पीपल पथवारी की कहानी

  1. पथवारी माता की कहानी
  2. रक्षंता ध्रुव की कहानी
  3. peepal_pathvaari
  4. पथवारी माता की कहान
  5. कार्तिक मास की पीपल पथवारी की कथा
  6. Peepal Aur Pathwari Ki Kahani


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पथवारी माता की कहानी

पथवारी माता की कहानी एक बार पथवारी माता ,पाल और विनायक जी में झगड़ा हो गया | सब आपस में स्वयं को बड़ा बताने लगे | इतने में एक ब्राह्मण का लड़का आया | पाल , पथवारी ,गजानन्द जी ने उसे रोका और कहा , लडके रुक जा और हमारा न्याय कर | लड़का बोला “ मैं कल वापस आऊंगा तब न्याय करूंगा “ घर आकर लडके ने माँ से कहा , माँ मुझे कल पाल , पथवारी माता , विनायक जी का न्याय चुकाना हैं , तो माँ ने कहा , बेटा सबको बड़ा बता देना | दुसरे दिन लड़का वहाँ गया और बोला , “ पाल माता आप बड़ी हो , क्यों की हर व्यक्ति आता हैं और स्नान ध्यान करके शुद्ध होकर जाता हैं ,और आप सबकी रक्षा करती हैं | हे पथवारी माता आप सबसे बड़ी हो क्यों की कितने भी तीर्थ , धर्म , ध्यान कर ले पर आपकी पूजा किये बिना उनका कार्य पूर्ण नहीं होता | ‘ आप जीवित को भी तारती हैं और मरने के बाद भी उद्धार करती हैं | “ पथवारी माता पथ की धराणी “ इसलिये आप बड़ी हो | अब विनायक जी से लड़का बोला ‘’ सबसे पहले शुभ काम में आप को ही मनाया जाता हैं ,आप को ध्याये बिना कोई काम सिद्ध नहीं होता हैं “ इसलिये आप बड़े हो | विनायक जी की कहानी पढने के लिये यहाँ क्लिक करे पाल माता , पथवारी माता , विनायक जी भगवान लडके की चतुराई से प्रसन्न हो गये , और बोले लडके तुमने तो हम सबको ही बड़ा कर दिया उसको सुखी रहने का आशीर्वाद दिया और जौके दाने उसके अंगोछे में डाल दिए | लड़का सोचने लगा , “ ये तो घाटे का सौदा रहा , सारा दिन खराब कर न्याय किया और इतने से जौ मिले | उदास मन से घर आकर अंगोछा एक कोने में डाल दिया | माँ ने अंगोछा उठाया तो उसमे से हीरे मोती बिखर गये | तो माँ बोली बेटा न्याय करके क्या लाया हैं , लड़का बोला माँ कोने में जों पड़ा देख ले | माँ वहाँ गई देखा हीरे मोती का ढेर लगा हैं...

