जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

  1. अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन
  2. जलवायु कार्यमा युवाहरूको संलग्नता!
  3. जलवायु परिवर्तन का भारत पर प्रभाव
  4. भारतीय मानसून पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
  5. जलवायु परिवर्तन का कृषि पर प्रभाव और बचाव के उपाय


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अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन

इस भेद्यता के लिए महाद्वीप के वर्तमान निम्न स्तर की सामाजिक आर्थिक प्रगति को जिम्मेदार ठहराया गया है। जबकि जलवायु परिवर्तन सभी को प्रभावित करता है, गरीब असमान रूप से प्रभावित होते हैं। यह बफरिंग के लिए आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने और जलवायु परिवर्तन के सबसे कठोर परिणामों से उबरने के लिए साधनों की कमी के कारण है। उप-सहारा अफ्रीका में कुल कृषि का 95 प्रतिशत वर्षा आधारित कृषि है। सकल घरेलू उत्पाद और रोजगार में कृषि का प्रमुख हिस्सा, साथ ही साथ अन्य मौसम-संवेदनशील गतिविधियाँ जैसे कि चरवाहा और मछली पकड़ना, भेद्यता में योगदान करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप आय में कमी होती है और खाद्य गरीबी बढ़ती है। अफ्रीका जलवायु परिवर्तन के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील शीर्ष दस देशों में से सात का घर है। चार अफ्रीकी देश 2015 में सबसे अधिक प्रभावित होने वाले शीर्ष दस देशों में शामिल थे: मोजाम्बिक, मलावी, घाना और मेडागास्कर (संयुक्त 8वां स्थान)। विषय - सूची • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन के कारण अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन कई कारकों के कारण होता है, जिनमें शामिल हैं: • वनों की कटाई • ओजोन परत का नुकसान • बढ़ी हुई CO2 एकाग्रता • ग्रीनहाउस • एयरोसौल्ज़ • कृषि 1. वनों की कटाई वनों की कटाई अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन के कारणों में से एक है। वनों के कई सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ हैं। वे प्रकाश संश्लेषण की सुविधा के द्वारा जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने में भी मदद करते हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देने वाले CO2 की भारी मात्रा में खपत करते हुए ऑक्सीजन (O2) बनाता है। इसमें पेड़ों में संग्रहीत कार्बन को मुक्त करने ...

जलवायु कार्यमा युवाहरूको संलग्नता!

जलवायु परिवर्तन के हो ? जलवायु परिवर्तन भन्नाले विश्वव्यापी रुपमा तापमान र मौसमको स्वरुपमा लामो अन्तरालमा आउने परिवर्तनलाई बुझाउँछ । जलवायु प्राकृतिक रुपमा नै परिवर्तनशील छ तर हालको जलवायु परिवर्तन, विश्वव्यापी तापमानमा वृद्धिका कारण भएको हो। यसको मुख्य कारक मानवीय गतिविधि हुन् जसले वायुमण्डलको संरचनामा बद्लाव ल्याएको छ। भूमण्डलीय उष्मीकरण (Global warming) भनेको धेरै वर्षमा अभिलेख गरिएको पृथ्वीको तापमानमा भएको वृद्धि हो। जलवायु परिवर्तनले हामीलाई कसरी असर गर्छ ? पृथ्वीको तापमान गत १५० बर्षमा मानव गतिविधिका कारण १ डिग्रीले बढेको छ। पृथ्वीको वायुमण्डलका केही ग्याँसहरू जस्तै हरितगृह ग्याँसहरू ( कार्बनडाइअक्साइड, मीथेन आदि ) ले ताप पृथ्वीबाट बाहिर निस्कन रोक्दछ। यी ग्याँसहरू प्राकृतिक रूपमा नै वायुमण्डलमा हुन्छन् र पृथ्वीलाई स्थिर तापक्रममा राख्दछन् यद्यपि मानविय क्रियाकलापहरू - जस्तै जीवाश्म ईन्धनहरू (पेट्रोल, डिजल) जलाउनु, सवारी साधनहरू चलाउनु, खाद्यान्न उत्पादन, वन विनाश तथा अत्यधिक खपत- ले वातावरणमा अधिक मात्रामा हरितगृह ग्यास उत्सर्जित गर्दछ जसले प्राकृतिक चक्रलाई नै परिवर्तन गरी पृथ्वीलाई तातो बनाइ राखेको छ। जलवायु परिवर्तनले समाज, अर्थव्यवस्था र पारिस्थितिक प्रणाली (Ecosystem) लाई असर गर्न सक्छ। यसले जटिल तथा खतरनाक मौसमका घटनाहरू, जैविक विविधतामा ह्रास, स्वास्थ्य जोखिम बढाउने, र मानिस विस्थापित हुनुपर्ने सम्मको स्थिती निम्त्याउन सक्दछ। जलवायु परिवर्तनको सामना गर्नु सबैको दायित्व हो ! हाम्रा गतिविधिले हरितगृह ग्याँस उत्सर्जन र जलवायु परिवर्तनमा योगदान पुर्याएको कारणले हाम्रो वातावरणले कष्ट भोग्नुपरेको छ । समुद्र, भूमि, हावा, बोटबिरुवा, जनावरहरू तथा सूर्यबाट आउने उर्जा, ...

