व्यंजन संधि की परिभाषा

  1. संस्कृत: व्यंजन सन्धि परिभाषा, उदाहरण vyanjan sandhi
  2. व्यंजन संधि किसे कहते हैं? व्यंजन संधि के उदाहरण, प्रकार, भेद, ट्रिक, सूत्र, नियम, संस्कृत में vyanjan sandhi in hindi, in sanskrit
  3. संधि की परिभाषा और उदाहरण
  4. व्यंजन संधि
  5. Vyanjan Sandhi
  6. संधि की परिभाषा, भेद और उनके उदाहरण
  7. व्यंजन संधि की परिभाषा, नियम एवं उदाहरण – Best Hindi Blog in India
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संस्कृत: व्यंजन सन्धि परिभाषा, उदाहरण vyanjan sandhi

जब व्यञ्जन के सामने कोई व्यंजन अथवा स्वर आता है तब 'हल्' (व्यंजन) सन्धि होती है। व्यंजन (हल् ) सन्धि व्यंजन सन्धि के निम्नलिखित प्रकार हैं सन्धि की परिभाषा –“ वर्ण - सन्धानं सन्धिः” इस नियम के अनुसार दो वणों के मेल का सन्धि कहते हैं। अर्थात् कि दो वर्णों के मेल जो विकार उत्पन्न होता है उसे ' सन्धि ' कहते हैं। वर्ण सन्धान को संधि कहते हैं । About Us हम copyright का पुरा सम्मान करते हैं। इस वेबसाइट https://www.shirswastudy.com द्वारा दी जा रही जानकारी इंटरनेट से ली गई है। अतः आपसे निवेदन है कि अगर किसी जानकारी के अधिकार क्षेत्र से या अन्य किसी भी प्रकार की दिक्कत है तो आ हमे [email protected] पर सूचित करें।हम निश्चित ही इस content को हटा लेंगे। केवल सही सही प्रकार जानकारी/सूचनाएं प्रदान कराने का प्रयास करते हैं और सदैव यही प्रयत्न करते है कि हम आपको अपडेटड खबरे तथा समाचार प्रदान करे।

व्यंजन संधि किसे कहते हैं? व्यंजन संधि के उदाहरण, प्रकार, भेद, ट्रिक, सूत्र, नियम, संस्कृत में vyanjan sandhi in hindi, in sanskrit

विषय-सूचि • • • इसलेखमेंहम व्यंजनसंधिकीपरिभाषा • जबसंधिकरतेसमयव्यंजनकेसाथस्वरयाकोईव्यंजनकेमिलनेसेजोरूपमेंपरिवर्तनहोताहै, उसेहीव्यंजनसंधिकहतेहैं। • यानीजबदोवर्णोंमेंसंधिहोतीहैतोउनमेसेपहलायदिव्यंजनहोताहैऔरदूसरास्वरयाव्यंजनहोताहैतोउसेहमव्यंजनसंधिकहतेहैं। व्यंजनसंधिकेकुछउदाहरण : • दिक् + अम्बर = दिगम्बर • अभी + सेक = अभिषेक • दिक् + गज = दिग्गज • जगत + ईश = जगदीश व्यंजनसंधिकेनियम : व्यंजनसंधिकेकुल 13 नियमहोतेहैंजोकिनिम्नहै : नियम 1: • जबकिसीवर्गकेपहलेवर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्)कामिलनकिसीवर्गकेतीसरेयाचौथेवर्णसेया (य्, र्, ल्, व्, ह)सेयाकिसीस्वरसेहोजायेतो क्को ग् , च्को ज् , ट्को ड् , त्को द् , और प्को ब्मेंबदलदियाजाताहै। • अगरव्यंजनसेस्वरमिलताहैतोजोस्वरकीमात्राहोगीवोहलन्तवर्णमेंलगजाएगी। • लेकिनअगरव्यंजनकामिलनहोताहैतोवेहलन्तहीरहेंगे। उदाहरण : • क्काग्मेंपरिवर्तन : • वाक् +ईश : वागीश • दिक् + अम्बर : दिगम्बर • दिक् + गज : दिग्गज • ट्काड्मेंपरिवर्तन : • षट् + आनन : षडानन • षट् + यन्त्र : षड्यन्त्र • षड्दर्शन : षट् + दर्शन • त्काद्मेंपरिवर्तन : • सत् + आशय :सदाशय • तत् + अनन्तर :तदनन्तर • उत् + घाटन :उद्घाटन • प्काब्मेंपरिवर्तन : • अप् + ज : अब्ज • अप् + द : अब्दआदि। नियम 2: • अगरकिसीवर्गकेपहलेवर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्)कामिलननयामवर्ण ( ङ,ञज, ण, न, म)केसाथहोतो क्का ङ्, च्का ज्, ट्का ण्, त्का न्, तथा प्का म्मेंपरिवर्तनहोजाताहै। उदाहरण : • क्काङ्मेंपरिवर्तन : • दिक् + मण्डल :दिङ्मण्डल • वाक् + मय :वाङ्मय • प्राक् + मुख :प्राङ्मुख • ट्काण्मेंपरिवर्तन : • षट् + मूर्ति : षण्मूर्ति • षट् + मुख :षण्मुख • षट् + मास : षण्मास • त्कान्मेंपरिवर्तन : • उत् + मूलन :उन्मूलन • उत् + नति :उन्नति • जगत्...

