मेवाड़

  1. मेवाड़ का इतिहास
  2. Maharana Kumbha Of Mewar Won Every Battle Of Hsi Life Built World Second Largest Wall In His Fort Ann
  3. महाराणा प्रताप जीवन परिचय
  4. महाराणा प्रताप
  5. मेवाड़ स्कूल
  6. मारवाड़
  7. मेवाड़
  8. मेवाड़ का इतिहास
  9. मेवाड़
  10. महाराणा प्रताप


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मेवाड़ का इतिहास

- बप्पारावल ने चतुर्मुखी प्रतिमा युक्त एकलिंगजी महादेव का मंदिर कैलाशपुरी (उदयपुर) में निर्मित करवाया। मुगलों से संघर्ष में छापामार युद्ध पद्धति का प्रयोग करने वाला सम्पूर्ण राजपूताने का प्रथम नरेश-मारवाड़ नरेश रावचन्द्र सैन राठौड़ था।जब कि वास्तव में सम्पूर्ण राजपूताने का पहला नरेश जो छापामार युद्ध पद्धति से परिचित था और शायद जिसने मालवा एवं गुजरात के साथ युद्ध में उसका प्रयोग भी किया हो वह महाराणा कुंभा था। छापामार युद्ध कला में प्रवीण होने के कारण ही कुंभा की उपाधि छापगुरू" थी। - नदियाँ - गंभीरी व बेड़ च - आकृति - व्हेल जैसी - अन्यनाम - विचित्र कूट ( महाराणा कुम्भा के समय से ) एवं चत्रकोट - खिज़ाबाद- ( अलाउद्दीन खिलजी द्वारा 1303 ई . में परिवर्तित) - प्रसिद्धि - ‘ राजस्थान का गौरव’ एवं किलों का सिरमौर (गढ़ गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकीसब गढ़ या ) - दक्षिणी - पूवा प्रवश द्वार - नोट : जागिरी किलों का सिरमौर कुचामन दुर्ग कहलाता - विशेषताएं - सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला किला - सबसे बड़ा लिविंगफोर्ट नोट : जैसलमेरदुर्ग राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा लिविंगफोट है। - प्रसिद्ध स्मारक - नौ कोठा महल ( नवलखामहल ) - महासती स्थान ( राजपरिवार श्मशान भूमि ) - ह रा मियों का बाड़ा - खात्ण रानी का महल - घी-तेल की बावडी अलाउद्दीन के साथ युद्ध में शहीद होने वाले मेवाड़ सेनानायक चित्तौड़ का प्रथम साका- ( राजस्थान का द्वितीय साका ) - 26 अगस्त 1303 . को - अलाउद्दन खिलजी के आक्रमण पर रानी पद्यमिनी के नेतृत्व में जौहर नोट - अलाउद्दन के साथ रतनसिंह के युद्ध का प्रत्यक्षदर्शी : अमीर खुसरो था। लक्ष्मण सिंह सिसोदा- - अलाउद्दीन के साथ युद्ध में रतनसिंह के पक्ष में लड़ते हुए सात पुत्रों सहित शहीद। - पौत्र हम्मीर ज...

Maharana Kumbha Of Mewar Won Every Battle Of Hsi Life Built World Second Largest Wall In His Fort Ann

Maharana Kumbha: मेवाड़ के ऐसे राणा जो किसी युद्ध में नहीं हारे, अपने किले में बनवाई दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार Kumbha of Mewar: मेवाड़ की धरती ने वीर राजाओं को जन्म दिया है इनमें से एक महाराणा कुम्भा भी हैं. महाराणा प्रताप की तरह इनका नाम भी राजस्थान के इतिहास में बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है. Rajasthan News:राजस्थान में मेवाड़ (Mewar) के इतिहास को कौन नहीं जानता है. यहां बप्पा रावल से लेकर कई योद्धा हुए हैं जिन्होंने ने अपनी तलवार की धार से सभी को पानी पिलाया है. इनमें भी एक ऐसे योद्धा हुए जो कभी किसी युद्ध मे नहीं हारे. यहां तक कि उनके द्वारा बनाए गए किले के अंदर तक नहीं पहुंच पाए. उन्होंने अपने किले में इतनी बड़ी दीवार बनाई जो विश्व में चीन के बाद दूसरी सबसे बड़ी दीवार कही जाती है. वही एक मात्र शासक थे जिन्होंने मेवाड़ में कई किले बनवाए. उनका नाम है महाराणा कुम्भा (Maharana Kumbha). वैसे तो महाराणाओं के रूप में महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) को सभी याद करते हैं लेकिन महाराणा प्रताप के पहले महाराणा कुम्भा थे जिनकी वीरता के आगे विदेशी आक्रांता भी नतमस्तक थे.महाराणा कुम्भा ने सन 1433 में मेवाड़ की राजगद्दी संभाली. शासक बनने के बाद उन्होंने अपने पराक्रम से न केवल आंतरिक और बाहरी कठिनाइयों का सफलतापूर्वक सामना किया बल्कि अपनी युद्धकालीन और सांस्कृतिक उपलब्धियों द्वारा मेवाड़ के गौरव को बढ़ाया. माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान की कक्षा 12वीं की पुस्तक भारत का इतिहास और इतिहास के व्याख्याता अनिल जोशी बताते हैं कि मेवाड़ और मालवा दोनों एक-दूसरे के पड़ोसी राज्य थे. पिता मोकल के हत्यारे महपा पंवार ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी के पास शरण ले रखी थी. कुम्भा ने सुल्तान को चिट्ठी...

महाराणा प्रताप जीवन परिचय

महाराणा प्रताप (जन्म 1545, मेवाड़ [भारत] – मृत्यु जनवरी 19, 1597, मेवाड़), मेवाड़ के राजपूत संघ के हिंदू महाराजा (1572–97), जो अब उत्तर-पश्चिमी भारत और पूर्वी पाकिस्तान में है। उन्होंने अपने क्षेत्र को जीतने के लिए मुगल सम्राट अकबर के प्रयासों का सफलतापूर्वक विरोध किया और उन्हें राजस्थान में एक नायक के रूप में सम्मानित किया गया। महा महाराणा प्रताप सिंह बारे में पूरा नाम ‌‌‌‌‌‌‌महाराणा प्रताप जन्म जन्म भूमि मृत्यु तिथि पिता/माता राज्य सीमा शासन काल 1568–1597 ई. शा. अवधि 29 वर्ष धार्मिक मान्यता युद्ध राजधानी पूर्वाधिकारी उत्तराधिकारी राजघराना वंश संबंधित लेख अन्य जानकारी महाराणा प्रताप ने एक प्रतिष्ठित कुल के मान-सम्मान और उसकी उपाधि को प्राप्त किया था, परन्तु उनके पास न तो राजधानी थी और न ही वित्तीय साधन। बार-बार की पराजयों ने उनके स्वबन्धुओं और जाति के लोगों को निरुत्साहित कर दिया था। फिर भी उनके पास अपना जातीय स्वाभिमान था। टीका टिप्पणी और संदर्भ • • (हिन्दी)वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 11 मई, 2015। • (हिन्दी)उगता भारत। अभिगमन तिथि: 17 मई, 2015। बाहरी कड़ियाँ • • महाराणा प्रताप के उपनाम है:- राणा प्रताप को अबुल फजल नलियाकति कहा है। राणा प्रताप को जेम्स टॉड में गजकेसरी कहा है। और साहित्य में प्रताप को पाथल (सूर्य) कहा गया है। महाराणा प्रताप जयंती: अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार महाराणा प्रताप जयंती हर साल 9 मई को पड़ती है। हालाँकि, हिंदू कैलेंडर ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को योद्धा राजा की जयंती दिखाता है, और इसलिए इस बार 13 जून को मनाया जा रहा है। महाराणा प्रताप जयंती 2021: हिंदू कैलेंडर ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को योद्धा राजा की जयंती दिखाता है, और इसलिए इस...

