वीभत्स रस का उदाहरण

  1. वीभत्स रस की परिभाषा, अवयव और उदाहरण
  2. भयानक, वीभत्स और अदभुत रस
  3. हास्य रस की परिभाषा और हास्य रस के 30+ उदाहरण
  4. रस की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण (Ras in Hindi)
  5. Ras Ke Prakar With Example
  6. वीभत्स रस


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वीभत्स रस की परिभाषा, अवयव और उदाहरण

इस पेज पर आप वीभत्स रस की परिभाषा उदाहरण सहित पढ़ेंगे और समझेंगे। पिछले पेज पर हमने रस की परिभाषा शेयर की हैं यदि आपने उस पोस्ट को नहीं पढ़ा तो जरूर पढ़े। चलिए आज हम वीभत्स रस की परिभाषा, अवयव और उदाहरण की जानकारी को पढ़ते और समझते हैं। वीभत्स रस की परिभाषा जिस काव्य रचना में घृणात्तम वस्तु या घटनाओं का उल्लेख हो वहां पर वीभत्स रस होता हैं। घृणित वस्तुओं, घृणित चीजो या घृणित व्यक्ति को देखकर अथवा उनके संबंध में विचार करके अथवा उनके सम्बन्ध में सुनकर मन में उत्पन्न होने वाली घृणा या ग्लानि ही वीभत्स रस कि पुष्टि करती है अर्थात वीभत्स रस के लिए घृणा और जुगुप्सा का होना आवश्यक होता है। उदाहरण :- सिर पर बैठो काग, आँखि दोउ खात निकारत। खींचत जी भहिं स्यार, अतिहि आनन्द उर धारत।। गिद्ध जाँघ कह खोदि-खोदि के मांस उचारत। स्वान आँगुरिन काटि-काटि के खान बिचारत।। बहु चील्ह नोंचि ले जात तुच, मोद मठ्यो सबको हियो। जनु ब्रह्म भोज जिजमान कोउ, आज भिखारिन कहुँ दियो।। व्याख्या – इस पंक्ति में मृत जीव का वर्णन है, जिसके सिर पर कौवा बैठे हैं जो आंख निकाल कर खा रहे हैं। चारों ओर से सियार घेर कर उस लाश को नोच रहे हैं और आनंद की अनुभूति कर रहे हैं। गिद्ध उस मृत के मासों को नोच रहा है तथा कुत्ते उसे काट काट कर खा रहे हैं। चील तथा अन्य जीव भी इस मृत जीव का आनंद लेकर भक्षण कर रहे हैं। वीभत्स रस के अवयव स्थायी भाव :- घृणा / जुगुप्सा अनुभाव :- • थूकना • झुकना • मुंह फेरना • आंखें मूंद लेना संचारी भाव :- • मोह • अपस्मार • आवेद • व्याधि • मरण • मूर्छा आलंबन विभाव :- • विलासिता • व्यभिचारी • छुआछूत • धार्मिक पाखंडता • अन्याय • नैतिक पतन • पाप कर्म • घृणास्पद व्यक्ति या वस्तुएं • दुर्गंधमय मांस • रक्त • चर्बी उद...

भयानक, वीभत्स और अदभुत रस

किसी भयदायक वस्तु का वर्णन सुनने, देखने अथवा किसी भयभीत व्यक्ति की चेष्टा आदि के उल्लेख से भयानक रस की उत्पत्ति होती है ! स्थाई भाव . .... भय ! आलंबन विभाव............ सिंह, सर्प, व्याघ्र आदि हिंसक जंतु, वन, निर्जन स्थान, चोर, प्रबल शत्रु आदि ! उद्दीपन विभाव............. भयंकर दृश्य, हिंसक जीवो की भयानक चेष्टायें, भयप्रद निर्जनता आदि ! अनुभाव............. स्वेद, रोमांच, स्वरभंग, पलायन, मूर्छा, रोना, चिल्लाना, कंप, वैवर्ण्य आदि ! संचारी भाव......... संभ्रम, चिंता, शंका, ग्लानि, त्रास, दैन्य, मरण आदि ! भयानक रस का उदाहरण .......................................... लंका दहन के प्रसंग में गोस्वामी जी ने भयानक रस का बड़ा विशद एवं यथातथ्य वर्णन किया है ! कवितावली के निम्न छंद को देखिए ! बालधी विसाल विकराल ज्वाल - जाल मानौं, लंक लिलीबे को काल रसनापसारी है | कैधोंव्योमवीथिका भरे हैं भूरी धूमकेतु , वीररस वीरतरवारिसीउधारी है || तुलसी सुरेस - चाप, कैंधों दामिनी कलाप, कैंधों चली मेरु तें कृसानु - सरिभारी है | देखे जातुधानजातुधानीअकुलानीकहें, काननउजारयौ अबनगरप्रजारी है || यहां पर स्थाई भाव भय है ! राक्षस - राक्षसी आश्रय तथा हनुमान जी की पूंछ आलंबन है ! नगर में आग लगना उद्दीपन विभाव, लंका के लोगों का घबराना तथा उनके शब्द अनुभाव तथा त्रास दैन्य आदि संचारी भाव है ! एक छोटा सा उदाहरण पद्माकर का देखिए एक और अजगरही लखि, एक और मृगराह | विकल बटोही बीच ही, परयो मूर्छाखाई || यहां अजगर एवं सिंह आलंबन ,बटोही आश्रय, स्थान की निर्धनता एवं सिंह तथा अजगर का दोनों ओर से घेरना उद्दीपन विभाव, पथिक का विकल तथा मूर्छित होना अनुभाव, भय, अपस्मार आदि संचारी भाव है ! इस प्रकार भयानक रस की पूर्ण सामग्री वर्तमान ...

