वीर तुम बढ़े चलो

  1. वीर तुम बढ़े चलो
  2. आज का शब्द:निडर और द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की सुप्रसिद्ध रचना
  3. वीर तुम बढ़े चलो कविता Hindi poem veer tum badhe chalo
  4. वीर तुम बढ़े चलो
  5. बढ़े चलो बढ़े चलो


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वीर तुम बढ़े चलो

बढ़े चलो बढ़े चलो वीर तुम बढ़े चलो हाथों में थामे हाथ एकता का मंत्र साथ बैर भाव भूल के चलो बढे़ चलो--- ऊँची भरो उड़ान शौर्य का गाओ गान प्रेम गीत गाते चलो बढ़े चलो--- अज्ञानता दूर करो ध्येय का ध्यान धरो ज्ञान ज्योत जलाते चलो बढ़े चलो सत्य का जयघोष करो लक्ष्य ये पूर्ण करो संगठन गढ़े चलो बढ़े चलो------ बढ़े चलो बढ़े चलो वीर तुम बढ़े चलो ।

आज का शब्द:निडर और द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की सुप्रसिद्ध रचना

वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो! हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो! सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो! प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो सूर्य से बढ़े चलो चन्द्र से बढ़े चलो वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

वीर तुम बढ़े चलो कविता Hindi poem veer tum badhe chalo

Hindi poem veer tum badhe chalo दोस्तों कैसे हैं आप सभी,दोस्तों आज की हमारी कविता द्वारका प्रसाद माहेश्वरी जी द्वारा लिखी गई है द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी एक महान कवि थे इनकी कृतियां वास्तव में बहुत ही प्रसिद्ध हैं.द्वारका प्रसाद माहेश्वरी जी का जन्म 1 दिसंबर 1916 को आगरा के रोहता में हुआ था उन्होंने अपने जीवन में बच्चों के कवि सम्मेलन का प्रारंभ किया.उन्होंने अपने जीवन में शिक्षा के व्यापक प्रसार के लिए भी काफी प्रयास किया इन्होंने बाल साहित्य पर भी कई किताबें लिखी वास्तव में द्वारका प्रसाद माहेश्वरी जी को साहित्य में एक विशेष स्थान प्राप्त है चलिए पढ़ते हैं इनके द्वारा लिखी वीर तुम बढ़े चलो कविता को Hindi poem veer tum badhe chalo वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो प्रात हो की रात हो संग हो ना साथ हो सूर्य सूर्य से बढ़े चलो चंद्र से बढ़े चलो वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो एक ध्वज लिए हुए एक प्रण किए हुए मातृभूमि के लिए पितृभूमि के लिए वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो अन्न भूमि में भरा बारी भूमि में भरा यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो • दोस्तों अगर आपको हमारे द्वारा लिखा गया है ये आर्टिकल Hindi poem veer tum badhe chalo पसंद आए तो इसे अपने दोस्तों में शेयर करना ना भूले इसे शेयर जरूर करें और हमारा Facebook पेज लाइक करना ना भूलें और हमें कमेंटस के जरिए बताएं कि आपको हमारा यह आर्टिकल कैसा लगा जिससे नए नए आर्टिकल लिखने प्रति हमें प्रोत्स...

वीर तुम बढ़े चलो

देश की खातिर जिये है देश की खातिर मरेंगे राष्ट्रभक्ति के हवन में प्राण न्यौछावर करेंगे तुम हमारा साथ दो और ये हमें कहते चलो वीर तुम बढ़े चलो, वीर तुम बढ़े चलो जब किसी वीरांगना की सेज खाली हो गई तुम बचे थे मौत से सबकी दीवाली हो गई सरहदों पे हम लड़े सीने पे खाई गोलियां दोस्तों की टोलियों ने तब मनाई होलियां जब फकत चेहरे बचे और याद बाकी रह गई तब किसी के हाथ में बहनों की राखी रह गई हम डरें ना काल से विकराल से भी ना डरेंगे राष्ट्रभक्ति के हवन में प्राण न्यौछावर करेंगे तुम हमारा साथ दो और ये हमें कहते चलो वीर तुम बढ़े चलो, वीर तुम बढ़े चलो राजनेता राज करते जान देते है नहीं जान जो देते है वो फिर राज करते है नहीं तुम हमें सत्ता नहीं बस स्नेह का ही ताज दो राज ना दिल्ली का दो अपने दिलो का राज दो हौसले तोड़े जो ऐसी बात ना करना कभी दुश्मनों की फितरतों से तुम नहीं चढ़ना कभी हम तुम्हारे वास्ते सारे जहां से लड़ पड़ेंगे राष्ट्रभक्ति के हवन में प्राण न्यौछावर करेंगे तुम हमारा साथ दो और ये हमें कहते चलो वीर तुम बढ़े चलो, वीर तुम बढ़े चलो...!

बढ़े चलो बढ़े चलो

बढ़े चलो बढ़े चलो, रुको नहीं डटे रहो, डगर पर अपनी चले चलो। गिरो उठो चलो सम्भलो, थकने का न नाम लो, वीर हो तुम रणधीर हो तुम, बढ़े चलो बढ़े चलो। डरने का मत नाम लो, मंज़िल पर अपनी ध्यान दो, बढ़े चलो बढ़े चलो। चिड़ियों सा चहचहाओ, सागर सा लहराओ तुम, सेवा के पथ पर, बढ़े चलो बढ़े चलो। पीछे तुम मुडो नहीं, तान सिना डटो वही, वतन पर कुर्बान हो, बढ़े चलो बढ़े चलो। रक्त से अपने सींच दो, काल घटा का रुख मोड़ दो, गुलामी की जंजीरें तोड़ दो, बढ़े चलो बढ़े चलो। -प्रीति कुमारी अध्यापिका लुधियाना,पंजाब - हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है। आपकी रचनात्मकता को अमर उजाला काव्य देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए