खेजड़ी को राज्य वृक्ष

  1. 21.3 वृक्ष
  2. खेजड़ी
  3. राजस्थान का राज्य वृक्ष कौनसा है?
  4. Khejri Tree In Hindi! खेजड़ी का वृक्ष की रोचक जानकारी
  5. खेजड़ी
  6. राजस्थान का कल्पवृक्ष खेजड़ी – DESI CULTURE


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21.3 वृक्ष

1.12 घोकड़ा वन राजस्थान के प्रमुख वृक्ष खेजड़ी • खेजड़ी को ‘राजस्थान का कल्पवृक्ष’ कहते है । • इसको राज्य वृक्ष 31 अक्टूम्बर 1983 को घोषित किया गया । • इसको ‘राज्य का गौरव’ भी कहते हैं परन्तु चितौड़गढ़ को भी राजस्थान का गौरव कहते है । • इसको राजस्थानी भाषा में ‘जाटी और सिमलों’ कहते है । • इसको भारतीय धर्मग्रन्थों में ‘शमी’ कहते है । • इसका वैज्ञानिक नाम ‘प्रोसोपिस सेनेरेया’ है । • दशहरे के अवसर पर इसकी पूजा की जाती है । • इसकी पतियों को लुम कहते है । • इसके फूलों का प्रयोग ‘शिवजी और पार्वती की पूजा’ में करते है । • लुम प्रयोग गणेश जी की पूजा में करते है । • इसके वृक्ष लगाने से सम्बंधीत ‘रूख भायला’ कार्यक्रम चलाया गया । • मरूस्थल के प्रसार को रोकने के लिए ‘ऑपरेशन खेजड़ा’ चलाया गया । • इसकी लकड़ी को लूम सहित जब एक जगह एकत्रित किया जाता है तो उसे मोल्डया कहते है । • इसको नष्ट करने वाले ‘जीव सीलिस्टेना और गायकोटोर्मा’ है । • खेजड़ी सर्वाधिक शेखावाटी क्षेत्र में पाई जाती है । • जंगल की सुदरता के नाम से आर्केट को जाना जाता है । पंचकुटा • पंचकुटा एक प्रकार की सब्जी है, जो शीतला अष्टमी पर बनायी जाती है । • पंचकुटा में केर, काचरी, कुमट के बीच, गुदा के फल और सांगरी होती है । • स्मृति वन : – झालाश देव रोहिड़ा • रोहिड़ा राजस्थान का राज्य पुष्प है । • इसको राज्य पुष्प घोषित 31 अक्टूम्बर 1983 को किया गया । • इसको ‘राजस्थान का सागवान’ व ‘मरूस्थल का सागवान’ कहते है । • इसको मारवाड़ का टीका तथा मरू शोभा भी कहते है । • इसका वानस्पतिक नाम ‘टीकोमेला अंडुलेटा’ है । • इसको जरविल चूहा हानि पहुँच रहा है, इस कारण नष्ट हो रहा है । • रोहिड़ा सर्वाधिक मारवाड़ में पाये जाते है । ढाक • ढाक को ‘प्लास’ भी...

खेजड़ी

सूखे व अकाल जैसी विपरीत परिस्थितियों का खेजड़ी पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि ऐसी परिस्थितियों में भी यह मरुक्षेत्र के जन-जीवन की रक्षा करता है। खेजड़ी के पेड़ में सूखा रोधी गुण होने के अलावा इसमें सर्दियों में पड़ने वाले पाले तथा गर्मियों के उच्च तापमान को भी सहजता से सहन कर लेने की क्षमता होती है।वनस्पति विज्ञान के लेग्यूमेनेसी फैमिली (कुल) के इस वृक्ष को ‘ प्रोसोपिस सिनेरेरिया‘ के नाम से जाना जाता है। प्रदेश की शुष्क जलवायु और कठिन परिस्थितियों से सामंजस्य रखने वाले बहुउपयोगी खेजड़ी को वर्ष 1983 में राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित किया गया। खेजड़ी राजस्थान के अलावा पंजाब, गुजरात, कर्नाटक तथा महाराष्ट्र राज्य के शुष्क तथा अर्धशुष्क क्षेत्रों में भी पाया जाता है। भारत के विभिन्न भागों में इसे भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। दिल्ली क्षेत्र में इसे जांटी, पंजाब व हरियाणा में जांड, गुजरात में सुमरी, कर्नाटक में बनी, तमिलनाडु में बन्नी, सिन्ध में कजड़ी के नाम से पुकारा जाता है। वेदों एवं उपनिषदों में खेजड़ी को शमी वृक्ष के नाम से वर्णित किया गया है। दलहन कुल का होने के कारण खेजड़ी भूमि की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाता है। इसकी निरन्तर झड़ती पत्तियां आसानी से जमीन में मिलकर तथा सड़-गल कर भूमि की उर्वरता को बढ़ाती हैं। इसलिए किसान वर्षा आधारित फसलों में एक विशेष घटक के रूप में इन्हें संरक्षण देते हैं। खेजड़ी का वृक्ष मई-जून के महीने में भी हरा-भरा रहता है। भीषण गर्मी में जब रेगिस्तान में पशुओं के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ ही उन्हें छाया देता है। जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यह उन्हें चारा देता है, जो लूंग (लूम) कहलाता है। खेजड़ी की पत्तियों को पशु बह...

