शुक्ल युग का नामकरण किस विद्वान के नाम पर किया गया है

  1. हिन्दी साहित्य का काल
  2. आदिकाल
  3. शुक्लोत्तर युग के निबंधकार और उनके निबंध । Shuklotar yug ke Nibandh Kaar
  4. s0≤(pC) खण्ड
  5. आदिकाल का नामकरण और सीमा निर्धारण
  6. द्विवेदी युग का नामकरण, प्रवृत्तियॉं प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाऍं
  7. s0≤(pC) खण्ड
  8. द्विवेदी युग का नामकरण, प्रवृत्तियॉं प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाऍं
  9. आदिकाल का नामकरण और सीमा निर्धारण
  10. शुक्लोत्तर युग के निबंधकार और उनके निबंध । Shuklotar yug ke Nibandh Kaar


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हिन्दी साहित्य का काल

हिन्दी,बोलियां,हिन्दी साहित्य का इतिहास,आदिकाल,भक्तिकाल,रीतिकाल,आधुनिक काल हिंदी कथा साहित्य,कविता हिंदी के प्रमुख कवि व रचनाएँ देवनागरी लिपि,हिंदी व्याकरण,मानक हिन्दी, नवीनतम शोध ,हिंदी साहित्य और नवजागरण,हिंदी साहित्य और स्वतंत्रता संघर्ष,मार्क्सवाद और हिंदी साहित्य,हिंदी अलंकार,पुरस्कार,हिंदी आलोचना,हिंदी आत्मकथा,हिंदी उपन्यास ,हिंदी के साहित्यकार,हिंदी साहित्य भाषा विज्ञान,हिंदी में रस, यूपीएससी,नेट,हिंदी रचना,हिंदी रचनाएँ,साहित्य विमर्श,हिंदी शिक्षण विधियाँ' साहित्य सृजन निरन्तर निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। किसी भी भाषा का साहित्य स्थिर न होकर निरन्तर परिवर्तनशील होता है। इसके परिवर्तनों का व साहित्य के समुचित अध्ययन के लिए उसे कालानुक्रम में विभक्त किया जा न आवश्यक है। किसी भी साहित्य के इतिहास का काल - विभाजन करने की सर्वाधिक उपयुक्त प्रणाली उस साहित्य में प्रवाहित साहित्य धाराओं , विविध प्रवृत्तियोंके आधार पर उसे विभाजित करना है। युग की परिस्थितियों के अनुकूल साहित्य में विषय तथा शैलीगत प्रवृतियों परिवर्तित होता रहता है। हिन्दी में भी एक विशेष काल में समाज की विशेष परिस्थितियाँ एवं तत्सम्बन्धी विचारधाराएँ रही है और उन्हीं के अनुरुप साहित्यिक रचनाएँ हुई है।काल विभाजन के सम्बंध में आचार्य शुक्ल का मत है- " जबकि प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब होता है तब यह निश्चित्त है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ - साथ साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है। आदि से अन्त तक इन्ही चित्तवृत्तियोंकी परम्परा को परखते हुए साहित्य परम्परा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना ही साहित्य का इतिहास कहलाता है।“ हिन्दी साहित्य के इतिहास...

