उर्दू के एक प्रसिद्ध शायर का नाम

  1. अनवर मसूद की शायरी
  2. जयंती विशेष:दाग़ देहलवी के 20 बड़े शेर....
  3. Josh Malihabadi Life Story: 'शायर
  4. शहरयार की परिचय
  5. उर्दू साहित्य आधुनिक नवजागरण काल
  6. मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी सौदा
  7. आग़ा हश्र कश्मीरी
  8. उर्दू शायरी में भी ख़ूब निखरे हैं कृष्ण
  9. मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी सौदा
  10. उर्दू साहित्य आधुनिक नवजागरण काल


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अनवर मसूद की शायरी

Comments जब भी उर्दू के शायर का नाम लिया जाता है उनमें से अनवर मसूद का नाम जरूर लिया जाएगा क्योंकि अनवर मसूद उर्दू के महान शायरों में से एक शायर थे | वह एक पाकिस्तानी शायर है जो कि उर्दू के अलावा पंजाबी, अरबी तथा फारसी की भाषाओं में भी अपनी रचनाएं लिखते हैं | इनका जन्म 8 नवंबर 1935 में पंजाब राज्य के गुजरात शहर में हुआ था जो हिस्सा अब पाकिस्तान में शामिल हो चुका है इसीलिए हम आपको पाकिस्तानी प्राप्ति अनवर मसूद द्वारा लिखी गई कुछ बेहतरीन शायरी के बारे में बताते हैं जिनके बारे में आते हैं साथ में दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं | Shayari of Anwar Masood अजीब लुत्फ़ था नादानियों के आलम में समझ में आईं तो बातों का वो मज़ा भी गया दोस्तो इंग्लिश ज़रूरी है हमारे वास्ते फ़ेल होने को भी इक मज़मून होना चाहिए डूबे हुए तारों पे मैं क्या अश्क बहाता चढ़ते हुए सूरज से मिरी आँख लड़ी थी Anwar Masood Shayari Dailymotion दिल जो टूटेगा तो इक तरफ़ा चराग़ाँ होगा कितने आईनों में वो शक्ल दिखाई देगी ‘अनवर’ उस ने न मैं ने छोड़ा है अपने अपने ख़याल में रहना ‘अनवर’ मिरी नज़र को ये किस की नज़र लगी गोभी का फूल मुझ को लगे है गुलाब का Anwar Masood Punjabi Shayari इस वक़्त वहाँ कौन धुआँ देखने जाए अख़बार में पढ़ लेंगे कहाँ आग लगी थी आइना देख ज़रा क्या मैं ग़लत कहता हूँ तू ने ख़ुद से भी कोई बात छुपा रक्खी है आस्तीनों की चमक ने हमें मारा ‘अनवर’ हम तो ख़ंजर को भी समझे यद-ए-बैज़ा होगा Anwar Masood Ki Mazahiya Shayari ऐ दिल-ए-नादाँ किसी का रूठना मत याद कर आन टपकेगा कोई आँसू भी इस झगड़े के बीच बे-हिर्स-ओ-ग़रज़ क़र्ज़ अदा कीजिए अपना जिस तरह पुलिस करती है चालान वग़ैरा दिल सुलगता है तिरे सर्द रवय्ये से मिरा देख अब बर...

जयंती विशेष:दाग़ देहलवी के 20 बड़े शेर....

उर्दू के प्रसिद्ध शायर दाग देहलवी का जन्म 1831 में हुआ था। दाग़ के हजारों लाखों मुरीद भी हैं। उनमें से कई ऐसे हैं जो ना तो शायर हैं, ना ही मशहूर हैं।उनको तमाम बड़े गज़ल गायकों ने गाया है। दाग़ का निधन 1905 में हुआ था। इनका जन्म स्थान दिल्ली के लाल किले को माना जाता था। दाग बहादुर शाह जफर के पोते थे। इनके पिता शम्सुद्दीन खां नवाब लोहारू के भाई थे। दाग के पिता का जब इंतकाल हुआ तब वह चार वर्ष के थे। बाद में दाग ने जौक को अपना गुरु बनाया। गुलजारे दाग, आफ्ताबे दाग, माहतादे दाग, यादगारे दाग इनके चार दीवान हैं। फरियादे दाग इनकी एक मसनबी है।

Josh Malihabadi Life Story: 'शायर

जोश मलीहाबादी की पैदाइश 05 दिसंबर 1898 को उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजधानी लखनऊ (Lucknow) के मलीहाबाद (Malihabad) में हुई थी, जिनका पूरा नाम शब्बीर अहमद हसन खान था. शायरी, जोश साहब के खून में थी, उनके पिता, दादा और परदादा भी शायर थे. जोश साहब को 'शायर-ए-इंकलाब' यानी क्रांति का कवि कहा गया क्योंकि उन्होंने ब्रितानी हुकूमत के दौरान देश के सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं पर बेहद बेबाक तरीके से लिखा, जो आज भी प्रासंगिक है. क्या हिन्द का ज़िंदाँ काँप रहा है गूँज रही हैं तक्बीरें उकताए हैं शायद कुछ क़ैदी और तोड़ रहे हैं ज़ंजीरें दीवारों के नीचे आ आ कर यूँ जमा हुए हैं ज़िंदानी सीनों में तलातुम बिजली का आँखों में झलकती शमशीरें भूखों की नज़र में बिजली है तोपों के दहाने ठंडे हैं तक़दीर के लब को जुम्बिश है दम तोड़ रही हैं तदबीरें आँखों में गदा की सुर्ख़ी है बे-नूर है चेहरा सुल्ताँ का तख़रीब ने परचम खोला है सज्दे में पड़ी हैं तामीरें क्या उन को ख़बर थी ज़ेर-ओ-ज़बर रखते थे जो रूह-ए-मिल्लत को उबलेंगे ज़मीं से मार-ए-सियह बरसेंगी फ़लक से शमशीरें क्या उन को ख़बर थी सीनों से जो ख़ून चुराया करते थे इक रोज़ इसी बे-रंगी से झलकेंगी हज़ारों तस्वीरें क्या उन को ख़बर थी होंटों पर जो क़ुफ़्ल लगाया करते थे इक रोज़ इसी ख़ामोशी से टपकेंगी दहकती तक़रीरें संभलों कि वो ज़िंदाँ गूँज उठा झपटो कि वो क़ैदी छूट गए उट्ठो कि वो बैठीं दीवारें दौड़ो कि वो टूटी ज़ंजीरें जोश मलीहाबादी उर्दू जुबान से बहुत लगाव रखते थे और इसकी शुद्धता पर बहुत गौर करते थे. उर्दू के लिए इस तरह का लगाव उनके भारत से जाने की वजहों में से एक था क्योंकि उन्हें डर था कि भारत में उर्दू का कोई स्थान नहीं होगा. हालांकि उनका ये खौफ गलत साबित ह...

