यीशु

  1. Yeshu Saleeb Par Mua – Praise and Worship
  2. यीशु के बलिदान से कैसे शुद्धता के वरदान को प्राप्त किया जा सकता है?
  3. यूहन्ना 1 ERV
  4. यीशु मसीह कौन है
  5. योहन 13 ERV
  6. यीशु का पुनरुत्थान
  7. यीशु के कहने का क्या अर्थ था, जब उसने यह कहा, 'अपना क्रूस उठाओ और मेरे पीछे हो लो' (मत्ती 16:24; मरकुस 8:34; लूका 9:23)?
  8. यीशु की प्रार्थना
  9. यीशु मसीह कौन है?


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Yeshu Saleeb Par Mua – Praise and Worship

यीशु सलीब पर मुआ तेरे लिये, मेरे लिये कैसा महान दुख सहा तेरे लिये मेरे लिये धारा वो कैसी खून की ख्रीस्त के क्रूस से बह रही धुल गये पाप, मिट गये दाग यीशु मसीह के लहू से यीशु सलीब धो डालो आज पापों को दिल से मिटा दो दागों को हो जाओ साफ, तन मन से आज यीशु मसीह के लहू से यीशु सलीब मर गया था क्रूस पर छेदा गया था क्रूस पर मैं भी बचा, तुम भी बचो यहोवा की सजाओं से यीशु सलीब Other Songs from • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • Yeshu Saleeb Par Mua यीशु सलीब पर मुआ तेरे लिये, मेरे लिये कैसा महान दुख सहा तेरे लिये मेरे लिये धारा वो कैसी खून की ख्रीस्त के क्रूस से बह रही धुल गये पाप, मिट गये दाग यीशु मसीह के लहू से यीशु सलीब धो डालो आज पापों को दिल से मिटा दो दागों को हो जाओ साफ, तन मन से आज यीशु मसीह के लहू से यीशु सलीब मर गया था क्रूस पर छेदा गया था क्रूस पर मैं भी बचा, तुम भी बचो यहोवा की सजाओं से यीशु सलीब

यीशु के बलिदान से कैसे शुद्धता के वरदान को प्राप्त किया जा सकता है?

यीशु सभी लोगों के लिए स्वयं का बलिदान देने के लिए आया । यही सन्देश प्राचीन ऋग्वेद के भजनों में प्रतिछाया स्वरूप और साथ ही साथ प्रतिज्ञाओं में और प्राचीन इब्रानी वेदों में मिलता है। यीशु उस प्रश्न का उत्तर है जिसे हम प्रत्येक बार उच्चारित की गईप्ररथा स्नाना (या प्रतासना) मंत्र की प्रार्थना के समय पूछते हैं। ऐसे कैसे हो सकता है? बाइबल (वेद पुस्तक) कर्मों की एक ऐसी व्यवस्था की घोषणा करती है जो हम सभों को प्रभावित करती है: क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है…(रोमियों 6:23) नीचे मैंने एक उदाहरण के द्वारा कर्मों की व्यवस्था को दिखलाया है। “मृत्यु” का अर्थ सम्बन्ध विच्छेद से है। जब हमारे प्राण हमारे शरीर से अलग हो जाते हैं तो हम शारीरिक रूप से मर जाते हैं। इसी तरह से हम परमेश्‍वर से आत्मिक रूप से अलग हो जाते हैं। ऐसा इसलिये सत्य है क्योंकि परमेश्‍वर पवित्र (पाप रहित) है। हम परमेश्‍वर से अलग हमारे पापों के कारण ऐसे हैं जैसे कि दो चोटियों के बीच एक खाई होती है हम स्वयं का चित्रण ऐसे कर सकते हैं जैसे एक चोटी पर तो हम हैं और दूसरी चोटी पर परमेश्‍वर स्वयं है और हम इस पाप की अथाह खाई से अलग किए हुए हैं । यह विच्छेद दोष और डर को उत्पन्न करता है। इसलिए हम स्वाभाविक रूप से एक पुल को निर्मित करने का प्रयास करते हैं जो हमें हमारी तरफ से (मृत्यु से) परमेश्‍वर की ओर ले जाए। हम बलिदानों को अर्पण करते हैं, पूजा पाठ करते हैं, तपस्या को करते हैं, त्योहारों में भागी होते हैं, मन्दिरों में जाते हैं, कई तरह की प्रार्थनाएँ करते हैं और यहाँ तक कि हम पाप को न करने या कम करने की कोशिशें करते हैं। कर्मों की यह सूची सद्कर्मों को प्राप्त करने के लिए हम में से कइयों के लिए लम्बी हो सकती है । समस्या यह है कि ...