संधि की परिभाषा और उदाहरण

संधि की परिभाषा – संधि दो समीपवर्ती वर्णों के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है उसे संधि कहते हैं। संधि में पहले शब्द के अंतिम वर्ण और दूसरे शब्द के आदि (पहले) वर्ण का मेल होता है। संधि के उदाहरण – देव + आलय = देवालय दिशा + अंतर = दिशांतर उत् + लाश = उल्लास सदा + एव = सदैव संधि के भेद – संधि के प्रथम वर्ण के आधार पर संधि के तीन भेद होते हैं। 1. स्वर संधि 2. व्यंजन संधि 3. विसर्ग संधि स्वर संधि की परिभाषा – स्वर के बाद स्वर अर्थात दूसरों के मेल से उत्पन्न होने वाले विकार को स्वर संधि कहते हैं। उदाहरण – सूर्य + अस्त = सूर्यास्त महा + आत्मा = महात्मा स्वर संधि के भेद – स्वर संधि के पांच भेद होते हैं 1. दीर्घ संधि 2. गुण संधि 3. वृद्धि संधि 4. यण संधि 5. अयादि संधि दीर्घ संधि की परिभाषा – जब ह्रस्व व दीर्घ अ, इ, उ के बाद ह्रस्व व दीर्घ अ, इ, उ स्वर आए तो आ, ई, ऊ हो जाता है। दीर्घ संधि का उदाहरण – अ + अ = आ स्व + अर्थी = स्वार्थी अ + आ = आ देव + आलय = देवालय इ + इ = ई कपि + इंद्र = कपींद्र इ + ई = ई गिरि + ईस = गिरीश उ + उ = ऊ गुरु + उपदेश = गुरुपदेश उ + ऊ = ऊ लघु + उर्मि = लघूर्मि गुण संधि की परिभाषा – यदि ‘अ’ और ‘आ’ बाद ‘इ’ या ‘ई’, ‘ओ’ या औ ‘ऋ’ स्वर आए तो इनके मिलने से क्रमशः ए ओ और अर् हो जाता है। गुण संधि के उदाहरण – अ + इ = ए नर + इंद्र= नरेंद्र आ + इ = ए यथा + इस्ट = यथेष्ट आ + ई = ए रमा + ईश = उमेश अ + उ = ओ पर + उपकार = परोपकार आ + उ = ओ नव + उढा = नवो आ + ऊ = ओ महा + ऊर्जा = महोर्जा अ + ऋ = अर् ब्रह्म + ऋषि = ब्रह्मर्षि आ + ऋ = अर् महा + ऋषि = महर्षि वृद्धि संधि की परिभाषा – जब ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’ या ‘ऐ’ आता है तो उनके मेल से ‘ऐ’ हो जाता है और ‘अ’ या ‘आ’ बाद ‘ओ’ या ‘औ’...