शहरयार की परिचय

भारत के प्रमुख उर्दू कवियों और शिक्षाविदों में से एक "शहरयार" का असली नाम अख़लाक़ मोहम्मद खान था। उनका जन्म 16 जून 1936 को उत्तर प्रदेश के बरेली ज़िले के अमला में हुआ था। हरदोई में अपनी प्रार्थमिक शिक्षा पूरी करने के बाद , वे उच्च शिक्षा के लिए 1948 में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय चले गए। 1961 में अलीगढ से ही उर्दू में एम ए किया और 1966 में उर्दू विभाग अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय वाबस्ता हो गए। 1996 में यहीं से प्रोफेसर और उर्दू के अध्यक्ष के रूप में रिटायर हुए। ऐसे समय में जब उर्दू शायरी में उदासी और विडंबना जैसे विषयों पर बहुत ज़ोर था , शहरयार साहब ने अलग राह ली और उर्दू शायरी के भीतर आधुनिकता का एक नया अध्याय पेश किया। शहरयार ने अपनी शायरी में जिस सादगी के साथ आज के इंसान की तकलीफ़ और दुःख-दर्द का बयान किया है वो अपने आप में एक मिसाल है। उन्होंने उर्दू शायरी के क्लासिकी रंग को बरक़रार रखते हुए जिस तरह आधुनिक वक़्त की समस्याओं का चित्रण अपनी शायरी में किया है वो क़ाबिल-ए-तारीफ़ है। अपनी साहित्यिक उपलब्धियों के अलावा , उन्हें गीतकार के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने ' उमराव जान ' और ' गमन ' जैसी मशहूर बॉलीवुड फिल्मों के लिए गाने भी लिखे हैं। हाकी , बैडमिंटन और रमी जैसे खेलों में दिलचस्पी रखने वाले शहरयार उर्दू शायरी की तरफ़ मशहूर शायर खलील उर रहमान आज़मी से निकटता के बाद आए। शुरूआती दौर में उनके कुछ कलाम कुंवर अख़लाक़ मोहम्मद के नाम से भी प्रकाशित हुए। लेकिन बाद में शाज़ तमकनत के कहने पर उन्होंने अपना तख़ल्लुस ' शहरयार ' रख लियाथा और आखिर तक इसी नाम से जाने जाते रहे। शहरयार अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) अलीगढ़ में लिटरेरी सहायक भी रहे और अंजुमन की पत्रिकाओं 'उर्दू आदब' और 'हमारी ज़बान'...

उर्दू साहित्य आधुनिक नवजागरण काल

उर्दू साहित्य आधुनिक काल • सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के पश्चात् राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में परिवर्तन आया। अंग्रेजी शासन की सुदढ़ता तथा उनसे मुक्ति पाने के लिए भारतीयों की बेचैनी ने सन् 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। महात्मा गांधी का आंदोलन चल पड़ा। सन् 1947 में भारत स्वतन्त्र हो गया। इन घटनाओं से उर्दू कविता पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा। एकांत प्रेम अब युगीन समस्याओं का चित्रण करने लगे। • मौलाना मुहम्मद हुसैन ' आजाद ' तथा अलताफ हुसैन हाली ' ने हालरायड की प्रेरणा से सन् 1874 ई. में ही लाहौर में एक नए मुशायरी की नींव डाली। हाली ' ने स्थानीय रंग , वास्तविकता से लगाव तथा जीवन के सच्चे चित्रण पर बल दिया। आजाद की प्रेरणा से उर्दू कविता में नवीन चेतना का उदय हुआ। उर्दू कविता का कायाकल्प हो गया। विषयवस्तु एवं क्षेत्र में विस्तार हुआ। आधुनिक काल की शायरी ने अपनी संकुचित भावभूमि का परित्याग कर जीवन के अहम् समस्याओं से जोड़ा तथा उसने अति संयम से युगीन चेतना का चित्रण किया। उर्दू साहित्य नवजागरण • उर्दू साहित्य के नवजागरण (सन् 1874 1935 ई.) ने राष्ट्र एवं सांस्कृतिक चेतना की अभिव्यक्ति की आधुनिक उर्दू का प्रारंभ 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से हुआ। अंग्रेजों ने ज्ञान-विज्ञान की नवीन उपलब्धियां प्रदान की जिससे देश भक्ति तथा स्वतन्त्रता की विचारधारा का उदय हुआ। राजनीतिक आंदोलन तथा सुधारवादी आंदोलनों से उर्दू कविता प्रभावित हुई। मौलाना हुसैन , आजाद , अलताफ हुसैन , हाली , दुर्गा सहाय सुरूर , पं. ब्रज नारायण चकबस्त तथा इकबाल जैसे शायरों ने उर्दू कविता में राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना की अभिव्यक्ति की तथा देश प्रेम , राष्ट्रभक्ति एवं जातीय भावना का प्रसार किया। आजान...

मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी सौदा

अनुक्रम • 1 जीवनी • 2 कृतियाँ • 3 इन्हें भी देखें • 4 सन्दर्भ जीवनी [ ] सौदा का जन्म वर्ष पक्का नहीं है लेकिन कुछ कृतियाँ [ ] सौदा को क़सीदों और Major Henry Court) ने अंग्रेज़ी में अनुवाद किया। उनके कुछ चुने शेर इस प्रकार हैं: १. “ किसी का दर्द-ए-दिल प्यारे तुम्हारा नाज़ क्या समझे जो गुज़रे सैद के दिल पर उसे शाहबाज़ क्या समझे ” —सौदा २. “ इश्क़ ज़रा भी अगर हो तो उसे कम मत जान होके शोला ही बुझे है ये शरार आख़िरकार ” —सौदा ३. “ ये रूतबा जाह-ए-दुनिया का नहीं कम किसी मालज़ादी से के इस पर रोज़-ओ-शब में सैकड़ों चढ़ते-उतरते हैं ” —सौदा ४. “ शैख़ ने उस बुत को जिस कूचे में देखा शाम को ले चराग़ अब ढूंढें है वाँ ता-सहर इस्लाम को ” —सौदा ५. “ सावन के बादलों की तरह से भरे हुए ये वो नयन हैं जिनसे की जंगल हरे हुए ” —सौदा इन्हें भी देखें [ ] • • • • सन्दर्भ [ ] • (PDF). (PDF) से 23 अक्तूबर 2012 को पुरालेखित . अभिगमन तिथि 19 मार्च 2012. • • . अभिगमन तिथि 19 मार्च 2012. • (PDF). (PDF) से 22 मार्च 2012 को पुरालेखित . अभिगमन तिथि 19 मार्च 2012. • . अभिगमन तिथि 19 मार्च 2012. • . अभिगमन तिथि 19 मार्च 2012.

आग़ा हश्र कश्मीरी

इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर (नवम्बर 2020) स्रोत खोजें: · · · · आग़ा हश्र कश्मीरी उर्दू के प्रसिद्ध शायर एवं नाटककार हैं। इन्हें उर्दू भाषा का शेक्सपियर भी कहा जाता है। आगा हश्र कश्मीरी (जन्म/वास्तविक नाम: मुहम्मद शाह, 3 अप्रैल 1879—28 अप्रैल 1935) उर्दू के सुप्रसिद्ध कवि, नाटककार और साहित्यकार थे। उनके अनेक नाटक भारतीय शेक्सपियर के रूपांतरण थे। उन्होंने स्टेज ड्रामा में दिलचस्पी दिखाना शुरू कर दिया और 18 साल की उम्र में बॉम्बे चले गए और वहाँ एक नाटककार के रूप में अपना करियर शुरू किया। व्यवसाय (Career) [ ] आगा हश्र कश्मीरी का पहला नाटक 'आफताब-ए-मुहब्बत' (1897) में प्रकाशित हुआ था। उन्होंने बॉम्बे में न्यू अल्फ्रेड थियेट्रिकल कंपनी के लिए एक नाटक लेखक के रूप में अपने पेशेवर करियर की शुरुआत केवल 15 रुपये के वेतन पर की थी। प्रति माह। मुरीद-ए-शेख़ (Mureed-e-Shak) कंपनी के लिए उनका पहला नाटक, शेक्सपियर के नाटक द विंटर की कहानी का एक रूपांतरण था। यह सफल साबित हुआ और उसके बाद उनकी बढ़ती लोकप्रियता के कारण उनकी मजदूरी 40 रु. प्रति माह कर दी गई। अपने कामों में, आगा को नाटकों में मुहावरों और काव्य गुणों के साथ छोटे गीतों और संवादों को पेश करने का अनुभव था। इसके बाद उन्होंने शेक्सपियर के नाटकों के कई और रूपांतरण लिखे, जिनमें शहीद-ए-नाज़ (या हिंदी में अच्युता दामन), माप के लिए उपाय, 1902) और शबेद-ए-हवास (किंग जॉन, 1907) शामिल हैं। यहूदी की लड़की (Jewish girl; द डॉटर ऑफ ए यहूदी), 1913 में प्रकाशित, उनका सबसे प्रसिद्ध नाटक बन गया। आने वाले वर्षों में, यह पारसी-उर्दू थिएटर में एक क्लासिक बन गया। कई बार मूक फिल्म और शुरुआती टॉकीज यु...

