तारा रानी की संपूर्ण कथा

  1. महारानी तारा
  2. तारा रानी की कहानी / Tara Rani ki kahani
  3. Tara Rani Ki Katha In Hindi मां तारा रानी का इतिहास
  4. Tara Rani ki Katha in hindi
  5. तारा रानी की कथा → जनपत्र.इन


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महारानी तारा

माता के जगराते में महारानी तारादेवी की कथा कहने सुनने की परम्परा प्राचीन काल से ही चली आती है। बिना इस कथा के जागरण को सम्पूर्ण नहीं माना जाता। यद्यपि पुराणों या ऐतिहासिक पुस्तकों में इसका कोई उल्लेख नहीं है, तथापि माता के प्रत्येक जागरण में इसको सम्मिलित करने का परम्परागत विधान है। कथा इस प्रकार है- मातारानी एकादशी के दिन एक बार भूल से छोटी बहिन रुक्मन ने मांसाहार कर लिया। जब तारा देवी को पता लगा तो उसे रुक्मन पर बड़ा क्रोध आया और बोली-तू है तो मेरी बहिन, परन्तु मनुष्य देही पाकर भी तूने नीच योनी के प्राणी जैसा कर्म किया है, तू तो छिपकली बनने योग्य है। बड़ी बहन के मुख से निकले शब्दों को रुक्मन ने शिरोधार्य कर लिया और साथ ही प्रायश्चित का उपाय पूछा। तारा ने कहा-त्याग एवं परोपकार से सब पाप छूट जाते हैं। द्वापर युग में जब पाँचों पाण्डवों ने अश्वमेध यज्ञ किया तब- उन्होंने दूत भेजकर दुर्वासा ऋषि सहित तेंतीस करोड़ देवताओं को निमन्त्रण दिया। जब दूत दुर्वासा ऋषि के स्थान पर निमन्त्रण लेकर गया तो दुर्वासा ऋषि बोले-यदि तैंतीस करोड़ देवता उस यज्ञ में भाग लेंगे तो मैं उसमें सम्मिलित नहीं हो सकता।। दूत तेंतीस करोड़ देवताओं को निमन्त्रण देकर वापिस पहुंचा और दुर्वासा ऋषि का वृतांत पाण्डवों को कह सुनाया कि वह सब देवताओं को बुलाने पर नहीं आयेंगे। यज्ञ प्रारम्भ हुआ। तैंतीस करोड़ देवता यज्ञ में भाग लेने आए। उन्होंने दुर्वाषा ऋषि जी को न देखकर पांडवों से पूछा कि ऋषि को क्यों नहीं बुलाया। इस पर पांडवों ने नम्रता सहित उत्तर दिया कि निमन्त्रण भेजा था, परंतु वे अहंकार के कारण। नहीं आये। यज्ञ में पूजन-हवन आदि निर्विन समाप्त हुए। भोजन के लिए भण्डारे की तैयारी होने लगी। दर्वाषा ऋषि ने जब देखा कि पाण...

तारा रानी की कहानी / Tara Rani ki kahani

Tara Rani ki kahani राजा स्पर्श माता भगवती के पुजारी थे, दिन रात माता की पूजा और ध्यान करते रहते थे। माता ने भी उन्हें राजपाट , धन-दौलत , ऐशो-आराम के सभी साधन दिया था परंतु फिर भी एक कमी थी। राजा को कोई संतान न थी। यही दुख उन्हें हमेशा सताता रहता था। वे माता से हरदम प्रार्थना करते कि मां मुझे आपने सब कुछ दिया है बस एक संतान दे दे तो मेरा जीवन पूर्ण हो जाएगा। मेरे वंश को आगे बढ़ाने वाला एक पुत्र मुझे दे दो। एक दिन माता भगवती ने उनकी प्रार्थना सुन ली और उन्हें सपने में आकर दर्शन दिया। उन्होंने कहा वत्स मै तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ और तुझे यह वरदान देती हूँ कि जल्दी ही तुम्हारे घर में दो कन्याएं जन्म लेंगी। कुछ समय पश्चात राजा के घर में एक कन्या का जन्म हुआ । राजा ने अपने दरबारियों , पंडितो एवं ज्योतिषियों को बुलाया और बच्ची की जन्म कुंडली तैयार करने का आदेश दिया। पंडित तथा ज्योतिषियों ने कन्या की कुंडली तैयार की और तत्पश्चात सभी ने आकर राजा को बताया कि राजन् यह कन्या तो साक्षात देवी है। यह कन्या जहां भी कदम रखेगी वहां खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी। यह कन्या भी माता भगवती की पुजारी होगी। राजा ने अपनी कन्या का नाम तारा रखा। थोड़े समय पश्चात माता रानी के वरदान स्वरुप एक और कन्या का जन्म हुआ । ज्योतिषियों ने इस कन्या की कुंडली बनाई तो वे उदास हो गए और राजा से कहा कि यह कन्या आपके लिए शुभ नहीं है। राजा ने पंडितों और ज्योतिषियों से पूछा कि मैंने कौन से बुरे कर्म किया था जो इस कन्या ने मेरे घर में जन्म लिया। ज्योतिषियों ने अपनी विद्या से यह पता लगाया और राजा को बताया कि यह दोनों कन्याएं जिन्होंने आपके घर में जन्म लिया है , वे पिछले जन्म में राजा इन्द्र की अप्सराएँ थी। दोनों को ...

