रूपक अलंकार के 20 उदाहरण

  1. रूपक अलंकार किसे कहते है ? परिभाषा , उदाहरण
  2. रूपक अलंकार (Rupak Alankar) की परिभाषा, भेद एवं उदाहरण


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रूपक अलंकार किसे कहते है ? परिभाषा , उदाहरण

अनुक्रम • • • • • रूपक अलंकार किसे कहते है ? परिभाषा , उदाहरण रूपक अलंकार किसे कहते है ? परिभाषा , उदाहरण रूपक अलंकार किसे कहते है ? ऐसा अंलकार जिसमे गुण के अत्यधिक समान होने पर उपमेय में उपमान का अभेद आरोप लगाया जाता हैं। वहां पर रूपक अलंकार होता हैं। रूपक अलंकार के उदाहरण – रूपक अलंकार के उदाहरण निम्नलिखित हैं। ■ उदित उदयगिरि मंच पर , रघुवर बाल पतंग। विकसे सन्त – सरोज सब , हरषे लोचन – भृंग ।। ऊपर दिए गए उदाहरण में हम देख रहे है कि उदयगिरि में मंच का , और रघुवर में बाल पतंग मतलब सूर्य का , सन्त में सरोज का और लोचन में भृंग का अभेद आरोप लग रहा हैं। इस वजह से इन पंक्तियों में रूपक अलंकार हैं। ■ मन सागर मनसा लहरी , बूड़े – बहे अनेक । ऊपर दी गयी पक्तियों में हम देख रहे है कि मन पर सागर का मनसा पर लहरी का अभेद आरोप लग रहा हैं। जिस वजह से इन पंक्तियों में रूपक अलंकार हैं। ■ शशि – मुख पर घूँघट डाले। अंचल में दीप छिपाए।। रूपक अलंकार के अन्य उदाहरण – रूपक अलंकार के अन्य उदाहरण निम्नलिखित हैं। ●विषय – वारि मन – मीन भिन्न नहिं , होत कबहु पल एक।। ●सिर झुका तूने नियति की मान ली यह बात। स्वयं ही मुर्झा गया तेरा हृदय – जलजात।। ● अपलक नभ नील नयन विशाल। ● मैया मै तो चन्द्र – खिलौना लैहों।। ● चरण कमल बंदौ हरीराई। ● सब प्राणियों के मत्त मनोमयूर अहा नचा रहा। ● पायो जी मैंने राम रतन धन पायो। रूपक अलंकार के परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर – रूपक अलंकार के परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर निम्नलिखित हैं। ◆ बीती विभावरी जाग री अम्बर – पनघट में डुबो रही तारा घट उषा – नागरी।। ◆ मैया मै तो चन्द्र खिलौना लैहों। ◆ये तेरा शिशु जग हैं उदास । ◆अम्बर – पनघट में डुबो रही तारा – घट उषा – नागरी ◆ मुख रूपी चाँद पर राहु भी ध...

रूपक अलंकार (Rupak Alankar) की परिभाषा, भेद एवं उदाहरण

स्पष्टीकरण—उपर्युक्त उदाहरण में चिन्ता उपमेय में विश्व-वन की व्याली आदि उपमानों का आरोप किया गया है। अत: यहाँ रूपक अलंकार है। —:अथवा:— गिरा-अनिल मुख पंकज रोकी। प्रकट न लाज-निशा अवलोकी।। स्पष्टीकरण—यहाँ गिरा(वाणी) में भौंरे का, मुख में कमल और लाज में निशा का निषेधरहित आरोप होने से रूपक अलंकार है। रूपक अलंकार के भेद अथवा प्रकार— सांगरूपक अंलकार के उदाहरण— रनित भृंग-घंटावली, झरति दान मधु-नीर। मंद-मंद आवत चल्यौ, कुंजर कुंज-समीर।। स्पष्टीकरण—उपर्युक्त उदाहरण में समीर में हाथीका, भृंग में घण्टेका और मकरंद में दान (मद-जल)का आरोप किया गया है। इस प्रकार वायु के अवयवों पर हाथी का आरोप होने के कारण यहाँ सांगरूपक अंलकारहै। (ख). निरंग रूपक अलंकार की परिभाषा— जहाँ अवयवों से रहित केवल उपमेय का उपमान पर अभेद आरोप होता है। वहाँ निरंग रूपक अलंकारहोता है। निरंग रूपक अलंकार के उदाहरण— इस हृदय-कमल का घिरना, अलि-अलको की उलझन में आँसू करन्द का गिरना, मिलना नि:श्वास पवन में । स्पष्टीकरण—उपर्युक्त उदाहरण में हृदय ( उपमेय) पर कमल ( उपमान) का; अलकों ( उपमेय) पर अलि ( उपमान), आँसू ( उपमेय) पर करन्द पवन ( उपमान) का आरोप किया गया है; अत: यहाँ निरंग रूपक अलंकारहै। (ग). परम्परिक रूपक अलंकार की परिभाषा— जहाँ उपमेय पर एक आरोप दूसरे का कारण होता है; वहाँ परम्परिक रूपक अलंकारहोता है। परम्परिक रूपक अलंकार के उदाहरण— बाड़व-ज्वाला सोती थी, इस प्रणय सिन्ध के तल में। प्यासी मछली सी आँखें, थी विकल रूप के जल में।। स्पष्टीकरण —उपर्युक्त उदाहरण में आँखों ( उपमेय) पर मछली ( उपमान) का आरोप, रूप ( उपमेय) पर जल ( उपमान) का आरोप के कारण किया गया है। अत: यहाँ परम्परिक रूपक अलंकारहै। स्पष्टीकरण—यहाँ गिरा(वाणी) में भौंरे का,...