शेफालिका के फूल

  1. शेफालिका (shefalika) के फूल रात में खिलते हैं और सुबह होते ही झड़ जाते हैं (shefalika ke phool)
  2. Flowers Name in Sanskrit
  3. NCERT Solutions For Class 10 Kshitiz II Hindi Chapter 6
  4. प्राजक्ता
  5. ALANKAR IN HINDI
  6. parijat ke fayde
  7. M.P. Board solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 6


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शेफालिका (shefalika) के फूल रात में खिलते हैं और सुबह होते ही झड़ जाते हैं (shefalika ke phool)

Rate this post शेफालिका के फूल, shefalika ke phool, शेफालिका के फूल की क्या विशेषता है, शेफालिका के फूल क्या है, शेफालिका के फूल कैसे होते हैं, शेफालिका (shefalika) एक पुष्प देने वाला वृक्ष है। इसे हरसिंगार, शेफाली, शेफालिक, शिउली, पारिजात या प्राजक्ता आदी नामो से जाना जाता है इसके अलावा शेफालिका (shefalika) को नाईट फ्लावरिंग जैस्मिन या रात की रानी और दुखों का पेड़ भी के नाम से भी जाना जाता है, फूलों के पौधे की एक प्रजाति है जो ओलेसी परिवार से संबंधित है। यह दक्षिण एशिया, विशेष रूप से भारत, नेपाल और बांग्लादेश के मूल निवासी है। पारिजात (shefalika) का वैज्ञानिक नाम Nyctanthes arbor-tristis है, और यह एक छोटा पेड़ या बड़ा झाड़ी है जो 10 मीटर ऊंचाई तक बढ़ सकता है। फूल का समय – रात को उगना और सुबह होते ही गिर जाना (shefalika) पारिजात पारंपरिक चिकित्सा और आयुर्वेद में एक लोकप्रिय पौधा है। पौधे के फूल, पत्ते और छाल में विभिन्न औषधीय गुण होते हैं और इनका उपयोग कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। विशेष रूप से फूलों में एक मीठी सुगंध होती है और इसका उपयोग इत्र, तेल और अन्य सौंदर्य प्रसाधन बनाने के लिए किया जाता है। शेफालिका के फूल कैसे होते हैं (shefalika ke phool kaise hote hain) शेफालिका के फूल (shefalika ke phool) (shefalika ke phool) पारिजात के फूल रात में खिलते हैं और सुबह होते ही झड़ जाते हैं। पौधा छोटे, सफेद, तारे के आकार के फूल पैदा करता है जो लगभग 2.5 सेमी व्यास के होते हैं। फूलों में एक नाजुक सुगंध होती है जो चमेली और बगिया के समान होती है। (shefalika) पारिजात के पत्ते सरल, हरे और चमकदार होते हैं। वे तने के साथ एक विपरीत पैटर्न में व्यवस्थित होते हैं और लगभग 6-12 सेम...

Flowers Name in Sanskrit

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • दोस्तो आज के आर्टिकल में हम फूलों के नाम संस्कृत (Flowers Name in Sanskrit) में सीखेंगे। बहुत से लोग हिंदी या अंग्रेजी में लिखे हुए फूलों के नाम को पढ़ लेते है, तो कभी – कभी हमें संस्कृत में भी फूलों के नाम भी पढने पड़ते है। इसलिए आज के इस आर्टिकल में हम आपके साथ फूलों के नाम को संस्कृत में लेकर आए है। इस आर्टिकल में हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत तीनों भाषाओं में फूलों के नाम दिए गए है। इससे आपको पढ़ने में आसानी हो जाएगी और पता भी चल जाएगा कि किस नाम कौनसे नाम से जाना जाता है। तो चलिए शुरू करते है- फूलों के नाम संस्कृत में – Flowers Name in Sanskrit प्रकृति में हमें सबसे ज्यादा फूल ही अच्छे लगते है। अगर हमें किसी बगीचे में जाना पड़े तो हमें वहां के वातावरण की मनमोहक खुश्बू दिल को सकुन देगी। फूल भी हमें कई रंगों के देखने को मिल जाते है। फूलों को देखते ही हमारा मन खुश हो जाता है। फूल शांति के प्रतीक होते है। अब हम फूलों के नाम चित्र सहित संस्कृत (Flowers Name in Sanskrit) में सीखेंगे… Picture Hindi Name Sanskrit Name अमलतास व्याधिघात कनेर कर्णोरः कन्द पुष्प कन्द पुष्पम् कमल (नीला) इन्‍दीवरम् कमल (लाल) कोकनदम् कमल (श्‍वेत) कैरवम् कमल उत्पलम् कुमुदनी यूथिका कुमुद पद्मिनी केतकी कैतकम् खिला फूल विकचम् गुड़हल चित्रपुष्पी गुढ़ल जपपुशम गुल मेहँदी व्रणरोपिन् गुलबहार मातृ, भृङ्गराज गुलमोहर राज-आभरण गुलाब पाटलम् गेंदा स्‍थलपद्मम् चन्दन श्रीखण्डम् चमेली जातीपुष्पम् चम्पा चम्पकम् छुई-मूई एलापणी पुष्प जुहि यूथिका डेहलिया दालियापुष्प धतूरा धतूर नर्गिस नरगिस पुष्पं नाग चम्पा नागापुश्पा नागकेसर ...

