त्रिपिटक क्या है ?

  1. सुत्तपिटक
  2. बौद्ध धर्म के 3 पिटक कौन कौन से हैं? – ElegantAnswer.com
  3. Tripitak Kya Hain
  4. त्रिपिटक की रचना कब हुई? – ElegantAnswer.com
  5. त्रिपिटक क्या है उनके नाम
  6. प्रारंभिक बौद्ध शास्त्र, त्रिपिटक


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सुत्तपिटक

अनुक्रम • 1 परिचय • 2 विभाजन • 3 टीका • 4 बाहरी कड़ियाँ परिचय [ ] इस पिटक के पाँच भाग हैं जो निकाय कहलाते हैं। निकाय का अर्थ है समूह। इन पाँच भागों में छोटे बड़े सुत्त संगृहीत हैं। इसीलिए वे निकाय कहलाते हैं। निकाय के लिए "संगीति" शब्द का भी प्रयोग हुआ है। आरम्भ में, जब कि त्रिपिटक लिपिबद्ध नहीं था, भिक्षु एक साथ सुत्तों का पारायण करते थे। तदनुसार उनके पाँच संग्रह संगीति कहलाने लगे। बाद में निकाय शब्द का अधिक प्रचलन हुआ और संगीति शब्द का बहुत कम। कई सुत्तों का एक बग्ग (वर्ग) होता है। एक ही सुत्त के कई भाण भी होते हैं। 8000 अक्षरों का भाणवार होता है। तदनुसार एक-एक निकाय की अक्षर संख्या का भी निर्धारण हो सकता है। उदाहरण के लिए दीर्घनिकाय के 34 सुत्त हैं और भाणवार 64। इस प्रकार सारे दीर्घनिकाय में 512000 अक्षर हैं। सुत्तों में भगवान तथा सारिपुत्र मौद्गल्यायन, आनंद जैसे उसे कतिपय शिष्यों के उपदेश संगृहीत हैं। शिष्यों के उपदेश भी भगवान द्वारा अनुमोदित हैं। प्रत्येक सुत्त की एक भूमिका है, जिसका बड़ा ऐतिहासिक मत है। उसमें इन मतों का उल्लेख है कि कब, किस स्थान पर, किस व्यक्ति या किन व्यक्तियों को वह उपदेश दिया गया था और श्रोताओं पर उसका क्या प्रभाव पड़ा। अधिकतर सुत्त गद्य में हैं, कुछ पद्य में और कुछ गद्य-पद्य दोनों में। एक ही उपदेश कई सुत्तों में आया है- कहीं संक्षेप में और कहीं विस्तार में। उनमें पुनरुक्तियों की बहुलता है। उनके संक्षिप्तीकरण के लिए "पय्याल" का प्रयोग किया गया है। कुछ परिप्रश्नात्मक है। उनमें कहीं-कहीं आख्यानों और ऐतिहासिक घटनाओं का भी प्रयोग किया गया है। सुत्तपिटक उपमाओं का भी बहुत बड़ा भंडार है। कभी-कभी भगवान उपमाओं के सहारे भी उपदेश देते थे। श्रोताओं में राजा ...