महाराणा प्रताप

प्रताप सिंह प्रथम, जिसे महाराणा प्रताप के नाम से भी जाना जाता है (सी। 9 मई 1540 – 19 जनवरी 1597), मेवाड़ के सिसोदिया वंश के राजा थे। प्रारंभिक जीवन और परिग्रहण मेवाड़ के महाराणा प्रताप को भारत के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में से एक माना जाता है। 7 फीट 5 इंच लंबे खड़े होकर, वह 80 किलोग्राम का भाला और कुल 208 किलोग्राम वजन की दो तलवारें ले जाएगा। उसने 72 किलोग्राम का कवच भी पहन रखा होगा। उनका विवाह बिजोलिया के अजबदे ​​पंवार से हुआ था और उनकी 10 अन्य पत्नियां थीं, जिसमें रानी धीर बाई चाहती थीं कि उनका बेटा जगमल 1572 में उनकी मृत्यु के बाद उदय सिंह का उत्तराधिकारी बने, लेकिन वरिष्ठ दरबारियों ने सबसे बड़े बेटे प्रताप को अपना राजा बनाना पसंद किया। रईसों की इच्छा की जीत हुई। जब 1572 में उदय सिंह की मृत्यु हुई, तो राजकुमार प्रताप सिसोदिया राजपूत वंश में मेवाड़ के 54 वें शासक महाराणा प्रताप के रूप में सिंहासन पर बैठे। जगमल ने बदला लेने की कसम खाई और अकबर की सेनाओं में शामिल होने के लिए अजमेर के लिए रवाना हो गए, उनकी सहायता के लिए एक पुरस्कार के रूप में जागीर के रूप में जागीर के शहर को प्राप्त किया। सैन्य वृत्ति अन्य राजपूत शासकों के विपरीत, जिन्होंने उपमहाद्वीप में विभिन्न मुस्लिम राजवंशों के साथ गठबंधन किया और गठबंधन किया, प्रताप सिंह के मेवाड़ राज्य ने मुगल साम्राज्य के साथ कोई राजनीतिक गठबंधन बनाने और मुस्लिम प्रभुत्व का विरोध करने से इनकार करके खुद को प्रतिष्ठित किया। हल्दीघाटी की लड़ाई प्रताप सिंह और अकबर के बीच संघर्ष के परिणामस्वरूप हुई। हल्दीघाटी लड़ाई 1567-1568 में चित्तौड़गढ़ की खूनी घेराबंदी के परिणामस्वरूप मुगलों ने मेवाड़ के उपजाऊ पूर्वी बेल्ट पर कब्जा कर लिया। अरावली रे...

मेवाड़ स्कूल

• राजस्थानी चित्रकला का प्रारम्भिक केन्द्र। • अजन्ता परम्परा का निर्वहन केन्द्र। • प्रथम उदाहरण – श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णि (1260 ई. में • सुपासनाह चरियम्’ में • मेवाड़ शैली का उजला रूप सन् 1540 ई. का विल्हण कृत ‘चौरपंचाशिका ग्रंथ’ के चित्रों में देखने को मिलता है। • इस शैली के प्रमुख चित्रों में से एक ‘चम्पावती विल्हण’ नामक चित्र • डगलस बैरेट एवं बेसिल ग्रे ने ‘ चौरपंचाशिका शैली’ का उद्‌गम मेवाड़ में माना है। Mewar School Chitra Shaili Table of Contents • • • • • • • • पण्डित भीकमचन्द द्वारा रचित ग्रंथ ‘ रसिकाष्टक’ में विभिन्न ऋतुओं तथा पशु-पक्षियों के उत्तम चित्र उपलब्ध हुए हैं जो कुम्भा कालीन चित्रकला की पुष्टि करते हैं। चावण्ड शैली • चावण्ड को 1585 ई. में महाराणा प्रताप द्वारा अपनी संकटकालीन राजधानी बनाया गया जहाँ पर प्रताप के समय चित्रकला शैली की शुरूआत हुई। • ढोला-मारू’ (1592 ई.) है जो मुगल शैली से प्रभावित है। यह कृति वर्तमान में राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में सुरक्षित है। • निसारद्दीन’ ने ‘ रागमाला’ का चित्रण किया। • ‘चावण्ड शैली का स्वर्णकाल’ कहा जाता है। उदयपुर शैली • • इस शैली का प्राचीनतम चित्र ‘श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णि’ है जो 1260 ई. में ‘सुपासनाह चरितम्’ है जो • उदयपुर शैली का सर्वप्रथम मूल स्वरूप प्रतापगढ़ में चित्रित ‘चौरपंचाशिका’ नामक ग्रंथ के चित्रों में दिखाई देता है। ‘ महाराणा जगतसिंह प्रथम’ का काल उदयपुर शैली का स्वर्णकाल माना जाता है। इस काल में इस काल में रागमाला, रसिकप्रिया, गीतगोविन्द, भागवतपुराण एवं रामायण इत्यादि विषयों पर लघु चित्रों का निर्माण हुआ। शूकर क्षेत्र महात्म्य’ एवं ‘ भ्रमरगीत’ जैसे चित्र रचे। • चित्रकार :- साहिबदीन, कृप...

