Matiram kis yug ke kavi hai

  1. 'नींद के बादल', 'युग की गंगा और 'लोक तथा आलोक' किस कवि के काव्य संग्रह हैं?
  2. महावीर प्रसाद द्विवेदी किस युग के लेखक हैं
  3. Maithili Sharan Gupt ka Jivan Parichay. Maithili Sharan Gupt Kaun Hai,
  4. मतिराम
  5. छायावादी युग के कवि और उनकी रचनाएं
  6. मतिराम का जीवन परिचय, रचनाएं, काव्य सौंदर्य, भाषा शैली, कवि परिचय
  7. भारतेंदु युग
  8. भारतेंदु युग
  9. मतिराम
  10. छायावादी युग के कवि और उनकी रचनाएं


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'नींद के बादल', 'युग की गंगा और 'लोक तथा आलोक' किस कवि के काव्य संग्रह हैं?

एक ब्लॉग जो की हिंदी साहित्य से जुड़ी जानकारियाँ आपके साथ शेयर करता है जो की आपके प्रतियोगिता परीक्षा में पूछे जाते हैं, इस ब्लॉग पर एम्. ए. हिंदी साहित्य का पूरा कोर्स लॉन्च करने का प्लान है. अगर आपका सहयोग अच्छा रहा हमारे ब्लॉग में पूरा कोर्स उपलब्ध करा दिया जाएगा. इसमें जो प्रश्न लिखे जा रहे हैं वह न केवल एम्. ए. के लिए उपयोगी है बल्कि यह विभिन्न प्रकार के प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी हिंदी साहित्य के प्रश्न विभिन्न फोर्मेट में हमारा ब्लॉग आपके लिए कंटेंट बनाते रहेगा अपना सहयोग बनाये रखें.

महावीर प्रसाद द्विवेदी किस युग के लेखक हैं

Kunal Kumar Student 0:27 चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। महावीर प्रसाद द्विवेदी परिचय आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हिंदी के महान साहित्यकार पत्रकार एवं युवा प्रवर्तक थे उन्होंने हिंदी साहित्य के अविस्मरणीय सेवा की उनके योगदान से ही हिंदू साहित्य का दूसरा युग द्विवेदी युग के नाम से जाना जाता है Romanized Version 4484 ऐसे और सवाल द्विवेदी युग के लेखक कौन हैं?... जो महावीर प्रसाद द्विवेदी युग के लेखक थे होते श्री अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध मैथिलीशरण और पढ़ें Manish SharmaTeacher महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध ओं के नाम?... कहानी और उपन्यास महावीर प्रसाद द्विवेदी लिखा करते थे और पढ़ें singhTeacher हजारी प्रसाद द्विवेदी किस काल के लेखक थे?... हजारी प्रसाद द्विवेदी बहुत ही महान कवि कहलाते हैं और यह भक्तिकालीन साहित्य के कवि... और पढ़ें shekhar11Volunteer द्विवेदी युग के कौन कौन से लेखक हैं?... आप द्विवेदी युग के कौन कौन से लेखक कहता हूं कि त्रिवेदी उसके भारतेंदु हरिश और पढ़ें Vishal KumarTeacher महावीर प्रसाद द्विवेदी को किस संस्था ने आचार्य की उपाधि से सम्मानित किया है?... सन उन्नीस सौ तीन ऐसे में नौकरी छोड़कर उन्होंने सरस्वती का शपथ पत्र आदर किया... और पढ़ें Abhishek KumarVolunteer द्विवेदी युग के लेखक कौन नहीं है?... महादेवी वर्मा सूर्यकांत त्रिपाठी जयशंकर प्रसाद हरिवंश राय बच्चन माखनलाल चतुर्वेदी रामकुमार वर्मा सुमित्रानंदन पंत और पढ़ें Sushma PremprakashTeacher नाम के महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की संपादित सभी पत्रिकाओं के क्या नाम हैं... महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की संपादित सभी पत्रिकाओ...