बौद्ध धर्म के 3 पिटक कौन कौन से हैं? – ElegantAnswer.com

बौद्ध धर्म के 3 पिटक कौन कौन से हैं? इसे सुनेंरोकेंबौद्ध साहित्य त्रिपिटक को तीन भागों में विभाजित किया गया है, विनयपिटक, सुत्तपिटक और अभिधम्म पिटक। बौद्ध धर्म के त्रिरत्न का अर्थ क्या है? इसे सुनेंरोकेंत्रिरत्न (तीन रत्न) बौद्ध धर्म के सबसे महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इन त्रिरत्नों पर ही बौद्ध धर्म आधारित हैं। त्रिरत्न :- बुद्ध, धम्म और संघ. त्रिरत्न के बारे में आप क्या जानते हैं? इसे सुनेंरोकेंजैन धर्म में तीन रत्न, जिसे ‘रत्नत्रय’ भी कहते हैं, को ‘सम्यक दर्शन’ (सही दर्शन), ‘सम्यक ज्ञान’ और ‘सम्यक चरित्र’ के रूप में मान्यता प्राप्त है। इनमें से किसी का भी अन्य दो के बिना अलग से अस्तित्व नहीं हो सकता है तथा आध्यात्मिक मुक्ति या मोक्ष के लिए तीनों आवश्यक हैं। बौद्ध त्रिपिटक में पिटक का अर्थ क्या है? इसे सुनेंरोकेंपिटक का अर्थ है -पिटारा। सुत्त पिटक में बुद्ध के उपदेश संबंधी ग्रंथ हैं, विनय पिटक में आचार संबंधी ग्रंथ हैं और अभिदम्म पिटक में दार्शनिक विवेचना संबंधी ग्रंथ हैं। मूल रूप में ये त्रिपिटक ही बौद्ध धर्म और दर्शन के सर्वस्व हैं। पिटक का शाब्दिक अर्थ क्या है? इसे सुनेंरोकेंपिटक संज्ञा पुं० [सं०] १. पिटारा । २. फुड़िया । त्रिपिटक क्या है उनके नाम बताइए? त्रिपिटक तीन ग्रन्थों विनय पिटक, सुत्तपिटक तथा अभिधम्म पिटक का संयुक्त नाम है।… • विनय-पिटक भगवान ने भिक्षुओं के आचरण का नियमन करने के लिए जो नियम बनाए थे उन्हें ‘प्रतिमोक्ष ‘ या पालि मोक्ख कहा जाता हैं। • सुत्त-पिटक • अभिधम्म-पिटक त्रिपिटक के लेखक कौन है? इसे सुनेंरोकेंविनया पिटक: इसमें भिक्षुओं द्वारा अनुसरण किए जाने वाले कोड होते हैं। इसकी रचना महाकासपा (एक बौद्ध भिक्षु) ने की थी। सुत्त पिटक: इसकी रचना पहली बौद्ध परिषद मे...

Tripitak Kya Hain

Tripitak kya hain - त्रिपिटक क्या है त्रिपिटक से जुड़ी हर वह जानकारी हम जिस पोस्ट पर आपके साथ साझा करने वाले हैं जो प्रतियोगी परीक्षाओं में आपको देखने को मिलता है इस पूरे पोस्ट को जरूर देखें और त्रिपिटक से संबंधित सारे महत्वपूर्ण बिंदुओं को ध्यान में रखें। सबसे पहले बात करते है कि त्रिपिटक क्या है, हम आपको बता दें कि त्रिपिटक का संबंध "बौद्ध धर्म" से है। त्रिपिटक के मुख्यतः तीन भाग हैं। 1. विनय पिटक 2. सुत पिटक और 3. अभिधम पिटक विनय पिटक :- विनय पिटक की रचना उपाधि ने की थी जिसमें बौद्ध संघ के नियम के बारे में बात कही गई है.. सुत पिटक :- सतबीर की रचना आनंद की है, इसमें बुद्ध के उपदेशों एवं संवादों का संग्रह है अभिधम पिटक:- इसमें बुद्ध के आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विचारों का संग्रह किया गया है, अभिधम पिटक की रचना तिस्य ने कि है।