मारवाड़

स्थिति पश्चिमी 19th c. में राज्य की स्थापना: 6th c. ऐतिहासिक राजधानी अलग राज्य मारवाड़ राजस्थान प्रांत के पश्चिम में थार के मरुस्थल में आंशिक रूप से स्थित है। मारवाड़ संस्कृत के मरूवाट शब्द से बना है जिसका अर्थ है मौत का भूभाग। प्राचीन काल में इस भूभाग को मरूदेश भी कहते थे। इसके अंतर्गत राजस्थान प्रांत के बाड़मेर, जोधपुर, पाली, जालोर और नागौर जिले आते हैं। अनुक्रम • 1 इतिहासह्वेन त्सांग ने राजस्थान में एक राज्य का वर्णन किया जिसे वह कू-चा-लो कहता है(राजस्थान का प्राचीन नाम). प्रतिहारराजपुत्र, ने 6 वीं शताब्दी में मंडोर में एक राजधानी के साथ मारवाड़ में एक राज्य स्थापित किया, वर्तमान जोधपुर से 9 कि.मी. जोधपुर से 65 किमी, प्रतिहार काल का एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र था। जोधपुर का शाही राठौर परिवार प्रसिद्ध राष्ट्रकूट वंश से वंश का दावा करता है।राष्ट्रकूट वंश के पतन पर वे उत्तर प्रदेश के कन्नौज चले गए। • 2 इन्हें भी देखें • 3 इन्हें भी देखें • 4 सन्दर्भ • 5 बाहरीकड़ियाँ इतिहासह्वेन त्सांग ने राजस्थान में एक राज्य का वर्णन किया जिसे वह कू-चा-लो कहता है(राजस्थान का प्राचीन नाम). [ ] जोधपुर राज्य की स्थापना 13 वीं शताब्दी में राजपूतों के राठौड़ वंश द्वारा की गई थी। 1194 में घोर के मुहम्मद द्वारा कन्नौज को बर्खास्त करने और 13 वीं शताब्दी की शुरुआत में दिल्ली सल्तनत द्वारा इसके कब्जे के बाद, राठौर पश्चिम भाग गए। राठौड़ परिवार के इतिहासकार बताते हैं कि कन्नौज के अंतिम 1561 में मुगल सम्राट 1679 ईस्वी में, जब महाराजा जसवंत सिंह, जिन्हें सम्राट औरंगजेब ने खैबर दर्रे के मुहाने पर जमरुद में तैनात किया था, उस स्थान पर उनकी मृत्यु हो गई, जिससे कोई भी पुत्र उनके उत्तराधिकारी नहीं बना; लाहौ...

मेवाड़

यशोधरा द्वारा उल्लेखित षडांग के संदर्भ एवं 'समराइच्चकहा' एवं 'कुवलयमाला' कहा जैसे ग्रंथों में 'दट्ठुम' शब्द का प्रयोग चित्र की समीक्षा हेतु हुआ है, जिससे इस क्षेत्र की उत्कृष्ट परंपरा के प्रमाण मिलते हैं। ये चित्र मूल्यांकन की कसौटी के रूप में प्रमुख मानक तथा समीक्षा के आधार थे। विकास के इस सतत् प्रवाह में विष्णु धर्मोत्तर पुराण, समरांगण सूत्रधार एवं चित्र लक्षण जैसे अन्य ग्रंथों में वर्णित चित्र कर्म के सिद्धांत का भी पालन किया गया है। परंपरागत कला सिद्धांतों के अनुरूप ही शास्त्रीय विवेचन में आये आदर्शवाद एवं यथार्थवाद का निर्वाह हुआ है। प्रारंभिक स्वरूपों का उल्लेख आठवीं सदी में हरिभद्रसूरि द्वारा रचित 'समराइच्चिकहा' एवं 'कुवलयमालाकहा' जैसे प्राकृत ग्रंथों से प्राप्त कला संदर्भों में मिलता है। इन ग्रंथों में विभिन्न प्रकार के रंग-तुलिका एवं चित्रफलकों का तत्कालीन साहित्यिक संदर्भों के अनुकूल उल्लेख मेवाड़ में प्रामाणित रूप से चित्रण के तकनीकी पक्ष का क्रमिक विकास यहीं से मानते हैं। यहाँ के चित्रावशेष 1229 ई. के उत्कीर्ण भित्तिचित्रों एवं 1260 ई के ताल पत्रों पर मिलते हैं। इन्हें भी देखें: भाषा एवं लिपि • मेवाड़ क्षेत्र की मुख्य • मेवाड़ राज्य की प्रचलित हिन्दू धर्म का विकास मेवाड़ में वेदानुयायियों को पाँच हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है- मुख्य लेख: मेवाड़ की जातिगत सामाजिक व्यवस्था परम्परागत रूप से ऊँच-नीच, पद-प्रतिष्ठा तथा वंशोत्पन्न जातियों के आधार पर संगठित थी। सामाजिक संगठन में प्रत्येक जाति का महत्व उस जाति की वंशोत्पत्ति तथा उसके द्वारा अंगीकृत व्यवसाय पर निर्भर थी। जाति-व्यवस्था को स्थायित्व प्रदान करने तथा उसके अस्तित्व को अक्षुण बनाये रखने में जाति पंचायतों...