Maithili Sharan Gupt ka Jivan Parichay. Maithili Sharan Gupt Kaun Hai,

Maithili Sharan Gupt ka Jivan Parichay. Maithili Sharan Gupt Kaun Hai, Puri Jankari. Padhe dosto Aaj ke is article Mein Ham maithilisharan Gupt ke bare mein baat karenge. Aaj ke is article Mein Ham Maithili Sharan Ji ke bare mein Puri Jankari Lenge. Jaise ki Maithili Sharan Guptji Kaun Hai Maithili Sharan Guptji ka Jivan Parichay kya hai. Maithilisharan ji ka Sahitya Parichay kya hai. Maithili Sharan Ji ka Rachna ke naam kya hai. Aur Maithili Sharan Guptji ke Mata Pita kaun hai. Aur maithilisharan Gupt ki poem kaun si hai. Maithilisharan Gupt Ki Maut kab hui thi. Sab Kuchh Ham is article Mein aage padenge. Dosto agar aap student ho to is article Ko Ek Bar Jarur padhe. Kyunki student ki Maithili Sharan Gupt ke bare mein padhna bahut hi jaruri hai. Maithili Sharan Ji ka Jivan Parichay Har Sal exam Mein likhane ke liye Kaha jata hai. Agar aap student Nahi Ho Fir Bhi is article Ko Ek Bar Jarur padhna. To Chaliye padhna start karte hai. Sabse pahle ham padenge maithilisharan Gupt Kaun Hai. Maithili Sharan Gupt Maithili Sharan Guptkaun hai ? Maithilisharan Gupt chhayavad Yug ke Mahan Kavi hai. Agar inki Sabse Badi Baat kare to yah Ek Bhartiya vyakti Hai. Jinhone Bharat ka naam apne sath mein Itihaas ke panno Mein likhva Diya Hai. Maithili Sharan Guptji Kavi ke sath mein Rachnakar bhi hai. inhone bahut sari Rachna ka aavishkar Kiya Hai. Kaun – Kaun si Rachna Hai yah Ham Aage padenge. Isse pahle Ham yah padhate Hai Ki Maithili Sharan Guptji ka Jivan Parichay kya hai. Gupt ji ka Ji...

मतिराम

मतिराम, हिंदी के प्रसिद्ध ब्रजभाषा कवि थे। इनके द्वारा रचित "रसराज" और "ललित ललाम" नामक दो ग्रंथ हैं; परंतु इधर कुछ अधिक खोजबीन के उपरांत मतिराम के नाम से मिलने वाले आठ ग्रंथ प्राप्त हुए हैं। इन आठों ग्रंथों की रचना शैली तथा उनमें आए और उनसे सम्बंधित विवरणों के आधार पर स्पष्ट ज्ञात होता है कि मतिराम नाम के दो कवि थे। प्रसिद्ध मतिराम फूलमंजरी, रसराज, ललित ललाम और सतसई के रचयिता थे और संभवत: दूसरे मतिराम के द्वारा रचित ग्रंथ अलंकार पंचासिका, छंदसार (पिंगल) संग्रह या वृत्तकौमुदी, साहित्यसार और लक्षणशृंगार हैं। . 12 संबंधों: टिकमापुर, जन्म स्थान चिंतामणि त्रिपाठी हिन्दी के रीतिकाल के कवि हैं। ये यमुना के समीपवर्ती गाँव टिकमापुर या भूषण के अनुसार त्रिविक्रमपुर (जिला कानपुर) के निवासी काश्यप गोत्रीय कान्यकुब्ज त्रिपाठी ब्राह्मण थे। इनका जन्मकाल संo १६६६ विo और रचनाकाल संo १७०० विo माना जाता है। ये रतिनाथ अथवा रत्नाकर त्रिपाठी के पुत्र (भूषण के 'शिवभूषण' की विभिन्न हस्तलिखित प्रतियों में इनके पिता के उक्त दो नामों का उल्लेख मिलता है) और कविवर भूषण, मतिराम तथा जटाशंकर (नीलकंठ) के ज्येष्ठ भ्राता थे। चिंतामणि कभी-कभी अपनी रचनाओं में अपना नाम 'मनिलाल' और 'लालमनि' भी रखते थे। इनका संबंध शाहजहाँ, चित्रकूटाधिपति रुद्रशाह सोलंकी, जैनुद्दीन अहमद और नागपुर के भोंसला राजा मकरदशाह के राजदरबारों से था, जहाँ से इन्हें पर्याप्त सम्मान और प्रतिष्ठा मिली। नागपुर में उस समय कोई मकरदशाह संज्ञक भोंसला राजा नहीं था, इसलिये मकरंदशाह नामधारी इस कवि के आश्रयदाता संभवत: शिवाजी के पितामह ही थे, जो 'मालो जी' नाम से प्रख्यात हैं और भूषण ने जिनका स्मरण 'माल मकरद' कहकर किया है। . नई!!: तिकवांपुर कानपुर जिले (...