यूहन्ना 1 ERV

यीशु का आना 1 आदि में शब्द [ 2 यह शब्द ही आदि में परमेश्वर के साथ था। 3 दुनिया की हर वस्तु उसी से उपजी। उसके बिना किसी की भी रचना नहीं हुई। 4 उसी में जीवन था और वह जीवन ही दुनिया के लोगों के लिये प्रकाश (ज्ञान, भलाई) था। 5 प्रकाश अँधेरे में चमकता है पर अँधेरा उसे समझ नहीं पाया। 6 परमेश्वर का भेजा हुआ एक मनुष्य आया जिसका नाम यूहन्ना था। 7 वह एक साक्षी के रूप में आया था ताकि वह लोगों को प्रकाश के बारे में बता सके। जिससे सभी लोग उसके द्वारा उस प्रकाश में विश्वास कर सकें। 8 वह खुद प्रकाश नहीं था बल्कि वह तो लोगों को प्रकाश की साक्षी देने आया था। 9 उस प्रकाश की, जो सच्चा था, जो हर मनुष्य को ज्ञान की ज्योति देगा, जो धरती पर आने वाला था। 10 वह इस जगत में ही था और यह जगत उसी के द्वारा अस्तित्व में आया पर जगत ने उसे पहचाना नहीं। 11 वह अपने घर आया था और उसके अपने ही लोगों ने उसे अपनाया नहीं। 12 पर जिन्होंने उसे अपनाया उन सबको उसने परमेश्वर की संतान बनने का अधिकार दिया। 13 परमेश्वर की संतान के रूप में वह कुदरती तौर पर न तो लहू से पैदा हुआ था, ना किसी शारीरिक इच्छा से और न ही माता-पिता की योजना से। बल्कि वह परमेश्वर से उत्पन्न हुआ। 14 उस आदि शब्द ने देह धारण कर हमारे बीच निवास किया। हमने परम पिता के एकमात्र पुत्र के रूप में उसकी महिमा का दर्शन किया। वह करुणा और सत्य से पूर्ण था। 15 यूहन्ना ने उसकी साक्षी दी और पुकार कर कहा, “यह वही है जिसके बारे में मैंने कहा था, ‘वह जो मेरे बाद आने वाला है, मुझसे महान है, मुझसे आगे है क्योंकि वह मुझसे पहले मौजूद था।’” 16 उसकी करुणा और सत्य की पूर्णता से हम सबने अनुग्रह पर अनुग्रह प्राप्त किये। 17 हमें व्यवस्था का विधान देने वाला मूसा था पर करुणा और स...

यीशु मसीह कौन है

आज हम पढेंगे यीशु मसीह की कहानी जिसमें हम जानेंगे यीशु मसीह कौन हैं. प्रभु यीशु को जानना मानव जाति के उद्धारकर्ता के रूप में मानना आशीष का कारण है तो आइये जानते हैं Who is Jesus christ in Hindi. प्रभु यीशु मसीह ने कभी कोई किताब नहीं लिखी लेकिन उनके विषय में या उनके जीवनी के बारे में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा पुस्तक छापी गई हैं। उनके जीवन के कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं व तथ्य दिए गए हैं। इस लेख में हम देखेंगे की वास्तव में यीशु मसीह कौन हैं ( Who is jesus Christ) 17 यीशु मसीह की मृत्यु का समय यीशु के नाम का अर्थ क्या है ? | यीशु मसीह की कहानी यीशु का नामकरण स्वर्ग में हुआ…क्योकि स्वर्गदूत ने आकर मरियम और युसुफ को बताया कि उसका नाम यीशु रखना। जिसका मतलब है ‘परमेश्वर उद्धार करता है…बचाता है” यीशु को अंग्रेजी में जीसस कहा जाता है जो मूल भाषा यूनानी से लिया गया है…यूनानी भाषा में ‘ इसुस‘ है…इब्रानी भाषा में येशुआ है जिसका अर्थ है, ‘ यहोवा उद्धार करता है‘। मसीहा का क्या अर्थ है ? | Jesus story यीशु मसीह में ‘मसीह’ कोई नाम नहीं बल्कि एक पदवी है जिसका मतलब है ‘अभिषिक्त’ या अभिषेक पाया हुआ। मसीहा शब्द मूल भाषा इब्रानी के शब्द “मेशाक” से लिया गया है यशायाह 61:1 यहाँ यह शब्द पवित्रात्मा का प्रतीक के रूप में था, और पवित्रात्मा के द्वारा ही यीशु का सेवकाई और जीवन के लिए अभिषेक हुआ था ऐसा स्वयं यीशु ने कहा था (लूका 4:18) में और हम प्रेरितों के काम 10:38 में भी पाते है । यीशु का जन्म मरियम नाम की एक कुंआरी कन्या के द्वारा हुआ…मरियम की मंगनी हुई थी शादी नहीं..यह पवित्रआत्मा की आशीष से हुआ। यीशु के जन्म की भविष्यवाणी | yishu ki kahani यीशु का जन्म की भविष्यवाणी पुराने नियम के लगभग सभी भविष्यवक...

योहन 13 ERV

यीशु का अपने शिष्यों के पैर धोना 13 फ़सह पर्व से पहले यीशु ने देखा कि इस जगत को छोड़ने और परम पिता के पास जाने का उसका समय आ पहुँचा है तो इस जगत में जो उसके अपने थे और जिन्हें वह प्रेम करता था, उन पर उसने चरम सीमा का प्रेम दिखाया। 2 शाम का खाना चल रहा था। शैतान अब तक शमौन इस्करियोती के पुत्र यहूदा के मन में यह डाल चुका था कि वह यीशु को धोखे से पकड़वाएगा। 3 यीशु यह जानता था कि परम पिता ने सब कुछ उसके हाथों सौंप दिया है और वह परमेश्वर से आया है, और परमेश्वर के पास ही वापस जा रहा है। 4 इसलिये वह खाना छोड़ कर खड़ा हो गया। उसने अपने बाहरी वस्त्र उतार दिये और एक अँगोछा अपने चारों ओर लपेट लिया। 5 फिर एक घड़े में जल भरा और अपने शिष्यों के पैर धोने लगा और उस अँगोछे से जो उसने लपेटा हुआ था, उनके पाँव पोंछने लगा। 6 फिर जब वह शमौन पतरस के पास पहुँचा तो पतरस ने उससे कहा, “प्रभु, क्या तू मेरे पाँव धो रहा है।” 7 उत्तर में यीशु ने उससे कहा, “अभी तू नहीं जानता कि मैं क्या कर रहा हूँ पर बाद में जान जायेगा।” 8 पतरस ने उससे कहा, “तू मेरे पाँव कभी भी नहीं धोयेगा।” यीशु ने उत्तर दिया, “यदि मैं न धोऊँ तो तू मेरे पास स्थान नहीं पा सकेगा।” 9 शमौन पतरस ने उससे कहा, “प्रभु, केवल मेरे पैर ही नहीं, बल्कि मेरे हाथ और मेरा सिर भी धो दे।” 10 यीशु ने उससे कहा, “जो नहा चुका है उसे अपने पैरों के सिवा कुछ भी और धोने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि पूरी तरह शुद्ध होता है। तुम लोग शुद्ध हो पर सबके सब नहीं।” 11 वह उसे जानता था जो उसे धोखे से पकड़वाने वाला है। इसलिए उसने कहा था, “तुम में से सभी शुद्ध नहीं हैं।” 12 जब वह उनके पाँव धो चुका तो उसने अपने बाहरी वस्त्र फिर पहन लिये और वापस अपने स्थान पर आकर बैठ गया। और उनस...

यीशु का पुनरुत्थान

4 पुनरुत्थान प्रमाणित करता है कि… ईस्टर संडे क्यों मनाया जाता है ? यीशु मसीह का जन्म, मृत्यु और पुनरुत्थान संसार के इतिहास का केंद्र बिंदु है. यह मसीह विश्वास की आधारशिला है. इस दिन प्रभु यीशु मृतकों में से जी उठे थे इसलिए पूरे विश्व में इसे ईस्टर या पुनरुत्थान दिवस के रूप में मनाया जाता है. रोमन सैनिकों ने यीशु को दो चोरों के बीच क्रूस पर हाथों और पैरों में कीलों को ठोककर बड़ी ही दर्दनाक मृत्यु दी थी. यह दिन रविवार का दिन था इसलिए इस दिन को ईस्टर सन्डे भी कहा जाता है. लूका 24:2 यीशु का पुनरुत्थान क्यों अति महत्वपूर्ण है | Why is Resurrection most Important Image by प्रभु यीशु मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान ही यह प्रमाणित करती है, कि वही इस जगत का उद्धारकर्ता या मुक्तिदाता है. इस बात से साबित होता है यदि वह मृत्यु को हराकर जीवित हो गया तो उस पर विश्वास करने वाले भी जीवित हो जाएंगे. जैसा कि उसने स्वयं कहा था. यीशु मसीह की कही हुई सभी बातें सत्य हो गई. 1 कुरुन्थियों 15:12-19 में संत पौलुस कहते हैं कि मसीही विश्वास का सारा दारोमदार प्रभु यीशु के शारीरिक पुनरुत्थान पर टिका हुआ है. यदि मसीह मरे हुओं में से जी नहीं उठा तो, और मसीही विश्वास व्यर्थ है, और प्रेरितों की शिक्षा व्यर्थ है, और कलीसिया अभी भी पाप में पड़ी रहती, और जो मसीह में जो सो चुके हैं वो सभी नाश हो गए होते. यही बात मसीहियत को समस्त धर्मों से अलग करती है. यीशु मसीह के पुनरुत्थान के प्रमाण | Proof of Christ’s Resurrection मत्ती 28:1-8, मरकुस 16:1-4 सप्ताह के पहले दिन रविवार को तडके सुबह मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम यीशु की कब्र पर आ रहीं थी यह सोचते हुए कि कब्र का भारी पत्थर कौन हटाएगा क्योंकि वे स्त्रियाँ यीशु के मृत श...

यीशु के कहने का क्या अर्थ था, जब उसने यह कहा, 'अपना क्रूस उठाओ और मेरे पीछे हो लो' (मत्ती 16:24; मरकुस 8:34; लूका 9:23)?

उत्तर आइए इस बात से आरम्भ करें कि यीशु के कहने का अर्थ क्या नहीं था। बहुत से लोग "क्रूस" की व्याख्या ऐसे करते हैं कि मानो उन्हें अपने जीवन में कुछ बोझ को उठाना चाहिए जैसे कि: तनावपूर्ण सम्बन्ध, धन्यवाद रहित नौकरी, शारीरिक बीमारी इत्यादि। स्वयं-पर दया करते हुए घमण्ड के साथ वे ऐसा कहते हैं कि, "यह मेरा क्रूस है, जिसे मुझे ही उठा कर चलना है।" इस तरह की एक व्याख्या यीशु के अर्थ में नहीं थी, जब उसने कहा कि, "अपना क्रूस उठाओ और मेरे पीछे हो लो।" जब यीशु अपने क्रूस को गोलगथा के ऊपर चढ़ाए जाने के लिए ले गया, तब कोई भी क्रूस को ले कर चलने को बोझ के प्रतीक के रूप में नहीं सोच रहा था। पहली-शताब्दी में एक व्यक्ति के लिए, क्रूस का अर्थ केवल और केवल एक ही बात : सबसे ज्यादा पीड़ा देने वाले और अपमानजनक तरीकों से मृत्युदण्ड की प्राप्ति से था। दो हजार वर्षों पश्‍चात्, आज भी मसीही विश्‍वासी क्रूस को प्रायश्‍चित्त, क्षमा, कृपा और प्रेम के एक गौरवशाली प्रतीक के रूप में देखते हैं। परन्तु यीशु के दिनों में, क्रूस ने पीड़ादायी मृत्यु के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दर्शाया। क्योंकि रोमी दण्डित अपराधियों को क्रूस पर चढ़ाए जाने के स्थान तक पहुँचने के लिए उन्हें उनके अपने क्रूस को उठाने के लिए मजबूर किया करते थे, इसलिए क्रूस को उठाने का अर्थ उनके अपने तरीके का उपयोग मृत्युदण्ड के स्थान तक पहुँचने के लिए मार्ग में उपहास किए जाने के अर्थ से था। इसलिए, "अपना क्रूस उठाओ और मेरे पीछे हो लो" का अर्थ यीशु का अनुसरण करने के लिए मरने के लिए तैयार रहने से है। इसे "स्वयं के प्रति मरना" कहा जाता है। यह पूर्ण आत्मसमर्पण करने का आह्वान है। यीशु ने स्वयं के क्रूस को उठाने का आदेश देने के पश्‍चात्, यह कहा, "जो कोई अपना प्र...

यीशु की प्रार्थना

प्रार्थना करना मसीही जीवन की स्वास है.. बाइबल में ऐसे अनेक महान लोग हुए हैं जिन्हें प्रार्थना योद्धा कहा जा सकता है लेकिन उन सभी में प्रभु यीशु की प्रार्थना का जीवन हम सभी के लिए एक आदर्श है. संत पौलुस रोमियो की कलीसिया को पत्र लिखते समय कहते हैं रोमियो12:12 आशा में आनन्दित रहो, क्लेशों में स्थिर रहो और प्रार्थना में में नित्य लगे रहो....Be faithful in prayer..devoted…be constent or be continue in prayer. Image by यदि हमारे जीवन से हमारी आशा ले ली जाए तो हमारा जीवन समाप्त समझो. आशा के कारण ही हम जीवित हैं. हम मसीह लोगों के पास जीवित आशा है कि हमारा जीवित प्रभु यीशु पुन: आएगें और हमको अनंतजीवन प्रदान करेगे. उसके लिए इस दुनिया के क्लेशों में स्थिर रहना होगा … .क्लेश अंदरूनी और बाहरी दोंनो प्रकार के होते हैं….लेकिन यदि हमें आशा में आनन्दित रहना है और क्लेशों में स्थिर रहना है तो एक रहस्य है जय पाने के लिए वो है प्रार्थना लगातार करते रहना. Devoted word का मूल भाषा में अनुवाद होता है लगातार करते रहना…और यह बाइबल में अनेको स्थान में प्रार्थना के लिए इस्तेमाल किया गया है. कुलु 4:2 प्रार्थना में लगे रहो. लूका ने 9 बार यीशु मसीह की प्रार्थना का जिक्र किया है. 26 Q. मनुष्य का उद्धार कैसे होता है ? यीशु मसीह के जीवन से सीखेंगे प्रार्थना का रहस्य प्रभु यीशु मसीह के जीवन में सेवा के प्रारंभ से क्रूस की म्रत्यु तक हम लगातार प्रार्थना को देखते हैं. आज हम लूका रचित सुसमाचार में यीशु के जीवन की प्रार्थना के विषय में सीख को देखेंगे. प्रभु यीशु मानव रूप में स्वयं परमेश्वर थे उन्होंने हम मानव जाति को प्रार्थना का एक आदर्श प्रदान किया है. यीशु मसीह के पास प्रार्थना का अनुशासन था( Habbitof Pray...

यीशु मसीह कौन है?

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