष मेरे लिए मंगल दायी है। मुग्धा मुहुर्विदधी वदने मुरारेः प्रेमत्रपा प्रणिहितानि गताऽगतानि | मलार्दशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा में श्रियं दिशतु सागर सम्भवायाः || २ || जिस तरह भ्रमरी कमल के पुष्प पर मंडराती है उसी तरह श्री हरी के मुखार विंद की और प्रेम के साथ जाती हुई परन्तु लज्जा का ध्यान रखते हुए वापस लोटने वाली समुद्र कन्या लक्ष्मी माता मुझ पर कृपा करे और धन सम्पत्ति प्रदान करें। विश्वामरेन्द्र पदविभ्रमदानदक्षमानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोपि | ईषन्निषीदतु मयि क्षण मीक्षणार्धंमिन्दीवरोदर सहोदरमिन्दीरायाः || ३ || लक्ष्मी ही वह देवी है जो देवताओ के अधिपति इंद्र को पद वैभव देने में सक्षम है और श्री को आनन्द प्रदान करने वाली है जिनका रूप नीलकमल के अंदर मोजूद सुंदर भाग की तरह है, उस माता लक्ष्मी की अधखुले नेत्रों वाली दृष्टि मुझ पर थोड़ी देर के लिए जरुर पढ़े। आमीलिताक्षमधिगम्य मुदामुकुन्दमानन्द कंदमनिमेषमनंगतन्त्रं | आकेकर स्थित कनीतिकपद्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्ग शयाङ्गनायाः || ४ || भगवान विष्णु की अर्धांगिनी माता लक्ष्मी के नेत्र हमे ऐश्वर्य प्रदान करें। लक्ष्मी जी के नयन जो प्रेम के वसीभूत है तथा अधखुले है वह नयन कुंद को अपने निकट पाकर कुछ तिरछे हो जाते हैं। बाह्यन्तरे मुरजितः(मधुजितः) श्रुतकौस्तुभे या हारावलीव हरिनील...