आदिकाल

अनुक्रम • 1 चारण-साहित्य • 2 सिद्ध और नाथ साहित्य • 3 जैन साहित्य • 4 रासो साहित्य • 5 प्रकीर्णक साहित्य • 6 हिन्दी के सर्वप्रथम कवि • 7 इन्हें भी देखें • 8 बाहरी कड़ियाँ चारण-साहित्य [ ] चारण कवियों ने अपने साहित्य में चारण-साहित्य का वर्गिकरण काव्य-विषय अनुसार ( स्रोत: ग्रंथ-शैली अनुसार स्रोत: 1 स्तवन 1 राजस्थानी साहित्य के इतिहासपरक ग्रन्थ जिनमें 2 बीरदवालो युद्धनायकों, 2 इस श्रेणी की रचनाओं में 3 वरन्नो 3 दवावैत यह उर्दू-फारसी की शब्दावली से युक्त राजस्थानी कलात्मक लेखन शैली है, किसी की प्रशंसा दोहों के रूप में की जाती है। 4 उपलम्भो उन राजाओं की आलोचना/निन्दा जो अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके कोई गलत कार्य करते हैं। 4 वार्ता या वात वात का अर्थ कथा या 5 थेकड़ी किसी महनायक के साथ किए गए विश्वासघात की निंदा करना 5 काव्य ग्रन्थ जिनमें शासकों के युद्ध अभियानों व वीरतापूर्ण कृत्यों के विवरण के साथ उनके राजवंश का विवरण भी मिलता है। बीसलदेव रासो, पृथ्वीराज रासो आदि मुख्य रासो ग्रन्थ हैं। 6 मरस्या (विलाप-काव्य) योद्धाओं, संरक्षको, मित्रों या राजा के मृत्योपरान्त शोक व्यक्त करने के लिए रचित काव्य, जिसमें उस व्यक्ति के चारित्रिक गुणों के अलावा अन्य क्रिया-कलापों का वर्णन किया जाता है। 6 वेलि वीरता, इतिहास, विद्वता, उदरता, प्रेम-भावना, स्वामिभक्ति आदि घटनाओं का उल्लेख होता है। 7 प्रेमकथाएँ 7 विगत यह भी इतिहासपरक ग्रन्थ लेखन की शैली है। 'मारवाड़ रा परगना री विगत' इस शैली की प्रमुख रचना है। 8 प्राकृतिक सुन्दरता का वर्णन, ऋतु वर्णन, उत्सव वर्णन 8 प्रकास किसी वंश अथवा व्यक्ति विषेष की उपलब्धियाँ या घटना विशेष पर प्रकाश डालने वाली कृतियाॅं ‘प्रकास‘ कहलाती है। राजप्रकास, पाबू प्रकास, उदय प...

शुक्लोत्तर युग के निबंधकार और उनके निबंध । Shuklotar yug ke Nibandh Kaar

शुक्लोत्तर युग के निबंधकार • शुक्ल परवर्ती निबंधकारों में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी , डॉ. नगेन्द्र , आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी , जैनेंद्र , डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल , डॉ. सत्येंद्र , शांति प्रिय द्विवेदी , डॉ. विनय मोहन शर्मा , डॉ. रामरतन भटनागर , डॉ. राम विलास शर्मा , डॉ. विश्वंभर ' मानव ', प्रभाकर माचवे , डॉ. पदम सिंह शर्मा कमलेश , इलाचन्द्र जोशी , डॉ. भगीरथ मिश्र , चन्द्रवली पांडेय , डॉ. भगवत शरण उपाध्याय , राम वक्ष बेनीपुरी , कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर , रामधारी सिंह दिनकर , शिवदान सिंह चौहान , प्रकाश चन्द्र गुप्त तथा देवेन्द्र सत्यार्थी आदि प्रमुख हैं। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी • शुक्ल परवर्ती निबंधकारों में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी सर्वश्रेष्ठ निबंधकार हैं। इनके निबंध संग्रहों में अशोक के फूल , कल्पलता विचार और वितर्क , विचार प्रवाह तथा कुटज विशेष उल्लेखनीय संग्रह हैं। द्विवेदी का निबंध क्षेत्र अति व्यापक है। उन्होंने भारतीय साहित्य , भारतीय संस्कृति , प्रकृति , परंपरागत ज्ञान-विज्ञान , आधुनिक युगीन विभिन्न परिवेशों , प्रवतियों एवं समस्याओं का अपूर्व समन्वय किया है। उनके निबंध अध्ययन क्षेत्र की व्यापकता तथा चिंतन की गंभीरता से युक्त हैं किन्तु द्विवेदी की वैयक्तिक सरलता , सहजता , सरसता एवं विनोदी स्वभाव उसने नीसरता , शुष्कता या दुर्बोधता का प्रवेश नहीं होने देता है। व्यक्ति एवं विषय का पूर्ण तादात्म्य उनमें दष्टिगोचर होता है। उनके गंभीर से गंभीर निबंधों को पढ़ते समय पाठक ऊबता नहीं है अपितु उपन्यास या काव्यानंद की रस विभोरता का अनुभव करता है। जिन निबंधों के लेखन में द्विवेदी का मन रमा नहीं है वे सरसता के अपवाद स्वरूप हैं। जब लेखक का मन ही नहीं रमा है तो पाठक का...

