शरद पूर्णिमा की कहानी

  1. Sharad Purnima Date and time Vrat Story scientific reason zee news hindi
  2. Sharad Purnima 2021: शरद पूर्णिमा की रात में बरसती हैं अमृत की बूंदें, जान लें तिथि और शुभ मुहूर्त
  3. Sharad Purnima in Hindi
  4. शरद पूर्णिमा: जानें देवी लक्ष्मी की पूजा के पीछे का महत्व और मुहूर्त


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Sharad Purnima Date and time Vrat Story scientific reason zee news hindi

Sharad Purnima Vrat Story: आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा या रास पूर्णिमा कहा जाता है. ज्योतिष की मान्यता है कि पूरे वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा 16 कलाओं का होता है. इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना नदी के तट पर मुरली वादन करते हुए गोपियों के साथ रास रचाया था. इस वर्ष यह पर्व 9 अक्टूबर 2022 को पड़ेगा. इस दिन प्रातः काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्रों, आभूषणों से सुशोभित कर आसन, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से पूजन करना चाहिए. गौ दूध से बनी खीर में घी तथा चीनी मिलाकर रख देना चाहिए और अर्धरात्रि को रसोई समेत भगवान का भोग लगाना चाहिए. रात्रि जागरण करके भगवद भजन करते हुए चांद की रोशनी में ही सुई में धागा पिरोना चाहिए. पूर्ण चंद्रमा की चांदनी के मध्य खीर से भरी थाली को रख देना चाहिए और दूसरे दिन उसका प्रसाद सबको देना चाहिए. रात्रि में ही कथा सुननी चाहिए और इसके लिए एक लोटे में जल रखकर पत्ते के दोने में गेहूं और रोली अक्षत रखकर कलश का पूजन कर दक्षिणा चढ़ाएं. गेहूं के 14 दानें हाथ में लेकर कथा सुनें और लोटे के जल से रात में चंद्रमा को अर्घ्य दें. जो लोग विवाह होने के बाद पूर्णिमा के व्रत का नियम शुरू करते हैं, उन्हें शरद पूर्णिमा के दिन से ही व्रत का प्रारंभ करना चाहिए. शरद पूर्णिमा की व्रत कथा एक साहूकार के दो पुत्रियां थीं और दोनों ही पूर्णमासी का व्रत रखती थीं, लेकिन बड़ी वाली पूरे विधि-विधान को मानती थी, जबकि छोटी अधूरा व्रत ही करती थी. दोनों का विवाह हो गया और वे अपने घर चली गईं. बड़ी के कई संतानें हुईं, किंतु छोटी की संतानें जन्म लेते ही मर जाती थीं. छोटी ने तमाम विद्वान पंडितों को बुलाकर क...

Sharad Purnima 2021: शरद पूर्णिमा की रात में बरसती हैं अमृत की बूंदें, जान लें तिथि और शुभ मुहूर्त

साल की सभी पूर्णिमा तिथि की महत्ता बताई गयी है मगर इस सब में शरद पूर्णिमा का स्थान विशेष है। पंचांग के अनुसार हर साल आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को ही शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा, आश्विन पूर्णिमा और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। वर्ष की इस पूर्णिमा तिथि के साथ कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। इस पूर्णिमा पर चंद्रमा की रौशनी में अलग चमक देखने को मिलती है। इतना ही नहीं, इसकी किरणों में औषधीय गुण भी समाहित होता है जो सामान्य सी खीर को भी अमृत समान बना देती है। शरद पूर्णिमा के मौके पर राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती और लक्ष्मी-श्रीहरि की पूजा की जाती है। जानते हैं साल 2021 में शरद पूर्णिमा किस दिन है और हिंदू धर्म में इस तिथि की क्या महत्ता है। शरद पूर्णिमा पर आसमान से बरसता है अमृत शरद पूर्णिमा के मौके पर लोग चावल और दूध से तैयार खीर को खुले आसमान के नीचे रखते हैं। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के मौके पर चंद्रमा की किरणें औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं और जब यह खीर पर पड़ती है तो वह अमृत के समान हो जाती है। इस खीर का सेवन करने से कई तरह के लाभ मिलते हैं। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा तिथि पर चंद्रमा पृथ्वी के काफी नजदीक रहता है। इस तिथि पर चांद पूर्ण कलाओं में होता है और अपनी चमकती रौशनी से धरती को नहला देता है। इस दिन चन्द्रदेव की विशेष पूजा की जाती है। शरद पूर्णिमा तिथि पर ही भगवान श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी पूजन समुद्र मंथन से केवल अमृत ही नहीं निकला था। क्षीर सागर में देव और दैत्यों द्वारा किए मंथन से शरद पूर्णिमा के दिन ही लक्ष्मी माता की उत्पत्ति भी हुई थी। इस दिन माता लक्ष्मी की विशेष पूजा करने का...

