Surdas rachit pratham pad ka bhavarth apne shabdon mein likhen

  1. Surdas Ke Pad Class 10 Explanation : सूरदास के पद
  2. सूरदास जी की रचनाएं
  3. सूरदास के पद की व्याख्या व भावार्थ, प्रश्नोत्तर और अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न कक्षा
  4. पद
  5. सूरदास का जीवन परिचय


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Surdas Ke Pad Class 10 Explanation : सूरदास के पद

Surdas Ke Pad Class 10 Explanation , Surdas Ke Pad Class 10 Explanation Hindi Kshitij , सूरदास के पद कक्षा 10 का भावार्थ हिन्दी क्षितिज , सूरदास के पद का भावार्थ Surdas Ke Pad Class 10 Explanation Note –“सूरदास के पद” कविता के प्रश्नों के उत्तर देखने के लिए में Click कीजिए। “सूरदास के पदों” का भावार्थ हमारे YouTube channel में देखने के लिए इस Link में Click कीजिए ।– यहां सूरदास के “सूरसागर के भ्रमरगीत” से चार पद लिए गए हैं। कृष्ण ने मथुरा जाने के बाद स्वयं न लौटकर उद्धव के जरिए गोपियों को सन्देश भेजा था। उद्धव ने निर्गुण ब्रह्म और योग का उपदेश देकर गोपियों की विरह वेदना को शांत करने का प्रयास किया । लेकिन गोपियाँ ज्ञान मार्ग के बजाय प्रेम मार्ग को पसंद करती थी। इसी कारण उन्हें उद्धव का यह संदेश पसंद नहीं आया और वो उद्धव पर तरह – तरह के व्यंग बाण छोड़ने लगी। Surdas Ke Pad Class 10 पद 1 . ऊधौ , तुम हौ अति बड़भागी। अपरस रहत सनेह तगा तैं , नाहिन मन अनुरागी। पुरइनि पात रहत जल भीतर , ता रस देह न दागी। ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि , बूँद न ताकौं लागी। प्रीति नदी मैं पाउँ न बोरयौ , दृष्टि न रूप परागी। ‘सूरदास’ अबला हम भोरी , गुर चाँटी ज्यौं पागी । अर्थ – उपरोक्त पंक्तियों व्यंगात्म्क हैं जिसमें गोपियाँ श्री कृष्ण के परम् सखा उद्धव से अपने मन की व्यथा को व्यंग रूप में कह रही हैं। गोपियाँ उद्धव पर व्यंग करते हुए कह रही हैं कि.. हे !! उद्धव तुम बड़े ही भाग्यशाली हो क्योंकि तुम कृष्ण के इतने निकट रहते हुए भी उनके प्रेम के बंधन में नहीं बँधे हो। तुम्हें कृष्ण से जरा सा भी मोह नहीं है और तुम अभी तक उनके प्रेम रस से भी अछूते हो। अगर तुम कभी कृष्ण के स्नेह के धागे से बंधे होते तो , तुम हमारी ...

सूरदास जी की रचनाएं

सूरदास जी भक्ति काल के सगुण धारा के सर्वश्रेष्ठ कवि थे। सूरदास जी की रचनाओं को जो भी पढ़ता है, श्री कृष्ण की भक्ति में डूबे बिना नहीं रह पाता है। सूरदास जी ने अपनी कृतियों में श्री नाथ जी के अद्भुत एवं सुंदर स्वरुपों का वात्सल्य, श्रंगार और शांत रस में अतिसुंदर वर्णन किया है। इसके साथ ही उन्होंने अपनी कृतियों श्री कृष्ण की लीलाओं और उनकी महिमा का दिल को छू जाने वाला मार्मिक वर्णन किया है। सूरदास जी की रचनाएं – Surdas Ki Rachnaye सूरदास जी ने ब्रज भाषा का इस्तेमाल कर अपनी रचनाओं में भगवान श्री कृष्ण के हर स्वरुप का इतनी सजीवता से वर्णन किया है कि मानो कवि ने अपनी आंखों से नटखट कान्हा को देखा हो। सूरदास जी की रचनाओं में नंदकिशोर का ऐसा वर्णन उनके अंधेपन पर भी संदेह करता है। सूरदास जी एक महान कवि ही नहीं बल्कि एक अ्च्छे संत एवं महान संगीतकार भी थे। वे अपने नाम की तरह ही सूर के दास ही थे, जिनके प्रेरणात्मक जीवन में कृष्ण की भक्ति और संगीत का सुर था। सूरदास का मानना था कि, श्री कृष्ण की भक्ति और उनके प्रति सच्ची आस्था ही किसी भी व्यक्ति को मोक्ष दिलवा सकती है। वहीं सूरदास जी ने अपनी विलक्षण प्रतिभा का प्रभाव इसके अलावा फिलहाल भगवान की महिमा का ऐसा वर्णन सूरदास की तरह कोई सच्चा एवं विद्धंत भक्त ही कर सकता है। अष्टछाप के कवियों में सर्वश्रेष्ठ सूरदास जी द्धारा रचित 5 प्रमुख ग्रंथ है। जिसमें ने उनके सूरसागर, साहित्य-लहरी और सूर सारावली के प्रमाण मिलते हैं। जबकि ब्याहलो एवं नल-दमयन्ती का कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं मिला है। वहीं नागरी प्रचारिणी सभा की ओर से प्रकाशित हस्तलिखित किताबों की विवरण सूची में महान कवि सूरदास जी के करीब 16 ग्रन्थों का ही वर्णन किया गया है। सूरदास जी की मशहूर कृ...