छायावादी युग के कवि और उनकी रचनाएं

छायावादी कवि और उनकी रचनाएँ छायावाद की कालावधि 1920 या 1918 से 1936 ई. तक मानी जाती है। वहीं इलाचंद्र जोशी, शिवनाथ और प्रभाकर माचवे ने छायावाद का आरंभ लगभग 1912-14 से माना है। द्विवेदी युगीन काव्य की प्रतिक्रिया में छायावाद का जन्म हुआ था।रामचंद्र शुक्ल ने भी लिखा है की ‘छायावाद का चलन द्विवेदी-काल की रुखी इतिवृत्तात्मकता की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था।’ छायावाद का सर्वप्रधान लक्षण आत्माभिव्यंजना है। लिखित रूप में छायावाद शब्द के प्रथम प्रयोक्ता मुकुटधर पांडेय थे, इन्होंने ‘हिंदी में छायावाद’ लेख में सर्वप्रथम इसका प्रयोग किया। यह लेख जबलपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘श्री शारदा’ (1920 ई.) में चार किस्तों में प्रकाशित हुआ था। सुशील कुमार ने भी सरस्वती पत्रिका (1921 ई.) में ‘हिन्दी में छायावाद’ शीर्षक लेख लिखा था। यह लेख मूलतः संवादात्मक निबंध था, इस संवाद में सुशीला देवी, हरिकिशोर बाबू, चित्राकार, रामनरेश जोशी, पंत ने भाग लिया था। आचार्य शुक्ल ने छायावाद का प्रवर्तक मुकुटधर पांडेय और मैथिलीशरण गुप्त को मानते हैं और नंददुलारे वाजपेयी पंत तथा उनकी कृति ‘उच्छ्वास’(1920) से छायावाद का आरंभ माना है। वहीं इलाचंद्र जोशी और शिवनाथ ने ‘जयशंकर प्रसाद’ को छायावाद का जनक मानते हैं। विनयमोहन शर्मा,प्रभाकर माचवे ने ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ को छायावाद का प्रवर्तक माना है। छायावादी युग के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ 1.जयशंकर प्रसाद(1889-1936) छायावादी रचनाएं: झरना (1918), आंसू (1925), लहर (1933), कामायनी (1935) अन्य रचनाएं: उर्वशी (1909), वन मिलन (1909), प्रेम राज्य (1909), अयोध्या का उद्धार (1910), शोकोच्छवास (1910), वभ्रुवाहन (1911), कानन कुसुम (1913), प्रेम पथिक (1913), करुणालय (1913), ...