जलवायु परिवर्तन का भारत पर प्रभाव

जल और वायु शब्दों से मिलकर जलवायु बना है। जल और वायु को पृथ्वी पर जीवन का आधार अथवा प्राण कहा जाता है। इन दोनों शब्दों के जोड़ से मिलकर मौसम बनता है और मौसमी घटनाओं में बदलाव को ही जलवायु परिवर्तन कहा जाता है। इस मौसम को बनाने में ऋतुओं का अहम योगदान है और भारत में शीत, ग्रीष्म, वर्षा और शरद चारों प्रकार की ऋतुएं हैं, जो देश को प्राकृतिक संपदा से सम्पन्न बनाती हैं। हर ऋतु की अपनी एक विशिष्ट विशेषता एवं पहचान है, लेकिन विकसित होने के लिए जैसे-जैसे भारत अनियमित विकास की गाड़ी पर बैठ कर आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे ही देश के खुशनुमा आसमान पर जलवायु परिवर्तन के बादल और घने होते जा रहे हैं। ऋतुओं के चक्र व समयकाल में बदलाव हो रहा है। हालांकि जलवायु परिवर्तन का असर पूरे विश्व पर पड़ रहा है, लेकिन भारत पर इसका प्रभाव अधिक दिख रहा है। जिसके लिए अनियमित औद्योगिकरण मुख्य रूप से जिम्मेदार है, किंतु केवल उद्योगों को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, बल्कि देश का हर नागरिक या कहें कि बढ़ती आबादी भी इसके लिए जिम्मेदार है। दरअसल बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने तथा रोजगार उपलब्ध कराने के लिए विश्व भर में औद्योगिकरण पर जोर दिया गया। लोगों के रहने, उद्योग लगाने, ढांचागत निर्माण जैसे रेलवे लाइन, मेट्रो स्टेशन, एयरपोर्ट, हाईवे, पुल आदि बनाने के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों को काटा गया। पेड़ों के कटने की संख्या का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीते 3 वर्षों में भारत के विभिन्न स्थानों पर 69 लाख 44 हजार 608 पेड़ों को काटा गया। सरल शब्दों में कहें तो विकास की गाड़ी को चलाने के लिए जीवन देने वाले पर्यावरण की बलि चढ़ा दी गई। यही हाल विश्व के अन्य देशों का भी है और पेड़ों का कटना थमने का नाम नहीं ले र...

भारतीय मानसून पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

टैग्स: • • • • • प्रिलिम्स के लिये: जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखा, हिंद महासागर द्विध्रुवीय, मानसून अवसाद। मेन्स के लिये: भारतीय मानसून पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव। चर्चा में क्यों? हाल ही में अनुसंधान से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न ग्लोबल वार्मिंग, मानसून में विचलन/अस्थिरता को बढ़ाती है, जिसके परिणामस्वरूप लंबी शुष्क अवधि और भारी बारिश की अल्प अवधि दोनों होती है। • वर्ष 2022 में वर्ष 1902 के बाद से दूसरी सबसे बड़ी चरम घटनाएँ देखी गई हैं। बाढ़ और सूखे जैसी खतरनाक घटनाएँ बढ़ गई है। भारतीय मानसून पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: • विपरीत वर्षा प्रतिरूप: • मानसून प्रणालियों के मार्ग में बदलाव देखा गया है जैसे कि कम दबाव और गर्त अपनी स्थिति के दक्षिण की तरफ स्थांतरित होने तथा फ्लैश फ्लड जैसी घटनाएँ हो रही हैं। • मानसून गर्त मूल रूप से एक कम दबाव प्रणाली को संदर्भित करता है जो गर्मियों में उत्तरी हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी को प्रभावित करता है। इसमें अपेक्षाकृत बड़ा क्षेत्र शामिल है एवं बंद आइसोबार का व्यास 1000 किमी जितना चौड़ा हो सकता है। • मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में वर्ष 2022 में अधिक बारिश दर्ज की गई, इसके विपरीत पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार में वर्षा नहीं हुई। • अगस्त 2022 में भी बंगाल की खाड़ी में एक के बाद एक दो मानसून गर्त बने और पूरे मध्य भारत को प्रभावित किया। • जबकि प्रत्येक वर्ष ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा अद्वितीय होती है, वर्ष 2022 में वर्षा में एक बड़ी क्षेत्रीय और अस्थायी परिवर्तनशीलता रही है। • कारण: • तीव्र ला नीना स्थितियों का बना रहना, पूर्वी हिंद महासागर का असामान्य रूप से गर्म होना, नकारात्मक हिंद महासागर द्वि...

जलवायु परिवर्तन का कृषि पर प्रभाव और बचाव के उपाय

टैग्स: • • • • संदर्भ आज इस दुनिया में शायद ही कोई ऐसा होगा जिस पर जलवायु परिवर्तन का कोई प्रभाव न पड़ा हो। जलवायु परिवर्तन में हर किसी को चोट पहुँचाने की क्षमता है, लेकिन किसानों के इसकी चपेट में आने की संभावना सबसे अधिक रहती है और वे इससे सर्वाधिक प्रभावित होते भी हैं। भारत में कृषि प्रमुखतः मौसम पर आधारित है और जलवायु परिवर्तन की वज़ह से होने वाले मौसमी बदलावों का इस पर बेहद असर पड़ता है। जलवायु परिवर्तन के कारण हुई तापमान वृद्धि से कृषि प्रभावित होती है, इसलिये यह ज़रूरी है कि किसानों को यह पता होना चाहिये कि इस समस्या का सामना कैसे किया जाए। लगातार बढ़ रही है खाद्यान्नों की मांग वैश्विक आबादी बढ़ने के साथ खाद्यान्नों की वैश्विक मांग में भी इज़ाफा हो रहा है। विकसित देशों में रहने वाले लोगों के भोजन में प्रोटीन की मात्रा अधिक रहती है। खाद्य और कृषि संगठन (FAO) का अनुमान है कि खाद्य आपूर्ति और मांग के बीच अंतर को कम करने के लिये वैश्विक कृषि उत्पादन 2050 तक दोगुना करने की आवश्यकता होगी। चिंताएँ • असमान वर्षा होने की वज़ह से हमारे देश में फसलों का खराब होना आम बात है। कई गाँवों में देखने को मिलता है कि हरियाली का नामो-निशान तक नहीं है और किसानों के लिये पशुओं का पेट भर पाना एक बड़ी चुनौती बन गया है। • होने वाले नए परिवर्तनों को तुरंत अपनाने में समस्या उत्पन्न होती है। हर मौसम में किसान अलग-अलग फसल लेते हैं या उनका सम्मिश्रण करते हैं। बोरवेल, ट्रैक्टर तथा अन्य कृषि मशीनरी पर उन्हें भारी खर्च करना पड़ता है। • फसल के लगातार प्रभावित होने की वज़ह से ऐसे किसानों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, जो गाँव में अपनी खेती की ज़मीन छोड़कर निकटवर्ती शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। शहरों में इन किसानों क...