प्राकृतिक वरण का सिद्धांत किसने दिया

  1. MCQ Questions for Class 10 Science Chapter 9 आनुवंशिकता एवं जैव विकास
  2. प्राकृतिक वरण (Natural Selection) का सिद्धान्त किसने दिया ? / Who gave the principle of Natural Selection?
  3. आनुवंशिकता Question
  4. प्राकृतिक चयन का सिद्धांत किसने दिया
  5. प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत
  6. ‘जीवों की उत्पत्ति’ नामक पुस्तक किसके द्वारा लिखी गई? – Studywhiz
  7. डार्विन के प्राकृतिक चयन सिद्धांत
  8. MP Board Class 12th Biology Solutions Chapter 7 विकास – MP Board Solutions


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MCQ Questions for Class 10 Science Chapter 9 आनुवंशिकता एवं जैव विकास

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प्राकृतिक वरण (Natural Selection) का सिद्धान्त किसने दिया ? / Who gave the principle of Natural Selection?

Answer / उत्तर – चार्ल्स डार्विन / Charles Darwin Charles Darwin Charles Darwin (12 February 1809 – 19 April 1882) propounded the theory of evolution. His research was partly based on the collections of his sea voyage from 1831 to 1836 on the HMS Beagle. Many of these collections are still present in this museum. Darwin was a great scientist - his theory of evolution has become the best medium for understanding the origin and diversity of living things we see today. Communication was the focus of Darwin's research. His most famous book Origin of Species (in Hindi - 'Origin of Species')) The Origin of Species focused on the general readership. Darwin wanted his theory to be spread as widely as possible. Darwin's theory of evolution helps us to understand how different species are related to each other. For example, scientists are trying to understand how species diversity evolved in Lake Baikal, Russia. . / चार्ल्स डार्विन चार्ल्स डार्विन (12 फरवरी, 1809 – 19 अप्रैल 1882) ने क्रमविकास (evolution) के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उनका शोध आंशिक रूप से 1831 से 1836 में एचएमएस बीगल पर उनकी समुद्र यात्रा के संग्रहों पर आधारित था। इनमें से कई संग्रह इस संग्रहालय में अभी भी उपस्थित हैं। डार्विन महान वैज्ञानिक थे - आज जो हम सजीव चीजें देखते हैं, उनकी उत्पत्ति तथा विविधता को समझने के लिए उनका विकास का सिद्धान्त सर्वश्रेष्ठ माध्यम बन चुका है। संचार डार्विन के शोध का केन्द्र-बिन्दु था। उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक जीवजाति का उद्भव (Origin of Species (हिंदी में - 'ऑरिजिन ऑफ स्पीसीज़')...