Sharad Purnima in Hindi

एक साहूकार के दो पुत्रियां थी ।दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थी। परंतु बड़ी पुत्री पूर्णिमा का पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा। परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री के संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने उसे बताया कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पूरा व्रत विधि पूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है। उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधि पूर्वक किया। उसके लड़का हुआ। परंतु शीघ्र ही मर गया। उसने लड़के को चौकी पर लिटा कर ऊपर से कपड़ा रख दिया। फिर बड़ी बहन को बुला कर लाइ और बैठने के लिए वही चौकी दे दी। बड़ी बहन जब चौकी पर बैठने लगी तो उसका घागरा बच्चे को छू गया। घागरा छूते ही बच्चा होने लगा। बड़ी बहन बोली —“ तू मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से या मर जाता।” तब छोटी बहन बोली —“ यह तो पहले ही मरा हुआ था। तेरे भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है।”

शरद पूर्णिमा: जानें देवी लक्ष्मी की पूजा के पीछे का महत्व और मुहूर्त

भारत के कुछ हिस्सों में शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) को शरद शब्द ही शरद ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है। शरद पूर्णिमा का बहुत बड़ा धार्मिक महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन समुद्र मंथन में मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था और जो कोई भी उनकी शरद पूर्णिमा के दिन पूर्णिमा का चन्द्रमा अपनी पूरी चमक के साथ दिखाई देता है। आयुर्वेद से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के चन्द्रमा में अमृत के गुण होते हैं। अत: बहुत से स्थानों पर खीर बनाकर उसे चन्द्रमा की रोशनी में रख दिया जाता है और अगले दिन प्रसाद के रूप में खाया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से उस खीर में अमृत के समान औषधीय गुण समाहित हो जाते हैं। इस दिन से ही मौसम बदलने लगता है और सर्दी का मौसम शुरू हो जाती है। आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा का महत्व और इसके पीछे की कहानी। लोग शरद पूर्णिमा को कोजागोरी पूर्णिमा के रूप में क्यों मनाते हैं? (Why People Celebrate Sharad Purnima as Kojagori Purnima) मुख्य रूप से कोजागोरी पूर्णिमा भारत के पूर्वी भाग में विशेषकर पश्चिम बंगाल में मनाई जाती है। बंगाल के लोग इस दिन को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। वे लक्ष्मी पूजा का आयोजन करते हैं, पूरा दिन विभिन्न अनुष्ठानों के जरिए लक्ष्मी को प्रसन्न करने का प्रयास किया जाता है। यहां पर देवी लक्ष्मी को मां लोकखी के नाम से भी जाना जाता है, और उनकी प्रतिमा की पूजा पूरी भक्ति के साथ की जाती है। फर्श पर रंगोली सजा कर लक्ष्मी का आह्वान किया जाता है। पूजा के समय देवी लक्ष्मी की मूर्ति को फूल, घर की मिठाई और दूध से बने उत्पाद अर्पित किए जाते हैं। मां लोकखी के लिए लोग नाडु की घर की बनी मिठाई तैयार करते हैं। अपने घर पर लक्ष्मी पूजा का आयोजन करने के लिए...