तराइन का प्रथम युद्ध किस किसके बीच हुआ

  1. तराइन का प्रथम युद्ध किस किसके बीच हुआ
  2. तराइन का द्वितीय युद्ध कब और किसके बीच हुआ था second battle of tarain fought between in hindi
  3. तराइन का प्रथम एवं द्वितीय युद्ध कब लङा गया
  4. तराइन का प्रथम युद्ध किस
  5. तराइन का प्रथम युद्ध कब हुआ था ?
  6. तराइन का प्रथम युद्ध कब हुआ था ?
  7. तराइन का द्वितीय युद्ध कब और किसके बीच हुआ था second battle of tarain fought between in hindi
  8. तराइन का प्रथम युद्ध किस
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  10. तराइन का प्रथम एवं द्वितीय युद्ध कब लङा गया


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तराइन का प्रथम युद्ध किस किसके बीच हुआ

मुहम्मद गोरी ने 1186 में गजनवी वंश के अंतिम शासक से लाहौर की गद्दी छीन ली और वह भारत के हिन्दू क्षेत्रों में प्रवेश की तैयारी करने लगा। 1191 में उन्हें पृथ्वी राज तृतीय के नेतृत्व में राजपूतों की मिलीजुली सेना ने जिसे कन्नौज और बनारस वर्तमान में वाराणसी के राजा जयचंद का भी समर्थन प्राप्त था। अपने साम्राज्य के विस्तार और सुव्यवस्था पर पृथ्वीराज चौहान की पैनी दृष्टि हमेशा जमी रहती थी। अब उनकी इच्छा पंजाब तक विस्तार करने की थी। किन्तु उस समय पंजाब पर पंजाब से अपना राजकाज चलता था। पृथ्वीराज यह बात भली भांति जानता था कि पंजाब, सरस्वती और पंजाब के किले को पुन: अपने कब्जे में ले लिया। पृथ्वीराज ने शीघ्र ही अनहीलवाडा के विद्रोह को कुचल दिया। अब उसने गौरी से निर्णायक युद्ध करने का निर्णय लिया। उसने अपनी सेना को नए ढंग से सुसज्जित किया और युद्ध के लिए चल दिया। रावी नदी के तट पर पृथ्वीराज के सेनापति खेत सिंह खंगार की सेना में भयंकर युद्ध हुआ परन्तु कुछ परिणाम नहीं निकला। यह देख कर पृथ्वीराज गौरी को सबक सिखाने के लिए आगे बढ़ा। थानेश्वर से 14 मील दूर और सरहिंद के किले के पास तराइन नामक स्थान पर यह युद्ध लड़ा गया। तराइन के इस पहले युद्ध में राजपूतों ने गौरी की सेना के छक्के छुड़ा दिए। गौरी के सैनिक प्राण बचा कर भागने लगे। जो भाग गया उसके प्राण बच गए, किन्तु जो सामने आया उसे गाजर-मूली की तरह काट डाला गया। सुल्तान मुहम्मद गौरी युद्ध में बुरी तरह घायल हुआ। अपने ऊँचे तुर्की घोड़े से वह घायल अवस्था में गिरने ही वाला था की युद्ध कर रहे एक उसके सैनिक की दृष्टि उस पर पड़ी। उसने बड़ी फुर्ती के साथ सुल्तान के घोड़े की कमान संभाल ली और कूद कर गौरी के घोड़े पर चढ़ गया और घायल गौरी को युद्ध के मैदान...

तराइन का द्वितीय युद्ध कब और किसके बीच हुआ था second battle of tarain fought between in hindi

when and second battle of tarain fought between in hindi तराइन का द्वितीय युद्ध कब और किसके बीच हुआ था ? प्रश्न : तराइन की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज को किसने पराजित किया था? (अ) महमूद गजनवी (ब) कुतुबुद्दीन ऐबक (स) मुहम्मद गोरी (द) अलाउद्दीन खिलजी S.S.C. मैट्रिक स्तरीय परीक्षा, 2006 उत्तर-(स) तराइन की पहली लड़ाई 1191 ई. में मुहम्मद गोरी और पृथ्वीराज चैहान के बीच हुई थी। इसी मैदान पर दूसरी लड़ाई इनके बीच 1192 ई. में हुई। प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज विजयी रहे, जबकि द्वितीय युद्ध में मुहम्मद गोरी की विजय हुई। 3. पृथ्वीराज चैहान को मुहम्मद गोरी ने किस युद्ध में हराया था? (अ) तराइन, 1191 ई. में (ब) तराइन, 1192 ई. में (स) चंदावर, 1193 ई. में (द) रणथंभौर, 1195 ई. में S.S.C. मल्टी टास्किंग परीक्षा, 2013 उत्तर-(ब) उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें। 4. किस लड़ाई ने मुहम्मद गोरी के लिए दिल्ली क्षेत्र खोल दिया? (अ) तराइन की पहली लड़ाई (ब) तराइन की दूसरी लड़ाई (स) खानवा की लड़ाई (द) पानीपत की पहली लड़ाई S.S.C. संयुक्त हायर सेकण्डरी (10़2) स्तरीय परीक्षा, 2010 उत्तर-(ब) 1192 ई. में लड़े गए तराइन के द्वितीय युद्ध ने मुहम्मद गोरी के लिए दिल्ली क्षेत्र खोल दिया। इस युद्ध में मुहम्मद गोरी ने इस क्षेत्र पर शासन करने वाले पृथ्वीराज चैहान को पराजित कर इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। 5. निम्नलिखित में से किस राजपूत राजा ने मुहम्मद गोरी को पहली बार हराया था? (अ) पृथ्वीराज तृतीय (ब) बघेल भीम (स) जयचन्द्र (द) कुमारपाल S.S.C. मैट्रिक स्तरीय परीक्षा, 2008 उत्तर-(ब) मुहम्मद गोरी को पहली बार अन्हिलवाड़ के बघेल-शासक भीम द्वितीय ने 1178 ई. में हराया था। 6. निम्नलिखित में से किसका मिलान सही किया गया है? व्यक्ति घटना 1...

तराइन का प्रथम एवं द्वितीय युद्ध कब लङा गया

मुईज़ुद्दीन मुहम्मद बिन साम था। यह युद्ध 1191 ईस्वी में लङा गया था। तराइन का क्षेत्र वर्तमान में हरियाणा के करनाल जिले में और थानेश्वर (कुरुक्षेत्र) के बीच स्थित था। म्लेच्छों (मुसलमानों) को पराजित कर अपनी वीरता का परिचय दिया था। हम्मीर महाकाव्य से पता चलता है, कि पृथ्वीराज ने भी मुसलमानों को मिटा देने की प्रतिज्ञा की थी। लेकिन राजनीतिक सूझ-बूझ और दूरदर्शिता की कमी के कारण वह अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सका। गजनी में अपनी स्थिति को मजबूत करने के बाद चालुक्य नरेश भीम ने उसे काशह्रद के युद्ध में बुरी तरह पराजित कर दिया। इस समय पृथ्वीराज तटस्थ रहा तथा उसने चालुक्य नरेश की कोई सहायता नहीं की। इसके पूर्व गौरी ने नाडोल के चौहान राज्य पर भी आक्रमण कर लूट-पाट की थी। किन्तु पृथ्वीराज ने उन्हें भी कोई सहायता नहीं दी। गौरी ने भारतीय शासकों के आपसी मनमुटाव एवं संघर्ष का लाभ उठाते हुए अपना अभियान प्रारंभ किया। पृथ्वीराजविजय से पता चलता है, कि गुजरात पर आक्रमण के पूर्व उसने पृथ्वीराज के पास समर्पण करने तथा उसे अपना सम्राट मान लेने का संदेश एक दूत के माध्यम से भिजवाया था। इस पर पृथ्वीराज अत्यंत कुपित हुआ तथा उसने गौरी की प्रतिष्ठा धूल में मिला देने की प्रतिज्ञा की। भारतीय स्रोतों के अनुसार 1191 ईस्वी में तराइन के प्रथम युद्ध के पूर्व दोनों में कई युद्ध हुए थे तथा हर बार तुर्क आक्रांता को पराजित होना पङा था। लेकिन मुसलमान लेखक केवल दो युद्धों का ही उल्लेख करते हैं। तराइन के प्रथम युद्ध की घटना दोनों सेनाओं के बीच 1191 ईस्वी में तराइन (हरियाणा के करनाल जिले में स्थित आधुनिक तरावङी) के मैदान में खुला संघर्ष हुआ, जिसे तराइन का प्रथम युद्ध कहा जाता है। तराइन के प्रथम युद्ध म...

