Vat savitri vrat katha

  1. Vat Savitri Purnima Vrat 2022 : Day, Date, Ritual, Story and Significance
  2. Vat Savitri Purnima Vrat Katha: Here's the legend associated with this festival
  3. Vat Savitri 2022 Katha इस कथा के बिना अधूरा है वट सावित्री व्रत अखंड सौभाग्य की होगी प्राप्ति
  4. Vat Savitri Vrat Katha


Download: Vat savitri vrat katha
Size: 38.68 MB

Vat Savitri Purnima Vrat 2022 : Day, Date, Ritual, Story and Significance

Vat Purnima Vrat Date and Time Vat Purnima Vrat Date Tuesday, 14th June, 2022 Vat Purnima Vrat Tithi Begins Monday, 13th June, 2022, 09:02 PM Vat Purnima Vrat Tithi Ends Tuesday 14th June, 2022, 05:21 PM Vat Purnima Vrat Pooja Time Tuesday 14th June, 2022, 11:54 AM - 12:49 PM Though, the story recited by women on the Vat Purnima is the same which is recited on Vat Amavasya Vrat. Significance of Vat Purnima Vrat 2022 Vat Purnima Vrat, which falls on Amamvasya Tithti is celebrated in North India while Vat Purnima Vrat is celebrated in Central and Southern part. Married Hindu women observe the Vat Purnima Vrat on this auspicious day to ensure the health and long life of their husbands. Married women offer prayers to the ‘Vat’ (Banyan) tree. According to the Hindu Scriptures, the Vat vriksha (Banyan tree) is considered to be the auspicious tree in Sanatan Dharma and it is believed that the Trimurti (Lord Brahma, Lord Vishnu, lord Shiva)lives in that. As per hindu mythology the Vat Vriksha (Banyan tree) is considered to be long lived tree and due to its immortality, Vat Vriksha (Banyan Tree) is also known as Akshay Vat. Rituals of Vat Purnima Vrat 2022 1. Women get up early in the morning, take a holy bath, and dress up in traditional attire with all the ornaments. 2. Women must avoid wearing black, blue, white colour clothes on the day of Vat Purnima Vrat. 3. Women, who are newly married they receive all the important articles from their mother's side like clothes, ornaments a...

Vat Savitri Purnima Vrat Katha: Here's the legend associated with this festival

And after granting the second boon, when Yamraj proceeded southwards, Savitri yet again followed him. And her persistent efforts compelled Yamraj to bless her with the third boon. And on this occasion, Savitri tricked Yamraj into blessing her with Satyawan's children. Thus, she outsmarted the God of death and made him restore Satyawan's life.

Vat Savitri 2022 Katha इस कथा के बिना अधूरा है वट सावित्री व्रत अखंड सौभाग्य की होगी प्राप्ति

Vat Savitri 2022 Katha: इस कथा के बिना अधूरा है वट सावित्री व्रत, अखंड सौभाग्य की होगी प्राप्ति Vat Savitri Vrat Katha वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या के साथ आज मनाया जा रहा है। आज सुहागिन महिलाएं व्रत रखने के साथ बरगद के पेड़ की विधि-विधान से पूजा करती हैं। इसके साथ ही पूजा के दौरान वट सावित्री व्रत की कथा सुनना लाभकारी माना जाता है। नई दिल्ली, Vat Savitri 2022 Katha: हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत पड़ता है। आज सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। इसके साथ ही वट वृक्ष से कामना करती हैं पति के साथ-साथ संतान सुखी रहें। आज के दिन बरगद के पेड़ की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत कथा सुनना शुभ होता है। प्रसिद्ध तत्त्वज्ञानी अश्वपति भद्र देश के राजा थे। उनको संतान सुख नहीं प्राप्त था। इसके लिए उन्होंने 18 वर्ष तक कठोर तपस्या की, जिसके उपरांत सावित्री देवी ने कन्या प्राप्ति का वरदान दिया। इस वजह से जन्म लेने के बाद कन्या का नाम सावित्री रखा गया। कन्या बड़ी होकर बहुत ही रूपवान हुई। योग्य वर न मिलने की वजह से राजा दुखी रहते थे। राजा ने कन्या को खुद वर खोजने के लिए भेजा। जंगल में उसकी मुलाकात सत्यवान से हुई। द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति रूप में स्वीकार कर लिया। इस घटना की जानकारी के बाद ऋषि नारद जी ने अश्वपति से सत्यवान की अल्प आयु के बारे में बताया। माता-पिता ने बहुत समझाया, परन्तु सावित्री अपने धर्म से नहीं डिगी। जिनके जिद्द के आगे राजा को झुकना पड़ा। सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया। सत्यवान बड़े गुणवान, धर्मात्मा और बलवान थे। वे अपने माता-पिता का पूरा ख्याल रखते थे। सावित...

Vat Savitri Vrat Katha

वट सावित्री(vat savitri) व्रत की यह कथा सत्यवान-सावित्री के नाम से उत्तर भारत में विशेष रूप से प्रचलित हैं। कथा के अनुसार एक समय की बात है कि मद्रदेश में अश्वपति नाम के धर्मात्मा राजा का राज था। उनकी कोई भी संतान नहीं थी। राजा ने संतान हेतु यज्ञ करवाया। कुछ समय बाद उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई जिसका नाम उन्होंने सावित्री रखा। विवाह योग्य होने पर सावित्री के लिए द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पतिरूप में वरण किया। सत्यवान वैसे तो राजा का पुत्र था लेकिन उनका राज-पाट छिन गया था और अब वह बहुत ही द्ररिद्रता का जीवन जी रहे थे। उसके माता-पिता की भी आंखो की रोशनी चली गई थी। सत्यवान जंगल से लकड़ियां काटकर लाता और उन्हें बेचकर जैसे-तैसे अपना गुजारा कर रहा था। जब सावित्री और सत्यवान के विवाह की बात चली तो नारद मुनि ने सावित्री के पिता राजा अश्वपति को बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं और विवाह के एक वर्ष बाद ही उनकी मृत्यु हो जाएगी। हालांकि राजा अश्वपति सत्यवान की गरीबी को देखकर पहले ही चिंतित थे और सावित्री को समझाने की कोशिश में लगे थे। नारद की बात ने उन्हें और चिंता में डाल दिया लेकिन सावित्री ने एक न सुनी और अपने निर्णय पर अडिग रही। अंततः सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया। सावित्री सास-ससुर और पति की सेवा में लगी रही। नारद मुनि ने सत्यवान की मृत्यु का जो दिन बताया था, उसी दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ वन को चली गई। वन में सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगा, उसके सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी और वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गया। कुछ देर बाद उनके समक्ष अनेक दूतों के साथ स्वयं यमराज खड़े हुए थे। जब यमराज सत्यवान के जीवात्मा को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे, ...