मतिराम का जीवन परिचय, रचनाएं, काव्य सौंदर्य, भाषा शैली, कवि परिचय

मतिराम का जीवन परिचय मतिराम का जन्म उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर के ग्राम तिकवांपुर (त्रिविक्रमपुर) में सन 1617 ईसवी को हुआ था। मतिराम कवि भूषण तथा कवि चिंतामणि के भाई थे। मतिराम और भूषण का भाई का रिश्ता है यह ललित ललाम और शिवराज भूषण में दिए गए अलंकारों से भी स्पष्ट होता है। ललित ललाम बूंदी नरेश भाव सिंह के आश्रय में रहकर लिखा गया अलंकारों का ग्रंथ है। इसका रचनाकाल संवत् 1720 का आसपास का माना जाता है। मतिराम का जीवन परिचय जन्मतिथि सन 1617 ईसवी को जन्मस्थान जिला कानपुर के ग्राम तिकवांपुर (त्रिविक्रमपुर) में भाई का नाम कवि भूषण तथा कवि चिंतामणि रचनाएं फूल मंजरी, रसराज, ललित ललाम, सतसई मतिराम की रचनाएं मतिराम की प्रमुख रचनाएं हैं- फूल मंजरी, रसराज, ललित ललाम, सतसई आदि। काव्य सौंदर्य मतिराम ब्रजभाषा काव्य के प्रसिद्ध कवि हैं। मतिराम के चार ग्रंथ प्रसिद्ध हैं, फूल मंजरी के हर दोहे में फूल का वर्णन है। फूल मंजरी रचना के समय आपकी उम्र लगभग 18 वर्ष की होगी। ललित ललाम में ऐतिहासिक वर्णन है। सतसई में सिंगार एवं नीति के दोहे हैं। रसराज में रसिकों का कंठहार है। रसराज में प्रेम की विविध चेष्टाओं के मनोहारी दृश्य प्रस्तुत किए गए हैं। यह श्रृंगार रस और नायिका भेद पर लिखा ग्रंथ है। सतसई रचना में सरस एवं ललित ब्रजभाषा के दोहे हैं अधिकांश विषय श्रृंगार और नीति संबंधी हैं। मतिराम की रचना की सबसे बड़ी विशेषता उनकी सरलता और अत्यंत स्वाभाविकता है। कवि परिचय मतिराम रितिकालीन के रीतिबद्ध कवियों में सर्वोच्च स्थान पर हैं मतिराम का रीतिकालीन कवियों में महत्वपूर्ण स्थान है मतिराम हिंदी के प्रसिद्ध ब्रजभासी कवि थे। मतिराम महाकवि भूषण के भाई थे। भाषा शैली मतिराम की सबसे बड़ी विशेषता इनके काव्य में सरल...

भारतेंदु युग

Bhartendu Yug भारतेन्दु युग (1850 ई०-1900 ई०) भारतेंदु युग का नामकरण हिंदी नवजागरण के अग्रदूत भारतेंदु हरिश्चंद्र (1850-1885 ई०) के नाम पर किया गया है। आधुनिक हिंदी काव्य के प्रथम चरण को “भारतेन्दु युग” की संज्ञा प्रदान की गई है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र को हिन्दी साहित्य के नवजागरण काल– भारतेंदु काल को “नवजागरण काल” भी कहा गया है। हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के संक्राति काल के दो पक्ष हैं। इस समय के दरम्यान एक और प्राचीन परिपाटी में काव्य रचना होती रही और दूसरी ओर सामाजिक राजनीतिक क्षेत्रों में जो सक्रियता बढ़ रही थी और परिस्थितियों के बदलाव के कारण जिन नये विचारों का प्रसार हो रहा था, उनका भी धीरे-धीरे साहित्य पर प्रभाव पड़ने लगा था। प्रारंभ के 25 वर्षों (1843 से 1869) तक साहित्य पर यह प्रभाव बहुत कम पड़ा, किन्तु सन 1868 के बाद नवजागरण के लक्षण अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे थे। विचारों में इस परिवर्तन का श्रेय भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को है। इसलिए इस युग को “भारतेन्दु युग” भी कहते हैं। भारतेन्दु के पहले ब्रजभाषा में भक्ति और श्रृंगार परक रचनाएँ होती थीं और लक्षण ग्रंथ भी लिखे जाते थे। भारतेन्दु के समय से काव्य के विषय चयन में व्यापकता और विविधता आई। श्रृंगारिकता, रीतिबद्धता में कमी आई। राष्ट्र-प्रेम, भाषा-प्रेम और स्वदेशी वस्तुओं के प्रति प्रेम कवियों के मन में भी पैदा होने लगा। उनका ध्यान सामाजिक समस्याओं और उनके समाधान की ओर भी गया। इस प्रकार उन्होंने सामाजिक राजनीतिक क्षेत्रों में गतिशील नवजागरण को अपनी रचनाओं के द्वारा प्रोत्साहित किया। भारतेंदु युग की रचनाएं भारतेंदु युग का साहित्य अनेक अमूल्य रचनाओं का सागर है, इतना समृद्ध साहित्य किसी भी दूसरी भाषा का नहीं है और न ही...