सूरदास के पद की व्याख्या व भावार्थ, प्रश्नोत्तर और अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न कक्षा

सूरदास के पद की व्याख्या –सूरदास के पद में गोपियां उधव को संबोधित करते हुए कहती हैं कि हे उधव तुम वास्तव में बहुत भाग्यशाली हो जो प्रेम के बंधन से दूर रहे। तुम्हारा मन किसी के प्रेम में अनुरक्त नहीं है। किसी के प्रति तुम्हारे मन में प्रेम भावना भी जागृत नहीं होती, जिस प्रकार कमल के फूल की पत्तियां जल के पास होते हुए भी उससे ऊपर रहती हैं और जल की एक भी बूंद उन पर नहीं ठहरती और जिस प्रकार तेल की मटकी को जल में भिगोने पर उसके ऊपर जल की एक भी बूंद नहीं ठहरती उसी प्रकार तुम्हारे ऊपर भी कृष्ण के रूपाकर्षण और सौन्दर्य का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। वास्तविकता यह है कि आज तक तुम प्रेम रूपी नदी में उतरे ही नहीं हो, इसलिए न तो तुम प्रेम पारखी हो और न ही प्रेम की भावना जानने वाले हो। सूरदास जी बताते हैं कि वे गोपियां उधव को कहती है कि हम तो भोली-भाली ग्रामीण अबलाएं हैं और हम श्रीकृष्ण के रूप सौंदर्य में इस प्रकार खो गए हैं कि अब उनस विमुख नहीं हो सकती। हमारी स्थिति उन चीटियों के समान है जो गुड़ के प्रति आकर्षित होकर उस से चिपट तो जाती है किंतु बाद में स्वयं को न छुड़ा पाने के कारण वही अपने प्राण त्याग देती है। सूरदास के पद की व्याख्या – हे उधव कृष्ण से मिलन की अभिलाषा हमारे मन में ही रह गई। हमें यह आशा थी कि शीघ्र ही कृष्ण के दर्शन हो जाएंगे हम चाहती थी कि जिन बातों को न कहना पड़े, उन बातों को अब हम किससे कहें हम अपने मन की बातें केवल कृष्ण को बताना चाहती थी लेकिन उनके न आने पर अब हम किसके सामने अपनी इच्छाएं व्यक्त करें। हर पल कृष्ण के आने की उम्मीद बनी हुई थी इसलिए शरीर और मन हर प्रकार की व्यथा को सहन कर रही थी। हमारा समय इसी आशा के सहारे व्यतीत हो रहा था कि कृष्ण से भेंट होगी, अब तुम्ह...