व्यंजन संधि

अनुक्रम • 1 प्रकार • 1.1 1 • 1.2 2 • 1.3 3 • 1.4 4 • 1.5 5 • 1.6 6 • 1.7 7 • 1.8 8 • 1.9 9 • 1.10 10 • 1.11 11 • 1.12 12 • 2 विसर्ग संधि • 3 स्रोत प्रकार [ ] एक व्यंजन का अन्य किसी व्यंजन अथवा स्वर से मेल होने पर जो विकार (परिवर्तन) होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं। उदाहरण:- शरत् + चंद्र = शरच्चंद्र षट् + आनन = षडानन जगत् + ईश = जगदीश 1 [ ] किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मेल किसी वर्ग के तीसरे अथवा चौथे वर्ण या य्, र्, ल्, व्, ह या किसी स्वर से हो जाए तो, क् को ग् , च् को ज् , ट् को ड् , त् को द् ,प् को ब् , मे बदल दिया जाता है। जैसे - क् + ग = ग्ग , जैसे दिक् + गज = दिग्गज । क् + ई = गी , जैसे वाक् + ईश = वागीश। च् + अ = ज् , जैसे अच् + अंत = अजंत। ट् + आ = डा , जैसे षट् + आनन = षडानन। त् + भ=द् , जैसे सत् + भावना = सद्भावना। प् + ज= ब्ज , जैसे अप् + ज = अब्ज। त् + धि= द्धि , जैसे सित् + धि = सिद्धि। 2 [ ] यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मेल न् या म् वर्ण से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। जैसे - क् + म = ड़् (वाक् + मय = वाड़्मय) च् + न = ञ् / ं (अच् + नाश = अञ्नाश) ट् + म = ण् (षट् + मास = षण्मास) त् + न = न् (उत् + नयन = उन्नयन) प् + म् = म् (अप् + मय = अम्मय) 3 [ ] त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या किसी स्वर से हो जाए तो द् हो जाता है। जैसे - त् + भ = द्भ (सत् + भावना = सद्भावना) त् + ई = दी (जगत् + ईश = जगदीश) त् + भ = द्भ (भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति) त् + र = द्र (तत् + रूप = तद्रूप) त् + ध = द्ध (सत् + धर्म = सद्धर्म) 4 [ ] त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ...

Vyanjan Sandhi

Vyanjan Sandhi | व्यंजन संधि किसे कहते हैं ? व्यंजन संधि के उदाहरण, भेद, परिभाषा व्यंजन संधि (Vyanjan Sandhi) संधि के भेद में से ही एक भेद जिसके बारे में हम इस लेख में जानेंगे। व्यंजन संधि से सम्बंधित विभिन सवालो जैसे व्यंजन संधि किसे कहते हैं? व्यंजन संधि के उदाहरण (Vyanjan Sandhi ke Udharan) , भेद एंव परिभाषा इत्यादि के बारे में जानेंगे। यहाँ व्यंजन संधि के ट्रिक्स (vyanjan sandhi trick) भी दिए गए है। व्यंजन संधि में एक व्यंजन का किसी दूसरे व्यंजन से अथवा स्वर से मेल होने पर दोनों मिलनेवाली ध्वनियों में विकार पैदा होता है। यह विकार होता कैसे है, इसकी प्रक्रिया को समझना जरुरी है। जब हम किसी स्वर अथवा व्यंजन का उच्चारण करते हैं तो मोटे तौर पर दो प्रयत्न होते हैं – एक तो मुंह के अंगों का संचालन होता है; जैसे-होठों का मिलना अलग होना (प फ ब भ म् तथा सभी स्वर ); जीभ का मुंह के अंदर अलग-अलग स्थानों पर जाना-आना जैसे-जीभ का ऊपर के दातों से लगकर उच्चारण करना (तु थ द ध न स के उच्चारण) ऊपर के दांतो के मसूड़ों से थोड़ा ऊपर तालु से स्पर्श कर उच्चारण करना (च छ, ज झ क श्, य् इ ई ए) , जीभ का तालु के सबसे ऊपर के भाग मूर्धा से लगकर उच्चारण करना, ( ट्ट् ड् ढ् ण, र छ में) तथा जीभ के मूल भाग का कंठ को बंद करके उच्चारण करना (क्, ख् ग् घ् ङ्) आदि। दूसरा प्रयत्न हमारे गले में स्थापित स्वर-तंत्रियों (Vocal cords) के कंपित होने से होता है। ये स्वर-तंत्रियाँ सभी स्वरों में और प्रत्येक वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें व्यंजन (ग, घ, ङ् ज् झ् बडदण् द् ध् न् ब् भ म्) में तथा य र ल व् ह में कंपित होती हैं इसलिए इन ध्वनियों को घोष या सघोष कहा जाता है तथा शेष ध्वनियों (क, ख च छ आदि) को अघोष कहा जाता है। व्यंज...