s0≤(pC) खण्ड

s 0 ≤ ( pC ) खण्ड - 'अx' बहुविकल्पीय ( वस्तुनिष्ठ) पश्न 1. 'शुक्ल युग' का नामकरण किस विद्वान के नाम पर किया गया है ? (A) वंशीधर शुक्ल (B) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (C) बैंकुठनाध शुक्ल (D) रामचरण शुक्ल 2. 'सेवासदन' उपन्यास के लेखक हैं (A) जैनेन्द्र (B) यशपाल (C) प्रेमचन्द. (D) जयशंकर प्रसाद 3. 'शुक्ल युग' के नाटककार निम्नलिखित में से कौन नहीं हैं ? (A) जयशंकर प्रसाद (B) डौ० रामकुमार वर्मा (C) हरिकृष्म प्रेमी (D) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र 4. प्रसिद्ध आत्मकथा 'क्या भूलू क्या याद करूँ के लेखक हैं (A) हरिवंशराय 'बच्चन', (B) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (C) पण्डेय बेचन शार्मा 'उम्र' (D) रामविलास शम्मां 5. निम्नलिखित में से कौन प्रसिद्ध यात्ता साहित्यकार हैं ? (A) जयशंकर प्रसाद (B) ऐ्रेमचन्द (C) राहुल सांकृत्यायन (D) हजारीप्रसाद द्विवेदीं 6. रीतिकाल के 'बीर रस' के प्रसिद्ध कवि हैं (A) देव (B) घनानंद (C) भूषण (D) बिहारी 7. 'रामचन्द्रिका' के रचनाकार हैं (A) बिहारी (B) केशवदास (C) भूषण (D) मतिराम 03000/37 s 0 ≤ ( pC ) खण्ड - 'अx' बहुविकल्पीय ( वस्तुनिष्ठ) पश्न 1. 'शुक्ल युग' का नामकरण किस विद्वान के नाम पर किया गया है ? (A) वंशीधर शुक्ल (B) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (C) बैंकुठनाध शुक्ल (D) रामचरण शुक्ल 2. 'सेवासदन' उपन्यास के लेखक हैं (A) जैनेन्द्र (B) यशपाल (C) प्रेमचन्द. (D) जयशंकर प्रसाद 3. 'शुक्ल युग' के नाटककार निम्नलिखित में से कौन नहीं हैं ? (A) जयशंकर प्रसाद (B) डौ० रामकुमार वर्मा (C) हरिकृष्म प्रेमी (D) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र 4. प्रसिद्ध आत्मकथा 'क्या भूलू क्या याद करूँ के लेखक हैं (A) हरिवंशराय 'बच्चन', (B) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (C) पण्डेय बेचन शार्मा 'उम्र' (D) रामविलास शम्मां 5. निम्नलिखित ...