आनुवंशिकता Question

प्रश्न 4मानवजाति में कितने लिंग गुणसूत्र पाये जाते हैं - (अ)3 (ब)4 (स)1 (द)2 उत्तर SHOW ANSWER प्रश्न 5यूकेरिओटिक जीवों में गुणसूत्रों का उपयुक्त अध्ययन किस अवस्था में किया जा सकता है - (अ)टीलोफेज़ (ब)G1 अवस्था (स)S अवस्था (द)मेटाफेज़ उत्तर SHOW ANSWER प्रश्न 6शब्द ‘संकर ओज’ किसने प्रतिपादित किया - (अ)कॉलरियुटर (1763) (ब)जोन्स (1918) (स)एलार्ड (1960) (द)जी. एच. शल (1914) उत्तर SHOW ANSWER प्रश्न 7ग्रीगर मेंडल ने आनुवांशिक प्रयोग के लिए ____ पादप का प्रयोग किया था। (अ)गौसिपियम हिर्सुटम (ब)पाइसम सैटाइवम (स)ट्रिटीकम एस्टीवम (द)ओराइज़ा सैटाइवा उत्तर SHOW ANSWER प्रश्न 8ग्रेगर मेण्डल ने किस पर कार्य कर अनुवंशिकी के नियम प्रतिपादित किए - (अ)सरसों (ब)समुद्री अर्चिन (स)मटर (द)भृंगों उत्तर SHOW ANSWER प्रश्न 9विषमयुग्मकी सन्तान तथा उसके समयुग्मकी जनक के मध्य संकरण को कहते हैं - (अ)प्रभावी संकरण (ब)पूर्वज संकरण (स)शुद्ध संकरण (द)परीक्षण संकरण उत्तर SHOW ANSWER प्रश्न 10मेन्डल के अनुसार एक द्विसंकर संकरण के द्वितीय संतति पीढ़ी का लक्षणप्रारूप अनुपात होगा - (अ)1:2:1 (ब)9:3:3 :1 (स)15:1 (द)3:1 उत्तर SHOW ANSWER प्रश्न 11विपरीत लक्षणों वाले जीन के जोड़े को कहते हैं - (अ)समयुग्मज (ब)जीन प्रारूप (स)विषमयुग्मज (द)ऐलिल उत्तर SHOW ANSWER प्रश्न 12डी. एन. ए. और आर. एन. ए. के शर्करा अणु में अंतर है – (अ)2-C पर ऑक्सीजन का अभाव (ब)3-C पर ऑक्सीजन की उपस्थिति (स)3-C पर नाइट्रोजन का अभाव (द)2-C पर नाइट्रोजन की उपस्थिति उत्तर SHOW ANSWER प्रश्न 13विपरीत लक्षणों के संकेतक जीनी जोड़े को __ कहा जाता है - (अ)एकल संकर (ब)एलील (स)F₁ पीढ़ी (द)जीनी प्रारूप उत्तर SHOW ANSWER page no.(2/6)

प्राकृतिक चयन का सिद्धांत किसने दिया

जिस प्रक्रिया द्वारा किसी जनसंख्या में कोई जैविक गुण कम या अधिक हो जाता है उसे प्राकृतिक वरण या 'प्राकृतिक चयन' या नेचुरल सेलेक्शन (Natural selection) कहते हैं। यह एक धीमी गति से क्रमशः होने वाली अनयादृच्छिक (नॉन-रैण्डम) प्रक्रिया है। प्राकृतिक वरण ही क्रम-विकास(Evolution) की प्रमुख कार्यविधि है। चार्ल्स डार्विन ने इसकी नींव रखी और इसका प्रचार-प्रसर किया। यह तंत्र विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक प्रजाति को पर्यावरण के लिए अनुकूल बनने मे सहायता करता है। प्राकृतिक चयन का सिद्धांत इसकी व्याख्या कर सकता है कि पर्यावरण किस प्रकार प्रजातियों और जनसंख्या के विकास को प्रभावित करता है ताकि वो सबसे उपयुक्त लक्षणों का चयन कर सकें। यही विकास के सिद्धांत का मूलभूत पहलू है। प्राकृतिक चयन का अर्थ उन गुणों से है जो किसी प्रजाति को बचे रहने और प्रजनन मे सहायता करते हैं और इसकी आवृत्ति पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती रहती है। यह इस तथ्य को और तर्कसंगत बनाता है कि इन लक्षणों के धारकों की सन्ताने अधिक होती हैं और वे यह गुण वंशानुगत रूप से भी ले सकते हैं।