भारतेंदु युग

Bhartendu Yug भारतेन्दु युग (1850 ई०-1900 ई०) भारतेंदु युग का नामकरण हिंदी नवजागरण के अग्रदूत भारतेंदु हरिश्चंद्र (1850-1885 ई०) के नाम पर किया गया है। आधुनिक हिंदी काव्य के प्रथम चरण को “भारतेन्दु युग” की संज्ञा प्रदान की गई है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र को हिन्दी साहित्य के नवजागरण काल– भारतेंदु काल को “नवजागरण काल” भी कहा गया है। हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के संक्राति काल के दो पक्ष हैं। इस समय के दरम्यान एक और प्राचीन परिपाटी में काव्य रचना होती रही और दूसरी ओर सामाजिक राजनीतिक क्षेत्रों में जो सक्रियता बढ़ रही थी और परिस्थितियों के बदलाव के कारण जिन नये विचारों का प्रसार हो रहा था, उनका भी धीरे-धीरे साहित्य पर प्रभाव पड़ने लगा था। प्रारंभ के 25 वर्षों (1843 से 1869) तक साहित्य पर यह प्रभाव बहुत कम पड़ा, किन्तु सन 1868 के बाद नवजागरण के लक्षण अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे थे। विचारों में इस परिवर्तन का श्रेय भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को है। इसलिए इस युग को “भारतेन्दु युग” भी कहते हैं। भारतेन्दु के पहले ब्रजभाषा में भक्ति और श्रृंगार परक रचनाएँ होती थीं और लक्षण ग्रंथ भी लिखे जाते थे। भारतेन्दु के समय से काव्य के विषय चयन में व्यापकता और विविधता आई। श्रृंगारिकता, रीतिबद्धता में कमी आई। राष्ट्र-प्रेम, भाषा-प्रेम और स्वदेशी वस्तुओं के प्रति प्रेम कवियों के मन में भी पैदा होने लगा। उनका ध्यान सामाजिक समस्याओं और उनके समाधान की ओर भी गया। इस प्रकार उन्होंने सामाजिक राजनीतिक क्षेत्रों में गतिशील नवजागरण को अपनी रचनाओं के द्वारा प्रोत्साहित किया। भारतेंदु युग की रचनाएं भारतेंदु युग का साहित्य अनेक अमूल्य रचनाओं का सागर है, इतना समृद्ध साहित्य किसी भी दूसरी भाषा का नहीं है और न ही...