संधि की परिभाषा, भेद और उनके उदाहरण

Contents • 1 सन्धि की परिभाषा • 2 संधि के भेद • 2.1 (1) स्वर संधि • 2.1.1 1. दीर्घ संधि • 2.1.2 2. गुण संधि • 2.1.3 3. वृद्धि संधि • 2.1.4 4. यण संधि • 2.1.5 5. अयादि संधि • 2.2 (2) व्यंजन संधि • 2.2.1 व्यंजन सन्धि के नियम • 2.3 (3) विसर्ग संधि • 2.3.1 विसर्ग संधि के नियम • 2.3.2 विसर्ग संधि के अपवाद • 3 हिन्दी व्याकरण सन्धि की परिभाषा हिन्दी व्याकरण में संधि शब्द का अर्थ है ‘मेल’। दो वर्णों या ध्वनियों के संयोग से होने वाले विकार (परिवर्तन) को सन्धि कहते हैं। या दो शब्दों या शब्दांशों के मिलने से नया शब्द बनने पर उनके निकटवर्ती वर्णों में होने वाले परिवर्तन या विकार को संधि कहते हैं। सन्धि करते समय कभी–कभी एक अक्षर में, कभी–कभी दोनों अक्षरों में परिवर्तन होता है और कभी–कभी दोनों अक्षरों के स्थान पर एक तीसरा अक्षर बन जाता है। उदाहरण सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र विद्या + आलय = विद्यालय सत् + आनन्द = सदानन्द यथा + उचित= यथोचित यशः + इच्छा= यशइच्छ अखि + ईश्वर= अखिलेश्वर आत्मा + उत्सर्ग= आत्मोत्सर्ग महा + ऋषि= महर्षि लोक + उक्ति= लोकोक्ति सम् + तोष = संतोष देव + इंद्र = देवेंद्र भानु + उदय = भानूदय नर + ईश = नरेश विद्या + अर्थी = विद्यार्थी संधि के भेद संधि के मुख्य रूप से तीन भेद होते हैं : 1.स्वर संधि 2. व्यंजन संधि 3 विसर्ग संधि (1) स्वर संधि स्वर के साथ स्वर का मेल होने पर जो विकार होता है, उसे स्वर सन्धि कहते हैं। जब दो स्वर मिलते हैं जब उससे जो तीसरा स्वर बनता है उसे स्वर संधि कहते हैं। स्वर संधि को भी पाँच भागों में बाँटा किया गया है : 1. दीर्घ संधि 2. गुण संधि 3. वृद्धि संधि 4. यण संधि 5. अयादि संधि 1. दीर्घ संधि जब ह्रस्व या दीर्घ स्वर के बाद ह्रस्व या दीर्घ स्वर आएँ, तो ...