तराइन का प्रथम युद्ध किस

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तराइन का प्रथम युद्ध कब हुआ था ?

तराइन का प्रथम युद्ध भारत पर कई बार आक्रमण करने वाले तुर्क मोहम्मद गोरी तथा अजमेर और दिल्ली के चौहान राजपूत शासक पृथ्वीराज तृतीय के बीच तराइन नामक स्थान पर 1191 ई. में हुआ। तराइन हरियाणा के करनाल जिले में स्थित है जो दिल्ली से 113 किलोमीटर की दूरी पर है। तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ई.) 1186 ई. में लाहौर की गद्दी पर कब्जा जमाने के बाद मोहम्मद गोरी ने भारत के आंतरिक हिस्सों में घुसने की योजना बनाई। उसने पंजाब पर पहले ही अधिकार कर लिया था। 1190 ई. तक संपूर्ण पंजाब पर उसका अधिकार हो चुका था। वह भटिंडा से अपना राजकाज भी चलाने लगा। दूसरी तरफ उस समय उत्तर भारत के राजपूत राजाओं में अजमेर और दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान अपने साम्राज्य विस्तार में लगे हुए थे। पृथ्वीराज यह बात भलीभांति जानते थे कि मोहम्मद गोरी को हराए बिना पंजाब में अपना साम्राज्य स्थापित करना असंभव है। अतः पृथ्वीराज ने एक विशाल सेना लेकर पंजाब की ओर कूच कर दिया। तेजी से आगे बढ़ते हुए पृथ्वीराज ने हांसी, सरस्वती और सरहिंद के किलों को अपने कब्जे में ले लिया। इसी बीच पृथ्वीराज को सूचना मिली कि अन्हिलवाड़ में विद्रोहियों ने उसके विरुद्ध बगावत कर दी हैं। अतः वहां से वह अन्हिलवाड़ की ओर चल पड़ा।उसके वहां से हटते ही गोरी ने सरहिंद के किले को पुनः अपने कब्जे में ले लिया। अन्हिलवाड़ में विद्रोह का दमन करने के बाद पृथ्वीराज ने गोरी से निर्णायक युद्ध करने का निश्चय किया। पृथ्वीराज आगे बढ़ा और थानेश्वर से 14 मील की दूरी पर सरहिंद किले के समीप तराइन नामक स्थान पर यह युद्ध लड़ा गया। तराइन के इस पहले युद्ध में पृथ्वीराज की सेना ने गौरी को बुरी तरह पराजित किया। मोहम्मद गौरी की सेना में खलबली मच गई और डर के मारे उसके सैनिक इधर-उध...

तराइन का प्रथम युद्ध कब हुआ था ?

तराइन का प्रथम युद्ध भारत पर कई बार आक्रमण करने वाले तुर्क मोहम्मद गोरी तथा अजमेर और दिल्ली के चौहान राजपूत शासक पृथ्वीराज तृतीय के बीच तराइन नामक स्थान पर 1191 ई. में हुआ। तराइन हरियाणा के करनाल जिले में स्थित है जो दिल्ली से 113 किलोमीटर की दूरी पर है। तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ई.) 1186 ई. में लाहौर की गद्दी पर कब्जा जमाने के बाद मोहम्मद गोरी ने भारत के आंतरिक हिस्सों में घुसने की योजना बनाई। उसने पंजाब पर पहले ही अधिकार कर लिया था। 1190 ई. तक संपूर्ण पंजाब पर उसका अधिकार हो चुका था। वह भटिंडा से अपना राजकाज भी चलाने लगा। दूसरी तरफ उस समय उत्तर भारत के राजपूत राजाओं में अजमेर और दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान अपने साम्राज्य विस्तार में लगे हुए थे। पृथ्वीराज यह बात भलीभांति जानते थे कि मोहम्मद गोरी को हराए बिना पंजाब में अपना साम्राज्य स्थापित करना असंभव है। अतः पृथ्वीराज ने एक विशाल सेना लेकर पंजाब की ओर कूच कर दिया। तेजी से आगे बढ़ते हुए पृथ्वीराज ने हांसी, सरस्वती और सरहिंद के किलों को अपने कब्जे में ले लिया। इसी बीच पृथ्वीराज को सूचना मिली कि अन्हिलवाड़ में विद्रोहियों ने उसके विरुद्ध बगावत कर दी हैं। अतः वहां से वह अन्हिलवाड़ की ओर चल पड़ा।उसके वहां से हटते ही गोरी ने सरहिंद के किले को पुनः अपने कब्जे में ले लिया। अन्हिलवाड़ में विद्रोह का दमन करने के बाद पृथ्वीराज ने गोरी से निर्णायक युद्ध करने का निश्चय किया। पृथ्वीराज आगे बढ़ा और थानेश्वर से 14 मील की दूरी पर सरहिंद किले के समीप तराइन नामक स्थान पर यह युद्ध लड़ा गया। तराइन के इस पहले युद्ध में पृथ्वीराज की सेना ने गौरी को बुरी तरह पराजित किया। मोहम्मद गौरी की सेना में खलबली मच गई और डर के मारे उसके सैनिक इधर-उध...

