मोहन राकेश

  1. मोहन राकेश का जीवन परिचय, कृतित्व
  2. एक और जिन्दगी
  3. मोहन राकेश का जीवन परिचय
  4. मोहन राकेश हिन्दी कहानियाँ
  5. मोहन राकेश का जीवन परिचय


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मोहन राकेश का जीवन परिचय, कृतित्व

मोहन राकेश का जन्म अमृतसर में 8 जनवरी, 1925 में हुआ । इनका मूल नाम मदन मोहन गुगलानी था। उनकी दीदी ने लिखने के लिए उसे नया नाम चुन दिया। नया नाम था मदन मोहन राकेश । बाद में उन्होंने स्वयं परिवर्तित कर मोहन राकेश कर डाला। मोहन राकेश के पिता श्री करमचंद गुगलानी वकालत करते थे। मोहन राकेश के दादा परम वैष्णव थे। उन्होंने दो विवाह किए थे। राकेश के पिता दूसरी पत्नी के बेटे थे। राकेश ने आरंभिक शिक्षा अमृतसर में ली और उच्चतर शिक्षा लाहौर के ओरिएण्टल कॉलेज से ली। यही से उन्होंने सोलह वर्ष की आयु में संस्कृत में शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की। उसी वर्ष उनके पिता भी दिवंगत हुए। बाद में अंग्रेजी लेकर बी. ए. किया। सत्रह वर्ष की आयु में संस्कृत से एम. ए. किया, जिसमें स्वर्ण- चंद्रक प्राप्त हुआ था। एम. ए. करने के बाद राकेश की प्रतिभा को ध्यान में रखकर दो वर्ष के लिए शोध छात्रवृत्ति प्रदान की गई । जालंधर में आकर राकेशजी ने हिंदी में एम. ए. किया और प्रथम श्रेणी में प्रथम रहे। राकेशजी ने एम. ए. होने के बाद प्रथम 1945 में एक फिल्मी कम्पनी में कहानीकार के रूप में आजीविका का श्रीगणेश किया। परंतु उनके जीवन में लेखन मुख्य था, आजीविका गौण । 1949 में लेक्चररशिप मिली। किंतु आँखों की अति कमजोरी के कारण वह भी छिन गई। जालंधर के डी. ए. बी. कॉलेज में लेक्चररशिप की। उससे भी टीचर्स युनियन में सक्रिय भाग लेने के कारण बिना कन्फर्म किए 1950 में हटा दिया गया। काफी दौड़-धूप के बाद शिमला में 'विशप कोटन स्कूल' में शिक्षक के रूप में अध्यापन शुरू किया, पर दांपत्य जीवन की तनावपूर्ण मनःस्थिति तथा विपरीत परिस्थितियों के कारण 1952 में शिक्षक पद से भी त्यागपत्र दे दिया। 1953 में डी. ए. बी. कॉलेज जालंधर में विभागाध्यक्ष के ...

एक और जिन्दगी

सभी Hindi Pdf Book यहाँ देखें सभी Audiobooks in Hindi यहाँ सुनें पुस्तक का विवरण : स्टाफ शिकायत करता है कि कुछ काम नहीं करती, किसी का कहा नहीं मानती। कमेटी के मेंबर अलग मेरी जान खाते है कि इसे दफा करो, रोज-रोज अपना रोना लेकर हमारे यहाँ आ मरती है। मैं फिर भी तरह दिए जाती हूँ कि जगह-जगह मारी-मारी न फिरे, और उसका तू मुझे यह बदला देती है ? ‘कमीनी कहीं की !” उसने बेंत की कुर्सी को इस तरह अपनी…….. Pustak Ka Vivaran : Staff shikayat karata hai ki kuchh kam nahin karatee, kisi ka kaha nahin Manati. Committee ke membar alag meree jan khate hai ki ise dapha karo, Roj-Roj apana rona lekar hamare yahan aa marati hai. Main phir bhee tarah die jatee hoon ki jagah-jagah mari-mari na phire, aur usaka too mujhe yah badala deti hai ? Kamini kahin kee ! Usane bent kee kursee ko is tarah apani………. Description about eBook : The staff complains that something does not work, does not listen to anyone. The members of the committee eat my life separately, let them do it, they come and die with their cry every day. However, I am given in a way that I do not die in every place, and you give me this revenge? You are a bastard! ”He took his cane chair like this……..… 44Books का एंड्रोइड एप डाउनलोड करें “हंसी के क्षणों के बिना बीता दिन सबसे खराब दिन है।” ‐ ई ई कम्मिंग्स “The most wasted of all days is one without laughter.” ‐ E E Cummings Related Posts: • बांकेलाल और भोकाल मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ कॉमिक | Bankelal Aur… • नागराज और शांगो मुफ्त हिंदी पीडीएफ कॉमिक | Nagraj Aur Shango… • हैरी पॉटर और अज़्काबान का...

