Poos ki raat kis prakar ki kahani hai

  1. पूस की रात कहानी का चरित्र चित्रण
  2. पूस की रात कहानी का सारांश
  3. पूस की रात कहानी की मूल संवेदना
  4. पूस की रात : मुंशी प्रेमचंद की कहानी


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पूस की रात कहानी का चरित्र चित्रण

पूस की रात कहानी का चरित्र चित्रण पूस की रात कहानी के पात्रों का चरित्र चित्रण- 'पूस की रात' कहानी में हल्कू और जबरा कुत्ता ये दो ही मुख्य पात्र हैं। तीसरा पात्र है हल्कू की पत्नी मुन्नी। सहना नामक एक लेनदार पात्र भी कहानी में आया है। उसका इस दृष्टि से विशेष महत्व है कि हल्कू द्वारा मजदूरी में से काटकर एक-एक पैसा जोड़े तीन रुपये लेनदारी में लेकर सहना नामक यह पात्र कथावस्तु की नींव रख जाता है। पात्र प्रकल्पित होते हुए भी जीवन के घोर यथार्थ पर आधारित हैं। कहानी के सभी पात्र वर्गगत चरित्र वाले हैं। प्रतीकात्मक रूप में सहना ग्रामीण व्यवस्था में शोषक वर्गों का एक वर्ग-प्रतिनिधि है, तो हल्कू और मुन्नी शोषक-पीड़ित श्रमिक किसान वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले पात्र हैं। इसी प्रकार जबरा कुत्ता भी अपने विशिष्ट पशु वर्ग की समस्त वर्गगत मान्यताओं एवं विशेषताओं को सम्पन्न भाव से उजागर करने वाला पात्र है। चरित्र-चित्रण की दृष्टि से हल्कू, मुन्नी आदि पात्र सहज मानवीय धैर्य के प्रतीक होते हुए भी गतिशील चरित्र वाले पात्र कहे जा सकते हैं। सहना इन धैर्य रखने वाले पात्रों के विपरीत मानवीयता को खोकर जड़ हो चुका है। हल्कू से पैसा-पैसा जोड़कर कम्बल खरीदने के लिए रखे तीन रुपये लेकर वह अपनी निम्नतम जड़ता का ही परिचय देता है। हल्कू किसानों की दारूण नियति का शिकार पात्र है। उसकी असमर्थता यह है कि जाड़े से बचाव के लिए मात्र तीन रुपये का कम्बल नहीं खरीद सकता। सर्दियाँ आने पर हर बार उसकी सोच, उसकी चेतना महज ठिठुरकर ही रह जाते हैं। कहानीकार ने वस्तुतः उसे व्यवस्था दोष का शिकार बताया है। यह व्यवस्था रहते हल्कू इसी प्रकार की दयनीय दशा झेलते रहने को विवश है। जबरे की ठण्डी पीठ अपने ठण्डे पड़े हाथों से सहलाते...

पूस की रात कहानी का सारांश

पूस की रात कहानी का सारांश - Poos ki Raat Kahani ka Saransh पूस की रात कहानी का सारांश -'पूस की रात' कहानी ग्रामीण जीवन से संबंधित है। इस कहानी का नायक हल्कू मामूली किसान है। उसके पास थोड़ी-सी जमीन है, जिस पर खेती करके वह गुजारा करता है लेकिन खेती से जो आय होती है, वह ऋण चुकाने में निकल जाती है। सर्दियों में कंबल खरीदने के लिए उसने मजूरी करके बड़ी मुश्किल से तीन रुपये इकट्ठे किये हैं। लेकिन वह तीन रुपये भी महाजन ले जाता है। उसकी पत्नी मुन्नी इसका बहुत विरोध करती है, किंतु वह भी अंत में लाचार हो जाती है। हल्कू अपनी फसल की देखभाल के लिए खेत पर जाता है, उसके साथ उसका पालतू कुत्ता जबरा है। वही अंधकार और अकेलेपन में उसका साथी है। पौष का महीना है। ठंडी हवा बह रही है। हल्कू के पास चादर के अलावा ओढ़ने को कुछ नहीं है। वह कुत्ते के साथ मन बहलाने की कोशिश करता है, किंतु ठंड से मुक्ति नहीं मिलती। तब वह पास के आम के बगीचे से पत्तियाँ इकट्ठी कर अलाव जलाता है। अलाव की आग से उसका शरीर गरमा जाता है, और उसे राहत मिलती है। आग बुझ जाने पर भी शरीर की गरमाहट से वह चादर ओढ़े बैठा रहता है। उधर खेत में नीलगायें घुस जाती हैं। जबरा उनकी आहट से सावधान हो जाता है। वह उन पर भूँकता है। हल्कू को भी लगता है कि खेत में नीलगायें घुस आई हैं लेकिन वह बैठा रहता है। नीलगायें खेत को चरने लगती हैं, तब भी हल्कू नहीं उठता। एक बार उठता भी है तो ठंड के झोंके से पुनः बैठ जाता है और अंत में चादर तानकर सो जाता है। सुबह उसकी पत्नी उसे जगाती है और बताती है कि सारी फसल नष्ट हो गयी। वह चिंतित होकर यह भी कहती है कि अब मजदूरी करके मालगुजारी भरनी पड़ेगी। 'इस पर हल्कू प्रसन्न होकर कहता है कि रात को ठंड में यहाँ सोना तो न पड़ेगा...