प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • परिचय प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत रोमन कानून के ‘जस नेचुरल’ शब्द से लिया गया है और यह सामान्य कानून और नैतिक सिद्धांतों से निकटता से जुड़ा हुआ है लेकिन संहिताबद्ध नहीं है। यह प्रकृति का एक नियम है जो किसी भी क़ानून या संविधान से उत्पन्न नहीं है। प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन सभ्य राज्य के सभी नागरिकों द्वारा सर्वोच्च महत्व के साथ किया जाता है। निष्पक्ष अभ्यास के प्राचीन दिनों में, उस समय जब औद्योगिक क्षेत्रों ने किराए पर और आग लगाने के लिए कठोर और कठोर कानून के साथ शासन किया, सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यकर्मियों के लिए सामाजिक, न्याय और अर्थव्यवस्था के वैधानिक संरक्षण की अवधि और स्थापना के साथ अपनी कमान दी। प्राकृतिक न्याय का तात्पर्य किसी विशेष मुद्दे पर समझदारी और उचित निर्णय लेने की प्रक्रिया से है। कभी-कभी, यह मायने नहीं रखता है कि उचित निर्णय क्या है, लेकिन अंत में, मायने रखती है उसकी प्रक्रिया और जो सभी उचित निर्णय लेने में लगे हुए हैं वह लोग। यह ‘निष्पक्षता’ की अवधारणा के भीतर प्रतिबंधित नहीं है, इसमें अलग-अलग रंग और रंग हैं जो संदर्भ से अलग हैं। मूल रूप से, प्राकृतिक न्याय में 3 नियम होते हैं। पहला “ हियरिंग रूल ” है जिसमें कहा गया है कि विशेषज्ञ सदस्य के पैनल द्वारा किए गए निर्णय से प्रभावित व्यक्ति या पार्टी को अपनी बात रखने के लिए अपनी बात को व्यक्त करने का उचित अवसर दिया जाना चाहिए। दूसरे, “ बायस नियम ” आम तौर पर व्यक्त करता है कि निर्णय लेते समय विशेषज्ञ का पैनल स्वतंत्र होना चाहिए। निर्णय स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से दिया जाना चाहिए जो प्राकृतिक न्याय के नियम को पूरा कर सकता है। और तीसरा, “ तर्कसंगत निर्णय ” ...

‘जीवों की उत्पत्ति’ नामक पुस्तक किसके द्वारा लिखी गई? – Studywhiz

जैव-विकास की क्रियाविधि एवं नई जातियों के उद्भवन की प्रक्रिया पर अनेक वैज्ञानिकों ने सिद्धान्त प्रस्तुत किए । लेमार्क, डार्विन एवं डीव्रीज़ उनमें प्रमुख थे लेमार्क ने उपार्जित लक्षणों की वंशागति को जैवविकास एवं नई जाति के उद्भव हेतु आधार बनाया। इसकी आलोचना हुई। कुछ आधुनिक वैज्ञानिकों ने लेमार्कवाद को नए रूप में प्रस्तुत कर जीवों पर वातावरण के प्रभाव को प्रदर्शन किया है। इसे नवलेमार्कवाद कहते हैं। डार्विन अपने सिद्धान्त के पक्ष में कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाये। उनके सिद्धान्त की भी पर्याप्त आलोचना हुई किन्तु बाद में आनुवंशिकी के ज्ञान, समष्टियों की आनुवंशिकी, जीन-प्रवाह, विविधता का आनुवंशिक आधार आदि के संदर्भ से प्राकृतिक वरण को पुनः सप्रमाण प्रस्तुत किया गया। उनके इस नए सिद्धान्त को नवडार्विनवाद या सिंथेटिक थ्योरी कहा गया। नवडार्विनवाद के पक्षधरों ने सूक्ष्म जीवों में चरण प्रभाव को दर्शाया। इंग्लैण्ड के औद्योगिक क्षेत्रों में पतंगों पर मेलेनिजम, मच्छरों में कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोध, सिकलसेल एनिमिया जैसे उदाहरण प्राकृतिक वरणवाद के पक्ष में प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत करने के साथ ही जैव-विकास की प्रक्रिया को स्पष्ट करने में सहायक हुए हैं। डार्विन ने प्राकृतिक वरणवाद का विचार मनुष्य द्वारा जन्तुओं एवं पौधों में जनन संबंधी प्रयोग द्वारा किए जाने वाले कृत्रिम वरण को देखकर आया था। वरण नई जातियों की उत्पत्ति के लिए महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। कृत्रिम चयन या वरण से विशिष्ट दिशा में वरण प्रभाव बनता है जिससे जीन एवं एलील फ्रिक्वेंसी में अन्तर आता है जो कि जैव विकास की आवश्यक प्रक्रिया है। इसी से नई ब्रीड, स्ट्रेन्स, किस्में, प्रजाति एवं उपजातियाँ अस्तित्व में आई हैं। डार्विन न...