आदिकाल का नामकरण और सीमा निर्धारण

आदिकाल का नामकरण और सीमा निर्धारण आदिकाल का नामकरण और सीमा निर्धारण : हिंदी साहित्य के इतिहास के विवादास्पद प्रसंगों में एक हिंदी साहित्य के आदिकाल का भी प्रसंग रहा है। हिंदी साहित्य के इतिहास के अनेक विद्वान लेखकों ने इस संबंध में अपने-अपने मत प्रस्तुत किए हैं। आदिकाल का नामकरण और सीमा निर्धारण हिंदी साहित्य के विधिवत् इतिहास लेखन से पूर्व ‘भक्तमाल’ ‘चैरासी वैष्णवन की वार्ता’ ‘दो सौ वैष्णव’ की वार्ता’ आदि कतिपय कविवृत संग्रह दो लिखे गए जिनमें काल-विभाजन और नामकरण की खोज की ओर कोई दृष्टि नहीं गई। कुछ विद्वान इसे वीरगाथात्मक रचनाओं की प्रधानता के कारण इसे वीरगाथाकाल कहने के पक्ष में है,लेकिन सिद्धों और नाथों की रचनाएँ इस परिधि में नहीं आ सकती। अतः ‘वीरगाथाकाल’ न कहकर कुछ ने इसे आदिकाल कहा है, तो किसी ने बीजवपन काल। वीरगाथाकालः आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने प्रारम्भिक युग के साहित्य को दो कोटियों-अपभ्रंश और देशभाषा में बाँटा है। उनके मत में सिद्धों और योगियों की रचनाओं का जीवन की स्वाभाविक सरणियों, अनुभूतियों और दशाओं से कोई संबंध नहीं, वे साम्प्रदायिक शिक्षामात्रा हैं। अतः शुद्ध साहित्य की कोटि में नहीं आती और जो साहित्य की कोटि में गिनी जा सकी हैं वे कुछ फुटकर रचनाएँ हैं, जिनसे कोई विशेष प्रवृत्ति स्पष्ट नहीं होती है। उनके मत में तत्कालीन साहित्यिक रचनाओं में से केवल ‘खुसरो की पहेलियाँ’, ‘विद्यापति पदावली’ तथा ‘बीसलदेवरासो’ को छोड़कर सभी रचनाएँ वीरगाथात्मक हैं। इस युग में राज्याश्रित कवि अपने आश्रयदाता राजा की वीरता का यशोगान तथा उन्हें युद्धों के लिए उकसाने का काम करते थे। इसलिए उन रचनाओं को राजकीय पुस्तकालयों में रखा जाता था। लेकिन बाद में साहित्य संबंधी जो खोज की गई उसके अन...

द्विवेदी युग का नामकरण, प्रवृत्तियॉं प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाऍं

द्विवेदी युग: हिंदी साहित्य में भारतेंदु युग के बाद का समय को द्विवेदी युग का नाम दिया गया है। इस युग का नाम महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम से रखा गया है।डॉ. नगेन्द्र ने इस युग को ‘जागरण-सुधार काल’ भी कहा जाता है तथा इसकी समयावधि 1900 से 1918 ई. तक माना। वहीं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने द्विवेदी युग को‘नई धारा: द्वितीय उत्थान’ के अन्तर्गत रखा है तथा समयावधि सन् 1893 से 1918 ई. तक माना है। महावीर प्रसाद द्विवेदी एक महान साहित्यकार थे, जो बहुभाषी होने के साथ ही साहित्य के इतर विषयों में भी समान रुचि रखते थे। उन्होंने सरस्वती का 18 वर्षों तक संपादन कर हिन्दी पत्रकारिता में एक महान कीर्तिमान स्थापित किया था। वे हिन्दी के पहले व्यवस्थित समालोचक थे, जिन्होंने समालोचना की कई पुस्तकें लिखी थीं। वे खड़ीबोली हिन्दी की कविता के प्रारंभिक और महत्वपूर्ण कवि थे। आधुनिक हिन्दी कहानी उन्हीं के प्रयत्नों से एक साहित्यिक विधा के रूप में मान्यता प्राप्त कर सकी थी। वे भाषाशास्त्री, अनुवादक, इतिहासज्ञ, अर्थशास्त्री तथा विज्ञान में भी गहरी रुचि रखने वाले थे। अत: वे युगांतर लाने वाले साहित्यकार थे या दूसरे शब्दों में कहें, युग निर्माता थे। वे अपने चिन्तन और लेखन के द्वारा हिन्दी प्रवेश में नव-जागरण पैदा करने वाले साहित्यकार थे। Contents द्विवेदी युग का समय डॉ० नगेन्द्र ने द्विवेदी काल को 'जागरण सुधार काल' नाम से अभिहित किया और इसकी समयावधि 1900 से 1918 ई० तक माना। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने द्विवेदी युग को 'नई धारा : द्वितीय उत्थान' के अन्तर्गत रखा है तथा समयावधि सन् 1893 से 1918 ई० तक माना है। तथा कहींं कही इसकी समय अवधि 1900 से 1920 ई० तक भी देखने को मिलती हैं। द्विवेदी युग का नामकरण डॉ. शिवकुमार ...