मेवाड़ का इतिहास

- बप्पारावल ने चतुर्मुखी प्रतिमा युक्त एकलिंगजी महादेव का मंदिर कैलाशपुरी (उदयपुर) में निर्मित करवाया। मुगलों से संघर्ष में छापामार युद्ध पद्धति का प्रयोग करने वाला सम्पूर्ण राजपूताने का प्रथम नरेश-मारवाड़ नरेश रावचन्द्र सैन राठौड़ था।जब कि वास्तव में सम्पूर्ण राजपूताने का पहला नरेश जो छापामार युद्ध पद्धति से परिचित था और शायद जिसने मालवा एवं गुजरात के साथ युद्ध में उसका प्रयोग भी किया हो वह महाराणा कुंभा था। छापामार युद्ध कला में प्रवीण होने के कारण ही कुंभा की उपाधि छापगुरू" थी। - नदियाँ - गंभीरी व बेड़ च - आकृति - व्हेल जैसी - अन्यनाम - विचित्र कूट ( महाराणा कुम्भा के समय से ) एवं चत्रकोट - खिज़ाबाद- ( अलाउद्दीन खिलजी द्वारा 1303 ई . में परिवर्तित) - प्रसिद्धि - ‘ राजस्थान का गौरव’ एवं किलों का सिरमौर (गढ़ गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकीसब गढ़ या ) - दक्षिणी - पूवा प्रवश द्वार - नोट : जागिरी किलों का सिरमौर कुचामन दुर्ग कहलाता - विशेषताएं - सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला किला - सबसे बड़ा लिविंगफोर्ट नोट : जैसलमेरदुर्ग राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा लिविंगफोट है। - प्रसिद्ध स्मारक - नौ कोठा महल ( नवलखामहल ) - महासती स्थान ( राजपरिवार श्मशान भूमि ) - ह रा मियों का बाड़ा - खात्ण रानी का महल - घी-तेल की बावडी अलाउद्दीन के साथ युद्ध में शहीद होने वाले मेवाड़ सेनानायक चित्तौड़ का प्रथम साका- ( राजस्थान का द्वितीय साका ) - 26 अगस्त 1303 . को - अलाउद्दन खिलजी के आक्रमण पर रानी पद्यमिनी के नेतृत्व में जौहर नोट - अलाउद्दन के साथ रतनसिंह के युद्ध का प्रत्यक्षदर्शी : अमीर खुसरो था। लक्ष्मण सिंह सिसोदा- - अलाउद्दीन के साथ युद्ध में रतनसिंह के पक्ष में लड़ते हुए सात पुत्रों सहित शहीद। - पौत्र हम्मीर ज...

