सांप्रदायिक हरिपाठ

  1. सांप्रदायिकता का अर्थ, कारण, दुष्परिणाम


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सांप्रदायिकता का अर्थ, कारण, दुष्परिणाम

सांप्रदायिकता का अर्थ (sampradayikta kya hai) sampradayikta arth karan dushparinam;सांप्रदायिक से अभिप्राय अपने धार्मिक संप्रदाय से भिन्न अन्य संप्रदाय अथवा संप्रदायों के प्रति उदासीनता, उपेक्षा, दयादृष्टि, घृणा विरोधी व आक्रमण की भावना है, जिसका आधार वह वास्तविक या काल्पनिक भय है कि उत्त संप्रदाय हमारे संप्रदाय को नष्ट कर देने या हमे जान-माल की हानि पहुंचाने के लिए कटिबद्ध है। व्यापक अर्थ मे सांप्रदायिकता एक संकीर्ण मानसिक सोच है जो अपने समूह को श्रेष्ठ मानती है और उसके हितो के संवर्धन के लिये कोशिश करती है। यह धर्म, जाति, भाषा, स्वजातीय या क्षेत्रीय मे से किसी भी आधार पर हो सकती है किन्तु एक निश्चित अर्थ मे सांप्रदायिकता का आधार धर्म है। सांप्रदायिकता वस्तुतः विभिन्न धर्मावलम्बियों मे विद्वेष की भावना है। आधुनिक भारतीय समाज सांप्रदायिकता व जातिवाद के जहर से सर्वाधिक व्याधिग्रस्त है जो वस्तुतः धर्म व जाति के व्युत्पन्न (बाई प्रोजेक्ट है। भारत मे सांप्रदायिकता के कारण (sampradayikta ke karan) सांप्रदायिकता के कारण इस प्रकार है-- 1. ऐतिहासिक कारण इस्लाम धर्म बाहर से भारत मे आया। मुसलमानों ने यहाँ अपना शासन कायम किया। सत्ता और तलवार के जोर पर उन्होंने लोगो से जबर्दस्ती धर्म परिवर्तन करने की प्रक्रिया शुरू की। इसी समय से मुसलमानों के प्रति विरोध की भावना उत्पन्न हुई। औरंगजेब तथा अन्य मुस्लिम शासको ने अनेक हिन्दुओं को जबर्दस्ती मुसलमान बनाया। इससे हिन्दुओं के मन मे मुसलमानों के प्रति घृणा उत्पन्न हुई। बाद मे स्वतंत्रता आन्दोलन के समय मुस्लिम लीग की स्थापना मुसलमानों द्वारा की गई और उनकी मांग के आधार पर धार्मिक दृष्टि से पाकिस्तान के निर्माण की माँग अंग्रेजों ने मानकर देश का वि...