त्रिपिटक की रचना कब हुई? – ElegantAnswer.com

त्रिपिटक की रचना कब हुई? इसे सुनेंरोकेंइस ग्रंथ में भगवान बुद्ध द्वारा बुद्धत्त्व प्राप्त करने के समय से महापरिनिर्वाण तक दिए हुए प्रवचनों को संग्रहित किया गया है। त्रिपीटक का रचनाकाल या निर्माणकाल ईसा पूर्व 100 से ईसा पूर्व 500 है। और सभी त्रिपीटक सिहल देश यानी की श्री लंका में लिखा गया और उनकी भाषा में लिखा गया। जातक नामक संग्रह में कितनी जातक कथाएं है? इसे सुनेंरोकेंजातक कथाओं को विश्व की प्राचीनतम लिखित कहानियों में गिना जाता है जिसमे लगभग 600 कहानियाँ संग्रह की गयी है। इन कथाओं मे मनोरंजन के माध्यम से नीति और धर्म को समझाने का प्रयास किया गया है। त्रिपिटक क्या है उसके नाम लिखें? इसे सुनेंरोकेंत्रिपिटक संज्ञा पुं॰ [सं॰] भगवान् बुद्ध के उपदेशों का बडा़ संग्रह जो उनकी मृत्यु के उपरांत उनके शिष्यों और अनुयायियों ने समय समय पर किया और जिसे बौद्ध लोग अपना प्रधान धर्मग्रंथ मानते हैं । विशेष—यह तीन भागों में, जिन्हें पिटक कहते हैं, विभक्त है । इनके नाम ये हैं—सूत्रपिटक, विनयपिटक, अभिधर्मपिटक । पिटको की संख्या कितनी है इतिहास? इसे सुनेंरोकेंAnswer: बुद्ध के उपदेश तीन पिटकों में संकलित हैं। ये सुत्त पिटक, विनय पिटक और अभिधम्म पिटक कहलाते हैं। बौद्ध धर्म से जुड़े पवित्र टीले क्या है? इसे सुनेंरोकेंबौद्ध अनुयायी सारनाथ के मिट्टी, पत्थर एवं कंकरों को भी पवित्र मानते हैं। सारनाथ की दर्शनीय वस्तुओं में अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तंभ, भगवान बुद्ध का प्राचीन मंदिर, धामेक स्तूप, चौखंडी स्तूप, आदि शामिल हैं। अजंता में कितनी जातक कथाएं चित्रित है? इसे सुनेंरोकेंसाहित्य में 550 से भी अधिक जातक कथाएँ हैं। जातक कथाओं की भाषा क्या थी? इसे सुनेंरोकेंभाषा पालि में लिखित 35 कहानियाँ अंतिम पुस्तक ‘...

त्रिपिटक क्या है उनके नाम

मूल रूप में ये त्रिपिटक ही बौद्धधर्म और दर्शन के सर्वस्व हैं। त्रिपिटक क्या हैत्रिपिटक बौद्ध दर्शन की आधारशिला है। इनमें बुद्ध की जीवन की वास्तविक घटनाएं, तत्कालीन समाज एवं शिक्षा की स्थिति का वर्णन है। त्रिपिटक वस्तुत: लंका में तीन पिटकों में रखे गये है। इसलिए इनका नाम ‘पिटक’ पड़ गया। त्रिपिटक कोई ग्रन्थ नही है। तीन ग्रन्थों विनय पिटक, सुत्तपिटक तथा अभिधम्म पिटक का संयुक्त नाम है। ये ग्रन्थ अत्यधिक प्राचीन है और इनमें वर्णित सामग्री प्रामाणिक है। • विनय-पिटक • सुत्त-पिटक • अभिधम्म-पिटक 1. विनय-पिटकभगवान ने भिक्षुओं के आचरण का नियमन करने के लिए जो नियम बनाए थे उन्हें‘प्रतिमोक्ष ‘ या पालि मोक्ख कहा जाता हैं। इन्ही नियमों की चर्चा विनय पिटक में है।‘प्रतिमोक्ष’ की महत्व इसी से सिद्ध होती है। कि भगवान ने स्वयं कहा था कि उनके न रहने पर प्रतिमोक्ष और शिक्षापदों के कारण भिक्षुओं को अपने कर्तव्य का बौद्ध होता रहेगा और इस प्रकार संध स्थायी होगा। इस ग्रन्थ के तीन भाग है। (2) खन्धक-विनय-पिटक का दूसरा भाग खन्धक है। खन्धक को दो भागों में बाँटा गया है-महावग्ग और चूल्लवग्ग महावग्ग में प्रवज्या, उपोसथ, पशविस, प्रवारण आदि से संबंधित नियमों का संग्रह है तथा भगवान की साधना का रोचक वर्णन है। चुतलवब में भिक्षुओं के पारम्परिक व्यवहार एंव संघाराम संबंधित नियमों तथा भिक्षुनियों के विषेश आचार का संग्रह है। • कर्म-स्कन्धक • पारिवासिक-स्कन्धक • समुच्चय-स्कन्धक • शमथ-स्कन्धक • क्षुद्रकवस्तु-स्कन्धक • शयनासन-स्कन्धक • संघभेदक-स्कन्धक • व्रत-स्कन्धक • प्रातिमोक्ष-स्थापना-स्कन्धक • भिक्षुणी-स्कन्धक • पंचषतिका-स्कन्धक • सप्तषतिका-स्कन्धक। इस ग्रन्थ में संघ भेद, विभिन्न प्रकार के कर्म (जैसे तर्जनीय, उत्क्...