डार्विन के प्राकृतिक चयन सिद्धांत

जिस प्रक्रिया द्वारा किसी जनसंख्या में कोई जैविक गुण कम या अधिक हो जाता है उसे प्राकृतिक वरण या प्राकृतिक चयन या नेचुरल सेलेक्शन (Natural selection) कहते हैं। यह एक धीमी गति से क्रमशः होने वाली अनयादृच्छिक (नॉन-रैण्डम) प्रक्रिया है। प्राकृतिक वरण ही क्रम-विकास(Evolution) की प्रमुख कार्यविधि है। चार्ल्स डार्विन ने इसकी नींव रखी और इसका प्रचार-प्रसर किया। यह तंत्र विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक प्रजाति को पर्यावरण के लिए अनुकूल बनने मे सहायता करता है। प्राकृतिक चयन का सिद्धांत इसकी व्याख्या कर सकता है कि पर्यावरण किस प्रकार प्रजातियों और जनसंख्या के विकास को प्रभावित करता है ताकि वो सबसे उपयुक्त लक्षणों का चयन कर सकें। यही विकास के सिद्धांत का मूलभूत पहलू है। प्राकृतिक चयन का अर्थ उन गुणों से है जो किसी प्रजाति को बचे रहने और प्रजनन मे सहायता करते हैं और इसकी आवृत्ति पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती रहती है। यह इस तथ्य को और तर्कसंगत बनाता है कि इन लक्षणों के धारकों की सन्ताने अधिक होती हैं और वे यह गुण वंशानुगत रूप से भी ले सकते हैं।

MP Board Class 12th Biology Solutions Chapter 7 विकास – MP Board Solutions

MP Board Class 12th Biology Solutions Chapter 7 विकास विकास NCERT प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. डार्विन के चयन सिद्धांत के परिप्रेक्ष्य में जीवाणुओं में देखे गये प्रतिजैविक प्रतिरोध का स्पष्टीकरण कीजिए। उत्तर डार्विन के चयन सिद्धांत के अनुसार, प्राणी अपने को वातावरण के अनुकूल बनाकर ही जीवित रहते हैं तथा संतान उत्पन्न करते हैं । इसके विपरीत जो जीव अपने को वातावरण के अनुकूल बनाने में असमर्थ हात हे, नष्ट हो जाते हैं। संक्रामक रोगों के उपचार के लिए ऐसी औषधियों का प्रयोग किया जाता है जो रोगजनक जीवाणुओं की वृद्धि रोक दे अथवा उन्हें मार डाले। इन औषधियों में प्रतिजैविकों (Antibiotics) का काफी प्रयोग किया जाता है। पेनिसिलिन, स्ट्रेप्टोमाइसीन, ओरियोमाइसिन आदि कुछ प्रमुख प्रतिजैविकों के उदाहरण हैं। काफी समय तक यह समझा जाता रहा कि प्रतिजैविकों के प्रयोग से रोगजनक जीवाणु इत्यादि पर पूर्णत: नियंत्रण संभव हो गया है, परंतु धीरे-धीरे पता चला कि जो प्रतिजैविक कुछ समय पूर्व किसी रोगजनक पर नियंत्रण कर सकते थे, वे अब निरर्थक हो गये हैं। इन प्रतिजैविकों का रोगजनक जीवाणुओं पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। दूसरे शब्दों में, ये जीवाणु प्रतिजैविकों के लिए प्रतिरोधी हो गये हैं। प्रश्न 2. समाचार पत्रों और लोकप्रिय वैज्ञानिक लेखों से विकास संबंधी नये जीवाश्मों और मतभेदों की जानकारी प्राप्त कीजिए। उत्तर जीवाश्मों (Fossils) के अध्ययन को जीवाश्म विज्ञान कहते हैं। लाखों करोड़ों वर्षों पूर्व के जीव-जंतु एवं पौधों के अवशेष या चिन्ह चट्टानों में दबे हुए हैं, जीवाश्म कहलाते हैं । जीव श्मों के अध्ययन से जीवों के विकासक्रम या जाति वंश (Phylogeny) का ज्ञान होता है। हजारों जीवाश्मों का अध्ययन अब वैज्ञानिकों द्वारा हो चुका...