उर्दू शायरी में भी ख़ूब निखरे हैं कृष्ण

“छाप तिलक सब छीन ली रे! मोसे नैना मिलाइ के, री सखी मैं जो गई थी पनिया भरन को, छीन झपट मोरी मटकी पटकी, मोसे नैना मिलाई के।” 13 वीं सदी के जाने-माने सूफ़ी शायर अमीर ख़ुसरो की मशहूर ‘रंग’ नामक क़व्वाली की इन पंक्तियों से तो बहुत लोग वाकिफ़ होंगे, लेकिन इस रचना के पीछे की कहानी के बारे में कम ही लोगों को पता होगा। इसके साथ कृष्ण-प्रेम का एक वाक़िया जुड़ा हुआ है। बताते हैं, कि एक बार हज़रत निज़ामउद्दीन औलिया को सपने में कृष्ण के दर्शन हुए, तो उन्होंने अपने सबसे चहेते शागिर्द अमीर ख़ुसरो को कन्हैया के बारे में कुछ रचने को कहा। गुरु की प्रेरणा से ख़ुसरो ने यह ‘रंग’ क़व्वाली रच डाली, जिसमें उपयोग किए गए ‘छीन झपट’ व ‘मोरी मटकी पटकी’ सरीख़े शब्दों से नटखट कृष्ण की छवि उजागर हो जाती है। ख़ुसरो ने ‘हालात-ए-कन्हैया’ शीर्षक से एक ग्रंथ की भी रचना की है। बंदीगृह में कृष्ण के जन्म के बाद उन्हें ले जाते हुए बासुदेव | म्यूजियम ऑफ फाईन आर्ट्स, बोस्टन में संग्रहित मुगल मिनिएचर भारतीय साहित्य और संगीत में अमीर ख़ुसरो (1253-1325) के योगदान से सभी वाक़िफ़ हैं। गंगा-ज़मुनी संस्कृति के अग्रदूत माने जानेवाले ख़ुसरो ने अपनी रचनाओं में ‘हिन्दवी’ भाषा यानी ऐसे शब्दों का प्रयोग करते थे, जिसमें खड़ी बोली, फ़ारसी, अरबी ज़ुबानों आदि के शब्द शामिल होते थे। लोगों की ज़ुबान पर सहजता से चढ़ जानेवाली उनकी शायरी अर्थात कविता में जो कृष्ण-प्रेम की धारा फूटी, तो सदियों तक हिलोरे मारती रही। और, कृष्ण-प्रेम की यह धारा ख़ुसरो से शुरू होकर 15 वीं सदी में मालिक मुहम्मद जायसी, 16 सदी में रसख़ान और रहीम, 17 वीं सदी में आलमशेख़, 19 वीं सदी में वाजिद अली शाह और हज़रत मोहानी एवं 20 सदी में हफ़ीज़ जालंधरी से लेकर मौज़ूदा दौर में कैफ़ी आज़मी, निदा फाजली...

मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी सौदा

अनुक्रम • 1 जीवनी • 2 कृतियाँ • 3 इन्हें भी देखें • 4 सन्दर्भ जीवनी [ ] सौदा का जन्म वर्ष पक्का नहीं है लेकिन कुछ कृतियाँ [ ] सौदा को क़सीदों और Major Henry Court) ने अंग्रेज़ी में अनुवाद किया। उनके कुछ चुने शेर इस प्रकार हैं: १. “ किसी का दर्द-ए-दिल प्यारे तुम्हारा नाज़ क्या समझे जो गुज़रे सैद के दिल पर उसे शाहबाज़ क्या समझे ” —सौदा २. “ इश्क़ ज़रा भी अगर हो तो उसे कम मत जान होके शोला ही बुझे है ये शरार आख़िरकार ” —सौदा ३. “ ये रूतबा जाह-ए-दुनिया का नहीं कम किसी मालज़ादी से के इस पर रोज़-ओ-शब में सैकड़ों चढ़ते-उतरते हैं ” —सौदा ४. “ शैख़ ने उस बुत को जिस कूचे में देखा शाम को ले चराग़ अब ढूंढें है वाँ ता-सहर इस्लाम को ” —सौदा ५. “ सावन के बादलों की तरह से भरे हुए ये वो नयन हैं जिनसे की जंगल हरे हुए ” —सौदा इन्हें भी देखें [ ] • • • • सन्दर्भ [ ] • (PDF). (PDF) से 23 अक्तूबर 2012 को पुरालेखित . अभिगमन तिथि 19 मार्च 2012. • • . अभिगमन तिथि 19 मार्च 2012. • (PDF). (PDF) से 22 मार्च 2012 को पुरालेखित . अभिगमन तिथि 19 मार्च 2012. • . अभिगमन तिथि 19 मार्च 2012. • . अभिगमन तिथि 19 मार्च 2012.

उर्दू साहित्य आधुनिक नवजागरण काल

उर्दू साहित्य आधुनिक काल • सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के पश्चात् राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में परिवर्तन आया। अंग्रेजी शासन की सुदढ़ता तथा उनसे मुक्ति पाने के लिए भारतीयों की बेचैनी ने सन् 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। महात्मा गांधी का आंदोलन चल पड़ा। सन् 1947 में भारत स्वतन्त्र हो गया। इन घटनाओं से उर्दू कविता पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा। एकांत प्रेम अब युगीन समस्याओं का चित्रण करने लगे। • मौलाना मुहम्मद हुसैन ' आजाद ' तथा अलताफ हुसैन हाली ' ने हालरायड की प्रेरणा से सन् 1874 ई. में ही लाहौर में एक नए मुशायरी की नींव डाली। हाली ' ने स्थानीय रंग , वास्तविकता से लगाव तथा जीवन के सच्चे चित्रण पर बल दिया। आजाद की प्रेरणा से उर्दू कविता में नवीन चेतना का उदय हुआ। उर्दू कविता का कायाकल्प हो गया। विषयवस्तु एवं क्षेत्र में विस्तार हुआ। आधुनिक काल की शायरी ने अपनी संकुचित भावभूमि का परित्याग कर जीवन के अहम् समस्याओं से जोड़ा तथा उसने अति संयम से युगीन चेतना का चित्रण किया। उर्दू साहित्य नवजागरण • उर्दू साहित्य के नवजागरण (सन् 1874 1935 ई.) ने राष्ट्र एवं सांस्कृतिक चेतना की अभिव्यक्ति की आधुनिक उर्दू का प्रारंभ 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से हुआ। अंग्रेजों ने ज्ञान-विज्ञान की नवीन उपलब्धियां प्रदान की जिससे देश भक्ति तथा स्वतन्त्रता की विचारधारा का उदय हुआ। राजनीतिक आंदोलन तथा सुधारवादी आंदोलनों से उर्दू कविता प्रभावित हुई। मौलाना हुसैन , आजाद , अलताफ हुसैन , हाली , दुर्गा सहाय सुरूर , पं. ब्रज नारायण चकबस्त तथा इकबाल जैसे शायरों ने उर्दू कविता में राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना की अभिव्यक्ति की तथा देश प्रेम , राष्ट्रभक्ति एवं जातीय भावना का प्रसार किया। आजान...