हास्य रस की परिभाषा और हास्य रस के 30+ उदाहरण

विषय सूची • • • • • • • हास्य रस की परिभाषा (Hasya Ras Ki Paribhasha) काव्य को सुनने पर जब हास्य कि उत्पत्ति या हास्य से आनंद या भाव की अनुभूति होती है तो इस अनुभूति को ही हास्य रस कहते हैं। अन्य शब्दों में हास्य रस वह रस है, जिसमें हँसी का भाव होता है अथवा जिसका स्थायी भाव हास होता है। हास्य की उपस्थिति से श्रोता या पाठक का रोम-रोम आनंद से व हास से खिल उठता है तथा मन में प्रसन्नता बनी रहती है। हास्य रस का परिचय (Hasya Ras in Hindi) हास्य रस का काव्य के सभी नौ रसों में एक बहुत ही मत्वपूर्ण स्थान है। वीर रस, वीभत्स रस, श्रृंगार रस तथा रौद्र रस ही प्रमुख रस हैं तथा भयानक, वात्सल्य, शांत, करुण, भक्ति, हास्य रसों की उत्पत्ति इन्हीं प्रमुख चार रसों से हुई है। हास्य रस की उपस्थिती ऐसे काव्य में होती है, जिस काव्य में काव्य की विषय वस्तु में हास्य पैदा करने वाले या मजेदार उद्दीपन व अलाम्बनों का का समावेश होता है। हास्य रस चरित्र की उस मनःस्थिती को बताता है, जब वह प्रसन्नचित्त व निश्चिन्त होता है। तो संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि काव्य के जिस भाग में किसी गुदगुदा देने वाले भाव को प्रकट किया जाता है, वहां हास्य रस होता है। हास्य रस की उपस्थिती में किसी विचार, व्यक्ति, वस्तु व घटना का स्वरुप विचित्र होता है। परन्तु यह विचित्रता विस्मय या आश्चर्य को पैदा नहीं करती, वरन यह विचित्रता लक्षित व्यक्ति को गुदगुदा जाती है। हास्य रस के अवयव • स्थायी भाव: हास। • आलंबन (विभाव): कोई विचित्र वेशभूषा भी वस्तु, अतरंगी चरित्र, हास्यस्पद घटना या विचार आदि जिससे सामना होने पर हँसी। उत्पन्न हो जाए तथा मन में प्रसन्नता बनी रहे। • उद्दीपन (विभाव): विचित्र दृश्य, उलटबांसी, हास्यस्पद श्रव्य, गुदगुदाने ...

रस की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण (Ras in Hindi)