राजस्थान का राज्य वृक्ष कौनसा है?

Explanation : राजस्थान का राज्य वृक्ष खेजड़ी है। इसे 31 अक्टूबर, 1983 को राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित किया गया था। इसका वैज्ञानिक नाम 'प्रोसोपिस सिनेरेरिया' है। यह लेग्यूमिनोसी परिवार का वृक्ष है। खेजड़ी को 'रेगिस्तान का कल्पवृक्ष' कहते हैं। इसकी फली को 'सांगरी' कहते हैं जो सुखाकार सब्जी के रूप में प्रयुक्त की जाती है और इसकी पत्तियां 'लूम' चारे के रूप में प्रयुक्त होती है। शमी को सिंधी में 'छोंकड़ा', पंजाबी-हरियाणवी में 'जाण्टी', कन्नड में बन्नी, तमिल में 'पेयमये' बंगाली में 'शाइंगाछ' आदि कहा जाता है। खेजड़ी वृक्ष में जल संरक्षण और भू-क्षरण रोधक क्षमता होती है। यह रेत में भी उग सकता है। यह एक सदाबहार वृक्ष है। भारत सरकार ने 5 जून, 1988 को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर खेजड़ी वृक्ष पर डाक टिकट जारी करके इसके महत्व को स्वीकार किया है। इसे Wonder Tree व 'भारतीय मरुस्थल का सुनहरा वृक्ष' भी कहा जाता है। Tags :

Khejri Tree In Hindi! खेजड़ी का वृक्ष की रोचक जानकारी

इस लेख Information About Khejri Tree In Hindi में खेजड़ी के पेड़ (Jand Plant) की जानकारी और इतिहास बताया गया है। खेजड़ी मरुस्थलीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला वृक्ष है। यह रेगिस्तान में मिलने वाला एक बहुउपयोगी पेड़ है जिसका विशेष महत्व है। यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाया जाने वाला मुख्य पेड़ है। खेजड़ी वृक्ष क्या है? (What Is Khejri Or Shami Tree In Hindi) इसके फायदे और सामान्य जानकारी आगे के पैराग्राफ में पढ़ते है। Image Credit – Wikipedia Contents • • • • • • • खेजड़ी पेड़ की जानकारी – Khejri Tree Information In Hindi 1. खेजड़ी का पेड़ (Khejri Tree) मरुस्थल यानिकि रेगिस्तानी इलाकों में मिलते है। यह पेड़ दुनिया के कई हिस्सों में पाए जाते है जहां की जलवायु शुष्क होती है। ईरान, अफगानिस्तान के शुष्क इलाके हो या फिर राजस्थान राज्य का पश्चिमी भाग थार का मरुस्थल हो, ये वृक्ष बहुतायत से पाये जाते है। भारत में राजस्थान राज्य के अलावा मध्यप्रदेश, पंजाब, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र इत्यादि राज्यों में भी खेजड़ी का वृक्ष पाया जाता है। 2. खेजड़ी को विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग नामों से जाना जाता है। सिंध में इसे कांडी, पंजाब में जंड, गुजरात मे शमी या सुमरी जबकि यूपी में छोंकरा कहते है। राजस्थान में इसे सांगरी, जाटी भी कहा जाता है। वेदों में भी खेजड़ी वृक्ष का जिक्र आता है जिसे शमी कहा गया है। सामान्यता इस मरुस्थलीय पेड़ को खेजड़ी कहते है। वैसे दोस्तों खेजड़ी UAE का राष्ट्रीय वृक्ष भी है, यहां पर इसको घफ़ कहा जाता है। 3. राजस्थान की जलवायु शुष्क होने के कारण यहां कम पानी में पनपने वाले पौधे ज्यादातर पाये जाते है। खेजड़ी पेड़ को भी कम पानी की आवश्यकता होती है। इसलिए यह वृक्ष राजस्थान में अधिकत...