मतिराम

मतिराम, हिंदी के प्रसिद्ध ब्रजभाषा कवि थे। इनके द्वारा रचित "रसराज" और "ललित ललाम" नामक दो ग्रंथ हैं; परंतु इधर कुछ अधिक खोजबीन के उपरांत मतिराम के नाम से मिलने वाले आठ ग्रंथ प्राप्त हुए हैं। इन आठों ग्रंथों की रचना शैली तथा उनमें आए और उनसे सम्बंधित विवरणों के आधार पर स्पष्ट ज्ञात होता है कि मतिराम नाम के दो कवि थे। प्रसिद्ध मतिराम फूलमंजरी, रसराज, ललित ललाम और सतसई के रचयिता थे और संभवत: दूसरे मतिराम के द्वारा रचित ग्रंथ अलंकार पंचासिका, छंदसार (पिंगल) संग्रह या वृत्तकौमुदी, साहित्यसार और लक्षणशृंगार हैं। . 12 संबंधों: टिकमापुर, जन्म स्थान चिंतामणि त्रिपाठी हिन्दी के रीतिकाल के कवि हैं। ये यमुना के समीपवर्ती गाँव टिकमापुर या भूषण के अनुसार त्रिविक्रमपुर (जिला कानपुर) के निवासी काश्यप गोत्रीय कान्यकुब्ज त्रिपाठी ब्राह्मण थे। इनका जन्मकाल संo १६६६ विo और रचनाकाल संo १७०० विo माना जाता है। ये रतिनाथ अथवा रत्नाकर त्रिपाठी के पुत्र (भूषण के 'शिवभूषण' की विभिन्न हस्तलिखित प्रतियों में इनके पिता के उक्त दो नामों का उल्लेख मिलता है) और कविवर भूषण, मतिराम तथा जटाशंकर (नीलकंठ) के ज्येष्ठ भ्राता थे। चिंतामणि कभी-कभी अपनी रचनाओं में अपना नाम 'मनिलाल' और 'लालमनि' भी रखते थे। इनका संबंध शाहजहाँ, चित्रकूटाधिपति रुद्रशाह सोलंकी, जैनुद्दीन अहमद और नागपुर के भोंसला राजा मकरदशाह के राजदरबारों से था, जहाँ से इन्हें पर्याप्त सम्मान और प्रतिष्ठा मिली। नागपुर में उस समय कोई मकरदशाह संज्ञक भोंसला राजा नहीं था, इसलिये मकरंदशाह नामधारी इस कवि के आश्रयदाता संभवत: शिवाजी के पितामह ही थे, जो 'मालो जी' नाम से प्रख्यात हैं और भूषण ने जिनका स्मरण 'माल मकरद' कहकर किया है। . नई!!: तिकवांपुर कानपुर जिले (...

छायावादी युग के कवि और उनकी रचनाएं

छायावादी कवि और उनकी रचनाएँ छायावाद की कालावधि 1920 या 1918 से 1936 ई. तक मानी जाती है। वहीं इलाचंद्र जोशी, शिवनाथ और प्रभाकर माचवे ने छायावाद का आरंभ लगभग 1912-14 से माना है। द्विवेदी युगीन काव्य की प्रतिक्रिया में छायावाद का जन्म हुआ था।रामचंद्र शुक्ल ने भी लिखा है की ‘छायावाद का चलन द्विवेदी-काल की रुखी इतिवृत्तात्मकता की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था।’ छायावाद का सर्वप्रधान लक्षण आत्माभिव्यंजना है। लिखित रूप में छायावाद शब्द के प्रथम प्रयोक्ता मुकुटधर पांडेय थे, इन्होंने ‘हिंदी में छायावाद’ लेख में सर्वप्रथम इसका प्रयोग किया। यह लेख जबलपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘श्री शारदा’ (1920 ई.) में चार किस्तों में प्रकाशित हुआ था। सुशील कुमार ने भी सरस्वती पत्रिका (1921 ई.) में ‘हिन्दी में छायावाद’ शीर्षक लेख लिखा था। यह लेख मूलतः संवादात्मक निबंध था, इस संवाद में सुशीला देवी, हरिकिशोर बाबू, चित्राकार, रामनरेश जोशी, पंत ने भाग लिया था। आचार्य शुक्ल ने छायावाद का प्रवर्तक मुकुटधर पांडेय और मैथिलीशरण गुप्त को मानते हैं और नंददुलारे वाजपेयी पंत तथा उनकी कृति ‘उच्छ्वास’(1920) से छायावाद का आरंभ माना है। वहीं इलाचंद्र जोशी और शिवनाथ ने ‘जयशंकर प्रसाद’ को छायावाद का जनक मानते हैं। विनयमोहन शर्मा,प्रभाकर माचवे ने ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ को छायावाद का प्रवर्तक माना है। छायावादी युग के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ 1.जयशंकर प्रसाद(1889-1936) छायावादी रचनाएं: झरना (1918), आंसू (1925), लहर (1933), कामायनी (1935) अन्य रचनाएं: उर्वशी (1909), वन मिलन (1909), प्रेम राज्य (1909), अयोध्या का उद्धार (1910), शोकोच्छवास (1910), वभ्रुवाहन (1911), कानन कुसुम (1913), प्रेम पथिक (1913), करुणालय (1913), ...