पूस की रात कहानी की मूल संवेदना

पूस की रात कहानी की मूल संवेदना - Poos ki Raat Kahani ki Mool Samvedna पूस की रात कहानी की मूल संवेदना -पूस की रात प्रेमचंद की यथार्थवादी कहानियों में अग्रणी है। 1930 ई. में रचित यह कहानी प्रेमचन्द द्वारा आदर्शोन्मुख यथार्थवाद के रास्ते को छोड़कर यथार्थवादी दृष्टिकोण को अपना लेने की घोषणा करती है। यह उस यात्रा की शुरूआत है जो 1936 में कफन कहानी में चरम यथार्थ पर जाकर पूर्ण होती है। किसान वर्ग प्रेमचन्द की चिंताओं में शीर्ष पर है। पूस की रात कहानी उनकी इसी चिंता का प्रतिनिधित्व करती है। कहानीकार ने इसमें किसान के हृदय की वेदना को कागज के पन्ने पर उतारा है। पूस की रात की मूल समस्या गरीबी की है, बाकी समस्याएँ गरीबी के दुष्चक्र से जुड़ कर ही आई है। जो किसान राष्ट्र के पूरे सामाजिक जीवन का आधार है उसके पास इतनी ताकत भी नहीं है कि पूस की रात की कड़कती सर्दी से बचने के लिए एक कंबल खरीद सके। दूसरी ओर समाज का एक ऐसा वर्ग है जिसके पास साधनों की इतनी अधिकता है कि उन्हें वह खर्च भी नहीं कर पाता है। यही है आवारा पूंजीवाद का चरम विकृत रूप जिसकी वजह से समाज में आर्थिक विषमता की दरार दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अर्थव्यवस्था की इसी फूहड़ता एवं विकृति पर यह मार्मिक कहानी व्यंग्य करती है। प्रेमचंद ने सर्दी को प्रतीक के रूप में इन दोनों वर्गों की तुलना दिखाते हुए समा की कड़वी हकीकत को उकेरा है हल्कू ने घुटनियों को गर्दन में चिपकाते हुए कहा "क्यों जबरा, जाड़ा लगता है? कहता तो था घर में पुआल पर लेट रह तो यहाँ क्या लेने आये थे। अब खाओ ठण्ड, मैं क्या करूं। मैं यहाँ हलुआ, पूरी खाने आ रहा हूँ दौड़े-दौड़े आगे चले आये... कल से मत आना मेरे साथ नहीं तो ठंडे हो जाओगे।... यह खेती का मजा है। और एक भगवान...

पूस की रात : मुंशी प्रेमचंद की कहानी

Table of Contents • • • • महत्वपूर्ण तथ्य: पूस की रात • पूस की रात कहानी यथार्थवादी कहानी है। • प्रेमचंद द्वारा यह कहानी 1930 ई. में लिखी गई। • पूस की रात कहानी प्रेमचंद द्वारा आदर्शान्मुख यथार्थवाद के रास्ते को छोड़ कर यथार्थवादी रास्ते की घोषणा करती है। • इस कहानी में किसान की वेदना को दिखाया गया है। • पूस की रात कहानी में मूल समस्या गरीबी को दिखाया गया है। • हल्कू ने कम्बल खरीदने के लिए कितने रूपये एकत्रित किए थे- 3 रूपये • इस कहानी में आर्थिक विषमता को दिखाया गया है। • इस कहानी का प्रमुख नायक हल्कू है। • ’’न जाने कितनी बाकी है, जो किसी तरह चूकने में ही नहीं आती’’ कथन है- मुन्नी • हल्कू के पालतू कुत्ते का नाम- जबरा • कहानी में सहना कौन है- जमींदार (साहूकार) • ’’रात की ठंड में यहां सोना तो न पड़ेगा’’ कथन है- हल्कू का पूस की रात कहानी के पात्र पूस की रात – मूल कहानी भाग -1 हल्कू ने आकर स्त्री से कहा, ‘सहना आया है, लाओ, जो रुपए रखे हैं, उसे दे दूं, किसी तरह गला तो छूटे।’ मुन्नी झाड़ू लगा रही थी। पीछे फिरकर बोली, ‘तीन ही तो रुपए हैं, दे दोगे तो कम्मल कहां से आवेगा? माघ-पूस की रात हार में कैसे कटेगी? उससे कह दो, फसल पर दे देंगे। अभी नहीं।’ हल्कू एक क्षण अनिश्चित दशा में खड़ा रहा। पूस सिर पर आ गया, कम्मल के बिना हार में रात को वह किसी तरह नहीं जा सकता। मगर सहना मानेगा नहीं, घुड़कियां जमावेगा, गालियां देगा। बला से जाड़ों में मरेंगे, बला तो सिर से टल जाएगी। यह सोचता हुआ वह अपना भारी- भरकम डील लिए हुए (जो उसके नाम को झूठ सिद्ध करता था) स्त्री के समीप आ गया और ख़ुशामद करके बोला, ‘ला दे दे, गला तो छूटे। कम्मल के लिए कोई दूसरा उपाय सोचूंगा।’ मुन्नी उसके पास से दूर हट गई और आंखें तरेर...

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