खेजड़ी

खेजड़ी राजस्थान के मरुस्थल क्षेत्रों में उगने वाली वनस्पतियों में खेजड़ी का वृक्ष एक अति महत्वपूर्ण वृक्ष है।यह मरूप्रदेश के कल्पवृक्ष के नाम से जानी जाती है। यह थार निवासियों की जीवन रेखा कहलाती है। यह दलहन परिवार का फलीदार वृक्ष है जिसका वनस्पतिक नाम“ प्रोसोपिससिनेरेरिया” है। राजस्थान में खेजड़ी को जांटी के नाम से जाना जाता है। राजस्थान के थार रेगिस्तान में खेजड़ी का वृक्ष बहुतायत में पाये जाते है। यहां के मरूस्थलीय जीवन में, खेजड़ी एक जीवन रेखा का कार्य करती है। खेत में खेजड़ी वृक्ष का होना भूमि की उपजाऊ शक्ति का द्योतक है। इस वृक्ष का प्रत्येक भाग किसी न किसी रूप में मरूस्थलीय प्राणियों के लिए उपयोगी व जीवनदायी है, इसलिए ही खेजड़ी के वृक्ष को मरू प्रदेश का कल्पवृक्ष कहा जाता है। वेदों एवं उपनिषदों में खेजड़ी को #शमी वृक्ष के नाम से वर्णित किया गया है।दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की परंपरा भी है। रावण दहन के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते लूट कर लाने की प्रथा है जो स्वर्ण का प्रतीक मानी जाती है। इसके अनेक औषधीय गुण भी है। पांडवों द्वारा अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में गांडीव धनुष इसी पेड़ में छुपाए जाने के उल्लेख मिलते हैं। इसी प्रकार लंका विजय से पूर्व भगवान राम द्वारा शमी के वृक्ष की पूजा का उल्लेख मिलता है। • इस वृक्ष का व्यापारिक नाम ‘ कांडी‘ है। यह विभिन्न देशों में पाया जाता है, जहाँ इसके अलग-अलग नाम हैं। अंग्रेज़ी में यह ‘ प्रोसोपिस सिनेरेरिया‘ नाम से जाना जाता है। • इसके अन्य नामों में‘घफ़’ (संयुक्त अरब अमीरात), ‘खेजड़ी’, ‘जांट/जांटी’, ‘सांगरी’ (राजस्थान), ‘जंड’ (पंजाब), ‘कांडी’ (सिंध), ‘वण्णि’ (तमिल), ‘शमी’, ‘सुमरी’ (गुजराती) आते हैं। • राजस्थानी भाषा में ...

राजस्थान का कल्पवृक्ष खेजड़ी – DESI CULTURE

वेदों एवं उपनिषदों में खेजड़ी को शमी वृक्ष के नाम से वर्णित किया गया है|दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की परंपरा भी है। रावण दहन के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते लूट कर लाने की प्रथा है जो स्वर्ण का प्रतीक मानी जाती है। इसके अनेक औषधीय गुण भी है। पांडवों द्वारा अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में गांडीव धनुष इसी पेड़ में छुपाए जाने के उल्लेख मिलते हैं। इसी प्रकार लंका विजय से पूर्व भगवान राम द्वारा शमी के वृक्ष की पूजा का उल्लेख मिलता है। खेजडी वृक्ष का महत्त्व: शमी या खेजड़ी के वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है।खेजड़ी का वृक्ष जेठ के महीने में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ छाया देता है। छाल को खांसी, अस्थमा, बलगम, सर्दी व पेट के कीड़े मारने के काम में लाते हैं। इसकी पत्तियां राजस्थान में पशुओं का सर्वश्रेष्ठ चारा हैं। इसमें पेटूलट्रिन एवं खुशबुदार गलाकोसाइड (एम. पी. 252-53)पाया जाता हैं। इसकी फलियां सीने में दर्द व पेट की गर्मी शांत करने मे उपयोगी रहती हैं। इसके फुलों को चीनी में मिलाकर लेने से गर्भपात नही होता हैं। इसकी उम्र सैंकड़ो वर्ष आंकी गयी हैं। इसकी जड़ो के फैलाव से भूमि का क्षरण नही होता हैं उल्टे जड़ों में रेत जमी रहती हैं जिससे रेगिस्तान के फैलाव पर अंकुश लगा रहता हैं। जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यह चारा देता है, जो लूंग कहलाता है। इसका फूल मींझर कहलाता है। इसका फल सांगरी कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। यह फल सूखने पर खोखा कहलाता है जो सूखा मेवा है। इसकी लकडी मजबूत होती है जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है। इसकी जड़ से हल बनता है। अकाल ...