NCERT Solutions For Class 10 Kshitiz II Hindi Chapter 6

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प्राजक्ता

अनुक्रम • 1 परिचय • 2 गुण • 3 उपयोग • 4 सन्दर्भ • 5 इन्हें भी देखें • 6 बाहरी कड़ियाँ परिचय [ ] यह 10 से 15 फीट ऊँचा और कहीं 25-30 फीट ऊँचा एक वृक्ष होता है और पूरे भारत में विशेषतः बाग-बगीचों में लगा हुआ मिलता है। विशेषकर मध्यभारत और हिमालय की नीची तराइयों में ज्यादातर पैदा होता है। इसके फूल बहुत सुगंधित, सफेद और सुन्दर होते हैं। इसके पुष्प सूर्यास्त के एक घण्टे बाद खिलते हैं और सुबह सूर्योदय होने तक मुरझा कर गिर जाते हैं। विभिन्न भाषाओं में नाम: गुण [ ] यह हलका, रूखा, तिक्त, कटु, गर्म, वात-कफनाशक, ज्वार नाशक, मृदु विरेचक, शामक, उष्णीय और रक्तशोधक होता है। सायटिका रोग को दूर करने का इसमें विशेष गुण है। रासायनिक संघटन: इसके फूलों में सुगंधित तेल होता है। रंगीन पुष्प नलिका में निक्टैन्थीन नामक रंग द्रव्य ग्लूकोसाइड के रूप में 0.1% होता है जो केसर में स्थित ए-क्रोसेटिन के सदृश्य होता है। बीज मज्जा से 12-16% पीले भूरे रंग का स्थिर तेल निकलता है। पत्तों में टैनिक एसिड, मेथिलसेलिसिलेट, एक ग्लाइकोसाइड (1%), मैनिटाल (1.3%), एक राल (1.2%), कुछ उड़नशील तेल, विटामिन सी और ए पाया जाता है। छाल में एक ग्लाइकोसाइड और दो क्षाराभ होते हैं। उपयोग [ ] हरसिंगार की पत्तियाँ व टहनी इस वृक्ष के पत्ते और छाल विशेष रूप से उपयोगी होते हैं। इसके पत्तों का सबसे अच्छा उपयोग विधि: हरसिंगार के ढाई सौ ग्राम पत्ते साफ करके एक लीटर पानी में उबालें। जब पानी लगभग 700 मिली बचे तब उतारकर ठण्डा करके छान लें, पत्ते फेंक दें और 1-2 रत्ती केसर घोंटकर इस पानी में घोल दें। इस पानी को दो बड़ी बोतलों में भरकर रोज सुबह-शाम एक कप मात्रा में इसे पिएँ। ऐसी चार बोतलें पीने तक सायटिका रोग जड़ से चला जाता है। किसी-किसी को ज...

ALANKAR IN HINDI

अलंकार का शाब्दिक अर्थ है – आभूषण या गहना । काव्य की शोभा को बढ़ाने वाले साधन अलंकार “ Alankar” कहलाते हैं। जिस प्रकार आभूषणों से शरीर की शोभा में वृद्धि हो जाती है, उसी प्रकार अलंकारों से वाक्य की शोभा बढ़ जाती है। काव्य के शरीर शब्द और प्राण अर्थ है । जो स्थान, गुणवान और सुन्दर शरीर वाले मनुष्य के शरीर पर आभूषणों का है। वही काव्य के शरीर में शब्द और अर्थों में अलंकार “ Alankar” का है। काव्य में अलंकारों का प्रयोग स्वाभाविक रूप में होना चाहिए। ALANKAR KE KITNE BHED HOTE HAIN | अलंकार के कितने भेद होते हैं ? अलंकार के दो प्रमुख भेद हैं- (1) शब्दालंकार “shabdalankar” – काव्य में जहां शब्दों द्वारा चमत्कार उत्पन्न होता है, वहीं शब्दालंकार होता हैं। जैसे- “संसार की समर – स्थली में धीरता धारण करें ।” यहाँ आप देख रहे है कि शब्दों की पुनरावृति तो नहीं, पर शब्दों के पहले अक्षरों की पुनरावृति हुई है, जिससे वाक्यांश अलंकृत हो गया है। • शब्दालंकार के मुख्यतः तीन भेद देखे जाते हैं – अनुप्रास, यमक और श्लेष अलंकार । (2) अर्थालंकार “arthalankar”– काव्य में प्रयुक्त पदों में जहाँ अर्थ से सौंदर्य प्रकट हो , इसी को अर्थालंकार कहा जाता है। जैसे – “काली घटा का घमंड घटा ।” उपर्युक्त में इस काव्यांश में “घटा” शब्द पर जोर दिया गया है और घटा शब्द का अलग – अलग अर्थो में प्रयोग किया गया है और यही कारण है यह काव्यांश अर्थालंकार से अलंकृत हो रहा है। यहाँ आप देख रहे है कि शब्दों की पुनरावृति है , पर शब्दों के अर्थ भिन्न है , और यह वाक्यांश को अलंकृत कर रहा है। अर्थालंकार के मुख्यतः छ भेद देखे जाते हैं – • उपमा अलंकार • रूपक अलंकार • उत्प्रेक्षा अलंकार • मानवीकरण अलंकार • अतिशयोक्ति अलंकार • अन्योक्ति...