Tara Rani Ki Katha In Hindi मां तारा रानी का इतिहास

Table of Contents • • • • तारा रानी की कथा Tara Rani Ki Katha In Hindi जिसके कारण उनके शरीर में काफी जलन और कई तकलीफें हो रही थीं तो ऐसे में मां काली के दूसरे स्वरूप तारा देवी ने भगवान शंकर को स्तनपान कराया था। तब जाकर विष की जलन शांत हुई थी।(मां तारा रानी(Tara Rani Ki Katha In Hindi) मां तारा रानी का इतिहास ( मां भगवती को मानने वालों में से राजा स्पर्श भी थे।जो दिन-रात उनकी पूजा-अर्चना में लीन रहा करते थे। राजा के यहां किसी चीज की कमी नहीं थी। उन्हें बच्चे की ख्वाहिश थी।ओर कई सालों से बच्चा न होने के कारण राजा बहुत निराश रहा करते थे। एक दिन उस राजा की भक्ति से खुश होकर मां भगवती जी ने सपने में आकर उनको दो बेटी होने का वरदान दिया। फिर आशीर्वाद मिलने के बाद राजा के घर एक बेटी पैदा हुई।ओर बेटी पैदा होने की खुशी में राजा ने सबको दावत दी और अपनी बेटी की कुंडली बनवाने के लिए पंडितों को बुलवाया। Tara Rani Ki वहां आई सभी ने राजा से एक ही बात कही कि यह साक्षत देवी मां का रूप है। ओर जहां भी इस कन्‍या के कदम पड़ेंगे वहां खुशियां ही खुशियां होंगीं। यह भगवती देवी की भक्तन होगी।यह सब कहकर सभी पंडितों ने लड़की का नाम तारा रख दिया। थोड़े समय के बाद मंगलवार के दिन राजा के घर दुसरी बेटी पैदा हुई। ओर ज्योतिषों ने उसकी भी कुंडली बनाई परतुं उदास हो गए। जब राजा ने उनसे उदासी का कारण पूछा, तो ज्योतिषों ने कहा कि यह लड़की आपके जीवन में खूब सारा दुख लेकर आएगी। ओर राजा ने ज्योतिषों से पूछा कि आखिर मैंने क्या कर्म किए थे कि इसने मेरे घर जन्म लिया है। तब ज्योतिषों ने उन्हे बताया कि आपकी दोनों बेटियां राजा इंद्र की अप्सराएं थीं।ओर इनमें से बड़ी बहन का नाम तारा और छोटी का रुक्मन था। ये दोनों एक दिन धर...