रक्षंता ध्रुव की कहानी

यह कोई कहानी नहीं है। इसका फिलहाल तो कोई मोड़ नहीं है क्योंकि इसके किरदारों की कोई शक्ल, कोई आवाज़, कोई आज, कल हम नहीं जानते हैं। हां, इसमें किरदार ज़रूर हैं। ​​​​​​किरदारों के रूप में एक परिवार है। चंद सदस्य हैं उसके। चार या शायद पांच या छह...तय नहीं है इनकी गिनती भी। जो तय है, वो ये कि यह परिवार सड़क किनारे खड़ा है। क्यों? पता नहीं। कहां से आया है, कहां जाएगा...मालूम नहीं। क्या जाने उनका रहन-सहन कैसा है? वो जिस सड़क पर खड़े हैं, वो किसी शहर की है, कस्बे या गांव की? या कोई राजमार्ग है? दोराहा-तिराहा है? अपनत्व सूरज निकलते ही गांव में हलचल शुरू हो गई। पुरुष और महिलाएं सब अपने काम में व्यस्त थे। तभी वहां एक कार फट- फट की आवाज करती हुई आकर रुक गई। हैंडपंप से पानी भरने आई महिलाएं सब देख रही थीं। गाड़ी से एक युवक निकला और गाड़ी को जांचते हुए ‘सुनो चित्रा, पानी का बॉटल लेकर आना इंजन गरम हो गया है’ कहकर अपनी पत्नी को आवाज देने लगा। ‘यह लो पानी, अनिल’ कहकर चित्रा ने बॉटल अनिल को दी। कार में बैठी दो लड़कियां उतर कर पूछने लगीं ‘क्या हुआ पापा?’ ‘गाड़ी गर्म हो गई है, ठंडी होगी तो चालू हो जाएगी, तब तक हमे इंतजार करना होगा,’ अनिल ने जवाब दिया। गाड़ी अंदर से तप चुकी थी, आस-पास देखकर चित्रा ने कहा, ‘सुनो अनिल, यहां तो कोई होटल नजर नहीं आ रहा है, चलो सड़क के पास वाली पीपल की छाया में चलते हैं।’ पूरा परिवार सड़क के किनारे आकर खड़ा हो गया। उन्हें परेशान देख कर हैंडपंप के पास खड़ी एक बुजुर्ग महिला ने उनके करीब जाकर कहा, ‘यहां खड़े-खड़े थक जाओगे बेटा आओ मेरा घर पास में है वहां चलो।’ ‘नहीं मां जी, हम यहीं ठीक हैं, हमारी गाड़ी थोड़े देर में ठीक हो जाएगी,’ अनिल ने विनम्रता कहा। मां जी के दोबारा कहने पर...

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पीपल पथवारी की कहानी एक गूजरी थी I जिकी आपनी बहू न कयो कि दूध – दही बेच्या I वा बेचन गयी तो रास्ता म लुगायां पीपल पथवारी सींच थी I उना न सींचता देखकर पूछी कि ये के करो हो I लुगायां बोली कि म्हे पीपल पथवारी सीचां हाँ, इस से अन्न – धन्न होव, बारा बरस को बिछड़ेड़ो धणी मिल जाव I बहू बोली इसी बात है तो, थे तो पानी स सींचो हो, म दूध स सीचूंगी I गूजरी बहू न रोजिना दूध – दही बेचन देती I वा रोजिना दूध तो पीपल म, दही पथवारी म सीन्च्याती I गूजरी दूध दही का दाम मांगती तो कह देती, महीनो पूरो हो जासी जद ल्या देस्युं I कातिक को महीनो पूरो होगो I पुन्यु क दिन बहू – पीपल – पथवारी क धरण पड़गी I वा पूछ्यो कि तू मेर धरण क्यूँ पड़ी है I बहू बोली कि सास दूध – दही का दाम मांग है I पीपल – पथवारी बोली कि मेर कन किसा दाम राख्या है, ये भाटा – डीन्डा, पान – पतुरा है, जिका लेजा I बहू वही लेजा कर ओबरी म रख दिया और डर क मारे ओढ़ कर सोगी I गूजरी बोली कि बहू दाम ल्या I बहू बोली कि ओबरी म राख्या है I सासु ओबरी खोल कर देख तो हीरा – मोती जगमगा रह, धन क कुड्डा हो रया है I सासु बहू न हेलो मार्यो कि यो इतनो धन तू कठ स ल्याई I बहू आकर देख तो साचां ही धन भर्यो पड़ो है I बहू सास न सारी बात बता दी I सासु कयो कि अबकी कातिक म, मैं भी सीचुंगी I कातिक आयो, सास दूध – दही तो बेच्याती और हांडी धोकर पीपल – पथवारी म गेरयाती I आकर बहू स कहती मेर स दाम मांग I वा कहती सासुजी, कोई बहू भी दाम मांग्या कर है के I पर सास कहती कि तू मांग I बहू बोली सासुजी दाम ल्याओ, तो वा पीपल – पथवारी क धरण जाकर पड़गी I पीपल – पथवारी सासु न भी भाटा – डीन्डा, पान – पतुरा दे दिया I वा लेजा कर ओबरी म रख दिया I बहू खोल कर देख तो कीड़ा – मकोड़ा कलबलाव है I जद बह...

पथवारी माता की कहान

पथवारी माता की कहानीयह कथा शीतला अष्टमी तथा कार्तिक पूजा के समय पथवारी पुजते समय अन्य कहानियों के साथ कही जाती है। कथा- पौराणिक कथाओं के अनुसार एक गूजरी माई थी। उसके दो बहएं थीं। दोनों बहओं को सास ने। दूध बेचने के लिए पास के गांव में भेजा। बड़ी बहू काफी होशियार थी और पैसों का हिसाब भी रखना जानती थी, इसलिए रोज दूध बेचकर सारे पैसे लाकर सास मां को दे देती थी। इसके विपरीत छोटी बह बहुत भोली थी। उसे हिसाब लगाना नहीं आता था। एक दिन जब वह दूध बेचने जा रही थी, तब उसने देखा कुछ महिलाएं-पथवारी पूजन कर रही हैं तथा जल से पीपल के वृक्ष को सीचं रहीं है। बहू ने उन महिलाओं से पूछा- 'पथवारी पूजने और सींचने से क्या फल मिलता है?' इस पर उन महिलाओं ने उसे बताया 'पथवारी माता सींचने तथा पूजने से अल धन एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। महिलाओं की बातें सुनकर छोटी बहू ने दूध वहीं बड़-पीपल में चढ़ा पथवारी माता को सींच दिया। वह प्रतिदिन इसी तरह दूध ले जाती और पथवारी माता को सींच आती। कुछ दिनों बाद जब सास ने बहू से दूध के पैसे मांगे, तो उसने दूसरे दिन लाने को कह दिया, परन्तु वह अगले दिन भी पैसे नहीं लाड़ी इस तरह पूरा एक महीना बीत गया। तब सास ने कहा- 'आज पैसे लेकर ही आना। अगले दिन जब वह पैसे लेने के लिए घर से चली, तो उदास होकर पथवारी माता के चबूतरे के समीप बैठ गई। तब पथवारी माता बढ़िया का रूप धारण करके आई और बोली- 'बेटी यहां इस तरह उदास क्यों बैठी हो? बह बोली- 'मेरी सास मुझे रोज दूध बेचने भेजती थी परन्त मझे तो दूध बेचना आता ही नहीं। इसलिए मैं तो पथवारी माता के ही दूध सींच देती थी। आज सास ने पैसे लेकर आने के लिए कहा है। अब आप ही बताएं में पैसे कहां से लाऊं?' बदिया माई बोली-बेटी यह पत्थर पडे हैं. इन्हें ट...