s0≤(pC) खण्ड

s 0 ≤ ( pC ) खण्ड - 'अx' बहुविकल्पीय ( वस्तुनिष्ठ) पश्न 1. 'शुक्ल युग' का नामकरण किस विद्वान के नाम पर किया गया है ? (A) वंशीधर शुक्ल (B) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (C) बैंकुठनाध शुक्ल (D) रामचरण शुक्ल 2. 'सेवासदन' उपन्यास के लेखक हैं (A) जैनेन्द्र (B) यशपाल (C) प्रेमचन्द. (D) जयशंकर प्रसाद 3. 'शुक्ल युग' के नाटककार निम्नलिखित में से कौन नहीं हैं ? (A) जयशंकर प्रसाद (B) डौ० रामकुमार वर्मा (C) हरिकृष्म प्रेमी (D) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र 4. प्रसिद्ध आत्मकथा 'क्या भूलू क्या याद करूँ के लेखक हैं (A) हरिवंशराय 'बच्चन', (B) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (C) पण्डेय बेचन शार्मा 'उम्र' (D) रामविलास शम्मां 5. निम्नलिखित में से कौन प्रसिद्ध यात्ता साहित्यकार हैं ? (A) जयशंकर प्रसाद (B) ऐ्रेमचन्द (C) राहुल सांकृत्यायन (D) हजारीप्रसाद द्विवेदीं 6. रीतिकाल के 'बीर रस' के प्रसिद्ध कवि हैं (A) देव (B) घनानंद (C) भूषण (D) बिहारी 7. 'रामचन्द्रिका' के रचनाकार हैं (A) बिहारी (B) केशवदास (C) भूषण (D) मतिराम 03000/37 s 0 ≤ ( pC ) खण्ड - 'अx' बहुविकल्पीय ( वस्तुनिष्ठ) पश्न 1. 'शुक्ल युग' का नामकरण किस विद्वान के नाम पर किया गया है ? (A) वंशीधर शुक्ल (B) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (C) बैंकुठनाध शुक्ल (D) रामचरण शुक्ल 2. 'सेवासदन' उपन्यास के लेखक हैं (A) जैनेन्द्र (B) यशपाल (C) प्रेमचन्द. (D) जयशंकर प्रसाद 3. 'शुक्ल युग' के नाटककार निम्नलिखित में से कौन नहीं हैं ? (A) जयशंकर प्रसाद (B) डौ० रामकुमार वर्मा (C) हरिकृष्म प्रेमी (D) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र 4. प्रसिद्ध आत्मकथा 'क्या भूलू क्या याद करूँ के लेखक हैं (A) हरिवंशराय 'बच्चन', (B) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (C) पण्डेय बेचन शार्मा 'उम्र' (D) रामविलास शम्मां 5. निम्नलिखित ...