अर्थात कुल स्थाई भाव की संख्या 9 हैं क्योंकि रसों की संख्या भी 9 हैं। भरतमुनि के अनुसार मुख्य रसों की संख्या 8 थी शांत रस को इनके काव्य नाट्य शास्त्र में स्थान नहीं दिया गया। मूल रूप से रसों की संख्या 9 मानी गई है जिसमें श्रृंगार रस को रस राजा कहा गया। किन्तु बाद में हिंदी आचार्यों के द्वारा वात्सल्य और भागवत रस को रस की मान्यता मान ली गई। इस प्रकार कुल रसों की संख्या 11 हो गई अतः स्थाई भाव की संख्या भी 11 हो गई। 2. विभाव स्थायी भावों के उदबोधक कारण को विभाव कहते हैं विभाव 2 प्रकार के होते हैं। a). आलंबन विभाव b). उद्दीपन विभाव (a). आलंबन विभाव :- जिसका आलंबन या सहारा पाकर स्थायी भाव जगते हैं आलंबन विभाव कहलाता हैं। जैसे :- नायक नायिका। आलंबन विभाव के दो पक्ष होते हैं। (i). आश्रयालंबन :- जिसके मन में भाव जगे वह आश्रया लंबन (ii). विषयालंबन :- जिसके प्रति या जिसके कारण मन में भाव जगे वह विषया लंबन कहलाता हैं। उदाहरण :- यदि राम के मन में सीता के प्रति रति का भाव जगता हैं तो राम आश्रय होगें और सीता विषय। (b). उद्दीपन विभाव :- जिन वस्तुओं या परिस्थितियों को देखकर स्थायी भाव उद्दीप्त होने लगता हैं उद्दीपन विभाव कहलाता हैं। जैसे :- चाँदनी, कोकिल कूजन, एकांत स्थल, रमणीय उधान, नायक या नायिका की शारीरिक चेष्टाएं आदि। 3. अनुभाव मनोगत (मन में उतपन्न) भाव को व्यक्त करने वाली शारीरिक प्रक्रिया अनुभव कहलाती हैं। यह 8 प्रकार की होती हैं स्तंभ, स्वेद, रोमांच, भंग, कंप, विवर्णता, अश्रु और प्रलय 4. संचारी भाव हृदय/मन में संचरण (आने-जाने) वाले भावों को ही संचारी भाव कहा जाता हैं यह भाव स्थाई भाव के साथ उतपन्न होकर कुछ समय बाद समाप्त हो जाते हैं। अर्थात यह स्थाई भाव मन में स्थाई रूप से नहीं रह...

Ras Ke Prakar With Example

Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • Ras Ke Prakar With Example | रस के प्रकार एवं उदाहरण | रस विवेचन Ras Ke Prakar With Example | रस के प्रकार एवं उदाहरण | रस विवेचन : दोस्तों ! इस पोस्ट में हम आपको रस से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण व रोचक बातें बताएंगे जो परीक्षा की दृष्टि से महत्व रखती है । इसमें हम Ras Ke Prakar With Example | रस के प्रकार एवं उदाहरण | रस विवेचन का अध्ययन करेंगे। Ras Ke Prakar With Example | रस के प्रकार : रस के प्रकार इस प्रकार है : • श्रृंगार रस • भयानक रस • रौद्र रस • वीर रस • वीभत्स रस • अद्भुत रस • करुण रस • शांत रस • हास्य रस • वात्सल्य रस • भक्ति रस श्रृंगार रस | Shringar Ras : जैसा कि आप जानते हैं श्रृंगार रस को “रसराज” कहा जाता है और श्रृंगार रस को रसराज की संज्ञा आचार्य भोजराज ने दी है। श्रंगार रस का रंग श्याम देवता विष्णु स्थायी भाव रति श्रृंगार रस के पक्ष : श्रृंगार रस के पक्ष : इसके 2 पक्ष होते हैं – • वियोग श्रृंगार (विप्रलम्भ श्रृंगार) • संयोग श्रृंगार वियोग श्रृंगार : वियोग श्रृंगार की चार स्थितियां होती है :- • पूर्वानुराग • मान • प्रवास • करुण इन चार स्थितियों को निर्धारित करने वाले आचार्य रुद्रट हैं। वियोग श्रृंगार की 10 अवस्थाएं होती है जो इस प्रकार है :- • चिंता • स्मृति • अभिलाषा • गुण कथन • प्रलाप • उद्वेग • व्याधि • उन्माद • जड़ता • मरण श्रृंगार रस को रसराज कहे जाने के आधार : • श्रृंगार रस की प्रकृति सार्वभौमिक होती है, चाहे कोई रसिक हो अथवा अरसिक, शिक्षित हो अथवा अशिक्षित यह सभी को प्राप्त होता है। • इसके दो पक्ष होते हैं – संयोग और वियोग । अतः यह व्यापक रस है। • इसका स्थायी भाव है –...

वीभत्स रस

• दे • वा • सं वीभत्स रस (अंग्रेजी-Odious, disgust)काव्य में मान्य नव रसों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। इसकी स्थिति दु:खात्मक रसों में मानी जाती है। साहित्य रचना में इस रस का प्रयोग बहुत कम ही होता है। 'विष्टा पूय रुधिर कच हाडा बरषइ कबहुं उपल बहु छाडा' (वह कभी विष्ठा, खून, बाल और हड्डियां बरसाता था और कभी बहुत सारे पत्थर फेंकने लगता था।) बाहरीकड़ियाँ [ ] • सन्दर्भ [ ]