व्यंजन संधि की परिभाषा, नियम एवं उदाहरण – Best Hindi Blog in India

आज के इस लेख में हम व्यंजन संधि के बारे में पढ़ने वाले हैं, इस लेख में हम व्यंजन संधि की परिभाषा तथा व्यंजन संधि के नियम को उदाहरण के साथ पढ़ेगें तो व्यंजन संधि की सम्पूर्ण जानकारी के लिए आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें। व्यंजन संधि की परिभाषा किसी व्यंजन संधि का किसी स्वर संधि अथवा किसी व्यंजन संधि से मेल होता है तो संधि के बाद होने वाले परिवर्तन को व्यंजन संधि कहते हैं। उदाहरण • दिक् + गज = दिग्गज • वाक् + ईश = वागीश • षट् + मास = षण्मास • उत् + नयन = उन्नयन • तत् + टीका = तट्टीका • उत् + डयन = उड्डयन • संधि + छेद = संधिच्छेद • अनु + छेद = अनुच्छेद व्यंजन संधि के नियम व्यंजन संधि के कुल 11 नियम है जो कि निम्नलिखित दिए गए हैं- नियम 1.- किसी वाक्य में वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, त्, ट्, प् का मिलन अन्य वर्ग के तीसरे या चौथे वर्ण य्,ह, र्,व्,ल् या फिर किसी अन्य स्वर से हो तो क् को ग् च् को ज्, ट् को ड् और प् को ब् हो जाता है। उदाहरण • अप् + ज = अब्ज , प + ज + ब्ज • दिक् + गज = दिग्गज , क् + ग = ग्ग • षट् + आनन = षडानन , ट् + आ = डा • वाक् + ईश = वागीश , क् + ई = गी • अच् + अंत = अजंत , च् + अ = ज् नियम 2.- यदि वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मेल न् या म् वर्णों के साथ किया गया हो तो उन वर्णों की जगह पर वर्ग का पांचवा वर्ण हो जाता है। उदाहरण • उत् + नयन = उन्नयन • अप् + मय = अम्मय • षट् + मास = षण्मास • अच् + नाश = अंनाश नियम 3.- जब किसी संधि में त् का मिलन ग, घ,व, द, र, ध, ब, य, भ अथवा किसी अन्य स्वर के साथ होता है तो वह द् में परिवर्तित हो जाता है। उदाहरण • सत् + धर्म = सद्धर्म • जगत् + ईश = जगदीश • तत् + रूप = तद्रूप • सत् + भावना = सद्भावना • भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्त...

संस्कृत: व्यंजन सन्धि परिभाषा, उदाहरण vyanjan sandhi

जब व्यञ्जन के सामने कोई व्यंजन अथवा स्वर आता है तब 'हल्' (व्यंजन) सन्धि होती है। व्यंजन (हल् ) सन्धि व्यंजन सन्धि के निम्नलिखित प्रकार हैं सन्धि की परिभाषा –“ वर्ण - सन्धानं सन्धिः” इस नियम के अनुसार दो वणों के मेल का सन्धि कहते हैं। अर्थात् कि दो वर्णों के मेल जो विकार उत्पन्न होता है उसे ' सन्धि ' कहते हैं। वर्ण सन्धान को संधि कहते हैं । About Us हम copyright का पुरा सम्मान करते हैं। इस वेबसाइट https://www.shirswastudy.com द्वारा दी जा रही जानकारी इंटरनेट से ली गई है। अतः आपसे निवेदन है कि अगर किसी जानकारी के अधिकार क्षेत्र से या अन्य किसी भी प्रकार की दिक्कत है तो आ हमे [email protected] पर सूचित करें।हम निश्चित ही इस content को हटा लेंगे। केवल सही सही प्रकार जानकारी/सूचनाएं प्रदान कराने का प्रयास करते हैं और सदैव यही प्रयत्न करते है कि हम आपको अपडेटड खबरे तथा समाचार प्रदान करे।