मोहन राकेश का जीवन परिचय

Table of Contents • • • • • • मोहन राकेश की जीवनी: पूरा नाम मोहन राकेश जन्म 8 जनवरी, 1925 जन्म भूमि अमृतसर, पंजाब मृत्यु 3 जनवरी, 1972 मृत्यु स्थान नई दिल्ली कर्म भूमि भारत कर्म-क्षेत्र नाटककार और उपन्यासकार मुख्य रचनाएँ उपन्यास– अँधेरे बंद कमरे, अन्तराल नाटक– आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस, ‘आधे अधूरे’ भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी विद्यालय ‘ओरियंटल कॉलेज’ (लाहौर में), पंजाब विश्वविद्यालय शिक्षा एम.ए. (हिन्दी और अंग्रेज़ी) पुरस्कार-उपाधि 1968 में ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ विशेष योगदान मोहन राकेश हिंदी साहित्य के उन चुनिंदा साहित्यकारों में हैं जिन्हें ‘नयी कहानी आंदोलन’ का नायक माना जाता है और साहित्य जगत् में अधिकांश लोग उन्हें उस दौर का ‘महानायक’ कहते हैं। मोहन राकेश का जीवन परिचय: आधुनिक नाटक साहित्‍य को नयी दिशा की ओर मोड़ने वाले मोहन राकेश प्रतिभासम्‍पन्‍न साहित्‍यकार हैं। हिनदी के प्रसिद्ध नाटककार एवं निबन्‍धकार मोहन राकेश का जन्‍म 8 जनवरी 1925 ई. को पंजाब के अमृतसर श्‍ााहर में हुआ था। इनके पिता श्री करमचन्‍द गुगलानी अधिवक्‍ता होते हुए भी साहित्‍य और संगीत के प्रमी थे, जिसका प्रभाव मोहन राकेश के जीवन पर पड़ा। मोहन राकेश ने लाहौर के ओरियण्‍टल कॉलेज सो शास्‍त्री परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद न्दिी औार संस्‍कृत विषयों म्‍ैा एम्‍ा.ए. किया शिक्षा समाप्ति के अनन्‍तर इन्‍होंने अध्‍यापन का काय्र किया। इन्‍होंने मुम्‍बई, शिमला, जालन्‍धर तथा दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय में अध्‍यापन किया, परन्‍प्‍तु अध्‍यापन में विशेष रुचि न होने के कारण इन्‍होंने सन् 1962-63 ई. मेंं मासिक पत्रिका ‘सारिका’ के सम्‍पादन का कार्यभर सँभाला। कुछ समय पख्श्‍चात् इस कार्य को भी छोड़कर इन्‍होंने स्‍वतन्‍त्र ले...

मोहन राकेश हिन्दी कहानियाँ

मोहन राकेश मोहन राकेश (८ जनवरी १९२५-३ जनवरी १९७२) नई कहानी आन्दोलन के सशक्त हस्ताक्षर थे। पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए किया। जीविकोपार्जन के लिये अध्यापन । कुछ वर्षो तक 'सारिका' के संपादक । 'संगीत नाटक अकादमी' से सम्मानित । वे हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और उपन्यासकार हैं। मोहन राकेश की डायरी हिंदी में इस विधा की सबसे सुंदर कृतियों में एक मानी जाती है। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं; उपन्यास: अंधेरे बंद कमरे, अन्तराल, न आने वाला कल; नाटक: आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस, आधे अधूरे, अण्डे के छिलके; कहानी संग्रह: क्वार्टर तथा अन्य कहानियाँ, पहचान तथा अन्य कहानियाँ, वारिस तथा अन्य कहानियाँ; निबंध संग्रह: परिवेश; अनुवाद: मृच्छकटिक, शाकुंतलम; यात्रा वृताँत: आखिरी चट्टान ।

मोहन राकेश का जीवन परिचय

मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में हुआ। वे मूलतः एक सिंधी परिवार से थे। उनके पिता कर्मचन्द बहुत पहले सिंध से पंजाब आए थे। मोहन राकेश नई कहानी आंदोलन से जुड़े महत्वपूर्ण कथाकार थे। पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी और अँग्रेज़ी में एम. ए. थे। जीविका हेतु अध्यापन से जुड़े। कुछ वर्षो तक 'सारिका' के संपादक भी किए। 'आषाढ़ का एक दिन','आधे अधूरे' और ‘लहरों के राजहंस’ के महत्वपूर्ण नाटकों के रचनाकार हैं। 'संगीत नाटक अकादमी' से सम्मानित हैं। उनकी डायरी हिंदी में इस विधा की सबसे सुंदर कृतियों में एक मानी जाती है। सर्वप्रथम कहानी के क्षेत्र में सफल लेखन के बाद नाट्य-लेखन में ख्याति के नए स्तंभ स्थापित किए। हिंदी नाटकों में भारतेंदु और प्रसाद के बाद का युग मोहन राकेश युग है, ऐसा कह सकते हैं। उन्होंने हिंदी में हो रहे नाट्य-लेखन को रंगमंच पर प्रतिष्ठित किया। मोहन राकेश के नाटक पहली बार हिंदी को अखिल भारतीय स्तर ही नहीं प्रदान किया वरन् उसके सदियों के अलग-थलग प्रवाह को विश्व नाटक की एक सामान्य धारा की ओर भी मोड़ दिया। इब्राहीम अलकाजी, ओम शिवपुरी, अरविन्द गौड़, श्यामानंद जालान, राम गोपाल बजाज और दिनेश ठाकुर जैसे प्रमुख भारतीय निर्देशकों ने मोहन राकेश के नाटकों का निर्देशन किया। 3 दिसम्बर 1972 को नई दिल्ली में उनका आकस्मिक निधन हुआ। प्रमुख कृतियाँ उपन्यास: अँधेरे बंद कमरे 1961, अंतराल 1972, न आने वाला कल 1968 ,काँपता हुआ दरिया/अपूर्ण। नाटक: आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस, आधे अधूरे, पैर तले की ज़मीन (अधूरा, कमलेश्वर ने पूरा किया), सिपाही की मां, प्यालियाँ टूटती हैं, रात बीतने तक, छतरियाँ, शायद, हंः। एकांकी: अण्डे के छिल्के, बहुत बड़ा सवाल कहानी संग्रह: क्वार्टर तथा अन्य कहानिय...