मेवाड़

यशोधरा द्वारा उल्लेखित षडांग के संदर्भ एवं 'समराइच्चकहा' एवं 'कुवलयमाला' कहा जैसे ग्रंथों में 'दट्ठुम' शब्द का प्रयोग चित्र की समीक्षा हेतु हुआ है, जिससे इस क्षेत्र की उत्कृष्ट परंपरा के प्रमाण मिलते हैं। ये चित्र मूल्यांकन की कसौटी के रूप में प्रमुख मानक तथा समीक्षा के आधार थे। विकास के इस सतत् प्रवाह में विष्णु धर्मोत्तर पुराण, समरांगण सूत्रधार एवं चित्र लक्षण जैसे अन्य ग्रंथों में वर्णित चित्र कर्म के सिद्धांत का भी पालन किया गया है। परंपरागत कला सिद्धांतों के अनुरूप ही शास्त्रीय विवेचन में आये आदर्शवाद एवं यथार्थवाद का निर्वाह हुआ है। प्रारंभिक स्वरूपों का उल्लेख आठवीं सदी में हरिभद्रसूरि द्वारा रचित 'समराइच्चिकहा' एवं 'कुवलयमालाकहा' जैसे प्राकृत ग्रंथों से प्राप्त कला संदर्भों में मिलता है। इन ग्रंथों में विभिन्न प्रकार के रंग-तुलिका एवं चित्रफलकों का तत्कालीन साहित्यिक संदर्भों के अनुकूल उल्लेख मेवाड़ में प्रामाणित रूप से चित्रण के तकनीकी पक्ष का क्रमिक विकास यहीं से मानते हैं। यहाँ के चित्रावशेष 1229 ई. के उत्कीर्ण भित्तिचित्रों एवं 1260 ई के ताल पत्रों पर मिलते हैं। इन्हें भी देखें: भाषा एवं लिपि • मेवाड़ क्षेत्र की मुख्य • मेवाड़ राज्य की प्रचलित हिन्दू धर्म का विकास मेवाड़ में वेदानुयायियों को पाँच हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है- मुख्य लेख: मेवाड़ की जातिगत सामाजिक व्यवस्था परम्परागत रूप से ऊँच-नीच, पद-प्रतिष्ठा तथा वंशोत्पन्न जातियों के आधार पर संगठित थी। सामाजिक संगठन में प्रत्येक जाति का महत्व उस जाति की वंशोत्पत्ति तथा उसके द्वारा अंगीकृत व्यवसाय पर निर्भर थी। जाति-व्यवस्था को स्थायित्व प्रदान करने तथा उसके अस्तित्व को अक्षुण बनाये रखने में जाति पंचायतों...

महाराणा प्रताप

प्रताप सिंह प्रथम, जिसे महाराणा प्रताप के नाम से भी जाना जाता है (सी। 9 मई 1540 – 19 जनवरी 1597), मेवाड़ के सिसोदिया वंश के राजा थे। प्रारंभिक जीवन और परिग्रहण मेवाड़ के महाराणा प्रताप को भारत के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में से एक माना जाता है। 7 फीट 5 इंच लंबे खड़े होकर, वह 80 किलोग्राम का भाला और कुल 208 किलोग्राम वजन की दो तलवारें ले जाएगा। उसने 72 किलोग्राम का कवच भी पहन रखा होगा। उनका विवाह बिजोलिया के अजबदे ​​पंवार से हुआ था और उनकी 10 अन्य पत्नियां थीं, जिसमें रानी धीर बाई चाहती थीं कि उनका बेटा जगमल 1572 में उनकी मृत्यु के बाद उदय सिंह का उत्तराधिकारी बने, लेकिन वरिष्ठ दरबारियों ने सबसे बड़े बेटे प्रताप को अपना राजा बनाना पसंद किया। रईसों की इच्छा की जीत हुई। जब 1572 में उदय सिंह की मृत्यु हुई, तो राजकुमार प्रताप सिसोदिया राजपूत वंश में मेवाड़ के 54 वें शासक महाराणा प्रताप के रूप में सिंहासन पर बैठे। जगमल ने बदला लेने की कसम खाई और अकबर की सेनाओं में शामिल होने के लिए अजमेर के लिए रवाना हो गए, उनकी सहायता के लिए एक पुरस्कार के रूप में जागीर के रूप में जागीर के शहर को प्राप्त किया। सैन्य वृत्ति अन्य राजपूत शासकों के विपरीत, जिन्होंने उपमहाद्वीप में विभिन्न मुस्लिम राजवंशों के साथ गठबंधन किया और गठबंधन किया, प्रताप सिंह के मेवाड़ राज्य ने मुगल साम्राज्य के साथ कोई राजनीतिक गठबंधन बनाने और मुस्लिम प्रभुत्व का विरोध करने से इनकार करके खुद को प्रतिष्ठित किया। हल्दीघाटी की लड़ाई प्रताप सिंह और अकबर के बीच संघर्ष के परिणामस्वरूप हुई। हल्दीघाटी लड़ाई 1567-1568 में चित्तौड़गढ़ की खूनी घेराबंदी के परिणामस्वरूप मुगलों ने मेवाड़ के उपजाऊ पूर्वी बेल्ट पर कब्जा कर लिया। अरावली रे...