तराइन का द्वितीय युद्ध कब और किसके बीच हुआ था second battle of tarain fought between in hindi

when and second battle of tarain fought between in hindi तराइन का द्वितीय युद्ध कब और किसके बीच हुआ था ? प्रश्न : तराइन की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज को किसने पराजित किया था? (अ) महमूद गजनवी (ब) कुतुबुद्दीन ऐबक (स) मुहम्मद गोरी (द) अलाउद्दीन खिलजी S.S.C. मैट्रिक स्तरीय परीक्षा, 2006 उत्तर-(स) तराइन की पहली लड़ाई 1191 ई. में मुहम्मद गोरी और पृथ्वीराज चैहान के बीच हुई थी। इसी मैदान पर दूसरी लड़ाई इनके बीच 1192 ई. में हुई। प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज विजयी रहे, जबकि द्वितीय युद्ध में मुहम्मद गोरी की विजय हुई। 3. पृथ्वीराज चैहान को मुहम्मद गोरी ने किस युद्ध में हराया था? (अ) तराइन, 1191 ई. में (ब) तराइन, 1192 ई. में (स) चंदावर, 1193 ई. में (द) रणथंभौर, 1195 ई. में S.S.C. मल्टी टास्किंग परीक्षा, 2013 उत्तर-(ब) उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें। 4. किस लड़ाई ने मुहम्मद गोरी के लिए दिल्ली क्षेत्र खोल दिया? (अ) तराइन की पहली लड़ाई (ब) तराइन की दूसरी लड़ाई (स) खानवा की लड़ाई (द) पानीपत की पहली लड़ाई S.S.C. संयुक्त हायर सेकण्डरी (10़2) स्तरीय परीक्षा, 2010 उत्तर-(ब) 1192 ई. में लड़े गए तराइन के द्वितीय युद्ध ने मुहम्मद गोरी के लिए दिल्ली क्षेत्र खोल दिया। इस युद्ध में मुहम्मद गोरी ने इस क्षेत्र पर शासन करने वाले पृथ्वीराज चैहान को पराजित कर इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। 5. निम्नलिखित में से किस राजपूत राजा ने मुहम्मद गोरी को पहली बार हराया था? (अ) पृथ्वीराज तृतीय (ब) बघेल भीम (स) जयचन्द्र (द) कुमारपाल S.S.C. मैट्रिक स्तरीय परीक्षा, 2008 उत्तर-(ब) मुहम्मद गोरी को पहली बार अन्हिलवाड़ के बघेल-शासक भीम द्वितीय ने 1178 ई. में हराया था। 6. निम्नलिखित में से किसका मिलान सही किया गया है? व्यक्ति घटना 1...

तराइन का प्रथम युद्ध किस

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तराइन का प्रथम युद्ध किस किसके बीच हुआ