द्विवेदी युग का नामकरण, प्रवृत्तियॉं प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाऍं

द्विवेदी युग: हिंदी साहित्य में भारतेंदु युग के बाद का समय को द्विवेदी युग का नाम दिया गया है। इस युग का नाम महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम से रखा गया है।डॉ. नगेन्द्र ने इस युग को ‘जागरण-सुधार काल’ भी कहा जाता है तथा इसकी समयावधि 1900 से 1918 ई. तक माना। वहीं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने द्विवेदी युग को‘नई धारा: द्वितीय उत्थान’ के अन्तर्गत रखा है तथा समयावधि सन् 1893 से 1918 ई. तक माना है। महावीर प्रसाद द्विवेदी एक महान साहित्यकार थे, जो बहुभाषी होने के साथ ही साहित्य के इतर विषयों में भी समान रुचि रखते थे। उन्होंने सरस्वती का 18 वर्षों तक संपादन कर हिन्दी पत्रकारिता में एक महान कीर्तिमान स्थापित किया था। वे हिन्दी के पहले व्यवस्थित समालोचक थे, जिन्होंने समालोचना की कई पुस्तकें लिखी थीं। वे खड़ीबोली हिन्दी की कविता के प्रारंभिक और महत्वपूर्ण कवि थे। आधुनिक हिन्दी कहानी उन्हीं के प्रयत्नों से एक साहित्यिक विधा के रूप में मान्यता प्राप्त कर सकी थी। वे भाषाशास्त्री, अनुवादक, इतिहासज्ञ, अर्थशास्त्री तथा विज्ञान में भी गहरी रुचि रखने वाले थे। अत: वे युगांतर लाने वाले साहित्यकार थे या दूसरे शब्दों में कहें, युग निर्माता थे। वे अपने चिन्तन और लेखन के द्वारा हिन्दी प्रवेश में नव-जागरण पैदा करने वाले साहित्यकार थे। Contents द्विवेदी युग का समय डॉ० नगेन्द्र ने द्विवेदी काल को 'जागरण सुधार काल' नाम से अभिहित किया और इसकी समयावधि 1900 से 1918 ई० तक माना। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने द्विवेदी युग को 'नई धारा : द्वितीय उत्थान' के अन्तर्गत रखा है तथा समयावधि सन् 1893 से 1918 ई० तक माना है। तथा कहींं कही इसकी समय अवधि 1900 से 1920 ई० तक भी देखने को मिलती हैं। द्विवेदी युग का नामकरण डॉ. शिवकुमार ...

आदिकाल का नामकरण और सीमा निर्धारण

आदिकाल का नामकरण और सीमा निर्धारण आदिकाल का नामकरण और सीमा निर्धारण : हिंदी साहित्य के इतिहास के विवादास्पद प्रसंगों में एक हिंदी साहित्य के आदिकाल का भी प्रसंग रहा है। हिंदी साहित्य के इतिहास के अनेक विद्वान लेखकों ने इस संबंध में अपने-अपने मत प्रस्तुत किए हैं। आदिकाल का नामकरण और सीमा निर्धारण हिंदी साहित्य के विधिवत् इतिहास लेखन से पूर्व ‘भक्तमाल’ ‘चैरासी वैष्णवन की वार्ता’ ‘दो सौ वैष्णव’ की वार्ता’ आदि कतिपय कविवृत संग्रह दो लिखे गए जिनमें काल-विभाजन और नामकरण की खोज की ओर कोई दृष्टि नहीं गई। कुछ विद्वान इसे वीरगाथात्मक रचनाओं की प्रधानता के कारण इसे वीरगाथाकाल कहने के पक्ष में है,लेकिन सिद्धों और नाथों की रचनाएँ इस परिधि में नहीं आ सकती। अतः ‘वीरगाथाकाल’ न कहकर कुछ ने इसे आदिकाल कहा है, तो किसी ने बीजवपन काल। वीरगाथाकालः आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने प्रारम्भिक युग के साहित्य को दो कोटियों-अपभ्रंश और देशभाषा में बाँटा है। उनके मत में सिद्धों और योगियों की रचनाओं का जीवन की स्वाभाविक सरणियों, अनुभूतियों और दशाओं से कोई संबंध नहीं, वे साम्प्रदायिक शिक्षामात्रा हैं। अतः शुद्ध साहित्य की कोटि में नहीं आती और जो साहित्य की कोटि में गिनी जा सकी हैं वे कुछ फुटकर रचनाएँ हैं, जिनसे कोई विशेष प्रवृत्ति स्पष्ट नहीं होती है। उनके मत में तत्कालीन साहित्यिक रचनाओं में से केवल ‘खुसरो की पहेलियाँ’, ‘विद्यापति पदावली’ तथा ‘बीसलदेवरासो’ को छोड़कर सभी रचनाएँ वीरगाथात्मक हैं। इस युग में राज्याश्रित कवि अपने आश्रयदाता राजा की वीरता का यशोगान तथा उन्हें युद्धों के लिए उकसाने का काम करते थे। इसलिए उन रचनाओं को राजकीय पुस्तकालयों में रखा जाता था। लेकिन बाद में साहित्य संबंधी जो खोज की गई उसके अन...