Tara Rani ki Katha in hindi

Tara Rani ki Katha in hindi- महाराजा दक्ष की दो पुत्रियां तारा देवी और रुक्मण भगवती दुर्गा देवी की भक्ति में अटूट विश्वास रखती थी दोनों बहने नियम पूर्वक एकादशी का व्रत किया करती थी और माता के जागरण में एक साथ दोनों भजन और कीर्तन सुना करती थी|एकादशी के दिन एक बार भूल से छोटी बहन रुक्मण ने मांस खा लिया जब तारा देवी को पता लगा तो उन्हें रुक्मण पर बड़ा क्रोध आया और वह बोली कि तू है तो मेरी बहन परंतु मनुष्य देह पाकर भी तूने नीच योनि के प्राणी जैसा कर्म किया है तू तो छिपकली बनने योग्य है|बड़ी बहन के मुख से निकले शब्दों को रुक्मण ने स्वीकार कर लिया और साथ ही प्रायचित का उपाय पूछा तारा ने कहा त्याग और परोपकार से सब पाप छूट जाते हैं| दूसरे जन्म में तारा देवी इंद्रलोक की अप्सरा बनी और छोटी बहन रुक्मण छिपकली की योनि में प्रायचित का अवसर ढूंढने लगी द्वापर युग में जब पांचों पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ किया था|तब उन्होंने दूत भेजकर दुर्वासा ऋषि सहित तेंतीस करोड़ देवी देवताओं को निमंत्रण दिया था|जब दूत दुर्वासा ऋषि के आंगन में निमंत्रण लेकर गया तो दुर्वासा ऋषि बोले यदि तेंतीस करोड़ देवी देवता उस यज्ञ में भाग लेंगे तो मैं उस में सम्मिलित नहीं हो सकता|दूत तेंतीस करोड़ देवी देवताओं को निमंत्रण देकर वापस पहुंचा और दुर्वासा ऋषि का सारा वेदांत पांडवों को सुनाया कि वह सभी देवताओं को यज्ञ में बुलाने पर हमारे यज्ञ में नहीं आएंगे| जब यज्ञ शुरू हुआ तो तेंतीस करोड़ देवी देवता यज्ञ में भाग लेने आए पर दुर्वासा ऋषि को यज्ञ में ना देखकर पांडवों ने पूछा की ऋषिवर को क्यों नहीं बुलाया|इस पर पांडवों ने नम्रता पूर्वक उत्तर दिया कि उन्हें निमंत्रण भेजा था पर वह अहंकार के कारण नहीं आए यज्ञ में पूजन हवन आदि समाप्त ह...

तारा रानी की कथा → जनपत्र.इन

मातारानी के जागरण में महारानी तारा देवी की कथा कहने व सुनने की परम्‍परा प्राचीन काल से चली आई है। बिना इस कथा के जागरण को सम्‍पूर्ण नहीं माना जाता है, यद्यपि पुराणों या ऐतिहासिक पुस्‍तकों में कोई उल्‍लेख नहीं है – तथापि माता के प्रत्‍येक जागरण में इसको सम्मिलित करने का परम्‍परागत विधान है, कथा इस प्रकार है,,,,, राजा स्‍पर्श माँ भगवती के पुजारी थे और रात-दिन महामाई की पूजा किया करते थे। माँ ने भी उन्हें राजपाट, धन-दौलत, ऐशो-आराम के सभी साधन दिये थे, कमी थी तो सिर्फ यह कि उनके घर में कोई संतान नही थी। यह गम उन्हें दिन-रात सताता था। वो माँ से यही प्रार्थना करते थे कि माँ उन्हें एक लाल बख्‍श दें, ताकि वे भी संतान का सुख भोग सकें। उनके पीछे भी उनका नाम लेने वाला हो, उनका वंश चलता रहे। माँ ने उसकी पुकार सुन ली। एक दिन माँ ने आकर राजा को स्‍वप्‍न में दर्शन दिये और कहा कि वे उसकी तेरी भक्ति से बहुत प्रसन्‍न हैं। उन्होंने राजा को दो पुत्रियाँ प्राप्त होने का वरदान दिया। कुछ समय के बाद राजा के घर में एक कन्‍या ने जन्‍म लिया, राजा ने अपने राज दरबारियों को बुलाया, पण्डितों व ज्‍योतिषों को बुलाया और बच्‍ची की जन्‍म कुण्‍डली तैयार करने का आदेश दिया।पण्डित तथा ज्‍योतिषियों ने उस बच्‍ची की जन्‍म कुण्‍डली तैयार की और कहा कि वो कन्‍या तो साक्षात देवी है। यह कन्‍या जहाँ भी कदम रखेगी, वहाँ खुशियां ही खुशियां होंगी। कन्‍या भी भगवती की पुजारिन होगी। उस कन्‍या का नाम तारा रखा गया। थोड़े समय बाद राजा के घर वरदान के अनुसार एक और कन्‍या ने जन्‍म लिया। मंगलवार का दिन था। पण्डितों और ज्‍योतिषियों ने जब जन्‍म कुण्‍डली तैयार की तो उदास हो गये। राजा ने उदासी का कारण पूछा तो वे कहने लगे की वह कन्‍या राजा...