प्रारंभिक बौद्ध शास्त्र, त्रिपिटक

बौद्ध धर्म में, शब्द त्रिपिटक ("तीन टोकरियाँ" के लिए संस्कृत; "पाली में टिपिटका") बौद्ध धर्मग्रंथों का सबसे पहला संग्रह है। इसमें ऐतिहासिक बुद्ध के शब्द होने के सबसे मजबूत दावे के साथ ग्रंथ हैं। त्रिपिटक के ग्रंथों को तीन प्रमुख वर्गों में व्यवस्थित किया जाता है aya विनय-पटाका, जिसमें भिक्षुओं और ननों के लिए सांप्रदायिक जीवन के नियम हैं; सूत्र-पटाका, बुद्ध और वरिष्ठ शिष्यों के उपदेशों का संग्रह; और अभिधर्म-पटाका, जिसमें बौद्ध अवधारणाओं की व्याख्या और विश्लेषण शामिल हैं। पाली में, ये विनय-पटाका, सुत्त-पटाका और अभिधम्म हैं । त्रिपिटक की उत्पत्ति बौद्ध क्रोनिकल्स का कहना है कि बुद्ध की मृत्यु (4 वीं शताब्दी ईसा पूर्व) के बाद उनके वरिष्ठ शिष्यों ने संगा के भविष्य पर चर्चा करने के लिए प्रथम बौद्ध परिषद में मुलाकात की - भिक्षुओं और ननों के समुदाय - और धर्म, इस मामले में, बुद्ध की शिक्षाएँ। उपली नाम के एक भिक्षु ने स्मृति से भिक्षुओं और ननों के लिए बुद्ध के नियमों को पढ़ा और बुद्ध के चचेरे भाई और परिचारक, आनंद ने बुद्ध के उपदेशों का पाठ किया। सभा ने इन तर्कों को बुद्ध की सटीक शिक्षाओं के रूप में स्वीकार किया, और उन्हें सूत्र-पिटक और विनय के रूप में जाना जाने लगा। अभिधर्म तीसरा पटाका, या "टोकरी" है, और कहा जाता है कि इसे तीसरे बौद्ध परिषद, सीए के दौरान जोड़ा गया था। 250 ई.पू. हालाँकि, अभिधर्म को पारंपरिक रूप से ऐतिहासिक बुद्ध के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, लेकिन यह संभवत: एक अज्ञात लेखक द्वारा उनकी मृत्यु के बाद कम से कम एक शताब्दी से बना था। त्रिपिटक की भिन्नता सबसे पहले, इन ग्रंथों को कंठस्थ करके और संरक्षित करके संरक्षित किया गया था, और जैसे-जैसे एशिया में बौद्ध धर्म का प्रसा...