parijat ke fayde

1. चिरयौवन : पौराणिक मान्यता अनुसार पारिजात के वृक्ष को स्वर्ग से लाकर धरती पर लगाया गया था। नरकासुर के वध के पश्चात एक बार श्रीकृष्ण स्वर्ग गए और वहां इन्द्र ने उन्हें पारिजात का पुष्प भेंट किया। वह पुष्प श्रीकृष्ण ने देवी रुक्मिणी को दे दिया। देवी सत्यभामा को देवलोक से देवमाता अदिति ने चिरयौवन का आशीर्वाद दिया था। तभी नारदजी आए और सत्यभामा को पारिजात पुष्प के बारे में बताया कि उस पुष्प के प्रभाव से देवी रुक्मिणी भी चिरयौवन हो गई हैं। यह जान सत्यभामा क्रोधित हो गईं और श्रीकृष्ण से पारिजात वृक्ष लेने की जिद्द करने लगी। कहते हैं कि पारिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी जिसे इंद्र ने अपनी वाटिका में रोप दिया था। 4.शांति और समृद्धि लाता : हरिवंश पुराण में इस वृक्ष और फूलों का विस्तार से वर्णन मिलता है। इन फूलों को खासतौर पर लक्ष्मी पूजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन केवल वही फूलों को इस्तेमाल किया जाता है जो अपने आप पेड़ से टूटकर नीचे गिर जाते हैं। यह फूल जिसके भी घर आंगन में खिलते हैं वहां हमेशा शांति और समृद्धि का निवास होता है।

M.P. Board solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 6

M.P. Board solutions for Class 10 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 2 – काव्य खंड क्षितिज काव्य खंड Chapter 6 – यह दंतुरहित मुस्कान और फसल पाठ 6 – यह दंतुरहित मुस्कान और फसल – नागार्जुन कठिन शब्दार्थ दंतुरित = बच्चों के नए-नए दाँत। मृतक = मरा हुआ। लोग इसे पंचामृत कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग बच्चे को धूलि-धूसर गात = धूल मिट्टी से सने अंग-प्रत्यंग। जलजात = | जीवन देने वाला आत्मीयता की मिठास से युक्त माँ के प्यार के कमल का फूल। परस = स्पर्श । पाषाण = पत्थर। शेफालिका रूप में हुआ है। कनखी = तिरछी निगाह से देखा। छविमान = एक वृक्ष का नाम। अनिमेष = बिना पलक झपकाए लगातार = सुंदर। कोटि-कोटि = करोड़-करोड़। गरिमा = प्रभाव, देखना। इतर = दूसरा। प्रवासी = किसी दूसरे स्थान से आकर महिमा। गुण-धर्म = किसी वस्तु की विशेषताएँ एवं स्वभाव। रुकने वाला व्यक्ति। मधुपर्क = दही, घी, शहद, जल और दूध रूपान्तर = परिवर्तन। संकोच = छोटा रूप। हवा की थिरकन + का योग जो देवता और अतिथि के सामने रखा जाता है। आम = हवा का धीरे-धीरे चलना। यह दंतुरित मुसकान (1) तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान मृतक में भी डाल देगी जान धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात…. छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात परस पाकर तुम्हारा ही प्राण, पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल? तुम मुझे पाए नहीं पहचान ? देखते ही रहोगे अनिमेष! थक गए हो? आँख लूँ मैं फेर ? सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-2 में संकलित कविता ‘यह दंतुरित मुसकान’ से ली गयी हैं। इनके रचनाकार कवि ‘नागार्जुन’ हैं। प्रसंग – इसमें कवि ने एक छोटे बच्चे की मनोहारी मुस्कान को देखकर मन में उठने वाले भावों को अनेक ...