कार्तिक मास की पीपल पथवारी की कथा

पोस्ट ऑफिस की इस सुपरहिट स्कीम में हर महीने जमा करें 1,500 रुपये और मैच्योरिटी पर पाएं 35 लाख, जानें- क्या है स्कीम? © News18 हिंदी द्वारा प्रदत्त "कार्तिक मास की पीपल पथवारी की कथा" kartik maas 2022: हिंदू धर्म में कार्तिक महीने में भगवान विष्णु व तुलसा माता के साथ विभिन्न देवी- देवताओं की पूजा का विधान भी है. जिनमें पीपल व पथवारी पूजा भी शामिल है. इस पूजन से जुड़ी एक गुजरी की कथा काफी प्रसिद्ध है. जिसे कार्तिक महीने में पीपल- पथवारी पूजते समय पूरे महीने सुना जाता है. आज हम आपको पीपल- पथवारी की वही कथा बताने जा रहे हैं. ये भी पढ़ें: अभी कलयुग के बीते हैं केवल 5124 वर्ष, जानें कितनी अवधि है शेष और वेदव्‍यास की भविष्यवाणी पीपल- पथवारी की कथा एक समय एक गूजरी थी. उसने अपनी बहू को एक दिन दूध- दही बेचने को कहा. वह बेचने गई तो रास्ते में औरतें पीपल- पथवारी सींचती हुई दिखी. इस पर उसने उन औरतों से पूछा कि यह क्या कर रही हो? औरतों ने कहा कि हम पीपल पथवारी सींच रही है. इससे घर में धन-धान्य बढ़ता है और खोया पति भी मिल जाता है. बहू बोली, ऐसी बात है तो मैं पानी की जगह दूध व दही से सीचूंगी. गूजरी बहू ने रोज दूध- दही बेचते समय पीपल पथवारी को दूध-दही से सींचना शुरू कर दिया. जब सास दूध- दही के रुपये मांगती तो वह कह देती कि महीना पूरा होने पर हिसाब दे देगी. इसके बाद जब कार्तिक का महीना पूरा हो गया तो वह पीपल- पथवारी के चरणों में पड़ गई. इस पर पीपल- पथवारी ने पूछा कि क्या बात है, तो उसने कहा कि आज सास दूध- दही का हिसाब मांगेगी. पीपल पथवारी बोली कि मेरे पास तो रुपये नहीं है. यह पत्थर और पान के टुकड़े हैं, जिसे ले जा. बहु वही साथ ले गई और उसे एक अलमारी में रख दिया. इसके बाद डर के मारे वह चद्दर...

Peepal Aur Pathwari Ki Kahani

Peepal Aur Pathwari Ki Kahani Peepal Aur Pathwari Ki Kahani- एक बुढ़िया थी। उसने अपनी बहू से कहा तू पीपल पथवारी सींच रहीं थीं। उनको सींचता देखकर बहू ने पूछा कि तुम यह क्या कर रही हो? औरतें बोेली कि हम पीपल पथवारी सींच रही हैं। इससे अन्न और धन होता है। बारह वर्ष का बिछुड़ा हुआ पति मिल जाता है। बहु बोली ऐसी बात है। तो तुम पानी से सींचती हो तो मैं कार्तिक का महीना पूरा हो गया। पीपल पथवारी के पास जाकर बैठ गई। पथवारी ने पूछा तुम मेरे पास क्यों बैठ गई। बहू बोली कि सासू दूध-दही का दाम माँगेगी। पीपल पथवारी बोली कि मेरे पास क्या दाम रखा है। ये भरा, डींडा पान पतूरा इसको ले जा। बहू ने वही ले जाकर कोठरी में रख दिया और डर के मारे कपड़ा ओढ़ कर सो गई। सासू बोली पैसे ले आई बहू। बहू बोली कोठरी में रखे हैं। Peepal Aur Pathwari Ki Kahani सासू ने कोठरी खोल के देखी तो देखा हीरा-मोती जगमगा रहें हैं। सासू बोली बहू इतना धन कहाँ से लाई ? बहू ने आकर देखा तो सच्ची में ही धन भरा हुआ है। बहू ने सास को सारी बात बता दी। सास ने कहा अब की कार्तिक आया। सास दूध दही तो बेच आती हांडी धोकर पीपल पथवारी में चढ़ा देती। आकर बहू से कहती मेरे से दाम मांग। वह कहती सासू जी कोई बहू भी दाम मांगती है। मगर सासू कहती तू माँग। बहू बोली सासूजी पैसे ले आओ तो सास पीपल पथवारी के पास जाकर बैठ गयी। पीपल पथवारी ने सास को पान पतूरा भरा डींडा दे दिया। उसने ले जाकर कोठरी में रख दिया। बहू ने खोलकर देखा तो उसमें कीड़े-मकोड़े बिलबिला रहे हैं। Peepal Aur Pathwari Ki Kahani बहू ने कहा सासूजी यह क्या? सास ने आकर देखा और बोलने लगी पीपल पथवारी बड़ी दोगली पटपीटन है। इसको तो धन दिया मुझको कीड़ा-मकोड़ा दिया। तब सब कोई बोलने लगे कि बहू तो सत् की...