शुक्लोत्तर युग के निबंधकार और उनके निबंध । Shuklotar yug ke Nibandh Kaar

शुक्लोत्तर युग के निबंधकार • शुक्ल परवर्ती निबंधकारों में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी , डॉ. नगेन्द्र , आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी , जैनेंद्र , डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल , डॉ. सत्येंद्र , शांति प्रिय द्विवेदी , डॉ. विनय मोहन शर्मा , डॉ. रामरतन भटनागर , डॉ. राम विलास शर्मा , डॉ. विश्वंभर ' मानव ', प्रभाकर माचवे , डॉ. पदम सिंह शर्मा कमलेश , इलाचन्द्र जोशी , डॉ. भगीरथ मिश्र , चन्द्रवली पांडेय , डॉ. भगवत शरण उपाध्याय , राम वक्ष बेनीपुरी , कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर , रामधारी सिंह दिनकर , शिवदान सिंह चौहान , प्रकाश चन्द्र गुप्त तथा देवेन्द्र सत्यार्थी आदि प्रमुख हैं। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी • शुक्ल परवर्ती निबंधकारों में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी सर्वश्रेष्ठ निबंधकार हैं। इनके निबंध संग्रहों में अशोक के फूल , कल्पलता विचार और वितर्क , विचार प्रवाह तथा कुटज विशेष उल्लेखनीय संग्रह हैं। द्विवेदी का निबंध क्षेत्र अति व्यापक है। उन्होंने भारतीय साहित्य , भारतीय संस्कृति , प्रकृति , परंपरागत ज्ञान-विज्ञान , आधुनिक युगीन विभिन्न परिवेशों , प्रवतियों एवं समस्याओं का अपूर्व समन्वय किया है। उनके निबंध अध्ययन क्षेत्र की व्यापकता तथा चिंतन की गंभीरता से युक्त हैं किन्तु द्विवेदी की वैयक्तिक सरलता , सहजता , सरसता एवं विनोदी स्वभाव उसने नीसरता , शुष्कता या दुर्बोधता का प्रवेश नहीं होने देता है। व्यक्ति एवं विषय का पूर्ण तादात्म्य उनमें दष्टिगोचर होता है। उनके गंभीर से गंभीर निबंधों को पढ़ते समय पाठक ऊबता नहीं है अपितु उपन्यास या काव्यानंद की रस विभोरता का अनुभव करता है। जिन निबंधों के लेखन में द्विवेदी का मन रमा नहीं है वे सरसता के अपवाद स्वरूप हैं। जब लेखक का मन ही नहीं रमा है तो पाठक का...