पद

अर्थ - इन पंक्तियों में गोपियाँ उद्धव से व्यंग्य करती हैं,कहती हैं कि तुम बहुत ही भाग्यशाली हो जोकृष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम और स्नेह से वंचितहो। तुम कमल के उसपत्ते के समान हो जो रहता तो जल में है परन्तु जल में डूबने से बचा रहता है। जिस प्रकार तेल की गगरी को जल में भिगोने पर भीउसपरपानी की एक भी बूँद नहीं ठहर पाती,ठीक उसी प्रकार तुमश्री कृष्ण रूपी प्रेम की नदी के साथ रहते हुए भी उसमें स्नान करने की बात तो दूर तुमपर तो श्रीकृष्ण प्रेम की एक छींट भी नहीं पड़ी। तुमने कभी प्रीति रूपी नदी में पैर नही डुबोए। तुम बहुत विद्यवान हो इसलिए कृष्ण के प्रेम में नही रंगे परन्तु हम भोली-भाली गोपिकाएँ हैं इसलिए हम उनके प्रति ठीक उस तरह आकर्षितहैं जैसे चीटियाँ गुड़ के प्रति आकर्षित होती हैं। हमें उनके प्रेम में लीन हैं। अर्थ - इन पंक्तियों में गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि उनकी मन की बात मन में ही रह गयी। वे कृष्ण से बहुत कुछ कहना चाहती थीं परन्तु अब वे नही कह पाएंगी। वे उद्धव को अपने सन्देश देने का उचित पात्र नही समझती हैं और कहती हैं कि उन्हें बातेंसिर्फ कृष्ण से कहनी हैं, किसी और को कहकर संदेश नहीं भेज सकती। वे कहतीं हैं किइतने समय से कृष्ण केलौट कर आने की आशा को हमआधार मान कर तन मन, हर प्रकार से विरह की ये व्यथा सह रहींथीं ये सोचकर कि वे आएँगे तो हमारे सारे दुख दूर हो जाएँगे। परन्तु श्री कृष्ण ने हमारे लिए ज्ञान-योग का संदेश भेजकर हमें और भी दुखी कर दिया। हमविरह की आग मे और भी जलने लगीं हैं। ऐसे समय में कोई अपने रक्षक को पुकारता है परन्तु हमारे जो रक्षक हैं वहीं आज हमारे दुःख का कारण हैं। हे उद्धव, अब हम धीरज क्यूँ धरें, कैसे धरें. जब हमारी आशा का एकमात्र तिनका भी डूब गया। प्रेम की मर्य...

सूरदास का जीवन परिचय

जिन्हें माना जाता है वात्सल्य रस का सम्राट ..जानिए विस्तार से सूरदास जी के जन्म से लेकर मृत्यु तक के बारे में। 15 वीं सदी को अपनी रचनाओं से प्रभावित करने वाले कवि, महान् संगीतकार और संत थे सूरदास जी। सूरदास सिर्फ एक सदी को ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व को अपने काव्य से रोशन किया है। सूरदास जी की रचना की प्रशंसा करते हुए डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि काव्य गुणों की विशाल वनस्थली में सूरदास जी का एक अपना सहज सौन्दर्य है। सूरदास जी उस रमणीय उद्यान के समान नहीं जिनका सौन्दर्य पद पद पर माली के कृतित्व की याद दिलाता हो। बल्कि उस अकृत्रिम वन भूमि की तरह है, जिसका रचयिता स्वंय रचना में घुलमिल गया हो। यह भी पढ़ें – Table of Contents • • • • • • • • • • • • • सूरदास जी का संक्षिप्त जीवन परिचय [Surdas Ka Sankshipt Jeevan Parichay] सूरदास जी संबंधित तथ्य जन्म तिथि: 1478 मृत्यु: 1583 जन्म-स्थान : रुनकता ग्राम मृत्यु का स्थान: ब्रज पिता: पंडित रामदास माता: जमुनादास गुरु :आचार्य बल्लभाचार्य सूरदास जीवनी – Biography of Surdas in Hindi Jivani सूरदास कौन थे- वात्सल्य रस के सम्राट महाकवि सूरदास का जन्म 1478 ईसवी में रुनकता नामक गांव में हुआ था। हालांकि कुछ लोग सीही को सूरदास की जन्मस्थली मानते है। इनके पिता का नाम पण्डित रामदास सारस्वत ब्राह्मण थे और इनकी माता का नाम जमुनादास था। सूरदास जी को पुराणों और उपनिषदों का विशेष ज्ञान था। सूरदास जी अंधे थे- सूरदास जी जन्म से अंधे थे या नहीं। इस बारे में कोई प्रमाणित सबूत नहीं है। लेकिन माना जाता है कि श्री कृष्ण बाल मनोवृत्तियों और मानव स्वभाव का जैसा वर्णन सूरदास जी ने किया था। ऐसा कोई जन्म से अंधा व्यक्ति कभी कर ही नहीं सकता। इसलिए माना जात...