मुहम्मद गोरी ने 1186 में गजनवी वंश के अंतिम शासक से लाहौर की गद्दी छीन ली और वह भारत के हिन्दू क्षेत्रों में प्रवेश की तैयारी करने लगा। 1191 में उन्हें पृथ्वी राज तृतीय के नेतृत्व में राजपूतों की मिलीजुली सेना ने जिसे कन्नौज और बनारस वर्तमान में वाराणसी के राजा जयचंद का भी समर्थन प्राप्त था। अपने साम्राज्य के विस्तार और सुव्यवस्था पर पृथ्वीराज चौहान की पैनी दृष्टि हमेशा जमी रहती थी। अब उनकी इच्छा पंजाब तक विस्तार करने की थी। किन्तु उस समय पंजाब पर पंजाब से अपना राजकाज चलता था। पृथ्वीराज यह बात भली भांति जानता था कि पंजाब, सरस्वती और पंजाब के किले को पुन: अपने कब्जे में ले लिया। पृथ्वीराज ने शीघ्र ही अनहीलवाडा के विद्रोह को कुचल दिया। अब उसने गौरी से निर्णायक युद्ध करने का निर्णय लिया। उसने अपनी सेना को नए ढंग से सुसज्जित किया और युद्ध के लिए चल दिया। रावी नदी के तट पर पृथ्वीराज के सेनापति खेत सिंह खंगार की सेना में भयंकर युद्ध हुआ परन्तु कुछ परिणाम नहीं निकला। यह देख कर पृथ्वीराज गौरी को सबक सिखाने के लिए आगे बढ़ा। थानेश्वर से 14 मील दूर और सरहिंद के किले के पास तराइन नामक स्थान पर यह युद्ध लड़ा गया। तराइन के इस पहले युद्ध में राजपूतों ने गौरी की सेना के छक्के छुड़ा दिए। गौरी के सैनिक प्राण बचा कर भागने लगे। जो भाग गया उसके प्राण बच गए, किन्तु जो सामने आया उसे गाजर-मूली की तरह काट डाला गया। सुल्तान मुहम्मद गौरी युद्ध में बुरी तरह घायल हुआ। अपने ऊँचे तुर्की घोड़े से वह घायल अवस्था में गिरने ही वाला था की युद्ध कर रहे एक उसके सैनिक की दृष्टि उस पर पड़ी। उसने बड़ी फुर्ती के साथ सुल्तान के घोड़े की कमान संभाल ली और कूद कर गौरी के घोड़े पर चढ़ गया और घायल गौरी को युद्ध के मैदान...

तराइन का प्रथम एवं द्वितीय युद्ध कब लङा गया

मुईज़ुद्दीन मुहम्मद बिन साम था। यह युद्ध 1191 ईस्वी में लङा गया था। तराइन का क्षेत्र वर्तमान में हरियाणा के करनाल जिले में और थानेश्वर (कुरुक्षेत्र) के बीच स्थित था। म्लेच्छों (मुसलमानों) को पराजित कर अपनी वीरता का परिचय दिया था। हम्मीर महाकाव्य से पता चलता है, कि पृथ्वीराज ने भी मुसलमानों को मिटा देने की प्रतिज्ञा की थी। लेकिन राजनीतिक सूझ-बूझ और दूरदर्शिता की कमी के कारण वह अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सका। गजनी में अपनी स्थिति को मजबूत करने के बाद चालुक्य नरेश भीम ने उसे काशह्रद के युद्ध में बुरी तरह पराजित कर दिया। इस समय पृथ्वीराज तटस्थ रहा तथा उसने चालुक्य नरेश की कोई सहायता नहीं की। इसके पूर्व गौरी ने नाडोल के चौहान राज्य पर भी आक्रमण कर लूट-पाट की थी। किन्तु पृथ्वीराज ने उन्हें भी कोई सहायता नहीं दी। गौरी ने भारतीय शासकों के आपसी मनमुटाव एवं संघर्ष का लाभ उठाते हुए अपना अभियान प्रारंभ किया। पृथ्वीराजविजय से पता चलता है, कि गुजरात पर आक्रमण के पूर्व उसने पृथ्वीराज के पास समर्पण करने तथा उसे अपना सम्राट मान लेने का संदेश एक दूत के माध्यम से भिजवाया था। इस पर पृथ्वीराज अत्यंत कुपित हुआ तथा उसने गौरी की प्रतिष्ठा धूल में मिला देने की प्रतिज्ञा की। भारतीय स्रोतों के अनुसार 1191 ईस्वी में तराइन के प्रथम युद्ध के पूर्व दोनों में कई युद्ध हुए थे तथा हर बार तुर्क आक्रांता को पराजित होना पङा था। लेकिन मुसलमान लेखक केवल दो युद्धों का ही उल्लेख करते हैं। तराइन के प्रथम युद्ध की घटना दोनों सेनाओं के बीच 1191 ईस्वी में तराइन (हरियाणा के करनाल जिले में स्थित आधुनिक तरावङी) के मैदान में खुला संघर्ष हुआ, जिसे तराइन का प्रथम युद्ध कहा जाता है। तराइन के प्रथम युद्ध म...