Vyanjan Sandhi

Vyanjan Sandhi | व्यंजन संधि किसे कहते हैं ? व्यंजन संधि के उदाहरण, भेद, परिभाषा व्यंजन संधि (Vyanjan Sandhi) संधि के भेद में से ही एक भेद जिसके बारे में हम इस लेख में जानेंगे। व्यंजन संधि से सम्बंधित विभिन सवालो जैसे व्यंजन संधि किसे कहते हैं? व्यंजन संधि के उदाहरण (Vyanjan Sandhi ke Udharan) , भेद एंव परिभाषा इत्यादि के बारे में जानेंगे। यहाँ व्यंजन संधि के ट्रिक्स (vyanjan sandhi trick) भी दिए गए है। व्यंजन संधि में एक व्यंजन का किसी दूसरे व्यंजन से अथवा स्वर से मेल होने पर दोनों मिलनेवाली ध्वनियों में विकार पैदा होता है। यह विकार होता कैसे है, इसकी प्रक्रिया को समझना जरुरी है। जब हम किसी स्वर अथवा व्यंजन का उच्चारण करते हैं तो मोटे तौर पर दो प्रयत्न होते हैं – एक तो मुंह के अंगों का संचालन होता है; जैसे-होठों का मिलना अलग होना (प फ ब भ म् तथा सभी स्वर ); जीभ का मुंह के अंदर अलग-अलग स्थानों पर जाना-आना जैसे-जीभ का ऊपर के दातों से लगकर उच्चारण करना (तु थ द ध न स के उच्चारण) ऊपर के दांतो के मसूड़ों से थोड़ा ऊपर तालु से स्पर्श कर उच्चारण करना (च छ, ज झ क श्, य् इ ई ए) , जीभ का तालु के सबसे ऊपर के भाग मूर्धा से लगकर उच्चारण करना, ( ट्ट् ड् ढ् ण, र छ में) तथा जीभ के मूल भाग का कंठ को बंद करके उच्चारण करना (क्, ख् ग् घ् ङ्) आदि। दूसरा प्रयत्न हमारे गले में स्थापित स्वर-तंत्रियों (Vocal cords) के कंपित होने से होता है। ये स्वर-तंत्रियाँ सभी स्वरों में और प्रत्येक वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें व्यंजन (ग, घ, ङ् ज् झ् बडदण् द् ध् न् ब् भ म्) में तथा य र ल व् ह में कंपित होती हैं इसलिए इन ध्वनियों को घोष या सघोष कहा जाता है तथा शेष ध्वनियों (क, ख च छ आदि) को अघोष कहा जाता है। व्यंज...

व्यंजन संधि

अनुक्रम • 1 प्रकार • 1.1 1 • 1.2 2 • 1.3 3 • 1.4 4 • 1.5 5 • 1.6 6 • 1.7 7 • 1.8 8 • 1.9 9 • 1.10 10 • 1.11 11 • 1.12 12 • 2 विसर्ग संधि • 3 स्रोत प्रकार [ ] एक व्यंजन का अन्य किसी व्यंजन अथवा स्वर से मेल होने पर जो विकार (परिवर्तन) होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं। उदाहरण:- शरत् + चंद्र = शरच्चंद्र षट् + आनन = षडानन जगत् + ईश = जगदीश 1 [ ] किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मेल किसी वर्ग के तीसरे अथवा चौथे वर्ण या य्, र्, ल्, व्, ह या किसी स्वर से हो जाए तो, क् को ग् , च् को ज् , ट् को ड् , त् को द् ,प् को ब् , मे बदल दिया जाता है। जैसे - क् + ग = ग्ग , जैसे दिक् + गज = दिग्गज । क् + ई = गी , जैसे वाक् + ईश = वागीश। च् + अ = ज् , जैसे अच् + अंत = अजंत। ट् + आ = डा , जैसे षट् + आनन = षडानन। त् + भ=द् , जैसे सत् + भावना = सद्भावना। प् + ज= ब्ज , जैसे अप् + ज = अब्ज। त् + धि= द्धि , जैसे सित् + धि = सिद्धि। 2 [ ] यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मेल न् या म् वर्ण से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। जैसे - क् + म = ड़् (वाक् + मय = वाड़्मय) च् + न = ञ् / ं (अच् + नाश = अञ्नाश) ट् + म = ण् (षट् + मास = षण्मास) त् + न = न् (उत् + नयन = उन्नयन) प् + म् = म् (अप् + मय = अम्मय) 3 [ ] त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या किसी स्वर से हो जाए तो द् हो जाता है। जैसे - त् + भ = द्भ (सत् + भावना = सद्भावना) त् + ई = दी (जगत् + ईश = जगदीश) त् + भ = द्भ (भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति) त् + र = द्र (तत् + रूप = तद्रूप) त् + ध = द्ध (सत् + धर्म = सद्धर्म) 4 [ ] त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ...