भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्य किस देश की उधार ली गई विशेषता है?

  1. संविधान की विशेषता एवं स्रोत से सम्बंधित वस्तुनिष्ठ प्रश्न (MCQ) II Polity
  2. भारत के मूल अधिकार, निदेशक तत्त्व और मूल कर्तव्य
  3. [Solved] भारतीय संविधान के मौलिक कर्तव्यों की अवधारणा
  4. मूल अधिकार (भारत)
  5. भारतीय संविधान की 15 प्रमुख और मुलभुत विशेषता
  6. भारत के संविधान की प्रमुà¤
  7. भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों की विशेषता और मौलिक कर्तव्यों की व्याख्या


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संविधान की विशेषता एवं स्रोत से सम्बंधित वस्तुनिष्ठ प्रश्न (MCQ) II Polity

1. विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान किस देश का है – a. अमेरिका b. फ्रांस c. ब्रिटेन d. भारत Ans- d 2. भारतीय संविधान के किस संशोधन को ‘ मिनी कांस्टीटयूशन ‘ कहा जाता है ? a.41 वें b. 42 वें c. 43 वें d. 44 वें Ans- b 3. भारतीय संविधान में एकल नागरिकता की अवधारणा ली गई है – a. अमेरिका के संविधान से b. ब्रिटेन के संविधान से c. आयरलैंड के संविधान से d. फ्रांस के संविधान से Ans- b 4. भारतीय संविधान में कौन सी विशेषता अमेरिका से लिया गया है – a. एकल नागरिकता b. संघीय तंत्र c. उपराष्ट्रपति का पद d. संसदीय शासन Ans- c 5. भारत का संविधान है – a. कठोर b. लचीला c. ना ही कठोर ना ही लचीला d. कठोर और लचीला Ans- c 6. भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। इसका तात्पर्य है – a. सभी जाती के लोगो को सामान अवसर b. सभी नागरिकों को भाषण देने की स्वतंत्रता c. सभी जाती केलिए सामान कानून d. किसी धर्म विशेष को भारत के धर्म के तौर पर मान्यता नहीं है Ans- d 7. भारत के संविधान में मौलिक अधिकार का प्रयोजन कहां से लिया गया a.अमेरिका b. आयरलैंड c. ब्रिटेन d. रूस Ans- a 8. भारत के संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता का प्रयोजन कहां से लिया गया – a.अमेरिका b. आयरलैंड c. ब्रिटेन d. रूस Ans- a 9. न्यायिक पुनरावलोकन के सिद्धांत को भारत के संविधान में किस देश के संविधान से शामिल किया गया है – a.जापान b. अमेरिका c. रूस d. आस्ट्रेलिया Ans- b 10. भारतीय संविधान में कौन सी विशेषता अमेरिका से ली गई है – a. मौलिक कर्तव्य का प्रावधान b. विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया c. संघात्मक विशेषताएं d. उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों को पद से हटाया जाना Ans- d 11. भारत के संविधान में किसे देश के संविधान से राष्ट्रपति पर अभियोग लगाने का प...

भारत के मूल अधिकार, निदेशक तत्त्व और मूल कर्तव्य

मूल अधिकार, राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व और मूल कर्तव्य मूल अधिकारों को सभी नागरिकों के बुनियादी राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत सरकार द्वारा कानून बनाने के लिए दिशानिदेश हैं। संविधान के भाग IV में वर्णित ये प्रावधान अदालतों द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं, लेकिन जिन सिद्धांतों पर ये आधारित हैं, वे शासन के लिए मौलिक दिशानिदेश हैं जिनको राज्य द्वारा कानून तैयार करने और पारित करने में लागू करने की आशा की जाती है। मौलिक कर्तव्यों को देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देने तथा भारत की एकता को बनाए रखने के लिए भारत के सभी नागरिकों के नैतिक दायित्वों के रूप में परिभाषित किया गया है। संविधान के चतुर्थ भाग में वर्णित ये कर्तव्य व्यक्तियों और राष्ट्र से संबंधित हैं। निदेशक सिद्धांतों की तरह, इन्हें कानूनी रूप से लागू नहीं किया जा सकता। अनुक्रम • 1 इतिहास • 2 मूल अधिकार • 2.1 समानता का अधिकार • 2.2 स्वतंत्रता का अधिकार • 2.3 शोषण के खिलाफ अधिकार • 2.4 धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार • 2.5 सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार • 2.6 संवैधानिक उपचारों का अधिकार • 3 राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत • 4 मूल कर्तव्य • 5 आलोचना और विश्लेषण • 6 मूल अधिकारों, निदेशक सिद्धांतों और मौलिक कर्तव्यों के बीच संबंध • 7 इन्हें भी देंखें • 8 टिप्पणी • 9 पादटिप्पणी • 10 सन्दर्भ • 11 आगे पढ़ें • 12 बाहरी कड़ियाँ इतिहास [ ] इन्हें भी देखें: मूल अधिकारों और निदेशक सिद्धांतों का मूल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में था, जिसने स्वतंत्र भारत के लक्ष्य के रूप में समाज कल्याण और स्वतंत्रता के मूल्यों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया। प्रथम विश्व युद्ध के अनुभवों, 1919 के असंतोषजनक मोंटेग-चेम्सफोर्ड सुधारों सुधार और भारतीय स्वतंत्रता आंदो...

[Solved] भारतीय संविधान के मौलिक कर्तव्यों की अवधारणा

सही उत्तर सोवियत समाजवादी गणतंत्रों का संघ (USSR)है। Key Points • जब वर्ष 1949 में संविधान को अपनाया गया था, तब नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्यों के संबंध में कोई प्रावधान नहीं थे, हालाँकि मौलिक अधिकारों के लिए एक भाग 3 था। • सरकार द्वारा गठित स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर 1976 में 42वें संशोधन द्वारा नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया था। • समिति ने सुझाव दिया कि यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाने की आवश्यकता है कि व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए अपने कर्तव्यों की अनदेखी न करे। • 42वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 1976 के माध्यम से, एक नया अध्याय 4-A जिसमें केवल एक अनुच्छेद अर्थात् 51-A शामिल है, जोड़ा गया जो नागरिकों के लिए दस मौलिक कर्तव्यों की एक संहिता से संबंधित है। • मौलिक कर्तव्यों का उद्देश्य प्रत्येक नागरिक के लिए एक निरंतर अनुस्मारक के रूप में कार्य करना है, जबकि संविधान ने उन्हें विशेष रूप से कुछ मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं, इसके लिए नागरिकों को लोकतांत्रिक आचरण और लोकतांत्रिक व्यवहार के कुछ बुनियादी मानदंडों का पालन करने की भी आवश्यकता है क्योंकि अधिकार और कर्तव्य सह-संबंधित हैं। • मौलिक कर्तव्यों को शामिल करने से हमारा संविधान मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 29 (1) और अन्य देशों के कई आधुनिक संविधानों के प्रावधानों के अनुरूप हो गया। मौलिक कर्तव्यों की अवधारणा रूस(सोवियत समाजवादी गणतंत्रों का संघ) से ली गई थी। • मौलिक कर्तव्यों को अनिवार्य रूप से भारतीय परंपरा, पौराणिक कथाओं, धर्मों और प्रथाओं से लिया गया है।अनिवार्य रूप से ये ऐसे कर्तव्य थे जो भारतीय जीवन शैली के अभिन्नकार्यों का संहिताकरण हैं।मूल रूप से दस मौलि...

मूल अधिकार (भारत)

अनुक्रम • 1 उद्भव एवं विकास • 2 मौलिक अधिकार • 2.1 समता का अधिकार (समानता का अधिकार) • 2.2 स्‍वतंत्रता का अधिकार • 2.3 शोषण के विरुद्ध अधिकार • 2.4 धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार • 2.5 संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार • 2.6 कुछ विधियों की व्यावृत्ति • 2.7 संवैधानिक उपचारों का अधिकार • 3 सन्दर्भ • 4 बाहरीकड़ियाँ उद्भव एवं विकास [ ] भारतीय संविधान मे जितने विस्तृत और व्यापक रूप से इन अधिकारों का उल्लेख किया गया है उतना संसार के किसी भी लिखित संघात्मक संविधान में नहीं किया गया है। मूल अधिकारों से सम्बन्धित उपबन्धों का समावेश आधुनिक लोकतान्त्रिक विचारों की प्रवृत्ति के अनुकूल ही है। सभी आधुनिक संविधानों में मूल अधिकारों का उल्लेख है। इसलिए संविधान के अध्याय 3 को भारत का अधिकार - पत्र ( भारतीय संविधान की जब रचना की जा रही थी तो इन अधिकारों के बारे में एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तैयार थी। इन सबसे प्रेरणा लेकर संविधान निर्माताओं ने मूल अधिकारों को संविधान में समाविष्ट किया। भारतीय संविधान में मूल अधिकारों की कोई परिभाषा नहीं की गई है। संविधानों की परम्परा प्रारम्भ होने के पूर्व इन अधिकारों को प्राकृतिक और अप्रतिदेय अधिकार कहा जाता था, जिसके माध्यम से शासकों के ऊपर अंकुश रखने का प्रयास किया गया था। [ ] मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे परन्तु वर्तमान में छः ही मौलिक अधिकार हैं| हालांकि, संपत्ति के अधिकार को 1978 में 44वें संशोधन द्वारा संविधान के तृतीय भाग से हटा दिया गया था मौलिक अधिकार नागरिक और रहेवासी को राज्य की मनमानी या शोषित नीतियो और कार्यवाही के सामने रक्षण प्रदान करने के लिए दिये गए। संविधान के अनुच्छेद १२ मे राज्य की परिभाषा दी हुई है की “राज्य” के अंतर्गत भारत की सरकार औ...

भारतीय संविधान की 15 प्रमुख और मुलभुत विशेषता

भारतीय संविधान अनेक विशेषताओं को धारण करते हुए तत्वों और मूल भावना के संदर्भ में अद्वितीय है | दुनिया के सबसे सफल लिखित संविधान के रूप में स्थापित होने वाले इस संविधान को भारतीय संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को तैयार किया गया और 26 जनवरी 1950 से अमल में लाया गया | नम्यता और अनम्यता के अजूबे समन्वय वाले इस संविधान को बनाने में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन की अवधि लगी | हम इस पोस्ट में भारतीय संविधान की 15 प्रमुख और मुलभुत विशेषताओं को हिंदी में समझने का प्रयास करेंगें | Basic Features of the Indian Constitution in hindi. क्या आप जानते है की भारतीय संविधान दुनिया के सबसे सफल संविधान में से एक है | श्रेष्ठ विशेषताओं को धारण करने के कारण लागू होने के लगभग 70 वर्षों के बाद भी यह पूर्ण रूप से प्रासंगिक बना हुआ है | जबकि इतने समय के दौरान दुनिया के कितने संविधान बने और ख़त्म हो गए | ऐसे में यह जानना रोचक है की वे कौन सी ऐसी विशेषताएँ है जो भारतीय संविधान को एक किताब से जीवंत दस्तावेज के रूप में स्थापित करती है | हम इस पोस्ट में Bhartiya Samvidhan ki 15 Moolbhoot Visheshta Kya hai के बारे में पढेंगें | यह भी पढ़ें: • • भारतीय संविधान की प्रमुख और मुलभुत विशेषता हमारा देश भारत अंग्रेजी शासन के तहत गुलामी की दासता झेल रहा था | धीरे -धीरे पराधीनता से आजादी की लड़ाई में राष्ट्रवाद का बिगुल भी फूट पड़ा और तब कुछ लोगों ने एक अखंड अटूट भारत की कल्पना की | समय के साथ यह कल्पना सभी भारतवासियों की जेहन में बैठ चूका था और यही से भारत के संविधान बनने की कहानी शुरू हुई | उल्लेखनीय है की संविधान एक दस्तावेज होता है यह लिखित या अलिखित दोनों हो सकता है | इसमें किसी देश को चलाने से संबंधित बुनियादी नियमों...

भारत के संविधान की प्रमुà¤

भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताएं भारतीय गणराज्य के सर्वोच्च विधान को संविधान कहा जाता है। संविधान को संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित किया गया था। इसके बाद 26 जनवरी 1950 से भारत में संविधान लागू हुआ था। यह दिवस, भारत में हर साल गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत सरकार अधिनियम 1935 को, भारत के संविधान का मूल आधार माना जाता है। हमारा संविधान, दुनिया के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है। भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताओं के बारे में अंग्रेजी में पढने के लिए Major Features Of Constitution of India पर क्लिक करें। IAS परीक्षा 2023 की तैयारी के लिहाज से भारत का संविधान एक मà...

भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों की विशेषता और मौलिक कर्तव्यों की व्याख्या

भारतीय संविधान ( Bhartiya Sanvidhan ) के मौलिक अधिकारों की विशेषता: भारतीय संविधान में शामिल मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) यह सुनिश्चित करने का एक तरीका है कि लोग देश में सभ्य जीवन जीते हैं। इन अधिकारों में कुछ अनोखी विशेषताएं हैं जो आमतौर पर अन्य देशों के संविधान में नहीं मिलती हैं। यह विशेषताएं निम्न प्रकार के हैं:- 1. राष्ट्रीय आंदोलन के भावना के अनुकुल – भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के समय भारतीय नेताओं ने अंग्रेजों के समझ बार-बार अपने अधिकारों की मांग रखी थी स्वतंत्रता के पश्चात् सौभाग्यवश भारतीय संविधान सभा के लिये राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बहुमत में निर्वाचित हुए थे जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के समय की अपनी पुरानी मांग को भारतीय संविधान में सर्वोपरी प्राथमिकता देते हुए मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की। 2. सर्वाधिक विस्तृत एवं व्यापक अधिकार –भारतीय संविधान के तृतीय भाग में अनुच्छेद 12 से 30 और 32 से 35 तक मौलिक अधिकारों का वर्णन है। जो अन्य देशों के संविधानों में किये गये वर्णन की तुलना में सर्वाधिक है। 3. व्यावहारिकता पर आधारित – भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के सिद्धांत न होकर व्यावहारिक और वास्तविकता पर आधारित है। किसी भेदभाव के बिना समानता के आधार पर सभी नागरिकों के लिए इनकी व्यवस्था की गयी है। साथ ही अल्पसंख्याकों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं पिछड़ा वगोर्ं की उन्नति एवं विकास के लिए विशेष व्यवस्था भी की गयी है। 4. अधिकारों के दो रूप – मौलिक अधिकारों के सकारात्मक एवं नकारात्मक दो रूप है। सकारात्मक स्वरूप में व्यक्ति को विशिष्ठ अधिकार प्राप्त होते हैं। स्वतंत्रता धर्म शिक्षा और संस्कृति आदि से संबंधित अधिकारों को इसी श्रेणी में रखा जा सकत...